(03)क्या रावण सचमुच बाहर था या हमारे अंदर?
“रावण सचमुच बाहर था या हमारे अंदर? | असली दशहरा क्या है?”
परिचय
हम सभी ने बचपन से सुना है कि रावण लंका का राजा था जिसके दस सिर थे। हर साल दशहरे पर उसका पुतला जलाया जाता है। लेकिन क्या सचमुच रावण कोई बाहर का राक्षस था, या वह हमारे भीतर छिपा हुआ है?
मुरली में असली रावण का रहस्य
साकार मुरली – 25 अक्टूबर 2004
बाबा ने कहा:
“रावण तो विकारों का नाम है। मनुष्य समझते हैं कि कोई राक्षस था, इसलिए पुतला जलाते रहते हैं। असली रावण का दहन तो आत्मा में विकारों को खत्म करने से होगा।”
अव्यक्त मुरली – 9 अक्टूबर 1979
बाबा ने समझाया:
“दशहरा का असली अर्थ है आत्मा की विजय। जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाती है तो सच्चा विजय दशमी मनाई जाती है।”
साकार मुरली – 18 अक्टूबर 1969
बाबा ने स्पष्ट किया:
“रावण का 10 सिर कोई मनुष्य का सिर नहीं था। वे 10 विकारों का प्रतीक है। पांच विकार पुरुष के और पांच विकार स्त्री के – यही है असली रावण।”
असली रावण कौन है?
असली रावण कोई बाहर का शत्रु नहीं, बल्कि हमारे अंदर के पाँच विकार हैं:
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काम
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क्रोध
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लोभ
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मोह
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अहंकार
जब आत्मा विकारों के वश में हो जाती है, तभी दुख और अशांति की शुरुआत होती है।
उदाहरण
घर में दीमक:
अगर घर के अंदर दीमक लगी है और हम बाहर पेड़ काटते रहें, तो क्या घर बचेगा?
उत्तर: नहीं।
इसी तरह बाहर का पुतला जलाना सिर्फ प्रतीक है, असली बुराई हमारे अंदर है।
रावण के दस सिर का अर्थ
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पाँच विकार पुरुष के
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पाँच विकार स्त्री के
दोनों मिलकर ही बनता है दस सिर वाला रावण।
यही कारण है कि आत्मा विकारों की दास बन जाती है।
विकारों पर विजय की शिक्षा
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काम पर विजय → पवित्र दृष्टि और ईश्वर प्रेम
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क्रोध पर विजय → सहनशीलता और शांति
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लोभ पर विजय → संतोष और दान
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मोह पर विजय → आत्मिक संबंधों की पहचान
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अहंकार पर विजय → आत्माभिमान – “मैं आत्मा हूँ”
निष्कर्ष
भाइयों और बहनों, असली रावण कहीं बाहर नहीं, हमारे ही अंदर है। दशहरा हमें यही सिखाता है कि असली विजय दशमी तब है, जब आत्मा विकारों से मुक्त होकर अपनी देवी-देवता स्थिति को प्राप्त करती है।
बाहर का पुतला केवल संकेत है, असली दहन आत्मा के भीतर होना चाहिए।
असली रावण कौन है? | प्रश्न–उत्तर
Q1: क्या रावण सचमुच बाहर था या हमारे अंदर है?
उत्तर:ब्रह्माकुमारी मुरली के अनुसार असली रावण कोई बाहर का राक्षस नहीं है, बल्कि हमारे अंदर बैठे पाँच विकार – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार – ही असली रावण हैं।
Q2: हम बचपन से क्यों सुनते हैं कि रावण लंका का राजा था और उसके 10 सिर थे?
उत्तर:10 सिर वाला रावण प्रतीक है। उसके दस सिर का अर्थ है – पाँच विकार पुरुष के और पाँच विकार स्त्री के। जब दोनों मिलते हैं तो बनता है असली “दस सिर वाला रावण”।
Q3: हर साल दशहरे पर रावण का पुतला क्यों जलाते हैं?
उत्तर:पुतला जलाना केवल एक प्रतीक है कि हमें बुराई को खत्म करना है। लेकिन यदि अंदर के विकारों को नहीं जलाया, तो केवल पुतला जलाने से कोई लाभ नहीं होगा।
Q4: बाबा ने मुरली में असली रावण के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
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साकार मुरली (25 अक्टूबर 2004): “रावण तो विकारों का नाम है। असली दहन तो आत्मा में विकारों को खत्म करने से होगा।”
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अव्यक्त मुरली (9 अक्टूबर 1979): “दशहरा का असली अर्थ है आत्मा की विजय।”
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साकार मुरली (18 अक्टूबर 1969): “रावण के दस सिर 10 विकारों के प्रतीक हैं।”
Q5: असली विजय दशमी कब मनाई जाती है?
उत्तर:जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाकर शांति, पवित्रता और आत्म-शक्ति को प्राप्त करती है, तभी असली विजय दशमी मनाई जाती है।
Q6: विकारों पर विजय कैसे पाई जा सकती है?
उत्तर:
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काम पर विजय: पवित्र दृष्टि और ईश्वर प्रेम से।
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क्रोध पर विजय: सहनशीलता और शांति से।
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लोभ पर विजय: संतोष और दान से।
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मोह पर विजय: आत्मिक संबंधों की पहचान से।
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अहंकार पर विजय: आत्माभिमान – “मैं आत्मा हूँ” के अनुभव से।
Q7: क्या बाहर का पुतला जलाने का कोई महत्व है?
उत्तर:पुतला जलाना केवल संकेत है। लेकिन असली रावण – यानी विकार – जब तक अंदर से नष्ट नहीं होंगे, तब तक दशहरा अधूरा है।
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ के ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक परंपरा, रीति-रिवाज या आस्था का खंडन करना नहीं है, बल्कि आत्मा की आध्यात्मिक उन्नति और अंदर के विकारों पर विजय पाने का वास्तविक संदेश देना है।
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