छठ पूजा का असली अर्थ-:(11)परिवार, समाज और आत्मिक एकता का पर्व।
अध्याय 11 : छठ पूजा का रहस्य — परिवार, समाज और आत्मिक एकता का पर्व
(आधारित: अव्यक्त मुरली 22 अगस्त 2024 — “धर्म का सार है: एकता, प्रेम और सहयोग”)
1. छठ पूजा — केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, एकता का उत्सव
विषय:
छठ पूजा केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि परिवार, सहयोग और एकता का त्योहार है।
घर का हर सदस्य इस सेवा में भाग लेता है —
किसी ने प्रसाद बनाया, किसी ने सफाई की, किसी ने सजावट की।
मुरली उद्धरण:
साकार मुरली 9 अप्रैल 2024:
“एकता में शक्ति है। जब सब आत्माएं एक मत पर आती हैं, तो वहीं से स्वर्ग की शुरुआत होती है।”
उदाहरण:
जैसे वीणा के सारे तार एक स्वर में हों तो मधुर संगीत बनता है,
वैसे ही जब परिवार प्रेम के स्वर में एक होता है,
तो वातावरण में ईश्वरीय स्पंदन उत्पन्न होता है।
2. शहरों में छठ का रूप — भावना ही तीर्थ है
आज की व्यस्त जीवनशैली में भी लोग छठ के मूल भाव — शुद्धता, सेवा और सहयोग — को जीवित रखते हैं।
शहरों में लोग बालकनी, छत या पार्कों में मिलकर सूर्य को अर्घ देते हैं।
मुरली उद्धरण:
अव्यक्त मुरली 5 जून 2024:
“जहां ईश्वर स्मृति है, वही तीर्थ है। स्थान नहीं, भावना पवित्र होनी चाहिए।”
उदाहरण:
जैसे योगी जहां बैठकर ध्यान करे, वही स्थान शक्तिशाली बन जाता है,
वैसे ही अगर छठ की भावना निर्मल है,
तो छत पर किया गया अर्घ भी गंगा तट के समान पुण्यकारी है।
3. क्या छठ पूजा घर पर की जा सकती है?
कई लोग पूछते हैं — “अगर हम नदी किनारे न जाएं तो पूजा अधूरी रह जाएगी क्या?”
बाबा सिखाते हैं — तीर्थ बाहरी जल में नहीं, आत्मिक शुद्धता में है।
मुरली उद्धरण:
साकार मुरली 14 मई 2024:
“सच्चा तीर्थ बाहरी जल में नहीं, आत्मिक शुद्धता में है।”
आध्यात्मिक अर्थ:
छठ का असली संदेश है — शुद्ध मन से सूर्य को नमन।
नदी केवल माध्यम है; असली संबंध सूर्य और आत्मा के बीच मन के जल से है।
उदाहरण:
जैसे मोमबत्ती का प्रकाश कमरे को रोशन करता है,
वैसे ही निर्मल मन आत्मिक प्रकाश को जगाता है।
यदि नदी या तालाब न हो, तो जल भरा पात्र लेकर सूर्य को अर्घ देना भी उतना ही पवित्र है।
मुरली उद्धरण:
अव्यक्त मुरली 12 जून 2024:
“भावना श्रेष्ठ हो तो साधना स्वतः पवित्र बन जाती है।”
उदाहरण:
जैसे किसी गरीब का सच्चे दिल से दिया गया फूल ईश्वर को अधिक प्रिय होता है
बनिस्बत किसी महल की सजावट के —
वैसे ही सच्चे भाव से किया गया अर्घ ही असली पूजा है।
4. छठ में सेवा और सहयोग — समाज की आत्मा
छठ पूजा में शुद्धता, संयम और सामूहिक अनुशासन पर विशेष बल है।
हर कोई सेवा में योगदान देता है —
कोई प्रसाद बांटता है, कोई सफाई करता है, कोई दीप सजाता है।
मुरली उद्धरण:
साकार मुरली 10 जुलाई 2024:
“जो दूसरों की सेवा में रहते हैं, वही मेरे सच्चे बच्चे हैं।”
आध्यात्मिक संदेश:
सेवा का भाव ही समाज की आत्मा है।
जहां सेवा है, वहां ईश्वर की उपस्थिति अनुभव होती है।
उदाहरण:
जैसे फूल अपनी खुशबू सबको देता है,
वैसे ही सच्चा भक्त अपनी शक्ति सबमें बांटता है।
5. पुरुष और महिलाओं की भूमिका — आत्मा की समानता
पारंपरिक रूप से महिलाएं व्रत रखती हैं,
पर वास्तव में यह पर्व लिंग से नहीं, भावना से जुड़ा है।
पुरुष भी सेवा, व्यवस्था और सहयोग में समान भाग लेते हैं।
मुरली उद्धरण:
अव्यक्त मुरली 11 अगस्त 2024:
“मैं आत्मा को देखता हूं, न कि देह या लिंग को।”
अर्थ:
ईश्वर दृष्टि में सभी आत्माएं समान हैं —
न पुरुष, न नारी — केवल ज्योति रूप आत्मा।
उदाहरण:
जैसे दीपक की लौ का कोई लिंग नहीं होता,
वैसे ही आत्मा भी भेदभाव से परे ज्योति है।
छठ सिखाती है — हर आत्मा का अपना योगदान है।
6. निष्कर्ष — छठ पूजा: एकता, शुद्धता और सेवा का संगम
छठ केवल पूजा नहीं, एक जीवन दर्शन है।
यह सिखाती है —
शुद्धता से आत्मा को जगाओ।
एकता से परिवार को जोड़ो।
सेवा से समाज को उठाओ।
मुरली उद्धरण:
अव्यक्त मुरली 18 जुलाई 2024:
“जब सब आत्माएं एक दिशा में चलेंगी, तभी नए विश्व का निर्माण होगा।”
उदाहरण:
जैसे दीपावली में हजारों दीप मिलकर अंधकार मिटाते हैं,
वैसे ही जब परिवार और समाज एक साथ सेवा में लगते हैं,
तो पृथ्वी पर सतयुग के वायुमंडल का निर्माण होता है।
छठ पूजा का असली संदेश
सूर्य को अर्घ देना नहीं,
बल्कि अपनी आत्मा को प्रकाश देना ही सच्चा छठ है।
जहां प्रेम, एकता और सेवा है — वहीं ईश्वर की उपस्थिति है।
शिव बाबा का सन्देश:
“जो बच्चे परिवार को एक बनाते हैं, वही सच्चे योगी हैं।”
संकल्प:
छठ पूजा पर संकल्प करें —
हम केवल दीप नहीं जलाएंगे,
बल्कि अपने घरों में एकता और ईश्वरीय शक्ति का दीपक जलाएंगे।
छठ पूजा का रहस्य — परिवार, समाज और आत्मिक एकता का पर्व
(आधारित: अव्यक्त मुरली 22 अगस्त 2024 — “धर्म का सार है: एकता, प्रेम और सहयोग”)
प्रश्न 1: छठ पूजा का असली अर्थ क्या है? क्या यह केवल धार्मिक अनुष्ठान है?
उत्तर:
छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह परिवार, सहयोग और एकता का उत्सव है।
इस दिन हर सदस्य किसी-न-किसी रूप में सेवा में भाग लेता है —
किसी ने प्रसाद बनाया, किसी ने सफाई की, तो किसी ने सजावट की।
साकार मुरली 9 अप्रैल 2024:
“एकता में शक्ति है। जब सब आत्माएं एक मत पर आती हैं, तो वहीं से स्वर्ग की शुरुआत होती है।”
उदाहरण:
जैसे वीणा के सभी तार एक स्वर में हों तो मधुर संगीत बनता है,
वैसे ही परिवार जब प्रेम के स्वर में जुड़ता है,
तो वातावरण में ईश्वरीय स्पंदन जागृत होता है।
प्रश्न 2: आधुनिक जीवन में शहरों में छठ पूजा का रूप कैसा हो गया है?
उत्तर:
आज की व्यस्तता के बावजूद लोग छठ के मूल भाव — शुद्धता, सेवा और सहयोग — को जीवित रखते हैं।
शहरों में लोग बालकनी, छत या पार्क में मिलकर सूर्य को अर्घ देते हैं।
अव्यक्त मुरली 5 जून 2024:
“जहां ईश्वर स्मृति है, वही तीर्थ है। स्थान नहीं, भावना पवित्र होनी चाहिए।”
उदाहरण:
जैसे योगी जहां बैठकर ध्यान करे, वही स्थान शक्तिशाली बन जाता है।
वैसे ही अगर छठ की भावना निर्मल है,
तो छत पर किया गया अर्घ भी गंगा तट के समान पवित्र है।
प्रश्न 3: क्या छठ पूजा घर पर की जा सकती है या नदी किनारे ही करनी चाहिए?
उत्तर:
बाबा सिखाते हैं — तीर्थ बाहरी जल में नहीं, आत्मिक शुद्धता में है।
नदी या तालाब केवल माध्यम हैं; असली तीर्थ तो मन की निर्मलता है।
साकार मुरली 14 मई 2024:
“सच्चा तीर्थ बाहरी जल में नहीं, आत्मिक शुद्धता में है।”
आध्यात्मिक अर्थ:
छठ का असली संदेश है — शुद्ध मन से सूर्य को नमन।
नदी केवल प्रतीक है, असली संबंध सूर्य (परमात्मा) और आत्मा के बीच मन के जल से है।
उदाहरण:
जैसे मोमबत्ती का प्रकाश कमरे को रोशन करता है,
वैसे ही निर्मल मन आत्मिक प्रकाश जगाता है।
अगर नदी न हो, तो जल से भरे पात्र में भी अर्घ देना उतना ही पुण्यकारी है।
अव्यक्त मुरली 12 जून 2024:
“भावना श्रेष्ठ हो तो साधना स्वतः पवित्र बन जाती है।”
उदाहरण:
जैसे किसी गरीब का सच्चे दिल से दिया गया फूल ईश्वर को अधिक प्रिय होता है
बनिस्बत किसी महल की सजावट के —
वैसे ही सच्चे भाव से किया गया अर्घ ही असली पूजा है।
प्रश्न 4: छठ पूजा में सेवा और सहयोग का क्या महत्व है?
उत्तर:
छठ पूजा सामूहिक अनुशासन, शुद्धता और सेवा-भाव का प्रतीक है।
हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में सहयोग देता है —
कोई प्रसाद बांटता है, कोई सफाई करता है, कोई दीप सजाता है।
साकार मुरली 10 जुलाई 2024:
“जो दूसरों की सेवा में रहते हैं, वही मेरे सच्चे बच्चे हैं।”
आध्यात्मिक संदेश:
सेवा का भाव ही समाज की आत्मा है।
जहां सेवा है, वहां ईश्वर की उपस्थिति अनुभव होती है।
उदाहरण:
जैसे फूल अपनी खुशबू सबको देता है,
वैसे ही सच्चा भक्त अपनी शक्ति सबमें बांटता है।
प्रश्न 5: छठ पूजा में पुरुष और महिलाओं की भूमिकाओं को कैसे समझा जाए?
उत्तर:
पारंपरिक रूप से महिलाएं व्रत रखती हैं,
पर वास्तव में यह पर्व लिंग से नहीं, भावना से जुड़ा है।
पुरुष भी सेवा, सहयोग और व्यवस्था में समान रूप से भाग लेते हैं।
अव्यक्त मुरली 11 अगस्त 2024:
“मैं आत्मा को देखता हूं, न कि देह या लिंग को।”
अर्थ:
ईश्वर दृष्टि में सभी आत्माएं समान हैं —
न पुरुष, न नारी — केवल ज्योति रूप आत्मा।
उदाहरण:
जैसे दीपक की लौ का कोई लिंग नहीं होता,
वैसे ही आत्मा भी भेदभाव से परे ज्योति है।
छठ पूजा सिखाती है — हर आत्मा का अपना योगदान है।
प्रश्न 6: छठ पूजा का आध्यात्मिक निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:
छठ केवल पूजा नहीं, एक जीवन दर्शन है।
यह सिखाती है —
शुद्धता से आत्मा को जगाओ।
एकता से परिवार को जोड़ो।
सेवा से समाज को उठाओ।
अव्यक्त मुरली 18 जुलाई 2024:
“जब सब आत्माएं एक दिशा में चलेंगी, तभी नए विश्व का निर्माण होगा।”
उदाहरण:
जैसे दीपावली में हजारों दीप मिलकर अंधकार मिटाते हैं,
वैसे ही जब परिवार और समाज एक साथ सेवा में लगते हैं,
तो पृथ्वी पर सतयुग का वातावरण निर्मित होता है।
प्रश्न 7: छठ पूजा का सच्चा संदेश क्या है?
उत्तर:
सूर्य को अर्घ देना नहीं,
बल्कि अपनी आत्मा को प्रकाश देना ही छठ पूजा का सच्चा अर्थ है।
जहां प्रेम, एकता और सेवा है — वहीं ईश्वर की उपस्थिति है।
शिव बाबा का सन्देश:
“जो बच्चे परिवार को एक बनाते हैं, वही सच्चे योगी हैं।”
संकल्प:
इस छठ पूजा पर हम केवल दीप नहीं जलाएं,
बल्कि अपने घर में एकता, प्रेम और ईश्वरीय शक्ति का दीपक जलाएं।
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
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यह वीडियो ब्रह्माकुमारियों के ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक व्याख्या है।
हमारा उद्देश्य किसी धार्मिक परंपरा या भावना को आहत करना नहीं है,
बल्कि उसके गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ को समझाना है —
ताकि हर व्यक्ति छठ पूजा के आत्मिक रहस्य को पहचान सके।
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