ज्ञान चिंतन-01-01-1982

ज्ञान चिंतन-01-01-1982/जागती-ज्योति के दीपक: विश्व परिवर्तन के ताजधारी कौन?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“ओम शांति – जागती ज्योति के दीपक, विश्व परिवर्तन के ताजधारी कौन?”


 भूमिका (Intro):

“ओम शांति।
आज हम बैठकर करेंगे ज्ञान का चिंतन – ज्ञान मंथन।
क्योंकि बाबा कहते हैं: ‘बच्चे, आपस में बैठकर ज्ञान चिंतन करो, मंथन करो, इससे बुद्धि तीव्र हो जाएगी।'”

मुरली रिफरेंस: “बच्चे, जब मिलो तो ज्ञान की बात करो। आपस में ज्ञान का चिंतन-मंथन करो, इसी से दिव्यता आएगी।” (साकार मुरली)


 भाग 1: जागती ज्योति के दीपक – कौन?

 1.1 दीपक और ज्योति का अलौकिक संगम

  • दीपक = आत्मा

  • ज्योति = परमात्मा शिव बाबा

  • जब आत्मा इस दुनिया में आती है, तो कर्म के बंधन और रज-तम प्रवृत्ति से उसकी ज्योति मंद पड़ जाती है।

  • शिव बाबा ज्ञान का घृत (घी) डालकर आत्मा की बुझी हुई ज्योति को पुनः प्रज्वलित करते हैं।

उदाहरण:जैसे एक दीपक बुझने लगे, तो उसमें घी और बाती ठीक करके फिर से जलाया जाता है।
वैसे ही आत्मा रूपी दीपक को, ज्ञान-घृत से फिर से जागृत करता है शिव बाबा।

मुरली रिफरेंस:“बाबा कहते हैं – मैं आया हूँ बुझी हुई ज्योतियों को प्रज्वलित करने, हर आत्मा को जागरूक करने।”
“मैं ज्ञान घृत डालता हूँ, जिससे आत्मा की जली हुई बाती फिर से दीप बन जाती है।”


 1.2 विश्व अंधकार को मिटाने वाले दीपक

  • हर ब्राह्मण आत्मा अब एक ‘चैतन्य दीपक’ है, जो शिव बाबा की जागती ज्योति से जुड़ा हुआ है।

  • ये दीपक अब विश्व अंधकार को समाप्त करने की सेवा में लगे हैं।

उदाहरण:जैसे रात में एक-एक दीप जलाने से पूरा मंदिर रोशन हो जाता है, वैसे ही ब्रह्मा कुमार-कुमारियाँ पूरे विश्व में आत्म-ज्योति जगा रहे हैं।

मुरली रिफरेंस:“बच्चे, तुम हो शिव के दीपक – तुम्हारी ज्योति से ही सत्य युग का प्रकाश फैलेगा।”


 भाग 2: विश्व परिवर्तन के ताजधारी – कौन?

 2.1 जिम्मेवारी का ताज – ब्राह्मण आत्माओं की पहचान

  • हर ब्राह्मण आत्मा के सिर पर विश्व सेवा की जिम्मेवारी का ताज है।

  • यह ताज केवल सम्मान नहीं, बल्कि सेवा और पुरशार्थ का प्रतीक है।

उदाहरण:जैसे कोई परिवार का मुखिया बनता है – न कि केवल आयु से, बल्कि जिम्मेवारी उठाने से।
वैसे ही, जो आत्मा सेवा, सहयोग और तपस्या द्वारा संसार का कल्याण करती है, वही ताजधारी है।

मुरली रिफरेंस:“बच्चे, सेवा की भावना से जो चलते हैं – वही भविष्य के ताजधारी बनते हैं। सेवा करो, तो राज्य भाग्य स्वतः मिलेगा।”


 2.2 क्या आपने अपनी ताजपोशी सदा के लिए धारण की है?

  • यह एक आत्म-प्रश्न है: क्या हम कभी-कभी के राजा हैं या सदा के?

  • जैसे कोई कर्मचारी सप्ताह में कभी-कभी ड्यूटी करे, तो क्या उसे प्रमोशन मिलेगा?

उदाहरण:एक विद्यार्थी जो केवल परीक्षा के एक दिन पढ़े, वो पास हो पाएगा क्या? नहीं।
वैसे ही जो आत्मा कभी-कभी ही सेवा में लगती है, वो संपूर्ण ताजधारी कैसे बन सकती है?

मुरली रिफरेंस:“सदा सेवा में रहने वाले ही सदा के ताजधारी बनते हैं। कभी-कभी सेवा वाले, वहाँ भी कभी-कभी राज्य करेंगे।”


 2.3 एकाग्रता का रहस्य – श्रीमत का पालन

  • बाबा कहते हैं, “चित्त को एकाग्र करने के लिए कोई तपस्या नहीं चाहिए – केवल श्रीमत पर चलो।”

पाँच श्रीमत चेक करने वाली बातें:

  1. मैं जो सोच रहा हूँ – क्या वो श्रीमत है?

  2. मैं जो बोल रहा हूँ – क्या वो श्रीमत है?

  3. मैं जो देख रहा हूँ – क्या वो श्रीमत है?

  4. मैं जो कर रहा हूँ – क्या वो श्रीमत है?

  5. मैं जो सुन रहा हूँ – क्या वो श्रीमत है?

मुरली रिफरेंस:“बच्चे, श्रीमत ही तुम्हारा शक्ति स्रोत है। श्रीमत पर चलोगे तो एकाग्र रहोगे, और एकाग्र रहोगे तो सेवा में विजय पाओगे।”


 निष्कर्ष:

  • हम आत्माएं ही हैं चैतन्य दीपक,

  • हम आत्माएं ही हैं जिम्मेवारी के ताजधारी।

  • हमें दीपक की तरह जलते रहना है और ताजधारी की तरह जिम्मेवारी निभाते रहना है।

यही है सच्ची ताजपोशी – जागती ज्योति के दीपक और विश्व परिवर्तन के ताजधारी बनने की!


 अंत में:

“तो बताइए – क्या आप सदा के दीपक हैं?
क्या आप सदा के ताजधारी हैं?
ओम शांति!”

ओम शांति – जागती ज्योति के दीपक, विश्व परिवर्तन के ताजधारी कौन?”


 भूमिका (Intro):

Q1: बाबा ज्ञान चिंतन और मंथन पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं?
A1: क्योंकि ज्ञान मंथन से हमारी बुद्धि तीव्र होती है और दिव्यता आती है।
मुरली रिफरेंस: “बच्चे, जब मिलो तो ज्ञान की बात करो। आपस में ज्ञान का चिंतन-मंथन करो, इसी से दिव्यता आएगी।” (साकार मुरली)


भाग 1: जागती ज्योति के दीपक – कौन?

Q2: ‘जागती ज्योति के दीपक’ का क्या अर्थ है?

A2: ‘दीपक’ आत्मा है और ‘ज्योति’ परमात्मा शिव बाबा। जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है, तो वह दीपक फिर से प्रज्वलित होता है।

मुरली रिफरेंस:
“मैं आया हूँ बुझी हुई ज्योतियों को प्रज्वलित करने, हर आत्मा को जागरूक करने।”
“मैं ज्ञान घृत डालता हूँ, जिससे आत्मा की जली हुई बाती फिर से दीप बन जाती है।”


 Q3: आत्मा बुझती क्यों है और परमात्मा कैसे उसे फिर से जाग्रत करते हैं?

A3: आत्मा रज-तम प्रवृत्ति व कर्म बंधनों के कारण मंद हो जाती है। शिव बाबा उसमें ज्ञान-घृत डालकर उसे पुनः प्रकाशित करते हैं।

उदाहरण: जैसे बुझते दीपक में घी और बाती डालने से वह फिर जल उठता है।


 Q4: कौन हैं वो चैतन्य दीपक जो विश्व अंधकार मिटा रहे हैं?

A4: ब्राह्मण आत्माएं – जो शिव बाबा की जागती ज्योति से जुड़ी हैं – अब विश्व सेवा में अंधकार मिटाने वाली चैतन्य दीपक हैं।

मुरली रिफरेंस:
“बच्चे, तुम हो शिव के दीपक – तुम्हारी ज्योति से ही सत्य युग का प्रकाश फैलेगा।”


भाग 2: विश्व परिवर्तन के ताजधारी – कौन?

 Q5: ‘जिम्मेवारी का ताज’ किसे कहते हैं?

A5: यह सेवा, त्याग, और तपस्या का प्रतीक है – ब्राह्मण आत्माएं जो विश्व सेवा करती हैं, वही इस ताज की अधिकारी हैं।

उदाहरण: जैसे परिवार का मुखिया वही बनता है जो ज़िम्मेदारी उठाए, वैसे ही ताजधारी वही हैं जो आत्मा कल्याण की ज़िम्मेदारी लें।

मुरली रिफरेंस:“बच्चे, सेवा की भावना से जो चलते हैं – वही भविष्य के ताजधारी बनते हैं।”


 Q6: क्या हम सदा के ताजधारी हैं या कभी-कभी के?

A6: यह आत्म-निरीक्षण का विषय है। यदि हम सदा सेवा में हैं, तो हम सदा के ताजधारी हैं। अगर कभी-कभी सेवा करते हैं, तो भविष्य में भी ‘कभी-कभी’ ही राज्य करेंगे।

उदाहरण: जैसे कोई विद्यार्थी परीक्षा के एक दिन ही पढ़े, तो पास नहीं हो सकता।

मुरली रिफरेंस:
“सदा सेवा में रहने वाले ही सदा के ताजधारी बनते हैं। कभी-कभी सेवा वाले, वहाँ भी कभी-कभी राज्य करेंगे।”


 Q7: चित्त को एकाग्र कैसे रखें? क्या विशेष तपस्या करनी पड़ेगी?

A7: नहीं, केवल श्रीमत का पालन ही पर्याप्त है।

5 चेकिंग बिंदु:

  1. मैं जो सोच रहा हूँ – क्या वह श्रीमत है?

  2. मैं जो बोल रहा हूँ – क्या वह श्रीमत है?

  3. मैं जो देख रहा हूँ – क्या वह श्रीमत है?

  4. मैं जो कर रहा हूँ – क्या वह श्रीमत है?

  5. मैं जो सुन रहा हूँ – क्या वह श्रीमत है?

मुरली रिफरेंस:“बच्चे, श्रीमत ही तुम्हारा शक्ति स्रोत है। श्रीमत पर चलोगे तो एकाग्र रहोगे।”


 निष्कर्ष (Conclusion):

Q8: जागती ज्योति और ताजधारी – क्या दोनों एक ही आत्मा में हो सकते हैं?
A8: हाँ। हम आत्माएं ही शिव बाबा से ज्ञान प्राप्त करके चैतन्य दीपक बनते हैं और सेवा करके विश्व परिवर्तन के ताजधारी बनते हैं।


 अंतिम आत्म-प्रश्न:

क्या आप सदा के दीपक हैं या कभी-कभी बुझने वाले?
क्या आप सदा सेवा में रहते हैं या कभी-कभी?
क्या आप सदा के ताजधारी बनना चाहते हैं?

ओम शांति। आप ही हैं – जागती ज्योति के दीपक। आप ही हैं – विश्व परिवर्तन के ताजधारी।

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