(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
प्रश्नः-नाटक फिक्स है तो फिर पुरुषार्थ क्यों करें ? विरोध या पूरक ?
प्रस्तावना
भाइयों और बहनों,
अक्सर यह प्रश्न सामने आता है – यदि यह विश्व नाटक पूरी तरह से फिक्स है, तो फिर हमें पुरुषार्थ क्यों करना चाहिए?
नाटक तो पहले से लिखा हुआ है, उसमें एक सीन भी बदल नहीं सकता।
तो फिर पुरुषार्थ का महत्व कहाँ रह गया?
आइए, इस गहन प्रश्न का आध्यात्मिक उत्तर समझते हैं।
नाटक की सटीकता
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यह विश्व नाटक 5000 वर्षों का चक्र है।
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हर सीन, हर पात्र और हर संवाद पहले से तय है।
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इसमें एक सेकंड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता।
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यहां तक कि परमात्मा भी इस नाटक का कोई दृश्य बदल नहीं सकते।
बच्चों, यह विश्व नाटक बिल्कुल पूर्व-निर्धारित और सटीक है।
परमात्मा की भूमिका
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परमात्मा इस नाटक के निर्माता (Creator) नहीं हैं।
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वे केवल डायरेक्टर और टीचर हैं।
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उदाहरण के लिए – जैसे एक फिल्म की रील पहले रिकॉर्ड हो चुकी है, अब हर बार वही चलेगी।
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इस नाटक में कोई एडिट या कट नहीं हो सकता।
विरोधाभास का भ्रम
लोग पूछते हैं –
“अगर नाटक पहले से फिक्स है, तो पुरुषार्थ का क्या फायदा? क्या दोनों बातें विरोधाभासी नहीं हैं?”
उत्तर है – पुरुषार्थ विरोधी नहीं, बल्कि पूरक है।
क्योंकि पुरुषार्थ भी नाटक का ही हिस्सा है।
पुरुषार्थ का महत्व
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पुरुषार्थ करना और न करना – दोनों नाटक में फिक्स हैं।
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लेकिन आपके पुरुषार्थ से आपका पद और अनुभव तय होता है।
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उदाहरण के लिए:
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दो छात्र एक ही कक्षा में बैठे हैं।
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छात्र A मन लगाकर पढ़ाई करता है और आत्मविश्वास से उत्तर देता है।
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छात्र B पढ़ाई में ढील देता है और घबराता है।
दोनों का कक्षा में बैठना फिक्स था, लेकिन उनका अनुभव अलग-अलग है।
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इसी प्रकार, पुरुषार्थ से आप अपने रोल को अधिक सुखद और श्रेष्ठ अनुभव से निभा सकते हैं।
मुरली प्रमाण
मुरली दिनांक: 14.08.25
“जो बच्चे आज पुरुषार्थ करेंगे वही भविष्य में उसका फल पाएंगे। वही रिपीट होगा।”
असली रहस्य
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नाटक और पुरुषार्थ विरोधी नहीं।
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पुरुषार्थ भी नाटक का हिस्सा है।
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फर्क केवल इतना है कि पुरुषार्थ से ही आपकी अगली पुनरावृत्ति का दर्जा तय होता है।
निष्कर्ष – प्रेरणादायक संदेश
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नाटक का कोई भी सीन बदला नहीं जा सकता।
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परमात्मा भी इस नाटक को नहीं बदलते।
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लेकिन पुरुषार्थ ही है जो आपको आपके रोल के ऊंचे शिखर तक पहुंचाता है।
इसलिए याद रखो –
पुरुषार्थ नाटक का विरोधी नहीं, बल्कि आपकी श्रेष्ठ स्थिति का साधन है।
नाटक फिक्स है तो फिर पुरुषार्थ क्यों करें ? विरोध या पूरक ?
प्रस्तावना
भाइयों और बहनों,
अक्सर यह प्रश्न सामने आता है – यदि यह विश्व नाटक पूरी तरह से फिक्स है, तो फिर हमें पुरुषार्थ क्यों करना चाहिए?
नाटक तो पहले से लिखा हुआ है, उसमें एक सीन भी बदल नहीं सकता।
तो फिर पुरुषार्थ का महत्व कहाँ रह गया?
आइए, इस गहन प्रश्न का आध्यात्मिक उत्तर प्रश्नोत्तर शैली में समझते हैं।
प्रश्न 1:
यदि नाटक पहले से फिक्स है, तो क्या हमारे पुरुषार्थ करने या न करने से कुछ फर्क पड़ता है?
उत्तर:
हाँ, फर्क पड़ता है।
नाटक फिक्स है, लेकिन पुरुषार्थ भी उसी फिक्स नाटक का हिस्सा है।
जैसे फिल्म पहले से रिकॉर्ड है, उसमें एक्टर का मेहनत से या लापरवाही से डायलॉग बोलना पहले से तय है।
इसी प्रकार, नाटक में आपका पुरुषार्थ करना या न करना पहले से दर्ज है।
प्रश्न 2:
तो क्या नाटक और पुरुषार्थ एक-दूसरे के विरोधी हैं?
उत्तर:
नहीं।
नाटक और पुरुषार्थ विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
पुरुषार्थ भी नाटक की पटकथा का अटूट हिस्सा है।
यानी नाटक ने आपको पुरुषार्थ करने का ही मौका दिया है।
प्रश्न 3:
यदि सब पहले से लिखा है, तो फिर पुरुषार्थ का महत्व क्या है?
उत्तर:
पुरुषार्थ ही आपके अनुभव और आपके पद को निर्धारित करता है।
उदाहरण:
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दो छात्र एक ही कक्षा में बैठे हैं।
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छात्र A मन लगाकर पढ़ाई करता है, परीक्षा में आत्मविश्वास से उत्तर देता है।
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छात्र B लापरवाही करता है, और परीक्षा में घबराता है।
दोनों का कक्षा में बैठना फिक्स था,
लेकिन पढ़ाई का अनुभव और परिणाम पुरुषार्थ पर निर्भर था।
प्रश्न 4:
क्या मुरली में भी इसका प्रमाण मिलता है?
उत्तर:
हाँ।
साकार मुरली दिनांक: 14.08.25 में कहा गया:
“जो बच्चे आज पुरुषार्थ करेंगे वही भविष्य में उसका फल पाएंगे। वही रिपीट होगा।”
यानी पुरुषार्थ करने से ही आपकी आने वाली पुनरावृत्ति में उच्च पद सुनिश्चित होता है।
प्रश्न 5:
तो असली रहस्य क्या है?
उत्तर:
नाटक और पुरुषार्थ दो अलग बातें नहीं हैं।
नाटक फिक्स है – और पुरुषार्थ उसी नाटक का जीवंत हिस्सा है।
आपका पुरुषार्थ ही यह तय करता है कि आप भविष्य में देवता बनेंगे या प्रजा।
निष्कर्ष – प्रेरणादायक संदेश
भाइयों और बहनों,
नाटक का कोई भी सीन बदला नहीं जा सकता।
लेकिन उस सीन को आप कैसे अनुभव करते हैं, वह आपके पुरुषार्थ पर निर्भर है।
यही कारण है कि नाटक और पुरुषार्थ विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
इसलिए आज पुरुषार्थ करोगे, तो भविष्य में उसका सच्चा फल पाओगे।
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