09- Six States of Mind Series

 09- मन की छह अवस्थाओं की श्रृंखला

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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प्रस्तावना (Introduction)

नमस्कार आत्मा रूपी भाईयों और बहनों।
आज हम उस विषय की ओर बढ़ रहे हैं, जो हमारे जीवन के हर क्षण को प्रभावित करता है – हमारा ‘मन’।
ईश्वर स्वयं आकर सहज राजयोग सिखा रहे हैं, और इस राजयोग के नौ पाठों में से आज हम प्रवेश कर रहे हैं मन की छह अवस्थाओं की श्रंखला में।

क्या आपने कभी सोचा है – हमारा मन कैसे काम करता है?
क्यों एक ही दृश्य किसी को डराता है और किसी को प्रसन्न करता है?

आइए, आज हम इस रहस्य को सरलता से समझें।


1. मन क्या है? – निष्पक्ष संदेशवाहक

  • मन कोई निर्णय नहीं करता – वह केवल संदेश देता है।

  • यह शरीर और बुद्धि के बीच का सूत्रधार है।

  • अगर बुद्धि कहे कि कुछ करना है, तो मन बिना प्रश्न किए वैसा ही करेगा – चाहे वह सही हो या गलत।

 उदाहरण:अगर बुद्धि ने निर्णय किया कि उंगली काटनी है – तो मन उस निर्णय को कार्य में परिणत कर देगा।
यह नहीं पूछेगा – “क्यों?”


2. चेतना – स्मृतियों का संग्रह

  • चेतना हमारे मन का वह भाग है जिसमें यादें, विचार, अनुभव संचित होते हैं।

  • जो कुछ भी हम इन्द्रियों से देखते, सुनते, अनुभव करते हैं – वह चेतना में संग्रहित होता है।

  • यही चेतना हमारे विचारों और भावनाओं की दिशा तय करती है।

 यह आत्मा की स्मृति है – दिमाग नहीं, क्योंकि दिमाग तो शरीर का हिस्सा है।
बुद्धि और चेतना आत्मिक अंग हैं।


3. मन की पद्धति – संदेश का प्रवाह

  • इन्द्रियों द्वारा जो भी अनुभव होता है, वह मन के माध्यम से बुद्धि तक पहुंचता है।

  • बुद्धि उसे मूल्यांकन करती है – और प्रतिक्रिया तय करती है।

  • यही पद्धति हमारी सोचने की आदत बनाती है।

 यदि यह प्रक्रिया शुद्ध है, तो निर्णय भी शुद्ध होंगे।


4. वृत्ति – भावना की दिशा

  • जब चेतना किसी विशेष स्मृति या विचार से प्रभावित होती है, तब मन की वृत्ति उत्पन्न होती है।

  • यह वृत्ति मन को विशेष दिशा में ले जाती है – जैसे भय, घबराहट, आनंद।

 उदाहरण:कुत्ता देखकर डर लगना, या फिर वर्ड्सवर्थ द्वारा डैफोडिल्स देखकर दिव्यता महसूस करना – दोनों वृत्ति के उदाहरण हैं।


5. दृष्टिकोण – Outlook of the Mind

  • मन की वृत्ति व्यक्ति के दृष्टिकोण को बनाती है।

  • दृष्टिकोण यह तय करता है कि हम किसी घटना को कैसे देखेंगे।

  • और घटनाएं भी हमारी दृष्टि को प्रभावित करती हैं।

यदि हमारी धारणा यह है कि “हर कुत्ता काटेगा”, तो हम पहले से डरेंगे।
 यदि अनुभव सिखाता है कि “ये शांत है”, तो हम सहज रहेंगे।


6. कार्यकृति – क्रिया और संस्कार

  • दृष्टिकोण से जो प्रतिक्रिया होती है – वह क्रिया कहलाती है।

  • क्रिया के पीछे छिपा हुआ भाव मन को संस्कारित करता है।

  • यही संस्कार भविष्य की वृत्तियों को जन्म देते हैं।

 उदाहरण:अगर डर के कारण कोई भाग गया – तो वह डर संस्कार बन गया।
अगली बार वही स्थिति आई – तो स्वतः वही प्रतिक्रिया होगी।

राजयोग हमें इन छह अवस्थाओं का शुद्धीकरण सिखाता है।
जब हम ईश्वर से जुड़ते हैं, तो मन की ये सारी प्रक्रियाएं सकारात्मक ऊर्जा से भर जाती हैं।
मन शुद्ध होता है, वृत्तियां दिव्य बनती हैं, दृष्टिकोण आशावादी बनता है, और कार्यकृति योगयुक्त हो जाती है।

 यही है – सहज राजयोग की महानता, जो हमें स्वयं भगवान सिखाते हैं।

प्रश्नोत्तर: मन की छह अवस्थाएं | सहज राजयोग की समझ


प्रश्न 1: मन क्या है और इसका मुख्य कार्य क्या है?

उत्तर:मन आत्मा का वह अंग है जो संदेशवाहक की भूमिका निभाता है। यह स्वयं कोई निर्णय नहीं करता, बल्कि बुद्धि जो निर्णय लेती है, मन केवल उसे कार्य में परिणत करने की क्रिया करता है।
उदाहरण: यदि बुद्धि कहे कि उंगली काटनी है, तो मन वह कार्य करवा देता है, बिना पूछे कि क्यों।


प्रश्न 2: चेतना किसे कहते हैं और यह किस प्रकार कार्य करती है?

उत्तर:चेतना आत्मा की स्मृति है, जिसमें हमारी देखी-सुनी-समझी स्मृतियाँ, अनुभव और विचार संग्रहित होते हैं। यही चेतना हमारे विचारों की दिशा तय करती है और भावनाओं को आकार देती है। यह मस्तिष्क नहीं, बल्कि आत्मा का सूक्ष्म भाग है।


प्रश्न 3: मन, बुद्धि और इन्द्रियाँ किस प्रकार आपस में जुड़ी होती हैं?

उत्तर:इन्द्रियाँ जब कोई अनुभव करती हैं (देखना, सुनना आदि), तो यह अनुभव मन तक पहुंचता है। मन उसे बुद्धि तक भेजता है, जो फिर उस अनुभव का मूल्यांकन कर निर्णय लेती है। यह पूरी प्रक्रिया मन की पद्धति कहलाती है।


प्रश्न 4: वृत्ति किसे कहते हैं? इसका मन से क्या संबंध है?

उत्तर:जब चेतना किसी विशेष स्मृति या विचार से प्रभावित होती है, तो एक भावनात्मक दिशा उत्पन्न होती है, जिसे वृत्ति कहा जाता है। यह वृत्ति मन की गतिविधियों की दिशा तय करती है – जैसे डर, आनंद, शांति आदि।


प्रश्न 5: दृष्टिकोण कैसे बनता है और यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर:वृत्तियों से ही हमारा दृष्टिकोण (Outlook) बनता है – अर्थात हम किसी घटना या व्यक्ति को किस नजरिये से देखते हैं।
यदि हमारी वृत्ति भययुक्त है, तो हमारा दृष्टिकोण भी डरपोक होगा। यदि वृत्ति दिव्य है, तो हम हर परिस्थिति में सकारात्मक रहेंगे।


प्रश्न 6: कार्यकृति क्या होती है और इसका संस्कारों से क्या संबंध है?

उत्तर:दृष्टिकोण के अनुसार जो प्रतिक्रिया या क्रिया होती है, वही हमारी कार्यकृति कहलाती है।
हर कार्यकृति के पीछे एक भाव होता है, जो हमारे संस्कार बना देता है। ये संस्कार भविष्य में पुनः वृत्ति बनाते हैं – यह एक चक्र की तरह कार्य करता है।


प्रश्न 7: राजयोग इस पूरी प्रक्रिया में कैसे मदद करता है?

उत्तर:सहज राजयोग हमें चेतना, मन, वृत्ति, दृष्टिकोण और कार्यकृति – सभी का शुद्धीकरण सिखाता है।
ईश्वर से जुड़कर आत्मा सकारात्मक ऊर्जा से भर जाती है, जिससे वृत्तियाँ दिव्य होती हैं, दृष्टिकोण श्रेष्ठ बनता है, और कर्म योगयुक्त हो जाते हैं।


प्रश्न 8: क्या इस ज्ञान को व्यवहार में लाना आसान है?

उत्तर:जी हाँ, यदि हम नियमित रूप से राजयोग का अभ्यास करें और अपने विचारों की जागरूकता बनाए रखें, तो धीरे-धीरे मन की ये छह अवस्थाएं शुद्ध और शक्तिशाली बन जाती हैं।
ईश्वर स्वयं इसका मार्ग सिखाते हैं – बस हमें अभ्यास में लगना है।

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