गीता का भगवान काैन है(65)भगवान ने कौन-सी मुरली बजाई थी?
“करुणा का जीवन में स्थान | गीता और मुरली से सीखें सच्ची दैवी वृत्ति”
भाषण प्रारूप
प्रस्तावना
गीता में बताए गए दैवी गुणों में करुणा एक ऐसा गुण है जिसमें दया, क्षमा, अद्वेष, निराभिमानता और सहनशीलता सभी समाए हुए हैं।
परन्तु करुणा का स्थायी भाव केवल योगयुक्त आत्मा में ही संभव है क्योंकि वही आत्मा आनंद, शांति और शक्ति का अनुभव करती है।
1. करुणा – दैवी गुणों का सार
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करुणा जीवन में श्रेष्ठ आचरण की नींव है।
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इसमें सेवा, त्याग, तपस्या, प्रेम सभी समाहित हैं।
उदाहरण:
जैसे एक घायल व्यक्ति को देखकर हर किसी का मन उसकी सहायता की ओर खिंचता है, वैसे ही करुणाशील आत्मा दुखी, विकारी और मायाधीन आत्माओं को देखकर उन्हें ज्ञान और योग का मार्ग दिखाने के लिए तत्पर रहती है।
2. करुणा और योग का संबंध
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योगयुक्त आत्मा परमात्मा से आनंद, शांति, शक्ति और प्रेम का खजाना पाती है।
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यह खजाना करुणा के रूप में दूसरों के प्रति प्रवाहित होता है।
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जो आत्मा स्वयं ही दुखी या विकारों में फंसी है, वह दूसरों को कैसे उबार सकती है?
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पहले स्वयं पर करुणा कर आत्मा को योगयुक्त बनाना होगा।
3. करुणाशील व्यक्ति की विशेषताएँ
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ज्ञानवान और योगयुक्त – संसार की वास्तविकता को समझता है।
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महादानी और वरदानी – अपने अनमोल वचनों और आशीर्वादों से आत्माओं को पवित्रता की ओर लगाता है।
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सेवाभावी – दूसरों को दुख-सागर से निकालने के लिए सदा तत्पर रहता है।
मुरली नोट्स
साकार मुरली – 25 जुलाई 2025
“बच्चे, करुणाशील वही बन सकते हैं जिनकी बुद्धि योगयुक्त है। योग से शक्ति पाकर ही सेवा कर सकते हो। करुणा में दया, क्षमा, प्रेम, सेवा – सब समाए हुए हैं।”
निष्कर्ष
करुणा केवल एक भाव नहीं, बल्कि दैवी आचरण की श्रेष्ठता का परिचायक है।
जब हर आत्मा करुणाशील बनेगी, तभी सुख-शांति और स्वर्णिम युग की स्थापना संभव होगी।
“करुणा का जीवन में स्थान | गीता और मुरली से सीखें सच्ची दैवी वृत्ति”
Q&A प्रारूप (प्रश्नोत्तर शैली)
प्रस्तावना
गीता में बताए गए दैवी गुणों में करुणा एक ऐसा गुण है जिसमें दया, क्षमा, अद्वेष, निराभिमानता और सहनशीलता सभी समाए हुए हैं।
परन्तु करुणा का स्थायी भाव केवल योगयुक्त आत्मा में ही संभव है क्योंकि वही आत्मा आनंद, शांति और शक्ति का अनुभव करती है।
प्रश्न 1: करुणा को दैवी गुण क्यों कहा गया है?
उत्तर:
करुणा दैवी गुणों का सार है क्योंकि इसमें दया, क्षमा, सेवा, त्याग, तपस्या और प्रेम सभी समाहित हैं। यह श्रेष्ठ आचरण की नींव रखती है और आत्मा को दूसरों के दुख को दूर करने की प्रेरणा देती है।
उदाहरण:
जैसे एक घायल व्यक्ति को देखकर स्वाभाविक रूप से मदद का भाव उत्पन्न होता है, वैसे ही करुणाशील आत्मा विकारों में फंसी आत्माओं को ज्ञान और योग का मार्ग दिखाने का संकल्प करती है।
प्रश्न 2: करुणा और योग का आपस में क्या संबंध है?
उत्तर:
योग के बिना करुणा स्थायी नहीं रह सकती।
योगयुक्त आत्मा परमात्मा से आनंद, शांति, शक्ति और प्रेम का खजाना प्राप्त करती है और वही खजाना करुणा के रूप में दूसरों तक पहुँचता है।
जो आत्मा स्वयं दुखी है, वह दूसरों को कैसे सहायता कर सकती है?
पहले स्वयं पर करुणा कर आत्मा को योगयुक्त बनाना अनिवार्य है।
प्रश्न 3: करुणाशील व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
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ज्ञानवान और योगयुक्त – वह संसार की वास्तविकता को समझता है और आत्मा की मूल स्थिति में रहता है।
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महादानी और वरदानी – अपने शब्दों और आशीर्वादों से आत्माओं को पवित्रता की ओर लगाता है।
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सेवाभावी – दुख-सागर से आत्माओं को निकालने के लिए सदा तत्पर रहता है।
प्रश्न 4: मुरली में करुणा के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर (साकार मुरली – 25 जुलाई 2025):
“बच्चे, करुणाशील वही बन सकते हैं जिनकी बुद्धि योगयुक्त है। योग से शक्ति पाकर ही सेवा कर सकते हो। करुणा में दया, क्षमा, प्रेम, सेवा – सब समाए हुए हैं।”
प्रश्न 5: जीवन में करुणा को कैसे विकसित करें?
उत्तर:
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प्रतिदिन योगाभ्यास कर आत्मा को शक्ति, शांति और प्रेम से भरें।
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दूसरों के दुख को देखकर केवल भावुक न हों, बल्कि ज्ञान और योग का मार्ग दिखाएँ।
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अपने विचार, वचन और कर्म में दया और क्षमा को स्थान दें।
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सेवा और तपस्या को जीवन का अंग बनाएँ।
निष्कर्ष
करुणा केवल एक भाव नहीं, बल्कि दैवी आचरण की श्रेष्ठता का प्रतीक है।
जब हर आत्मा करुणाशील बनेगी, तब ही सुख-शांति और स्वर्णिम युग की स्थापना संभव होगी।
डिस्क्लेमर:
यह वीडियो आध्यात्मिक अध्ययन एवं आत्मकल्याण के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें प्रस्तुत विचार गीता, ब्रह्माकुमारीज़ की मुरली शिक्षाओं एवं आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है।
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