कर्मातीत स्टेज की व्याख्या – बाप समान बनने का रहस्य
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
कर्मातीत स्टेज की व्याख्या – बाप समान बनने का रहस्य
(कर्म से परे स्थिति का रूहानी ज्ञान)
कर्मातीत स्थिति का रहस्य
हम ब्राह्मण आत्माएँ इस संगमयुग पर आये हैं — स्वयं परमपिता शिवबाबा से “कर्मातीत स्टेज” की डिग्री प्राप्त करने के लिए।
लेकिन इसका अर्थ क्या है?
क्या कोई बिना कर्म किए भी जी सकता है?
या क्या कर्मातीत स्टेज का मतलब कर्मों से भागना है?
नहीं।
कर्मातीत स्थिति का अर्थ है — कर्म करते हुए भी कर्म के बंधनों से मुक्त रहना।
कर्मातीत स्टेज क्या है? – शिवबाबा की परिभाषा
“कर्मातीत अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धनों से अतीत।”
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आत्मा ‘कर्ता’ होकर भी ‘अकर्ता’ बन जाती है।
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जैसे अभिनेता स्टेज पर नाटक करता है पर जानता है – “मैं आत्मा हूँ, यह मेरा पार्ट है।”
आत्मा का सिंहासन – कर्मातीत स्टेज का तख़्त
“संगमयुगी स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का सिंहासन है – कर्मातीत स्टेज।”
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जैसे श्रीकृष्ण भविष्य में सिंहासन पर विराजमान होंगे, वैसे संगमयुग पर आत्मा कर्मातीत तख़्त पर विराजमान होती है।
मस्तक की मणियाँ – दिव्य गुणों की चमक
“राज्य अधिकारी आत्माओं के मस्तक पर दिव्य गुणों की मणियाँ।”
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दिव्य गुण ही आत्मा को चमकदार बनाते हैं।
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जैसे-जैसे आत्मा गुणों से भरती है, कर्मातीत स्थिति मुख, नेत्र और चाल में प्रकट होती है।
उदाहरण: मास्टर दाता आत्मा जहाँ जाती है, वहाँ शांति फैलती है।
कर्मातीत आत्मा = इष्ट देव आत्मा
“इसी स्टेज की आत्मायें इष्ट देव रूप में प्रत्यक्ष होंगी।”
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जो आत्मा बाप समान बनी, वही दूसरों को भी बाप से मिलाती है।
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कैसे? – पवित्र प्रेम, श्रेष्ठ पालना, शक्ति और दुआओं द्वारा।
शक्ति माँ बनो – फॉलोअर्स नहीं, बच्चे तैयार करो
“पालना से बड़ा कर बाप से मिलाएं।”
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सिर्फ सेवा कर फॉलोअर्स बनाना उद्देश्य नहीं।
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माताओं के समान आत्माओं को इतना प्रेम और शक्तियाँ दो कि वे कहें – “मेरा बाबा।”
सेवा में भी कर्मबन्धन नहीं – निष्काम कर्म
“हमारा स्थान, हमारी सेवा – यह भी कर्म का बन्धन बन सकता है।”
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सेवा करते हुए अहंकार न आए।
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“मेरे स्टूडेंट्स”, “मेरी सेवा” – यह भी कर्मबंधन है।
कर्मातीत का अर्थ:
कर्तापन का त्याग, निष्काम सेवा, और रिटर्न की अपेक्षा के बिना देना।
एक शक्ति सेना – शिवशक्ति कम्बाइंड
“शिव – शक्ति से अलग नहीं, शक्ति – शिव से अलग नहीं।”
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आत्मा जब बाप के साथ कम्बाइंड होती है, तब कर्मातीत और सर्वशक्तियों से युक्त होती है।
उदाहरण:
महादेवी – शांत, शक्तिशाली, तख़्त पर विजयी रूप में।
‘यही हैं – वही हैं’ की अनुभूति दिलाओ
“ऐसी अनुभूति कराओ कि आत्माएँ कहें – ‘हमें वही मिल गए जिनकी तलाश थी।’”
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जब आत्मा बाप समान बन जाती है, तब उसमें बाबा की झलक प्रकट होती है।
कैसे बने कर्मातीत? – तीन दिव्य अभ्यास
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स्व-स्वरूप स्मृति:
“मैं आत्मा हूँ – पवित्र, शांत, दाता।” -
कर्तापन से मुक्त:
“मैं निमित्त हूँ, सब कार्य बाबा कराते हैं।” -
ड्रामा की समझ:
“जो हो रहा है, वह ड्रामा में निश्चित है – मैं केवल अव्यक्त द्रष्टा हूँ।”
निष्कर्ष: कर्म करते हुए भी कर्मातीत कैसे बनें?
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बुद्धि को सदा शिवबाबा से जोड़े रखें।
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प्रेम से कर्म करें, पर फल की इच्छा न रखें।
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आत्माओं को पालना देकर बाप से मिलाएँ।
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‘मेरेपन’ से मुक्त हो ‘बाबा के’ बनें।
अंतिम प्रेरणास्पद बोल:
“अब समय आ गया है — सेवा से आगे बढ़, स्वरूप बनो।
कर्मातीत स्टेज का अभ्यास करो।
स्वयं बाप के समान बनो — ताकि संसार कहे:
‘यही हैं – वही हैं।’”
कर्मातीत स्टेज की व्याख्या – बाप समान बनने का रहस्य | कर्मातीत स्थिति का रहस्य
प्रश्न 1: कर्मातीत स्थिति का अर्थ क्या है? क्या इसका अर्थ है कि हम कर्म करना छोड़ दें?
उत्तर: नहीं।
कर्मातीत स्थिति का अर्थ है — कर्म करते हुए भी कर्म के बंधनों से मुक्त रहना।
जैसे एक अभिनेता मंच पर अभिनय करता है पर जानता है — “मैं यह नहीं हूँ”, वैसे ही आत्मा कर्म करती है पर बंधती नहीं।
प्रश्न 2: शिवबाबा ने “कर्मातीत” को कैसे परिभाषित किया है?
उत्तर:
“कर्मातीत अर्थात् कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धनों से अतीत।”
जब आत्मा ‘कर्ता’ होते हुए भी ‘अकर्ता’ की स्मृति में रहती है, तब वह कर्मातीत बन जाती है।
प्रश्न 3: कर्मातीत स्थिति का अनुभव कहाँ होता है?
उत्तर:
संगमयुग पर आत्मा “कर्मातीत सिंहासन” पर बैठती है।
यह वह स्थिति है जहां आत्मा “स्वराज्य अधिकारी” बन जाती है — अपनी बुद्धि, मन और संस्कारों पर सम्पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेती है।
प्रश्न 4: दिव्य गुणों की मणियाँ क्या होती हैं?
उत्तर:
दिव्य गुण आत्मा की मस्तक की मणियाँ हैं — जो चेहरे, बोल, नेत्र और व्यवहार में झलकती हैं।
जैसे मास्टर दाता जहाँ जाता है, वहाँ शांति फैलती है — वैसे ही गुणयुक्त आत्मा कर्मातीत अवस्था को दर्शाती है।
प्रश्न 5: कर्मातीत आत्मा को “इष्ट देव” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि ऐसी आत्मा दूसरों को बाप की अनुभूति कराती है —
वह सेवा, पालना, दुआओं और पवित्र प्रेम से आत्माओं को “मेरा बाबा” कहने पर मजबूर करती है।
❓प्रश्न 6: सेवा करते हुए भी कर्म बंधन कैसे बनता है?
उत्तर:
अगर सेवा में “मैं” की भावना हो — जैसे “मेरी सेवा”, “मेरे स्टूडेंट्स”, “मेरे प्रोजेक्ट्स” — तो यह अहंकार कर्मबन्धन बनाता है।
कर्मातीत बनने के लिए सेवा को निमित्त भाव से करना चाहिए।
प्रश्न 7: ‘शक्ति माँ’ की भूमिका क्या है?
उत्तर:
माताओं की तरह आत्माओं को इतना प्रेम, ताकद और पालना देना कि वो बाप को पहचानें, और कहें — “मुझे मेरा बाबा मिल गया।”
फॉलोअर्स नहीं, बाप के बच्चे तैयार करना ही कर्मातीत सेवा है।
प्रश्न 8: ‘कम्बाइंड शिवशक्ति सेना’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब आत्मा बाप के साथ कम्बाइंड होती है — तो न अकेली शक्ति होती है, न अकेला शिव —
बल्कि दोनों मिलकर एक विजयी स्थिति बनाते हैं।
जैसे महादेवी का शांत, सशक्त, और तख़्तनशीन स्वरूप।
प्रश्न 9: कर्मातीत बनने के लिए कौन-से तीन अभ्यास जरूरी हैं?
उत्तर:
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स्व-स्वरूप स्मृति: “मैं आत्मा हूँ – पवित्र, शांत, दाता।”
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कर्तापन से मुक्ति: “मैं निमित्त हूँ – सब कार्य बाबा कराते हैं।”
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ड्रामा की समझ: “जो हो रहा है, वह ड्रामा में पूर्वनिर्धारित है – मैं केवल साक्षी हूँ।”
प्रश्न 10: कर्मातीत अवस्था का अंतिम संकेत क्या है?
उत्तर:
जब आत्मा से ऐसी अनुभूति हो — कि “यही हैं – वही हैं”,
जिनकी आत्मा ने सदियों से तलाश की थी —
तब समझो आत्मा बाप समान बन गई है।
निष्कर्षात्मक प्रेरणा:
अब समय है — सेवा से आगे बढ़कर स्वरूप बनो।
कर्म करते हुए भी ‘कर्ता’ नहीं, ‘निमित्त’ बनो।
बाप समान बनो — ताकि संसार कहे:
“यही हैं – वही हैं।”कर्मातीत स्टेज, बाप समान बनना, ब्रह्माकुमारीज ज्ञान, शिवबाबा के बच्चे, निष्काम सेवा, आत्मा की स्थिति, ब्रह्मा कुमारिस मुरली, श्रीकृष्ण और कर्मातीत, स्वराज्य अधिकारी आत्मा, शक्ति स्वरूप माताएँ, शिवशक्ति सेना, कर्म बन्धन से मुक्त, स्व-स्वरूप स्मृति, ड्रामा दर्शन, बाप समान बनने का राज, आत्मा का तख़्त, श्रेष्ठ आत्मा की पहचान, मुरली रहस्य, पवित्र प्रेम और सेवा, ब्रह्माकुमारिस ब्लॉग, ब्रह्माकुमारीज हिन्दी लेख, बाबा के बच्चे, रूहानी सेवाधारी, फॉलोअर्स नहीं बच्चे बनाओ, मास्टर दाता बनो, सेवा और अहंकार, ट्रस्टी स्टेज, आत्मा की चमक, योगबल की शक्ति, कर्म योग, परमात्मा से संबंध, संगमयुग का राज
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