(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अव्यक्त मुरली-(15) “03-03-1984 “स्व अधिकारियों के स्व के राज्य का हालचाल”
03-03-1984 “स्व अधिकारियों के स्व के राज्य का हालचाल”
(डबल विदेशी बच्चों से)
आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। डबल विदेशी अर्थात् सदा स्वदेश, स्वीट होम का अनुभव करने वाले। सदा मैं स्वदेशी, स्वीट होम का रहने वाला, परदेश में, पर-राज्य में स्वराज्य अर्थात् आत्मिक राज्य और सुख का राज्य स्थापन करने गुप्त रुप से प्रकृति का आधार ले पार्ट बजाने के लिए आये हैं। हैं स्वदेशी, पार्ट परदेश में बजा रहे हैं। यह प्रकृति का देश है। स्व-देश आत्मा का देश है। अभी प्रकृति माया के वश में हैं, माया का राज्य है, इसलिए परदेश हो गया। यही प्रकृति आपके मायाजीत होने से आपकी सुखमय सेवाधारी बन जायेगी। मायाजीत, प्रकृतिजीत होने से अपना सुख का राज्य, सतोप्रधान राज्य, सुनहरी दुनिया बन जायेगी। यह स्पष्ट स्मृति आती है ना? सिर्फ सेकेण्ड में चोला बदली करना है। पुराना छोड़ नया चोला धारण करना है। कितनी देर लगेगी? फरिश्ता सो देवता बनने में सिर्फ चोला बदली करने की देरी लगेगी। वाया स्वीट होम भी करेंगे लेकिन स्मृति अन्त में फरिश्ता सो देवता बने कि बने, यही रहेगी। देवताई शरीर की, देवताई जीवन की, देवताओं के दुनिया की, सतोप्रधान प्रकृति के समय की स्मृति रहती है? भरे हुए संस्कार अनेक बार के राज्य के, देवताई जीवन के इमर्ज होते हैं? क्योंकि जब तक आप होवनहार देवताओं के संस्कार इमर्ज नहीं होंगे तो साकार रुप में सुनहरी दुनिया इमर्ज कैसे होगी। आपके इमर्ज संकल्प से देवताई सृष्टि इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी। संकल्प स्वत: ही इमर्ज होता है या अभी समझते हो बहुत देरी है? देवताई शरीर आप देव आत्माओं का आह्वान कर रहे हैं। दिखाई दे रहे हैं अपने देवताई शरीर? कब धारण करेंगे? पुराने शरीर से दिल तो नहीं लग गई है? पुराना टाइट वस्त्र तो नहीं पहना हुआ है? पुराना शरीर, पुराना चोला पड़ा हुआ है, जो समय पर सेकेण्ड में छोड़ नहीं सकते। निर्बन्धन अर्थात् लूज़ ड्रेस पहनना। तो डबल विदेशियों को क्या पसन्द होता है – लूज वा टाइट? टाइट तो पसन्द नहीं है ना! बन्धन तो नहीं है?
अपने आप से एवररेडी हो! समय को छोड़ो, समय नहीं गिनती करो। अभी यह होना है, यह होना है, वह समय जाने बाप जाने। सेवा जाने बाप जाने। स्व की सेवा से सन्तुष्ट हो? विश्व सेवा को किनारे रखो, स्व को देखो। स्व की स्थिति में, स्व के स्वतन्त्र राज्य में, स्वयं से सन्तुष्ट हो? स्व की राजधानी ठीक चला सकते हो? यह सभी कर्मचारी, मंत्री, महामंत्री सभी आपके अधिकार में हैं? कहाँ अधीनता तो नहीं है? कभी आपके ही मंत्री, महामंत्री धोखा तो नहीं देते? कहाँ अन्दर ही अन्दर गुप्त अपने ही कर्मचारी माया के साथी तो नहीं बन जाते हैं? स्व के राज्य में आप राजाओं की रुलिंग पावर कन्ट्रोलिंग पावर यथार्थ रुप से कार्य कर रही है? ऐसे तो नहीं कि आर्डर करो शुभ संकल्प में चलना है और चलें व्यर्थ संकल्प। आर्डर करो सहनशीलता के गुण को और आवे हलचल का अवगुण। सभी शक्तियां, सभी गुण, हे स्व राजे, आपके आर्डर में हैं? यही तो आपके राज्य के साथी हैं। तो सभी आर्डर में हैं? जैसे राजे लोग आर्डर करते और सभी सेकेण्ड में जी हजूर कर सलाम करते हैं, ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर, रुलिंग पावर है? इसमें एवररेडी हो? स्व की कमजोरी, स्व का बन्धन धोखा तो नहीं देगा?
आज बापदादा स्वराज्य अधिकारियों से स्व के राज्य का हाल-चाल पूछ रहे हैं! राजे बैठे हो ना? प्रजा तो नहीं हो ना? किसी के अधीन अर्थात् प्रजा, अधिकारी अर्थात् राजा। तो सभी कौन हो? राजे। राजयोगी या प्रजा योगी? सभी राजाओं की दरबार लगी हुई है ना? सतयुग के राज्य सभा में तो भूल जायेंगे, एक दो को पहचानेंगे नहीं कि हम वही संगमयुगी हैं। अभी त्रिकालदर्शी बन एक दो को जानते हो, देखते हो। अभी का यह राज्य दरबार सतयुग से भी श्रेष्ठ है। ऐसी राज्य दरबार सिर्फ संगमयुग पर ही लगती है। तो सबके राज्य का हालचाल ठीक है ना? बड़े आवाज से नहीं बोला कि ठीक है!
बापदादा को भी यह राज्य सभा प्रिय लगती है। फिर भी रोज़ चेक करना, अपनी राज्य दरबार रोज़ लगाकर देखना अगर कोई भी कर्मचारी थोड़ा भी अलबेला बने तो क्या करेंगे? छोड़ देंगे उसको? आप सबने शुरु के चरित्र सुने हैं ना! अगर कोई छोटे बच्चे चंचलता करते थे, तो उनको क्या सजा देते थे? उसका खाना बन्द कर देना या रस्सी से बांध देना – यह तो कॉमन बात है लेकिन उसको एकान्त में बैठने की ज्यादा घण्टा बैठने की सजा देते थे। बच्चे हैं ना, बच्चे तो बैठ नहीं सकते। तो एक ही स्थान पर बिना हलचल के 4-5 घण्टा बैठना उसकी कितनी सज़ा है। तो ऐसी रॉयल सज़ा देते थे। तो यहाँ भी कोई कर्मेन्द्रिय ऐसे वैसे करे तो अन्तर्मुखता की भट्ठी में उसको बिठा दो। बाहरमुखता में आना ही नहीं है, यही उसको सजा दो। आये फिर अन्दर कर दो। बच्चे भी करते हैं ना। बच्चों को बिठाओ फिर ऐसे करते हैं, फिर बिठा देते हैं। तो ऐसे बाहरमुखता से अन्तर्मुखता की आदत पड़ जायेगी। जैसे छोटे बच्चों की आदत डालते हैं ना – बैठो, याद करो। वह आसन नहीं लगायेंगे फिर-फिर आप लगाकर बिठायेंगे। कितनी भी वह टाँगे हिलावे तो भी उसको कहेंगे नहीं, ऐसे बैठो। ऐसे ही अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्ठी में अच्छी तरह से दृढ़ता के संकल्प से बाँधकर बिठा दो। और रस्सी नहीं बाँधनी है लेकिन दृढ़ संकल्प की रस्सी, अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्ठी में बिठा दो। अपने आपको ही सजा दो। दूसरा देगा तो फिर क्या होगा? दूसरे अगर आपको कहें यह आपके कर्मचारी ठीक नहीं हैं, इसको सजा दो। तो क्या करेंगे? थोड़ा-सा आयेगा ना – यह क्यों कहता! लेकिन अपने आपको देंगे तो सदाकाल रहेंगे। दूसरे के कहने से सदाकाल नहीं होगा। दूसरे के इशारे को भी जब तक अपना नहीं बनाया है तब तक सदाकाल नहीं होता, समझा!
राजे लोग कैसे हो? राज्य दरबार अच्छी लग रही है ना! सब बड़े राजे हो ना! छोटे राजे तो नहीं, बड़े राजे। अच्छा, आज ब्रह्मा बाप खास डबल विदेशियों को देख रुह-रुहान कर रहे थे। वह फिर सुनायेंगे। अच्छा।
सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत, राज्य अधिकारी आत्मायें, गुणों और सर्व शक्तियों के खजानों को अपने अधिकार से कार्य में लगाने वाले, सदा स्वराज्य द्वारा सर्व कर्मचारियों को सदा के स्नेही साथी बनाने वाले, सदा निर्बन्धन, एवररेडी रहने वाले, सन्तुष्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
आस्ट्रेलिया ग्रुप से:- सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले बापदादा और सर्व आत्माओं द्वारा ब्लैसिंग लेने वाली आत्मायें हो ना! यही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है जो सदा पुरुषार्थ के साथ-साथ ब्लैसिंग लेते हुए बढ़ते रहें। ब्राह्मण जीवन में यह ब्लैसिंग एक लिफ्ट का काम करती है। इस द्वारा उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे।
आस्ट्रेलिया निवासियों से बापदादा का विशेष स्नेह हैं क्यों? क्योंकि सदा एक अनेकों को लाने की हिम्मत और उमंग में रहते हैं। यह विशेषता बाप को भी प्रिय है क्योंकि बाप का भी कार्य है – ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाना। तो फालो फादर करने वाले बच्चे विशेष प्रिय होते हैं ना। आने से ही उमंग अच्छा रहता है। यह एक आस्ट्रेलिया की धरनी को जैसे वरदान मिला हुआ है। एक अनेकों के निमित्त बन जाता है। बापदादा तो हर बच्चे के गुणों की माला सिमरण करते रहते हैं। आस्ट्रेलिया की विशेषता भी बहुत है लेकिन आस्ट्रेलिया वाले माया को भी थोड़ा ज्यादा प्रिय हैं। जो बाप को प्रिय होते हैं, वह माया को भी प्रिय हो जाते हैं। कितने अच्छे-अच्छे थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन माया के बन तो गये हैं ना। आप सब तो ऐसे कच्चे नहीं हो ना! कोई चक्र में आने वाले तो नहीं हो? बापदादा को अभी भी वह बच्चे याद हैं। सिर्फ क्या होता है – किसी भी बात को पूरा न समझने के कारण क्यों और क्या में आ जाते हैं, तो माया के आने का दरवाजा खुल जाता है। आप तो माया के दरवाजे को जान गये हो ना। तो न क्यों क्या में जाओ और न माया को आने का चांस मिले। सदा डबल लॉक लगा रहे। याद और सेवा ही डबल लॉक है। सिर्फ सेवा सिंगल लॉक है। सिर्फ याद, सेवा नहीं तो भी सिंगल लॉक है। दोनों का बैलेन्स – यह है डबल लॉक। बापदादा की टी.वी. में आपका फोटो निकल रहा है, फिर बापदादा दिखायेंगे देखो इस फोटो में आप हो। अच्छा – फिर भी संख्या में हिम्मत से, निश्चय से अच्छा नम्बर है। बाप को ज्यादा प्रिय लगते हो इसलिए माया से बचने की युक्ति सुनाई।
अध्याय : स्व अधिकारियों के स्व के राज्य का हालचाल
(03 मार्च 1984 — बापदादा द्वारा डबल विदेशी बच्चों से)
✨ 1. स्वदेशी आत्मा का सच्चा परिचय
बापदादा कहते हैं —
“डबल विदेशी अर्थात् सदा स्वदेश, स्वीट होम का अनुभव करने वाले।”
हम सभी आत्माएं मूल रूप से स्वदेशी हैं — परमधाम (Sweet Home) की निवासी। लेकिन आज हम परदेश (माया और प्रकृति के राज्य) में भूमिका निभा रहे हैं। जैसे कोई विदेशी अपने देश की याद में रहता है, वैसे ही योगी आत्मा सदा अपने स्वदेश परमधाम की याद में रहती है।
उदाहरण:
जैसे अभिनेता मंच पर पात्र निभाते हुए भी जानता है कि यह उसका असली घर नहीं है — वैसा ही स्वराज्य अधिकारी आत्मा जानती है कि यह शरीर और यह संसार केवल “ड्रामा का मंच” है।
👑 2. परदेश से स्वराज्य की ओर यात्रा
“अभी प्रकृति माया के वश में है… यही प्रकृति आपके मायाजीत होने से आपकी सेवाधारी बन जायेगी।”
जब आत्मा मायाजीत और प्रकृतिजीत बन जाती है, तब वही प्रकृति सेवक बन जाती है।
स्वराज्य अधिकारी वही है जो अपने मन, बुद्धि, संस्कार, इन्द्रियों — इन “कर्मचारियों” पर शासन रखता है।
मुरली बिंदु:
“स्वराज्य अधिकारी वही जो अपने सभी गुणों, शक्तियों को अपने आदेश में चलाये।”
🌞 3. फरिश्ता से देवता बनने का सेकेण्ड का सफर
“फरिश्ता सो देवता बनने में सिर्फ चोला बदली करने की देरी लगेगी।”
देवता बनना कोई कठिन तपस्या नहीं — यह स्मृति और स्थिति का परिवर्तन है। फरिश्ता अर्थात देह-अभिमान से मुक्त आत्मा; और देवता अर्थात् सतोप्रधान, पूर्ण पवित्र आत्मा।
वह परिवर्तन बस ‘सेकंड’ का है — जब आत्मा पुराना शरीर-भाव छोड़ ‘स्व’ की याद में स्थिर होती है।
उदाहरण:
जैसे परिधान बदलने में एक पल लगता है — वैसे ही आत्मा ‘फरिश्ता सो देवता’ बनती है जब स्मृति में ‘मैं आत्मा हूँ’ दृढ़ हो जाती है।
🕊️ 4. स्व की राजधानी और राज्यसभा
“आज बापदादा स्वराज्य अधिकारियों से स्व के राज्य का हालचाल पूछ रहे हैं!”
हर आत्मा के भीतर एक राज्यसभा है — मन, बुद्धि, संस्कार, इन्द्रियां।
बापदादा पूछते हैं — क्या तुम्हारे मंत्री (संस्कार), कर्मचारी (इन्द्रियां), सैनिक (विचार) सब तुम्हारे आदेश में हैं?
कहीं मन व्यर्थ संकल्पों से विद्रोह तो नहीं करता?
आत्मचिंतन:
क्या मैं अपने विचारों का राजा हूँ या उन विचारों की प्रजा?
🔥 5. अन्तर्मुखता की “रॉयल सज़ा”
“कोई कर्मेन्द्रिय ऐसे वैसे करे तो अन्तर्मुखता की भट्ठी में उसको बिठा दो।”
यह बहुत सुंदर संकेत है — जब मन या इन्द्रिय बाहर भटकती है, तो उसे ‘सज़ा’ दो — अन्तर्मुखता का अभ्यास।
दूसरा न कहे, स्वयं अपने आपको अनुशासन में रखो।
उदाहरण:
जैसे बच्चों को शांत बैठने की आदत सिखाई जाती है, वैसे आत्मा को भी ध्यान की आदत डालनी पड़ती है — बिना हलचल, बिना विक्षेप।
💎 6. निर्बन्धन और एवररेडी स्थिति
“निर्बन्धन अर्थात् लूज़ ड्रेस पहनना… बन्धन तो नहीं है?”
डबल विदेशियों को बापदादा ने “लूज़” रहने की शिक्षा दी — अर्थात् बन्धनों से मुक्त।
यह निर्बन्धन जीवन वही है जो हर परिस्थिति में एवररेडी रहता है — सेवा के लिए, स्मृति के लिए, परिवर्तन के लिए।
⚖️ 7. याद और सेवा का डबल लॉक
“सदा डबल लॉक लगा रहे। याद और सेवा ही डबल लॉक है।”
सिर्फ सेवा सिंगल लॉक है, सिर्फ याद भी सिंगल लॉक है।
जब दोनों का संतुलन (balance) बनता है — तब माया प्रवेश नहीं कर सकती।
उदाहरण:
जैसे घर का दरवाज़ा दो कुंडियों से बंद किया जाता है — वैसे ही आत्मा को ‘याद’ और ‘सेवा’ से सुरक्षित रखना चाहिए।
🌸 8. स्वराज्य अधिकारी का वास्तविक परिचय
“सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत, राज्य अधिकारी आत्मायें… सदा निर्बन्धन, एवररेडी, सन्तुष्ट आत्मायें।”
बापदादा अंत में आशीर्वाद देते हैं —
जो आत्माएं स्वराज्य में स्थिर हैं, वे स्व-संतुष्ट रहती हैं, और उनका प्रत्येक कर्म सेवाधारी बन जाता है।
यह आत्माएं ही भविष्य के सतोप्रधान राजाओं का बीज हैं।
🕯️ 9. आस्ट्रेलिया ग्रुप की विशेषता
“याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले… सदा उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे।”
बापदादा ने ऑस्ट्रेलिया ग्रुप की विशेषता बताई — वे “एक से अनेक” को लाने की उमंग में रहते हैं।
यह संकेत है — हर आत्मा को ‘एक (बाप)’ से शक्ति लेकर ‘अनेक’ आत्माओं तक सुख और ज्ञान पहुँचाना है।
10. निष्कर्ष : अपने भीतर की राज्यसभा रोज़ लगाओ
बापदादा का संदेश —
“रोज़ अपनी राज्यसभा लगाकर देखो, अगर कोई कर्मचारी अलबेला बने तो उसको अन्तर्मुखता की भट्ठी में बिठा दो।”
अर्थ:
स्व का आत्म-निरीक्षण ही आत्म-राज्य की कुंजी है।
जब मन, बुद्धि, संस्कार — सब आपके आदेश में होंगे, तभी आप बनेंगे सच्चे स्वराज्य अधिकारी।
आज का संकल्प
“मैं आत्मा अपने सभी विचारों, कर्मेन्द्रियों और संस्कारों की राजा हूँ।
मेरा हर संकल्प ईश्वरीय आदेश से चलता है।
मैं फरिश्ता से देवता बनने की यात्रा पर हूँ।”
प्रश्न 1: “डबल विदेशी” आत्माएं कौन हैं?
उत्तर:
“डबल विदेशी” वे आत्माएं हैं जो सदा “स्वदेश” — अर्थात् स्वरूपधाम (Paramdham) और स्वीट होम — का अनुभव करती हैं,
परंतु इस परदेश (मायालोक) में आकर सेवाधारी बनती हैं।
मुरली वाक्य:
“डबल विदेशी अर्थात् सदा स्वदेश, स्वीट होम का अनुभव करने वाले।
सदा मैं स्वदेशी, स्वीट होम का रहने वाला, परदेश में पार्ट बजाने आया हूँ।”
यह हमें स्मरण दिलाता है कि आत्मा मूल रूप से प्रकाश की, शांति की संतान है।
प्रश्न 2: आत्मा का असली देश कौन-सा है?
उत्तर:
आत्मा का असली देश — परमधाम (स्वदेश) है।
यहाँ (पृथ्वी पर) जो “प्रकृति का देश” है, वह अभी माया के राज्य में है, इसलिए यह “परदेश” कहलाता है।
मुरली:
“यह प्रकृति का देश है, स्व-देश आत्मा का देश है।
अभी प्रकृति माया के वश में है, इसलिए परदेश हो गया।”
जब आत्मा “मायाजीत” और “प्रकृतिजीत” बन जाती है,
तो यही परदेश फिर सुखमय स्वराज्य में बदल जाता है।
प्रश्न 3: “फरिश्ता से देवता” बनने में कितना समय लगता है?
उत्तर:
बापदादा कहते हैं — बस सेकंड भर की देरी!
केवल चोला (पुराना शरीर, पुरानी प्रकृति) बदलने की देर है।
मुरली:
“फरिश्ता सो देवता बनने में सिर्फ चोला बदली करने की देरी लगेगी।”
जब आत्मा देह-अभिमान, पुराने संस्कार, और बंधनों को छोड़ देती है,
तब “फरिश्ता” बनकर “देवताई जीवन” धारण कर लेती है।
प्रश्न 4: क्या हमारी “स्वराज्य सत्ता” सही चल रही है?
उत्तर:
बाबा पूछते हैं —
क्या तुम “राजा” हो या “प्रजा”?
क्या अपने मन, बुद्धि, संस्कार पर रुलिंग-पावर और कन्ट्रोलिंग-पावर रखते हो?
मुरली:
“राजे बैठे हो ना? प्रजा तो नहीं हो ना?
स्व के राज्य में आप राजाओं की रुलिंग पावर यथार्थ रूप से कार्य कर रही है?”
यदि संकल्प व्यर्थ में जाते हैं,
यदि भावनाएं जल्दी विचलित होती हैं,
तो यह संकेत है कि “राज्य का कोई मंत्री” (इंद्रिय, विचार) अनुशासन में नहीं है।
प्रश्न 5: अगर स्वराज्य में कोई कर्मचारी (संस्कार या इंद्रिय) अलबेला बन जाए तो क्या करें?
उत्तर:
बापदादा कहते हैं — उसे “राजसी सजा” दो —
अन्तर्मुखता की भट्ठी में बैठाओ।
मतलब, भीतर जाकर ध्यान और आत्म-संवाद में बैठो।
मुरली:
“अगर कोई कर्मेन्द्रिय ऐसे वैसे करे तो अन्तर्मुखता की भट्ठी में उसको बिठा दो।
दृढ़ संकल्प की रस्सी से बाँध दो।”
बाहरमुखता को रोकने का एक ही उपाय है —
अन्तर्मुखता और आत्मचिंतन।
प्रश्न 6: माया क्यों कभी-कभी अच्छे आत्माओं को भी प्रिय लगती है?
उत्तर:
बाबा हँसते हुए कहते हैं —
जो आत्माएं बाप को बहुत प्रिय हैं,
वह कभी-कभी माया को भी प्रिय लग जाती हैं!
क्योंकि माया उन्हीं पर ध्यान देती है जो आगे बढ़ रहे हैं।
मुरली:
“जो बाप को प्रिय होते हैं, वह माया को भी प्रिय हो जाते हैं।
इसलिए डबल लॉक लगा रहे — याद और सेवा ही डबल लॉक है।”
केवल सेवा करना या केवल याद में रहना — दोनों अधूरे हैं।
“याद और सेवा का बैलेन्स” ही सुरक्षा का डबल लॉक है।
प्रश्न 7: अपने स्वराज्य की जाँच कैसे करें?
उत्तर:
प्रतिदिन अपने “राज्य दरबार” की बैठक लगाओ।
देखो —
कहीं कोई कर्मचारी (विचार, इंद्रिय, भाव) अलबेला तो नहीं हुआ?
कहीं माया ने कोई दरवाजा तो नहीं खोला?
मुरली:
“रोज़ अपनी राज्य दरबार लगाकर देखना।
अगर कोई कर्मचारी थोड़ा भी अलबेला बने तो उसको अन्तर्मुखता की सज़ा दो।”
इस आत्म-निरीक्षण से आत्मा का राज्य स्थिर और शांत रहता है।
निष्कर्ष — सच्चा राजा कौन?
सच्चा राजा वह नहीं जो दूसरों पर राज्य करे,
बल्कि वह है जो अपने मन, बुद्धि, संस्कार और कर्मेन्द्रियों पर राज्य करता है।
अव्यक्त वाक्य:
“सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत, राज्य अधिकारी आत्माएं,
गुणों और शक्तियों को अपने अधिकार से कार्य में लगाने वाली बनो।”
ऐसा स्वराज्य अधिकारी आत्मा ही
भविष्य में सर्वराज्य अधिकारी देवता बनती है।
आध्यात्मिक संदेश (End Note)
“अपने राज्य के मंत्री — विचार, संस्कार, कर्मेन्द्रियाँ —
अगर अनुशासित हैं, तो संसार की कोई माया तुम्हें जीत नहीं सकती।”Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्था की 3 मार्च 1984 की अव्यक्त मुरली पर आधारित आध्यात्मिक व्याख्या है। इसका उद्देश्य आत्म-जागृति, स्व-परिवर्तन और ईश्वरीय ज्ञान को सरल रूप में प्रस्तुत करना है। इसमें दिए गए विचार आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हैं, न कि किसी धार्मिक विवाद या अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए।
स्वराज्य अधिकारी, आत्मिक राज्य, फरिश्ता से देवता, अव्यक्त मुरली 03 मार्च 1984, बापदादा मुरली, ब्रह्माकुमारी मुरली, आत्मा का स्वराज्य, मन बुद्धि संस्कार पर राज्य, मायाजीत आत्मा, प्रकृतिजीत आत्मा, अन्तर्मुखता की शक्ति, डबल विदेशी बच्चे, स्वीट होम अनुभव, स्वदेशी आत्मा, आत्मचिंतन, राजयोग अभ्यास, निर्बन्धन जीवन, एवररेडी आत्मा, याद और सेवा का संतुलन, डबल लॉक स्थिति, आत्मिक राज्यसभा, मुरली आधारित ज्ञान, आत्म निरीक्षण, ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिकता, राजयोगी जीवन, आत्मा का राज्य दरबार, स्वराज्य का रहस्य, आत्मिक सशक्तिकरण, बापदादा की शिक्षा, परमधाम की याद, आध्यात्मिक यात्रा, ओम शांति,Self-rule officer, soul’s kingdom, from angel to deity, Avyakt Murli 03 March 1984, BapDada Murli, Brahma Kumari Murli, soul’s self-rule, rule over mind, intellect and sanskars, soul conquered by Maya, soul conquered by nature, power of introspection, double foreign children, sweet home experience, indigenous soul, self-reflection, Rajyoga practice, life without bondage, ever-ready soul, balance of remembrance and service, double lock state, spiritual Rajya Sabha, Murli-based knowledge, self-introspection, Brahma Kumari spirituality, Raj Yogi life, soul’s kingdom court, secret of self-rule, spiritual empowerment, BapDada’s teachings, remembrance of the Supreme Abode, spiritual journey, Om Shanti,

