विश्व नाटक :-(05)क्या शून्य से सृष्टि बन सकती है? क्या यह सिद्धांत वैज्ञानिक और तर्कसंगत है?
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“विश्व नाटक का पांचवा पाठ यह विश्व का जो नाटक है, यह शुरू कैसे हुआ? इस विषय पर हम चर्चा कर रहे हैं। कुछ लोगों का मत है — क्या शून्य से सृष्टि बन सकती है? वे कहते हैं शून्य से ही सृष्टि बन गई। क्या यह सिद्धांत वैज्ञानिक और तर्कसंगत है? इस पर विचार करेंगे। आज विज्ञान सृष्टि की उत्पत्ति को लेकर कई सिद्धांत प्रस्तुत करता है — कोई बिग बैंग थ्योरी बताता है, कोई स्टेडी स्टेट थ्योरी। परंतु क्या यह सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टि से तर्कसंगत है? क्या यह ऊर्जा और द्रव्य के संरक्षण के सिद्धांत के अनुरूप है? ऊर्जा और द्रव्य — जैसा कि E=mc² के सिद्धांत में बताया गया है — मास और ऊर्जा एक-दूसरे के रूप में परिवर्तित हो सकते हैं। तापगतिकी का प्रथम नियम (Law of Conservation of Energy) भौतिक विज्ञान का सबसे पक्का नियम है — ऊर्जा और द्रव्य का निर्माण या विनाश नहीं हो सकता, ये केवल रूप बदल सकते हैं। कोई भी पदार्थ — चाहे लकड़ी हो, प्लास्टिक हो, लोहा हो — नष्ट नहीं हो सकता। सिर्फ उसका रूप बदल सकता है। कुछ नहीं से कुछ बनाया नहीं जा सकता, और जो है उसका विनाश नहीं किया जा सकता। पांच तत्व — जल, वायु, भूमि, अग्नि और आकाश — नष्ट नहीं हो सकते। ये तत्व सदैव विद्यमान हैं। विज्ञान की दृष्टि से 118 तत्व हैं — सॉलिड, लिक्विड और गैस — पर कोई भी तत्व पूरी तरह समाप्त नहीं होता, केवल रूपांतरित होता है। कुछ नहीं से कुछ भी नहीं बनाया जा सकता। और जो विद्यमान है, उसे नष्ट भी नहीं किया जा सकता। इसे ही कहते हैं — तापगतिकी का प्रथम नियम या “First Law of Thermodynamics”। इस नियम के अनुसार, ब्रह्मांड में कुल ऊर्जा और द्रव्य की मात्रा सदैव समान रहती है। ना कोई उसे बढ़ा सकता है, ना घटा सकता है। उदाहरण के लिए — हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर जल (पानी) नहीं बनाया जा सकता। हाँ, जल को बिजली (करंट) के प्रयोग से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जा सकता है। परंतु उन्हें पुनः मिलाकर पानी बनाना संभव नहीं। इस प्रक्रिया के लिए विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता होती है — इसे कहते हैं इलेक्ट्रोलाइसिस। अब हाइड्रोजन का उपयोग इंजन और चूल्हों में किया जा रहा है। पानी से हाइड्रोजन बनाकर गाड़ियाँ चलाना संभव हो रहा है। परंतु यह भी तभी संभव है जब हम उसमें ऊर्जा डालें। कुछ भी अपने आप नहीं बनता। इससे सिद्ध होता है — ब्रह्मांड में ऊर्जा और द्रव्य की मात्रा स्थिर है। बाबा भी यही कहते हैं — “शून्य से कुछ नहीं बन सकता।” विज्ञान भी यही मानता है कि “कुछ नहीं से कुछ नहीं बन सकता।” शिव बाबा का दृष्टिकोण बाबा कहते हैं — हम आत्माएं और परमात्मा सूक्ष्म हैं, परंतु शून्य नहीं। हम ‘कुछ नहीं’ नहीं हैं, बल्कि अति-सूक्ष्म चेतन बिंदु हैं। हमारा घर परमधाम भी “कुछ नहीं” नहीं है, वह प्रकाशमय शून्य के समान सूक्ष्म लोक है। वैज्ञानिकों के विरोधाभास कुछ वैज्ञानिकों ने “Steady State” या “Continuous Creation Theory” दी — जिसमें कहा गया कि शून्य से लगातार हाइड्रोजन बन रही है। वे कहते हैं कि हर वर्ष ब्रह्मांड के एक विशाल भाग में केवल एक हाइड्रोजन परमाणु बनता है। यह ऐसा ही है जैसे कोई जादू की कहानी — क्योंकि शून्य से कोई वस्तु निर्मित होना न विज्ञान में सिद्ध हुआ है, न तर्क में आता है। यदि कोई कहे — “मैंने शून्य से एक फूल बना दिया,” तो कोई भी पूछेगा — “वो आया कहां से?” वैसे ही, जब वैज्ञानिक कहते हैं कि हाइड्रोजन शून्य से बनी, तो पूछा जाना चाहिए — “किसने बनाई?” ऊर्जा कहां से आई? कोई भी वस्तु बिना प्रक्रिया, बिना ऊर्जा, बिना कर्ता के नहीं बन सकती। इसलिए यह विचार “अनुमान” या “कल्पना” मात्र है। विज्ञान का विरोधाभास एक वैज्ञानिक कहता है — “ऊर्जा कभी बन नहीं सकती।” दूसरा कहता है — “ऊर्जा शून्य से बन रही है।” दोनों बातें एक साथ सत्य नहीं हो सकतीं। जो प्रमाणित करेगा, वही सत्य होगा। दो विरोधी बातें कभी भी वैज्ञानिक नहीं हो सकतीं। यह ठीक वैसे ही है जैसे कोई कहे — “मैं सत्यवादी भी हूँ और झूठा भी।” ऐसा विरोधाभास असंभव है। गीता का दृष्टिकोण भगवद गीता कहती है — “नासतो विद्यते भावो, नाभावो विद्यते सतः।” जो अस्तित्व में नहीं है, वह कभी अस्तित्व में नहीं आ सकता। और जो विद्यमान है, उसका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह शाश्वत सत्य है — शून्य से कोई वस्तु निर्मित नहीं हो सकती। विज्ञान धीरे-धीरे उसी अनंत सिद्धांत की ओर बढ़ रहा है जिसे परमात्मा ने पहले से स्पष्ट किया है। ब्रह्माकुमारी ज्ञानानुसार ईश्वर शिव कहते हैं — “मैं ही इस सृष्टि का बीज हूँ।” बीज से वृक्ष बनता है, और वृक्ष से फिर बीज — यही शाश्वत चक्र है। सृष्टि शून्य से नहीं बनी, यह अनादि-अविनाशी नाटक है — Eternal Drama। सनातन और शाश्वत है, जो हर कल्प में दोहराया जाता है। उदाहरण एक दीपक को जलाइए — जब तक तेल है, लौ जलती रहती है। तेल समाप्त होने पर लौ बुझ जाती है। फिर तेल डाल दें — लौ पुनः जल उठती है। लौ का सिद्धांत नष्ट नहीं होता, केवल स्थितियाँ बदलती हैं। इसी प्रकार यह सृष्टि भी बुझती नहीं, बस “उजानी” होती है। बाबा कहते हैं — “जब सृष्टि अंधकारमय हो जाती है, मैं आकर ज्ञान का घृत डालता हूँ, जिससे फिर सबकी ज्योति जग जाती है।” मुरली प्रमाण “बच्चे, शून्य से कुछ नहीं बन सकता। विज्ञान वाले कहते हैं कुछ अपने आप बन गया, परंतु कोई चीज बिना कर्ता के नहीं बनती। मैं ही इस सृष्टि का बीज हूँ।” (मुरली दिनांक: 7 जून 1972) “मनुष्य कहते हैं कि गैस से सृष्टि बनी, पर गैस कहां से आई? वे शून्य को ही सृजन मानते हैं। पर शून्य से कुछ नहीं बन सकता। बीज मैं डालता हूँ, तब सृष्टि रचता हूँ।” (मुरली दिनांक: 22 फरवरी 1976) “ड्रामा अनादि है। इसमें कुछ नया बनता नहीं, बस रिपीट होता है।” विज्ञान जो भी कहता है, वह अनुमान पर आधारित है। परंतु ईश्वरीय ज्ञान हमें बताता है — यह संसार एक अनादि-अविनाशी नाटक है, जो बार-बार चलता रहता है।

