Why avoid onion and garlic?

प्याज और लहसुन से परहेज क्यों?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“प्याज और लहसुन से परहेज क्यों? – आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य”


1. भूमिका – विषय की गहराई

  • साधारण प्रश्न: “प्याज और लहसुन क्यों नहीं खाना चाहिए?”

  • परंतु इसका उत्तर केवल परंपरा या अंधविश्वास नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण में छुपा है।


2. आत्मा की शुद्धता और स्थिरता

  • ब्रह्मा कुमारी जीवन का मूल: मन की पवित्रता और स्थिरता

  • प्याज और लहसुन के रासायनिक तत्व:

    • Isoalliin, Thiosulfinates, Sulfur Compounds, Allicin

  • इनके प्रभाव:

    • Gastric irritation, acidity, hyperactivity

    • मानसिक रूप से क्रोध, अस्थिरता और अशांति बढ़ाना

“प्याज-लहसुन राजस और तामस गुण बढ़ाते हैं, जिससे आत्मा की सतोप्रधान स्थिति गिरती है।”


3. आयुर्वेदिक और धार्मिक दृष्टिकोण

  • आयुर्वेद: ये उत्तेजक भोज्य पदार्थ हैं।

  • वासना, क्रोध, और काम-भावनाओं को उभारने की क्षमता।

  • धार्मिक मान्यताएँ: इनकी उत्पत्ति राक्षसी प्रवृत्ति से जोड़ी जाती है।

  • कई योगी इन्हें “मृत भोजन” कहते हैं – ध्यान में बाधक।


4. मांसाहार और प्याज-लहसुन की समानता

  • बाबा की मुरली:

“मांस, मछली, शराब और प्याज-लहसुन – यह सब एक ही श्रेणी में आते हैं।”

  • इनका असर:

    • सुबुद्धि को कुंठित करना

    • आत्मिक शक्ति को गिराना


5. ब्रह्मा बाबा और दादियों का जीवन उदाहरण

  • ब्रह्मा बाबा, दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी – सबने सात्विक भोजन अपनाया।

  • उनके स्थिर मन, स्पष्ट बुद्धि और ऊँची स्थिति का एक रहस्य – पवित्र भोजन


6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • Allicin – लिवर पर असर, उत्तेजक।

  • Thiosulfinates – पाचन तंत्र में चंचलता बढ़ाते।

  • Sulfur Compounds – गंध व भारीपन, आत्मिक हल्कापन कम।


7. गीता का आधार

  • अध्याय 17 – भोजन के तीन प्रकार:

    • सात्विक – शांति, पवित्रता, स्थिरता देने वाला।

    • राजस – तीखा, उत्तेजक।

    • तामस – भारी, जड़ता लाने वाला।

  • प्याज-लहसुन – राजस + तामस दोनों।


8. संतुलित दृष्टिकोण – औषधि व साधना

  • औषधि के रूप में सीमित प्रयोग संभव।

  • पर ध्यान, ब्रह्मचर्य, आत्मिक उड़ान के समय हानिकारक।

जैसे हल्दी – घाव पर दवा, पर ज्यादा खाई तो गैस बनाएगी।


9. निष्कर्ष और समापन

  • भोजन केवल शरीर नहीं, मन और आत्मा पर भी प्रभाव डालता है।

  • बाबा की मुरली:

“बच्चे, भोजन ऐसा खाओ जो आत्मा को हल्का, पवित्र और शांत बनाए।”

संदेश

  • यदि आत्मा की उड़ती कला, स्थिरता और पवित्रता चाहिए –
    तो भोजन को भी साधना का हिस्सा बनाइए।

  • सात्विक भोजन, सात्विक संकल्प, सात्विक जीवन – यही सच्ची ब्राह्मणता।

प्याज और लहसुन से परहेज क्यों?

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझें प्याज-लहसुन का गहरा प्रभाव


प्रश्न 1: क्या प्याज और लहसुन खाना कोई अंधविश्वास है?

उत्तर:नहीं, यह अंधविश्वास नहीं है। प्याज और लहसुन का प्रभाव हमारे मन, आत्मा और ऊर्जाओं पर पड़ता है। ये सिर्फ स्वाद या शरीर से जुड़ी चीजें नहीं हैं — बल्कि मानसिक और आत्मिक स्थिरता को भी प्रभावित करती हैं। ब्रह्मा कुमारी जीवन में परहेज का आधार है – शुद्धता और स्थिरता।


प्रश्न 2: प्याज-लहसुन खाने से आत्मा की स्थिति कैसे प्रभावित होती है?

उत्तर:इनमें मौजूद रसायन जैसे Isoalliin, Allicin, Sulfur compounds मानसिक चंचलता, क्रोध और भावनात्मक अस्थिरता बढ़ाते हैं। यह राजस और तामस गुण को उभारते हैं, जिससे आत्मा की सतोप्रधान स्थिति गिरती है।


प्रश्न 3: क्या आयुर्वेद भी प्याज-लहसुन से परहेज की बात करता है?

उत्तर:हाँ, आयुर्वेद इन्हें उत्तेजक भोज्य पदार्थ मानता है। यह शरीर में वासना, क्रोध, और काम-भावनाओं को बढ़ा सकते हैं, जो ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक हैं। बाबा भी कहते हैं –
“शुद्ध भोजन पवित्र संकल्प देता है। विकारी भोजन विकारी संकल्प।”


प्रश्न 4: इनकी ऊर्जा या उत्पत्ति के बारे में धार्मिक दृष्टिकोण क्या है?

उत्तर:धार्मिक मान्यताओं में प्याज-लहसुन की उत्पत्ति राक्षसी प्रवृत्ति से जोड़ी गई है। इनकी ऊर्जा भारी, अग्नि प्रधान और अस्थिरकारी मानी जाती है, जिससे ध्यान में बाधा आती है। इसलिए कई साधक इन्हें “मृत भोजन” भी कहते हैं।


प्रश्न 5: क्या बाबा ने मांस, प्याज और लहसुन को एक श्रेणी में रखा है?

उत्तर:हाँ, बाबा ने कई बार मुरली में कहा:
“बच्चे, मांस, मछली, शराब और प्याज-लहसुन — यह सब एक ही श्रेणी में आते हैं।”
इनका असर होता है – सुबुद्धि को कुंठित करना और आत्मिक शक्ति को कमज़ोर करना।


प्रश्न 6: क्या इसके कोई जीवंत उदाहरण भी हैं?

उत्तर:ब्रह्मा बाबा ने कभी प्याज-लहसुन नहीं खाया। दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी आदि का भोजन अत्यंत सात्विक और हल्का होता था। यही उनकी स्थिर बुद्धि और दिव्य स्थिति का रहस्य था। उनका अनुभव है —
“पवित्र भोजन से आत्मा दिव्य बनती है।”


प्रश्न 7: गीता के अनुसार प्याज-लहसुन किस श्रेणी में आते हैं?

उत्तर:भगवद गीता अध्याय 17 के अनुसार:

  • सात्विक भोजन — शांतिदायक, पवित्रता बढ़ाने वाला

  • राजस भोजन — तीखा, उत्तेजक

  • तामस भोजन — भारी, जड़ता लाने वाला

 प्याज-लहसुन दोनों राजस और तामस हैं — इसलिए ध्यान और ब्रह्मचर्य में बाधा डालते हैं।


प्रश्न 8: क्या प्याज-लहसुन कभी लाभकारी हो सकते हैं?

उत्तर:
हाँ, औषधि के रूप में सीमित मात्रा में उपयोग हो सकता है।
जैसे – हल्दी ज़ख्म पर लगे तो औषधि, पर ज़्यादा खाने से गैस बनती है।
इसी प्रकार प्याज-लहसुन अगर ध्यान या ब्रह्मचर्य की साधना में बाधक बनते हैं, तो उनसे बचना बुद्धिमानी है।


प्रश्न 9: बाबा की दृष्टि में भोजन का आदर्श क्या है?

उत्तर:बाबा की मुरली में स्पष्ट कहा गया है:
“बच्चे, भोजन ऐसा खाओ जो आत्मा को हल्का, पवित्र और शांत बनाये।”
इसलिए ब्रह्मा कुमारी जीवन में भोजन भी साधना का हिस्सा है।


प्याज-लहसुन कोई दुश्मन नहीं, पर ब्रह्मा जीवन आत्मा की उड़ती कला के लिए है।
भोजन का सीधा असर आत्मा की स्थिति पर होता है —
जैसा अन्न, वैसा मन।
जो आत्मा को हल्का, स्थिर और पवित्र बनाये — वही सच्चा भोजन है।


समापन संदेश:

यदि आप सच में आत्मिक स्थिरता, शांति और पवित्रता को अनुभव करना चाहते हैं —
तो भोजन को भी आध्यात्मिक अनुशासन का हिस्सा बनाइए।
सात्विक भोजन, सात्विक संकल्प और सात्विक जीवन — यही है सच्ची ब्राह्मणता।

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