(14)छठ पूजा में कौन-से फल रखें? और क्यों रखें ?
“छठ पूजा का असली अर्थ: फल नहीं, गुण अर्पित करो |
14 : छठ पूजा का असली अर्थ – फल नहीं, भावनाएँ अर्पित करो
आधार: अव्यक्त मुरली — 19 जून 2024
विषय: हर भक्ति का रहस्य ज्ञान में खोलो तो वही पूजा सच्ची बन जाती है।
भूमिका — भक्ति से ज्ञान की ओर
छठ पूजा केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई को जगाने वाला आध्यात्मिक प्रतीक है।
भक्ति में हम बाहरी रूप से फल अर्पित करते हैं, पर ज्ञान में वही फल आत्मा के गुणों का प्रतीक बन जाते हैं।
मुरली प्रेरणा:
“हर भक्ति का रहस्य ज्ञान में खोलो तो वही पूजा सच्ची बन जाती है।”
(अव्यक्त मुरली, 19 जून 2024)
छठ पूजा की थाली: भक्ति से आत्मा तक का सफर
छठ पूजा की थाली में सामान्यतः ये फल रखे जाते हैं:
केला, नारियल, सेब, नींबू या आंवला, खजूर, बेल फल, सुपारी इत्यादि।
लेकिन बाबा कहते हैं —
“यह केवल प्रसाद नहीं, बल्कि जीवन के गहरे संदेश का प्रतीक हैं।”
1. केला — स्थिरता और सहनशीलता का प्रतीक
लोक अर्थ:
केला हर ऋतु में उपलब्ध होता है, इसलिए इसे संपन्नता और निरंतरता का प्रतीक माना गया है।
आध्यात्मिक अर्थ:
“जो मन से स्थिर है वही सच्चा योगी है।”
(साकार मुरली, 15 अप्रैल 2024)
केला हमें सिखाता है — परिस्थितियाँ कैसी भी हों, आत्मा को अपनी स्व-स्थिति में स्थिर रहना चाहिए।
उदाहरण:
जैसे केला हर मौसम में समान रहता है, वैसे ही सच्चा योगी हर परिस्थिति में समान भाव में रहता है।
सादगी में मधुरता उसका स्वभाव बन जाती है।
2. नारियल — पवित्रता और अहंकार त्याग का प्रतीक
लोक अर्थ:
नारियल को श्रीफल कहा जाता है क्योंकि यह शुभ और पवित्र माना गया है।
इसका बाहरी आवरण कठोर होता है, पर अंदर मीठा जल और कोमलता।
आध्यात्मिक अर्थ:
“बाहरी आवरण मिटाना है, अंदर की पवित्रता प्रकट करनी है।”
(अव्यक्त मुरली, 12 अगस्त 2024)
नारियल आत्मा का प्रतीक है — बाहर कर्मों की कठोरता, भीतर ईश्वर प्रेम की मिठास।
उदाहरण:
जैसे नारियल तोड़ने पर मीठा जल मिलता है, वैसे ही अहंकार तोड़ने पर ईश्वर प्रेम का रस मिलता है।
3. सेब — आत्मिक स्वास्थ्य और सौंदर्य का प्रतीक
लोक अर्थ:
सेब को स्वास्थ्य और सुंदरता का प्रतीक माना गया है।
आध्यात्मिक अर्थ:
“शरीर स्वस्थ तो सेवा सहज। योग से आत्मा भी सशक्त।”
(साकार मुरली, 3 जून 2024)
सेब याद दिलाता है — सच्ची सुंदरता आत्मा की पवित्रता और शांति में है।
उदाहरण:
सेब बाहर से लाल और आकर्षक होता है, पर असली सुंदरता उसकी रस भरी कोमलता में है —
वैसे ही आत्मा की सुंदरता उसके गुणों में है।
4. नींबू या आंवला — शुद्धिकरण और संतुलन का प्रतीक
लोक अर्थ:
नींबू या आंवला वातावरण को शुद्ध करते हैं, इसलिए पूजा में अनिवार्य माने जाते हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:
“सच्चा योग आत्मा और वातावरण दोनों को शुद्ध करता है।”
(अव्यक्त मुरली, 28 मार्च 2024)
नींबू हमें सिखाता है — तपस्या कठिन जरूर है, पर वही आत्मा को शक्ति देती है।
उदाहरण:
नींबू खट्टा होते हुए भी शरीर को ताजगी देता है,
वैसे ही तपस्या कठोर होते हुए भी आत्मा को ताजगी देती है।
5. बेल फल और खजूर — आत्मिक ऊर्जा और सेवा भावना का प्रतीक
लोक अर्थ:
दोनों ही दीर्घायु और ऊर्जा देने वाले फल हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:
“योगी आत्मा सदैव सफूर्तिमान रहती है; थकान उस पर प्रभाव नहीं डालती।”
(साकार मुरली, 5 मई 2024)
उदाहरण:
खजूर छोटा होता है पर शक्ति से भरपूर —
वैसे ही योगी आत्मा बाहर से साधारण, पर अंदर से दिव्य शक्ति संपन्न होती है।
6. समग्र अर्थ — फल नहीं, भावनाएँ अर्पित करो
छठ पूजा की थाली का हर फल किसी न किसी आत्मिक गुण का प्रतीक है:
| फल | आत्मिक गुण | मुरली तिथि |
|---|---|---|
| केला | स्थिरता, सहनशीलता | 15 अप्रैल 2024 |
| नारियल | पवित्रता, अहंकार त्याग | 12 अगस्त 2024 |
| सेब | आत्मिक स्वास्थ्य, सात्विकता | 3 जून 2024 |
| नींबू/आंवला | शुद्धिकरण, संतुलन | 28 मार्च 2024 |
| खजूर/बेल | ऊर्जा, निश्चय बुद्धि | 5 मई 2024 |
मुरली प्रेरणा से समापन
“सच्चा अर्पण वह है जो बाप को याद करते हुए अपने संकल्प को फलवत बना दे।”
(अव्यक्त मुरली, 14 जुलाई 2024)
“बच्चे, फल तो हर आत्मा के पास है, पर उन्हें अर्पण करना जानो — वही सच्चा भक्त है।”
(साकार मुरली, 20 सितंबर 2024)
निष्कर्ष — फल नहीं, फलदायक संकल्प अर्पित करो
छठ पूजा का असली अर्थ है —
बाहरी फल नहीं, अंदर के गुण और शुभ संकल्प अर्पित करना।
जब हम थाली में फल रखते हैं,
तो याद रखें —
“मैं यह फल नहीं, अपनी मीठी संस्कारों की पेशकश कर रहा हूँ।”
इस बार छठ पूजा में फलों से नहीं, गुणों से अपनी थाली सजाएँ।
यही सच्ची भक्ति और सच्ची पूजा है।
छठ पूजा का असली अर्थ — प्रश्नोत्तर रूप में
आधार: अव्यक्त मुरली — 19 जून 2024
विषय: “हर भक्ति का रहस्य ज्ञान में खोलो तो वही पूजा सच्ची बन जाती है।”
प्रश्न 1: छठ पूजा में फल क्यों अर्पित किए जाते हैं?
उत्तर:लोक दृष्टि में फल अर्पण शुभता का प्रतीक है, पर ज्ञान दृष्टि में ये फल आत्मा के दिव्य गुणों के प्रतीक हैं।
मुरली प्रेरणा (19 जून 2024):
“हर भक्ति का रहस्य ज्ञान में खोलो तो वही पूजा सच्ची बन जाती है।”
इसलिए बाबा कहते हैं — फल नहीं, भावनाएँ अर्पित करो।
प्रश्न 2: केले को पूजा में क्यों रखा जाता है?
उत्तर:केला स्थिरता और सहनशीलता का प्रतीक है।
जैसे केला हर ऋतु में समान रहता है, वैसे ही योगी आत्मा हर परिस्थिति में अचल और पवित्र रहती है।
मुरली प्रेरणा (15 अप्रैल 2024):
“जो मन से स्थिर है, वही सच्चा योगी है।”
उदाहरण:
जैसे केले का स्वाद सरल और मीठा है, वैसे ही सच्चा योगी भी सादगी में मधुरता रखता है।
प्रश्न 3: नारियल को श्रीफल क्यों कहा जाता है और उसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर:नारियल का बाहरी आवरण कठोर और अंदर का जल निर्मल होता है —
यह अहंकार को तोड़कर भीतर की पवित्रता को प्रकट करने का संकेत देता है।
मुरली प्रेरणा (12 अगस्त 2024):
“बाहरी आवरण मिटाना है, अंदर की पवित्रता प्रकट करनी है।”
उदाहरण:
जैसे नारियल तोड़ने पर मीठा जल मिलता है, वैसे ही अहंकार तोड़ने पर ईश्वर प्रेम की मिठास मिलती है।
प्रश्न 4: सेब को शुभ क्यों माना जाता है?
उत्तर:सेब स्वास्थ्य और सौंदर्य का प्रतीक है।
आध्यात्मिक दृष्टि से यह बताता है कि आत्मा की सच्ची सुंदरता उसके शुद्ध, शांत और सात्विक विचारों में है।
मुरली प्रेरणा (3 जून 2024):
“शरीर स्वस्थ तो सेवा सहज। योग से आत्मा भी सशक्त।”
उदाहरण:
सेब बाहर से लाल और आकर्षक होता है, लेकिन असली सुंदरता उसकी रस भरी कोमलता में है —
जैसे आत्मा की सुंदरता उसके गुणों की कोमलता में है।
प्रश्न 5: नींबू या आंवला पूजा में क्यों रखा जाता है?
उत्तर:नींबू और आंवला शुद्धिकरण और संतुलन का प्रतीक हैं।
वे सिखाते हैं कि तपस्या कठिन होते हुए भी आत्मा को शक्ति और ताजगी देती है।
मुरली प्रेरणा (28 मार्च 2024):
“सच्चा योग आत्मा और वातावरण दोनों को शुद्ध करता है।”
उदाहरण:
नींबू खट्टा है पर शरीर को ताजगी देता है —
वैसे ही कठिन तपस्या आत्मा को ऊर्जा और स्थिरता देती है।
प्रश्न 6: बेल फल और खजूर का क्या प्रतीकात्मक अर्थ है?
उत्तर:ये दोनों आत्मिक ऊर्जा, निश्चय बुद्धि और सेवा भावना का प्रतीक हैं।
मुरली प्रेरणा (5 मई 2024):
“योगी आत्मा सदैव सफूर्तिमान रहती है; थकान उस पर प्रभाव नहीं डालती।”
उदाहरण:
खजूर छोटा दिखता है पर शक्ति से भरपूर होता है —
वैसे ही योगी आत्मा बाहर से साधारण, पर अंदर से दिव्य शक्ति संपन्न होती है।
प्रश्न 7: छठ पूजा के इन फलों से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर:हर फल आत्मा के एक दिव्य गुण का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि पूजा में केवल फल नहीं, बल्कि गुण और शुभ संकल्प अर्पित करने हैं।
| फल | प्रतीक | आत्मिक गुण |
|---|---|---|
| केला | स्थिरता | सहनशीलता |
| नारियल | पवित्रता | अहंकार त्याग |
| सेब | स्वास्थ्य | सात्विकता |
| नींबू/आंवला | शुद्धिकरण | संतुलन |
| खजूर/बेल | ऊर्जा | निश्चय बुद्धि |
प्रश्न 8: शिव बाबा का संदेश छठ पूजा के संदर्भ में क्या है?
उत्तर:मुरली प्रेरणा (14 जुलाई 2024):
“सच्चा अर्पण वह है जो बाप को याद करते हुए अपने संकल्प को फलवत बना दे।”
और
मुरली (20 सितंबर 2024):
“बच्चे, फल तो हर आत्मा के पास है, पर उन्हें अर्पण करना जानो — वही सच्चा भक्त है।”
इसलिए छठ पूजा में फल नहीं, फलदायक संकल्प अर्पित करो।
प्रश्न 9: आज की पूजा को सच्ची तपस्या कैसे बनाएं?
उत्तर:जब हम हर भक्ति को ज्ञान से भर देते हैं, तब पूजा तपस्या बन जाती है।
इस बार छठ पूजा में केवल फलों से नहीं, बल्कि गुणों से अपनी थाली सजाओ।
यही सच्चा अर्पण और सच्चा योग है।
Disclaimer (Hindi):
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के अव्यक्त और साकार मुरलियों पर आधारित आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तैयार किया गया है।
इसका उद्देश्य धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए, उनके आंतरिक आध्यात्मिक अर्थ को स्पष्ट करना है।
यह किसी परंपरा या संप्रदाय की आलोचना नहीं करता।
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