Three worlds-padam (73) “Brahmaloka and the subtle world: direction, position and experience

T-L-P 73 “ब्रह्मलोक और सूक्ष्म वतन:दिशा, स्थितिऔरअनुभूति

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ओम शांति कौन बनेगा पद्मा पदम पति सभी बनेंगे पद्मा पदम पति कैसे बनेंगे पद्मा पदम पति जब हम बाबा की श्रीमत पर एक एक कर्म को अकर्म बना दे अकर्म अर्थात न्यारा प्यारा कर कमल फूल समान कर् कितने कर सकेंगे जितना हमें बाबा का ज्ञान स्पष्ट [संगीत] होगा आज हम सूक्ष्म वतन ब्रह्म लोक और तीनों लोगों के बारे में जानने के लिए इस नए चैप्टर में प्रवेश कर रहे हैं आज का विषय है ब्रह्म लोक और सूक्ष्म वतन किस दिशा मे स्थित और अनुभूति वो किस दिशा में है किस स्थिति में है और कैसा है इन सब बातों को इस नए चैप्टर में हम करेंगे इसके लिए

हम सूक्ष्म वतन के चित्र को देखेंगे कि सूक्ष्म वतन आखिर है तो क्या है कहां है कैसा है और उसके ऊपर हम अपना विचार सागर मंथन करेंगे सबसे पहले आता है हमारे पास भूमिका मनुष्य के आध्यात्मिक चिंतन में यह प्रश्न सदैव आता है क्या है यह प्रश्न है कि ये सूक्ष्म वतन या ब्रह्म लोक जहां हम आत्माएं रहती हैं जहा सूक्ष्म लोक में हम आत्माएं पार्ट बजाती हैं वह क्या है कैसा है इसके बारे में हम जानने का प्रयास करेंगे ब्रह्मलोक और सूक्ष्म वतन कहां है और सूक्ष्म वतन की स्थिति क्या है और ब्रह्म लोक की स्थिति क्या है इन बातों को

हमें समझना है क्या वे भूमंडल के ऊपर ही है या संपूर्ण विश्व किसी अन्य तत्व से आवृत है इस गुण प्रश्न का उत्तर आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभूति के माध्यम से समझा जा सकता है आध्यात्मिक ज्ञान में हमें इसका जो चित्र है वह हम देख रहे हैं यहां पर यह चित्र बना हुआ है तीन लोकों का उसके अंदर हम ब्रह्मापुरी विष्णुपुरी और शंकरपुरी इन तीनों को देखते हैं ये आप देख रहे हैं ब्रह्मापुरी विष्णु पुरी और शंकर पुरी यह तीनों पुरिया यहां पर है ऐ ब्रह्मपुरी को ब्रह्म लोक कहेंगे एक है ब्रह्मापुरी एक है ब्रह्म लोक इन दोनों में भी हम अंतर को समझेंगे

यह है ब्रह्म लोक यह तीन लोक का चित्र है यह हम ब्रह्म लोक को देख रहे हैं यह ब्रह्म लोक मींस जहां हम आत्माएं रहती है ब्रह्मलोक का मतलब है कि जहां हम आत्माएं रहती हैं ठीक है और यह जो नीचे देख रहे हैं हम यह ब्रह्मापुरी विष्णु पुरी और शंकर पुरी यह तीन पुरिया हमारे सूक्ष्म लोक के चित्र में दिखाई गई है तीन लोक के चित्र में और यह है हम आत्माओं के खेल का मैदान पृथ्वी साकार मनुष्य लोक जहा हम आत्माएं आकर अपना पार्ट बजाते हैं ठीक है अभी हम इसके बारे में स्टेप बाय स्टेप समझने का प्रयास करेंगे भूमंडल सूक्ष्म वतन और ब्रह्मलोक भूमंडल

मतलब जहां हम रंग मंच पर खेल करने के लिए आते हैं जिसको हमने यहां पर देखा कि यह हमारा खेल का मैदान है और उसके बाद ऊपर यह जो है ना हमारा सूक्ष्म लोक है और यह हमारा ब्रह्म लोक है तो यह हमने तीन लों को देखा भूमंडल और आकाश तत्व यह भौतिक जगत जिसे भूलोक या पृथ्वी कहते हैं आकाश तत्व से घिरा हुआ है आकाश तत्व एक सूक्ष्म आवरण की तरह इस पृथ्वी को घेरे हुए हैं सूक्ष्म वतन का स्थान आकाश तत्व से परे सूक्ष्म वतन स्थिति है ध्यान देना है इस वतन का स्थान कहां है आकाश तत्व से परे सूक्ष्म वतन स्थित है यह स्थान स्थूल व जगत से

सूक्ष्म तर है सूक्ष्म तर समझते हैं बहुत ज्यादा सूक्ष्म है और यहां आत्माओं का सूक्ष्म अनुभव संभव है सूक्ष्म वतन एक मध्यवर्ती क्षेत्र है जो स्थूल से परे लेकिन परम धान से नीचे है समझ में आ रहा है अब इसको समझने के लिए आपको चित्र में जाना पड़ेगा यह चित्र को हम ध्यान से देखेंगे तो हम इसे समझ पाएंगे यह है हम आत्माओं का परमधाम जो लाल रंग में हम देख रहे हैं और उसके बाद इस परमधाम से नीचे यह परमधाम और परमधाम से नीचे ये सूक्ष्म लोक है और यह हम आत्माओं की खेल का मैदान भूलोक जहां हम पृथ्वी में रहते हैं जिसको

साकार लोक कहते हैं इसके ऊपर ये आकाश है इस आकाश से भी परे जो हमें बताया जा रहा है समझ रहे हैं आप उसके अंदर क्या है किस आकाश से परे और परमधाम से बीच में एक यह सूक्ष्म स्थान है यह आकाश से परे है इस बात को समझना है और आकाश से परे है और यहां से जो परम अव परम धाम है उसके नीचे और इस आकाश के बाद और सूक्ष्म ध्यान से देखना है कि आकाश के ये भी पार है सूक्ष्म वतन भी आकाश से बाहर है और परमधाम तो है आकाश से बाहर ठीक है परमधाम से नीचे और आकाश से बाहर है ब्रह्म लोक और ब्रह्म तत्व सूक्ष्म वतन भी एक सूक्ष्म तत्व जिसे

ब्रह्म तत्व कहते हैं से आवृत है इसे ही ब्रह्मलोक कहा जाता है ब्रह्मलोक अनंत और असीम है जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों से परे एक दिव्य क्षेत्र समझ में आ रहा है सूक्ष्म से भी परे स्थूल से भी परे और उसके लिए जो शब्द प्रयोग किया गया है अनंत और असीम अनंत और असीम यह अनंत और असीम कौन सा होना चाहिए उनकी समझ में जो आया हो वह उनकी समझ में आया परतु हमारी समझ में क्या आ रहा है उसको हमने ध्यान से समझना है उनकी समझ में आ रहा है कि ब्रह्मलोक इतना अनंत इतना बड़ा इतना बड़ा है सीमा माने होता है हद और असीम माने हो गया बेहद बेहद होता

है ब्रह्म लोक अनंत है और बेहद है वो देख रहे हैं इसको मेरी जो समझ में आ रहा है विस्तार वाला बेहद अनंत वाला बेहद जिसका अंत नहीं पाया जा सकता परंतु जो वेदों में शब्द लिखा गया ने इति ने इति उसका एक तो बेहद के लिए होता है और दूसरा होता है यहां पर सूक्ष्म की तरफ इतना सूक्ष्म इतना सूक्ष्म कि हम उससे और सूक्ष्म कर ही नहीं सकते इसमें अनंत असीम जो कहा है उसे हम असीम वाले बेहद वाला प्रयोग नहीं करेंगे य प्रयोग करेंगे जिसकी सूक्ष्मता इतनी ज्यादा है इतनी ज्यादा है कि जिसकी सूक्ष्मता तक हम पहुंच नहीं सकते वह बड़े में बेहद देख रहे हैं हम छोटे में

बेहद देख रहे हैं क्या हम उससे छोटा कर ही नहीं सकते हो ही नहीं सकता उससे छोटा जिसको क्या कहा जाता है जीरो बात समझ में आई है उनकी समझ और हमारी समझ में क्या अंतर है यह बात हमको बहुत ध्यान से समझना है क्योंकि हम ये समझ चुके हैं कि परम अवस्था है परम धाम परम अवस्था है और परम अवस्था एक ऐसी स्टेज है जहां पर उसका हम साइज नहीं दे सकते इतना सूक्ष्म है जीरो और जिससे हम और छोटा कर ही नहीं सकते और छोटा हो ही नहीं सकता उसको हम देख ही नहीं सकते हमने एक्सेप्ट करना है इस बात को कि हम उसे देख नहीं सकते हम इतनी सी

जगह के अंदर हम सारे के सारे आ जाते हैं क्योंकि व आकाश भी नहीं है उसको अनंत कह सकते अनंत नहीं कह सकते उसको अनंत हम जिसका अंत ना पाया जा सके परंतु ये हा जीरो का भी अंत नहीं पा सकते हम माइनस वाले में अनंत कह सकते हैं बड़े वाले में अनंत नहीं कह सकते कोना जीरो अंत नहीं पा सकती इतना जी हां क्योंकि बाबा ने हमें समझा दिया है कि हम परम धाम जो है वह कहां है जहां आकाश भी नहीं आकाश से भी पार जब हम यह कहते हैं कि आकाश से पार तो हम इस चित्र को देखते हुए इस बात को समझ सकते हैं आकाश से पार कहने का मतलब है कि

से यह जो हमारी जो पृथ्वी है य हम पृथ्वी को देख रहे हैं नहीं यह पृथ्वी जो हम देख रहे हैं यहां पर सकार मनुष्य लोग इस पृथ्वी के चारों तरफ किधर कहेंगे व है परमधाम है अय पृथ्वी हमारे बीच में है अब यदि मैं यदि यहां पर खड़ा हूं तो परमधाम यदि ऊपर की तरफ है तो इधर है परमधाम अब थोड़ी देर बाद यह पृथ्वी जो है घूमेगी पृथ्वी ने अपनी धूरी पर घूमना है ना पृथ्वी जब घूमेगी तो पृथ्वी जब इधर आ जाएगी तो हम परमधाम को कहां ढूंढेंगे परमधाम तो इधर चला जाएगा चार और हो गया तो परमधाम यदि चारों तरफ है तो हमें सोचने वाली बात है कि कितने ग्रह

तारे सौरमंडल चारों तरफ हम देख रहे हैं और यह कितनी दूर तक फैले हुए हैं पृथ्वी उसके अंदर सुई की नोक के बराबर भी नहीं रहेगी परतु हम इस पेपर पर उनको नोक की बराबर देख रहे हैं तो पृथ्वी जब नोक के बराबर होगी तो कितने बड़े हो जाएंगे और उसके बाद यदि आकाश है और आकाश नहीं है तो फिर वहां क्या है वहां कुछ नहीं आकाश जहां ना हो वो कुछ नहीं कैसा होगा सोचने वाली बात है जहां कुछ नहीं होता वहां आकाश होता है परंतु जहां आकाश नहीं वहां कुछ नहीं क्या मतलब इसलिए हमें बाहर की तरफ जाने की बजाय अंदर की तरफ देखना पड़ेगा माइनस की तरफ देखना

पड़ेगा कि हम इतना सूक्ष्म है हम आत्म इतनी सूक्ष्म है परमधाम इतना सूक्ष्म है कि जिसमें जाने के लिए हमें कोई भी स्पेस की जरूरत नहीं और सूक्ष्म वतन को अब हम समझेंगे अच्छी तरह से सूक्ष्म वतन के लिए भी कोई इस आकाश में स्थान नहीं है कोई भी आकाश में स्थान नहीं है परंतु व कैसा है वो भी जहां भी चाहे वह आकृति बना सकता है वो लाइट की आकृति बनेगी परंतु जो देखना चाहेगा जिसके पार्ट में उसको देखना होगा ड्रामा में केवल वह उसे देखेगा परंतु वह होगी नहीं वह होगी नहीं उसे देख तो सकते हैं परतु वो होगी नहीं जैसे सपने में हमने जो कुछ भी देखा

हमें दिखाई दिया परंतु वो था नहीं है नहीं था भी नहीं है भी नहीं इसी प्रकार से जो हमने ध्यान में देखा सूक्ष्म लोक में देखा जो सूक्ष्म अवस्था में देखा तो वो जाने वाली आत्मा ने देखा और दिखाने वाले परमात्मा ने दिखाया कहां दिखाया ना उसके बाद है ना उससे पहले था देखने वाले ने देखा दिखाने वाले ने दिखाया उसके बाद कुछ भी नहीं यह हमारा प्रैक्टिकल अनुभव है सपना मैंने देखा जिनको मैंने देखा वह थे ही नहीं वह है ही नहीं सूक्ष्म में दे स हा वो कितना सक्षम है उसके लिए कोई भी वो सक्षम कितना सक्षम है कि हम आत्मा को तो देख ही नहीं सकते पर तो

सपने को देख तो सकते ला समझे बात को बाकी दोनों के लिए स्थान नहीं है कोई दोनों का क्योंकि हमें इन तीनों में डिफरेंस अपनी बुद्धि में बहुत अच्छी तरह से क्लियर करना है कहीं भी डाउट नहीं रहना चाहिए आपको क्योंकि यह सबके पास जाने वाला है परमधाम परम अवस्था है इसलिए परमात्मा कहते बच्चे जब भी मुझे याद करो परमधाम में याद करो परमधाम कोई भी ये हमने केवल ये जो चित्र बनाया आगे हम प्रश्न आएगा आगे हम इन चित्रों के बारे में चर्चा करेंगे परंतु अभी ये जो चित्र है ये केवल पहली क्लास का कायदा है जहां केवल समझाया गया है कि सबसे

ऊपर परमपिता परमात्मा फिर ब्रह्मा विष्णु क्या बोलते लक्ष्मी नारायण की आत्मा या ब्रह्मा सरस्वती की आत्मा फिर 9 लाख 33 करोड़ देवी देवताओं की आत्माएं फिर सारे संसार के धर्मों पिता है और फिर उस धर्म पिता की लाइन में बैठी हुई सारी आत्माएं तो यह केवल समझाने के लिए दिखाया गया है ताकि आत्माओं के बारे में परमधाम में हम आत्माएं किस अवस्था में रहती है केवल समझ में आए बाकी वास्तव में य हम देखें तो परम धाम को हम आत्मा को नहीं देख सकते हम परमात्मा को नहीं देख सकते हम परमधाम को नहीं देख सकते यह सारे इतने सूक्ष्म है इतने

सूक्ष्म है कि जहां आकाश भी नहीं है जहां आकाश भी नहीं है इस बात को हमें बहुत बहुत अच्छी तरह से समझ लेना है तो परमपिता परमा हा जी जैसे ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी उड़ा दिया सम नहीं रखा वो है ही नहीं बोल दिया उस तरह से परमधाम भी कहीं है नहीं परमधाम भी कहीं नहीं है परमधाम भी इस दुनिया में कहीं पर भी नहीं है परमधाम जो है वह इतना सूक्ष्म है इतना सूक्ष्म है हम उसे यदि देखना भी चाहे तो हम उसे देख नहीं सकते भाई जी हां जी आत्माओ का तो सक्षम शरीर किसी का आधार लेके या स्थूल शरीर का आधार लेके तभी पता तभी तभी पता चलता है उनके बारे में आत्माओ

के बारे में भी जब किसी स्थूल शरीर या स का आधार लेती है पाठ बजाने के लिए तभी पता चलता है हा सूक्ष्म शरीर समझ में आप क्या किसकी बात कर रहे हो आप आत्माओं के बारे में अगर वो जब तक किसी का स्थूल शरीर या सक्षम शरीर नहीं ले तो उनके बारे में भी पता नहीं चल पाता केवल उनको तो दिखाई दे सकते हैं ना जिसको दिखाना है जिसको दिखना है वो भी शरीर लेे तभी तो वो स्थूल शरीर लेंगे तभी तो देखेंगे जी आत्मा का अस्तित्व दिखाई देता है तो शरीर के आधार पर दिखाई देता है ऐसा बता रहे हा जी हा जी उनको अस्व के लिए मतलब शरीर दिखाई नहीं देताना आत्मा दिखाई नहीं

देती परंतु आत्मा को दिखाई देने के लिए या तो सूक्ष्म शरीर लेना होगा और या फिर या स्थूल शरीर या फिर स्थूल शरीर लेना होगा क्योंकि दोनों में से एक शरीर तो उसको चाहिए हा जी नहीं तो इन सक्षम को से तो देखा ही नहीं जा सकता हां वरना उसे हम इन आंखों से देखना चाहे तो देख नहीं सकते हैं इन आंखों से देखना चाहे तो देख नहीं सकते जी शरीर भी छोड़ दि अनुभव अनुभव भी कर सकते तो शरीर द्वारा ही कर सकते अनुभव भी करेंगे तो शरीर के द्वारा करेंगे तो आत्मा आत्मा को भी देखने शति उसका उसका उसका एक हो जाता है उसम देखो पहली बात हमें याद रखनी है कि

आत्मा दिखाई नहीं देती और सूक्ष्म शरीर दिखाई देता है केवल और केवल ड्रामा अनुसार जिसने देखना है उसको कोई इसको दिखाने के लिए परमात्मा भी जब दिखाते हैं तो परमात्मा भी ड्रामा अनुसार सूक्ष्म वतन में संदेश देना होता है तो देते हैं सूक्ष्म वतन कोई ऊपर एक ऐसी स्पॉट नहीं है एक ऐसी जगह नहीं है कि जहां पर जाने के बाद हम सोचे कि भना हम सूक्ष्म वतन में पहुंच गए ठीक नहीं ऐसी कोई जगह नहीं है परंतु हमने हां जी भाई य जो सॉफ्टवेर रहता है ना उसके जैसे ही क सकते आत्मा को जैसे सॉफ्टवेर में भी बोलते सॉफ्टवेर में होता है

प्रोग्राम सॉफ्टवेयर जो होता है वो दिखाई देता है उसको हम कंट्रोल करते हैं उसको हम चेक कर सकते हैं सॉफ्टवेयर मैं आपको दे दूं आप दूसरे को दे दे वो काम करेगा यह सॉफ्टवेयर से भी सॉफ्टवेयर का बाप है यह उस उसमें रिकॉर्ड है जिसको हम नहीं देख सकते आत्मा में सॉफ्टवेयर व जो सारा जो 5000 साल की रिकॉर्डिंग है वह उस आत्मा के अंदर रिकॉर्डिंग है जिसको हम छूना तो दूर पकड़ना तो दूर देख ही नहीं सकते उसके अंदर रिकॉर्डिंग है वो सॉफ्टवेयर तो किसी ना किसी मतलब डिस्क के अंदर होगा उसको हम ऐड भी कर सकते हैं डिलीट भी कर सकते हैं एडिट भी कर सकते हैं कट भी कर सकते हैं क्या नहीं कर सकते उसके साथ परंतु यह वो आत्मा इतनी सूक्ष्म है जिसके अंदर हम उसे देखना चाहे तो देख नहीं सकते क्योंकि इसको समझने के लिए क्योंकि परमधाम को समझना है उसके लिए हद और बेहद का मतलब हमें बहुत अच्छी तरह से समझना है जो पूरे से कम हो चाहे वो 100 है चाहे वो एक 100 100 में से एक या 99 यह दोनों को दोनों क्या है हद है यह दोनों को दोनों क्या होंगे हद होंगे यह बात समझ में आई आपको हां जी नहीं आई समझ में देखिए हाद को समझने के लिए बहुत ध्यान से समझना है हद क्या होता है और बेहद क्या होता है बाबा कहते हद और बेहद से पार ह यह हद क्या है जैसे 100 है 100 में से एक भी हद है क्योंकि इसके बाद 9999 बचे हुए हैं लाइन समझ बात को और 99 यदि 99 है तो भी हद है कि उसके बाद एक और बचा हुआ है जिसके बाद कुछ भी बच जाए उसे हद कहा जाता है और जिसके बाद कुछ ना बचे उसे बेहद कहा जाता है इसमें किसी को कोई डाउट हो तो बताओ जिसका मतलब होता है इसलिए बेहद कहा जाता है संपूर्ण को 100 के अंदर परे हद में आ गए 100 के पार चले गए तो पार नहीं जा सकते हो 100 के बाद भी नहीं जा सकते 100 का मतलब 100 बस संपूर्ण हां 101 नहीं कर सकते आप समझ में आया बेहद का मतलब है कंप्लीट संपूर्ण अब इसके बाद हद और बेहद के पार कहां है परमधाम यह सूरज चांद तारे और उनके चारों तरफ य हमारे ग्रह उपग्रह उन सबके भी पार कहां होगा सबसे तेज है प्रकाश की गति और आत्मा इस ब्रह्मांड के प्रकाश से सूक्ष्म और तेज है अब समझ में आया सबसे तेज गति है प्रकाश की नहीं प्रकाश की गति के साथ उसको देखा जाता है और उसकी गति को भी साइंस ने नाप लिया कि इससे तेज गति और कुछ नहीं हो सकती और उस तेज गति के अंदर भी हम किसको नाप तेज गति से भी ज्यादा तेज हा आत्मा की गति जो है ना बहुत तेज है जिसको हम किसी से भी नाप नहीं सकते आत्मा इस ब्रह्मांड के प्रकाश से सूक्ष्म और तेज है सूक्ष्म भी है और तेज भी है जिसको आज तक कोई भी सूक्ष्म दर्शी यंत्र के द्वारा नापा नहीं गया है रुद्र शिव शून्य कहा जाता है रुद्र का अर्थ भी जीरो होता है शिव का अर्थ भी होता है शून्य का अर्थ भी जीरो होता है यह नाम की नाम के बारे में बताया जा रहा है आप यदि महाराष्ट्र महाराष्ट्र में जाएंगे तो वहां शिव बोलेंगे जीरो को शिव बोलेंगे तो परमात्मा जीरो आत्मा भी जीरो गणित में नियम है कि जीरो जमा 0 जी 0 माइनस 0 जी 0 गुना 0 0 0 डिवा बा जी भाग करेंगे जीरो से तो जीरो एक परमात्मा और सर्व आत्माओं का सर्व आत्माओं को कितना स्थान चाहिए शून्य क्योंकि कितनी भी आत्माएं हम शून्य में जमा करेंगे सब शून्य हो जाएंगे तो परमधाम में कितनी भी नौ अरब आत्माएं परमधाम शून्य और सारी न अरब आत्माएं भी शून्य सारी आत्माएं शून्य में ही समा जाती है शून्य आत्मा की स्थिति या अवस्था है शून्य आत्मा की स्थिति या अवस्था है जहां उसे कोई संकल्प नहीं चलता इस बात को हमें बहुत अच्छी तरह से समझना है यह बात बाबा ने 2712 2019 डेट को नोट कर सकते हैं 27 11 2019 की मुरली में बाबा ने हमें समझाया ें समझ में आया ब्रह्म लोक अनंत और असीम है जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों से परे एक दिव्य क्षेत्र हमें ये मेरे ख्याल से बातें समझ में आ गई होंगी स्थान के हिसाब से के परमधाम कहां है और सूक्ष्म वतन कहा है दिशा की अनुभूति और पृथ्वी की का आकर्षण भाई जी व जैसा हमारा स्थिति सुन है तो जैसा वो शसी लोग कहते हैं कि हम लीन हो जाएगा मतलब वो भी तो शून हो गया मतलब समाप्त हो गया वो समाप्त होने के लिए जहां समाप्त होने जा रहे हैं वह अपने आप को भी स्थूल समझते हैं उसको भी स्थूल समझते हैं शून्य तो पहुंचना चाहते हैं कि शून्य तक शून्य जाना शून्य होना है शून्य होना है तो शून्य होना है शून्य क्या होता है यह उन विचारों को नहीं पता उन्होंने कहीं ना कहीं पढ़ा है कहीं ना कहीं सुना है परंतु पता नहीं है जी दिशा की अनुभूति और पृथ्वी का आकर्षण बल मनुष्य जब भी किसी उस्तर लोक की कल्पना करता है तो उसकी स्मृति की उरान स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर जाती है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भौतिक आकर्षण बल पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति मनुष्य को नीचे की और खींचती है इसलिए जब वह किसी ऊंच अवस्था की कल्पना करता तो उसकी धारणा व उधर दिशा स्वाभाविक रूप से उभरती है क ऊपर की तरफ होगा आध्यात्मिक अनुभूति ध्यान साधना और आध्यात्मिक जागरूकता में इसको मैं पहले पिछले पॉइंट को हम क्लियर कर ले कि यहां पर क्या है कि हमारे दिमाग में रहता है अब पृथ्वी पर हम कहीं भी खड़े हो हम उत्तर में खड़े हो दक्षिण में खड़े हो पूर्व में खड़े हो पश्चिम में खड़े हो धरती में किसी किसी भी जगह पर खड़े होंगे हमारे पैर धरती की तरफ होंगे सिर ऊपर की तरफ होगा राइट यह बात समझ में आई है क्यों होगा गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण हमें खींच रहा है और हमने अपने आप को इस प्रकार से सेट किया है हमने पैरों के बल इधर ऊपर की तरफ जाना है खड़ा होना है यह हमने अपने अभ्यास से सीखा है अब यदि कोई अभ्यास से यह सीख ले कि मुझे उल्टा खड़ा होना है तो व उल्टा भी खड़ा होगा उल्टा भी चलेगा हाथों से चलने लग जाए तो चल सकता है परतु उसका अभ्यास चाहिए हम कंफर्टेबल इस अवस्था में है इसलिए हम इस प्रकार से खड़े होते हैं तो अब हम ऊपर समझते हैं कि हमारे सिर की तरफ ऊपर है तो ऊपर की तरफ जाना है परतु वास्तव में यहां ऊपर सूक्ष्मता की तरफ जाना है यहां हमने किधर ऊपर बढ़ना है सूक्ष्मता की तरफ स्थूल से सूक्ष्मता की तरफ जाना है इसको इस बात को समझना है हम स्थूल से सूक्ष्मता की तरफ गति कर रहे हैं स्थूल जैसे हमें समझ लो कि एक जीरो हमने लिखा है वो दिखाई दे रहा है उससे छोटा उससे छोटा उससे छोटा उससे छोटा उससे छोटा जीरो काम छोटा छोटा छोटा छोटा करते जा रहे एक ऐसी जीरो तक पहुंच रहे हैं जहां वह दिखना भी बंद हो जाता है जहां उसका हम गुना कैलकुलेट करना असंभव समझते हैं उसको जीरो कहते हैं जहां तक हम उसे नाप पा रहे हैं वहां तक वह स्थूल है और जैसे ही उसको नापना हमारा असंभव हो गया उससे भी सूक्ष्म हो गया तो वह सूक्ष्म परम अवस्था है जिसको हम देख नहीं सकते जिसको हम पकड़ नहीं सकते परंतु यह नहीं कहना कि वह है नहीं वह है उसे निराकार कहा है परतु निराकार का अर्थ यह नहीं लेना कि उसका आकार नहीं है उसका आकार है परंतु हम उस आकार को बनाने में असमर्थ ड्र करने में असमर्थ यह बात हमने समझनी और समनी तो ये सूक्ष्मता की तरफ जाना है ऊंचाई किधर है जितना हम सक्षम की तरफ जा रहे उतना हमारी अवस्था ऊंची होती जा रही है और स्थूल की तरफ जाएंगे तो कितना बड़ा करे जैसा इस जैसे उन्होंने एग्जांपल दिया है उसके अनुसार स्थूल में कितना बड़ा बड़ा बड़ा बड़ा बड़ा बड़ा इतना बड़ा कि जिसको हम हम देख नहीं सक हमारी आख उसको देख नहीं सकती ठीक है तो हमारे को समझ में आया कि वो हमारा सूक्ष्म है आध्यात्मिक अनुभूति ध्यान साधना और अध्यात्मिक जागरूकता में मनुष्य को सूक्ष्म लोको की अनुभूति होती है हम ये सूक्ष्म केवल और केवल बुद्धि के द्वारा ही अनुभव कर सकते हैं यह अनुभूति उसे आंतरिक रूप से ऊपर की ओर ले जाती है ध्यान दिया समझ में आया कितनी क्लियर लाइन है आंतरिक रूप से ऊपर की तरफ ले जाती है आंतरिक रूप से स्थूल रूप से नहीं एक सूक्ष्म रूप से वह हमें सूक्ष्मता की ओर और ऊपर और ऊपर और ऊपर ले जाती है इसको उच स्टेज कहेंगे भाई हा सूक्ष्मता में स्थूलता में नहीं सूक्ष्मता में ची स्टेज है आध्यात्मिक मार्गदर्शन शास्त्रों और संतों महापुरुषों की वाणी में भी उत लोक को ऊपर की ओर जो मतलब जैसे क्या होता है क्या हम कहते हैं जी वो महान आत्मा है अरे भी महान आत्मा है कोई बड़ा तो ना हो गया है अब पांडवों को इतना बड़ा बना दिया बड़ी बड़ी मूर्तिया बनाते बड़ा महान था जैसे सरदार पटेल की मूर्ति बहुत बड़ी बना दी वो महान था अ मूर्ति बड़ी बनाने से क्या हो गया जिससे यह धारणा और अधिक प्रबल हो जाती है मब उसको दिखाने के लिए वह ऊंचा बताने के लिए उसको ऊंचा कह दिया ऊपर कह दिया बाकी उसको ऊपर बताने की जरूरत नहीं ऊपर बताना नहीं कि ऊपर परमधाम ऊपर है ऐसा कहने का मतलब नहीं है वह एक एक अवस्था है जो हाईएस्ट अवस्था है टॉप अवस्था है सबसे टॉप परंतु किधर है टॉप सूक्ष्मता की तरफ ऊंचाई किधर है सूक्ष्मता की तरफ इसके लिए बहुत ज्यादा अभ्यास करने के बाद ध्यान की अवस्था को सरलता से प्राप्त कर सकते हैं

“ओम शांति: कौन बनेगा पद्मा पदमपति? और ब्रह्मलोक व सूक्ष्म वतन का रहस्य”


❓प्रश्नोत्तर शैली: सरल, सटीक और YouTube फ्रेंडली


❓प्रश्न 1: ओम शांति का क्या अर्थ है?

✅ उत्तर:“ओम” आत्मा की पहचान है, और “शांति” आत्मा की स्वाभाविक अवस्था। जब हम कहते हैं “ओम शांति”, तो हम स्वयं को एक शांत, ज्योति बिंदु आत्मा के रूप में अनुभव करते हैं।


❓प्रश्न 2: पद्मा पदमपति कौन बनते हैं?

✅ उत्तर:जो आत्माएं भगवान शिव की श्रीमत पर चलते हुए हर कर्म को अकर्म बनाती हैं – यानी न्यारे-प्यारे बन, कमल फूल समान स्थित रहते हैं – वही आत्माएं पद्मा पदमपति बनती हैं। यह स्थिति तपस्या और बाप की याद से प्राप्त होती है।


❓प्रश्न 3: कर्म को अकर्म कैसे बनाया जा सकता है?

✅ उत्तर:जब हम हर कर्म को बाबा की श्रीमत पर चलते हुए, निरहंकारिता और योगयुक्त स्थिति से करते हैं, तब वह कर्म फल देने वाला नहीं होता – वह अकर्म बन जाता है। इसे ही कहा जाता है – कमल फूल समान रहना।


❓प्रश्न 4: ब्रह्मलोक और सूक्ष्म वतन क्या है? क्या यह कोई स्थान है?

✅ उत्तर:ब्रह्मलोक और सूक्ष्म वतन कोई स्थूल स्थान नहीं, बल्कि यह बहुत सूक्ष्म और दिव्य क्षेत्र हैं। ब्रह्मलोक वह जगह है जहां आत्माएं अपने मूल रूप में, ज्योति बिंदु स्वरूप में निवास करती हैं। सूक्ष्म वतन वह मध्यवर्ती क्षेत्र है जहां परमात्मा सूक्ष्म रूप से ब्रह्मा द्वारा अव्यक्त संदेश देते हैं।


❓प्रश्न 5: सूक्ष्म वतन कहां स्थित है?

✅ उत्तर:सूक्ष्म वतन आकाश तत्व से भी परे है। यह कोई भौतिक स्थान नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म अनुभव की स्थिति है। यह स्थूल से परे और परमधाम से नीचे होता है, जहां आत्मा को दिव्य अनुभूति होती है।


❓प्रश्न 6: ब्रह्मलोक क्या है और वह कितना सूक्ष्म है?

✅ उत्तर:ब्रह्मलोक यानी परमधाम – वह स्थान जहां परमात्मा और आत्माएं रहती हैं। वह इतना सूक्ष्म है कि वहां आकाश भी नहीं है। यह बेहद है – अर्थात जिसका कोई अंत नहीं, और साथ ही इतना सूक्ष्म कि उससे छोटा कुछ हो ही नहीं सकता।


❓प्रश्न 7: क्या हम सूक्ष्म वतन या ब्रह्मलोक को देख सकते हैं?

✅ उत्तर:नहीं, हम उन्हें इन आंखों से नहीं देख सकते। ये देखने की नहीं, अनुभव की बातें हैं। परमात्मा हमें स्मृति दिलाते हैं, तब हम ध्यान और योग द्वारा इन सूक्ष्म लोकों की अनुभूति कर सकते हैं – जैसा सपना आता है, वैसा अनुभव होता है, लेकिन स्थूल रूप में कुछ नहीं होता।


❓प्रश्न 8: आत्मा को कैसे अनुभव किया जा सकता है?

✅ उत्तर:आत्मा कोई स्थूल वस्तु नहीं, वह एक ज्योति बिंदु है – एक चेतन शक्ति। आत्मा को देखना नहीं, उसे अनुभव करना होता है। जब आत्मा किसी शरीर (स्थूल या सूक्ष्म) का आधार लेती है, तभी हम उसे समझ पाते हैं।


❓प्रश्न 9: परमधाम का आकार कैसा है?

✅ उत्तर:परमधाम का कोई आकार नहीं होता। वह इतनी सूक्ष्म अवस्था है कि वहां कोई स्पेस, आकाश, दिशा – कुछ भी नहीं होता। यह “न सृष्टि में है, न सृष्टि से बाहर” – इतना सूक्ष्म है कि वहां हम केवल आत्मिक रूप में जा सकते हैं।


❓प्रश्न 10: हद और बेहद का क्या अंतर है?

✅ उत्तर:“हद” वह है जिसका कोई अंत है – जैसे 100, 99, 1 – सब सीमित। लेकिन “बेहद” वह है जिसका कोई अंत नहीं – जैसे परमधाम, परमात्मा, आत्मा की चेतना। परमधाम को समझने के लिए हमें बेहद की धारणा समझनी पड़ती है।


📌 अंतिम संदेश:“बाबा कहते हैं – बच्चे, मुझे याद करो, परंतु शरीर में रहकर नहीं, परमधाम में स्थित होकर। जब तुम बेहद की स्मृति में आ जाते हो, तब पद्मा पदमपति बनने की यात्रा आरंभ होती है।”

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