ईश्र्वरीय गुण और दैवी गुण में क्या अंतर है?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ईश्वरीय गुण और देवी गुण में क्या अंतर है? | Murli आधारित गहन विवेचना | Brahma Kumaris Hindi
आत्मा और गुण – एक गहन संबंध
ओम् शांति।
हर आत्मा के भीतर कोई-न-कोई विशेषता होती है, जिसे हम ‘गुण’ कहते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है —
गुण भी दो प्रकार के होते हैं:
-
ईश्वरीय गुण – जो हमें परमात्मा से मिलते हैं
-
देवी गुण – जो आत्मा के सहज स्वभाव में होते हैं
आज हम इस गहन विषय पर मंथन करेंगे — 7 जुलाई 2025 की साकार मुरली के आधार पर।
गुण क्या होते हैं?
गुण आत्मा के संस्कारित व्यवहार हैं।
परंतु ये दो श्रेणियों में आते हैं:
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ईश्वरीय गुण: परमात्मा शिव द्वारा संगम युग पर सिखाए गए।
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दैवी गुण: सतयुग में आत्मा के स्वाभाविक गुण जो पहले संस्कारों का फल हैं।
ईश्वरीय गुण – परमात्मा द्वारा सिखाए गए दिव्य संस्कार
परिभाषा:
ईश्वरीय गुण कोई जन्मजात गुण नहीं होते, यह हमें परमात्मा सिखाते हैं, अभ्यास से आत्मसात करने होते हैं।
ये गुण परिवर्तनकारी होते हैं – जीवन में नयापन लाते हैं।
उदाहरण:
-
सहज योग युक्तता:
बाबा की याद में रहकर कर्म करना।
“बाबा ने कहा, हमने कर दिया” – यही सहज योग है। -
त्रिकालदर्शी दृष्टि:
हर कर्म को भूत, वर्तमान और भविष्य के आधार पर देखना।
Murli: “बाप त्रिकालदर्शी बनाते हैं…” -
निर्विकारी दृष्टि:
आत्मा को आत्मा के रूप में देखना — शरीर से परे दृष्टिकोण। -
फरिश्ता दृष्टि:
सभी आत्माओं को समान देखना — सिर्फ ईश्वर से रिश्ता होना। -
निंदा-स्तुति में समानता:
कोई सराहे या आलोचना करे — अंदर कोई बदलाव न हो। -
बिंदी स्वरूप स्मृति:
“मैं आत्मा हूं, बिंदी हूं” — यह स्थिर अनुभव।
दैवी गुण – स्वाभाविक दिव्यता के संस्कार
परिभाषा:
सतयुग व त्रेता में आत्मा में जो गुण स्वतः प्रकट होते हैं, वे देवी गुण हैं।
ये गुण ईश्वरीय अभ्यास के फल हैं, जैसे —
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नम्रता
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सहनशीलता
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पवित्रता
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दया
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क्षमा
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मधुरता
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धैर्यता
देवी गुणों का चित्र
बाबा के चित्रों में देवी गुणों का गुलदस्ता दिखाया जाता है — ये सभी सहज सुंदर भाव।
मुख्य अंतर – ईश्वरीय गुण वर्सेस देवी गुण
विश्लेषण बिंदु | ईश्वरीय गुण | देवी गुण |
---|---|---|
उत्पत्ति | शिव बाबा द्वारा संगम युग पर | आत्मा के पुराने संस्कारों से |
अभ्यास की आवश्यकता | हाँ, पुरुषार्थ आवश्यक | नहीं, सहज स्वरूप |
उद्देश्य | परिवर्तन, दिव्य स्थिति प्राप्ति | परिणामस्वरूप, सहज प्रभाव |
समय | संगम युग | सतयुग व त्रेता |
देने वाला | परमात्मा शिव | आत्मा स्वयं जागृत करती है |
बीज और फल सिद्धांत – गहन समझ
संगम युग = बीज बोने का समय
सतयुग = उस बीज का फल
ईश्वरीय गुण = ज्ञान + योग + धारणा = बीज
दैवी गुण = फल
जैसे किसान मिट्टी में बीज बोता है और समय आने पर फल प्राप्त करता है — वैसे ही संगम युग पर धारण किए गए ईश्वरीय गुण, सतयुग में देवी गुणों के रूप में प्रकट होते हैं।
मुरली उद्धरण – 7 जुलाई 2025
“बच्चे, ईश्वरीय गुणों को धारण करो जिससे देवी स्वरूप बन जाओ।”
“फरिश्तापन ईश्वरीय गुण है। देवता बनना दैवी फल है।”
क्यों जरूरी है यह समझना?
कई लोग सोचते हैं — दयालु या विनम्र व्यक्ति ही देवता बन जाएगा।
परंतु बिना ईश्वरीय गुणों के अभ्यास के देवी गुण संभव नहीं।
यह जीवन एक ईश्वरीय विश्वविद्यालय है
जहां परमात्मा शिव हमें ‘गुण’ पढ़ाते हैं — ताकि हम फिर से देवता बनें।
आप क्या चुनेंगे?
-
सिर्फ फल की आशा (दैवी गुण)?
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या बीज (ईश्वरीय गुण) बोने की तैयारी?
बिना बीज के फल नहीं।
बिना ईश्वरीय गुण के देवी गुण नहीं।
इसलिए इस संगम युग को पहचानो, और अभी से तैयारी करो।
समापन: ओम् शांति
“गुण बनाएंगे भाग्य।
ईश्वरीय गुण बनाएंगे देवता स्वरूप।”
परमात्मा आज हमें वो बीज दे रहे हैं
जो कल हमें फरिश्ता और फिर देवी-देवता बनाएंगे।
ओम् शांति।
ईश्वरीय गुण और देवी गुण में क्या अंतर है?
Murli आधारित गहन विवेचना | Brahma Kumaris Hindi Q&A Series
प्रश्न 1: “गुण” का अर्थ क्या है?
उत्तर:गुण आत्मा की संस्कारित विशेषताएं हैं, जो उसके आचरण, संकल्प, दृष्टिकोण और व्यवहार में प्रकट होती हैं।
हर आत्मा के पास कुछ गुण होते हैं – परंतु सब गुण समान नहीं होते।
प्रश्न 2: गुण कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:मुख्यतः दो प्रकार के गुण होते हैं:
-
ईश्वरीय गुण – संगम युग पर परमात्मा शिव द्वारा सिखाए जाते हैं।
-
देवी (दैवी) गुण – सतयुग-त्रेता में आत्मा के सहज स्वभाव रूप में प्रकट होते हैं।
प्रश्न 3: ईश्वरीय गुण क्या होते हैं?
उत्तर:ईश्वरीय गुण वे दिव्य संस्कार हैं, जो परमात्मा हमें संगम युग पर सिखाते हैं।
ये गुण जन्मजात नहीं होते, अभ्यास से आत्मसात करने होते हैं।
इनका उद्देश्य आत्मा का परिवर्तन करना होता है।
प्रश्न 4: ईश्वरीय गुणों के कुछ उदाहरण क्या हैं?
उत्तर:
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सहज योग युक्तता: बाबा की याद में रहकर कर्म करना।
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त्रिकालदर्शी दृष्टि: हर कर्म को भूत, वर्तमान, भविष्य को ध्यान में रखकर करना।
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निर्विकारी दृष्टि: आत्मा को आत्मा रूप में देखना – देह से न्यारा दृष्टिकोण।
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फरिश्ता दृष्टि: सभी आत्माओं को समान देखना – केवल ईश्वर से संबंध।
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निंदा-स्तुति में समानता: प्रशंसा या आलोचना से प्रभावित न होना।
-
बिंदी स्वरूप स्मृति: “मैं आत्मा हूं, बिंदी हूं” – स्थिर आत्म अनुभूति।
प्रश्न 5: देवी या दैवी गुण क्या होते हैं?
उत्तर:दैवी गुण वे सहज संस्कार होते हैं जो सतयुग व त्रेता में आत्मा के स्वभाव में स्वाभाविक रूप से होते हैं।
ये ईश्वरीय गुणों के अभ्यास का फल होते हैं।
प्रश्न 6: देवी गुणों के कुछ उदाहरण क्या हैं?
उत्तर:
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नम्रता: “मैं नहीं – हम” की भावना।
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सहनशीलता: हर परिस्थिति में शांत रहना।
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पवित्रता: कर्म इंद्रियों पर राज्य।
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दयालुता, क्षमा, मधुरता, धैर्यता, सत्य, ईमानदारी आदि।
प्रश्न 7: क्या देवी गुण भी परमात्मा सिखाते हैं?
उत्तर:नहीं। देवी गुण ईश्वरीय गुणों का फल हैं।
ईश्वरीय गुण परमात्मा सिखाते हैं, देवी गुण आत्मा में सहज रूप से सतयुग में प्रकट होते हैं।
प्रश्न 8: ईश्वरीय गुण और देवी गुण में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:
विश्लेषण बिंदु | ईश्वरीय गुण | देवी गुण |
---|---|---|
उत्पत्ति | परमात्मा शिव द्वारा संगम युग पर | आत्मा के संस्कार से सतयुग में |
अभ्यास | हाँ, पुरुषार्थ आवश्यक | नहीं, सहज स्वभाव रूप |
उद्देश्य | आत्मा का परिवर्तन | परिणामस्वरूप दिव्यता |
समय | संगम युग | सतयुग व त्रेता |
देनहार | शिव बाबा | आत्मा स्वयं जागृत करती है |
प्रश्न 9: मुरली में क्या कहा गया है इस विषय पर? (7 जुलाई 2025)
उत्तर:“बच्चे, ईश्वरीय गुणों को धारण करो जिससे देवी स्वरूप बन जाओ।”
“फरिश्तापन ईश्वरीय गुण है। देवता बनना दैवी फल है।”
यह स्पष्ट करता है कि फरिश्ता स्थिति – ईश्वरीय गुण है, और उसका फल – देवता बनना है।
प्रश्न 10: यह ज्ञान क्यों जरूरी है?
उत्तर:कई साधक सोचते हैं कि केवल दयालु, विनम्र, सहनशील व्यक्ति ही देवता बन जाएगा।
परंतु — बिना ईश्वरीय गुणों के अभ्यास के, देवी गुण उत्पन्न नहीं होते।
सतयुग एक फल है, और संगम युग वह समय है जब हम बीज बोते हैं।
प्रश्न 11: ईश्वरीय गुण और देवी गुण का बीज–फल संबंध कैसे है?
उत्तर:
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संगम युग = बीज बोने का समय
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ईश्वरीय गुण = ज्ञान + योग + धारणा (बीज)
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सतयुग = उस बीज का फल
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दैवी गुण = सहज, सतोप्रधान संस्कार (फल)
जैसे किसान बीज बोता है और समय आने पर फल मिलता है — वैसे ही आत्मा अभी जो गुण धारण करती है, वही अगले जन्मों में देवता गुणों के रूप में प्रकट होते हैं।
प्रश्न 12: निष्कर्ष – हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:हमें ईश्वरीय गुणों को अभ्यासपूर्वक धारण करना है — क्योंकि वही भविष्य में देवी गुणों के रूप में फलित होंगे।
बिना बीज के फल नहीं मिल सकता।
बिना ईश्वरीय गुणों के, देवी गुणों की आशा करना व्यर्थ है।
समापन संदेश:
“गुण बनाएंगे भाग्य।
ईश्वरीय गुण बनाएंगे देवता स्वरूप।”
परमात्मा शिव आज हमें दिव्य गुणों का बीज दे रहे हैं —
ताकि हम फिर से देवी-देवता बन सकें।
ओम् शांति।
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