MURLI 25-10-2025 |BRAHMA KUMARIS

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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

25-10-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठेबच्चे – संगमयुग पर ही तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी पड़ती सतयुग अथवा कलियुग में यह मेहनत होती नहीं”
प्रश्नः- श्रीकृष्ण का नाम उनके माँ बाप से भी अधिक बाला है, क्यों?
उत्तर:- क्योंकि श्रीकृष्ण से पहले जिनका भी जन्म होता है वो जन्म योगबल से नहीं होता। श्रीकृष्ण के माँ बाप ने कोई योगबल से जन्म नहीं लिया है। 2- पूरी कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही हैं, वही सद्गति को पाते हैं। जब सब पाप आत्मायें खत्म हो जाती हैं तब गुलगुल (पावन) नई दुनिया में श्रीकृष्ण का जन्म होता है, उसे ही वैकुण्ठ कहा जाता है। 3- संगम पर श्रीकृष्ण की आत्मा ने, सबसे अधिक पुरुषार्थ किया है इसलिए उनका नाम बाला है।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठेरूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। 5 हज़ार वर्ष के बाद एक ही बार बच्चों को आकर पढ़ाते हैं, पुकारते भी हैं कि हम पतितों को आकर पावन बनाओ। तो सिद्ध होता है कि यह पतित दुनिया है। नई दुनिया, पावन दुनिया थी। नया मकान खूबसूरत होता है। पुराना जैसे टूटा फूटा हो जाता है। बरसात में गिर पड़ता है। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप आया है नई दुनिया बनाने। अभी पढ़ा रहे हैं। फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद पढ़ायेंगे। ऐसे कभी कोई साधू-सन्त आदि अपने फालोअर्स को नहीं पढ़ायेंगे। उनको यह पता ही नहीं है। न खेल का पता है क्योंकि निवृत्ति मार्ग वाले हैं। बाप बिगर कोई भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझा न सके। आत्म-अभिमानी बनने में ही बच्चों को मेहनत होती है क्योंकि आधाकल्प में तुम कभी आत्म-अभिमानी बने नहीं हो। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। ऐसे नहीं कि आत्मा सो परमात्मा। नहीं, अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा शिव को याद करना है। याद की यात्रा मुख्य है, जिससे ही तुम पतित से पावन बनते हो। इसमें कोई स्थूल बात नहीं। कोई नाक कान आदि नहीं बन्द करना है। मूल बात है – अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना। तुम आधाकल्प से हिरे हुए हो – देह-अभिमान में रहने के। पहले अपने को आत्मा समझेंगे तब बाप को याद कर सकेंगे। भक्ति मार्ग में भी बाबा-बाबा कहते आते हैं। बच्चे जानते हैं सतयुग में एक ही लौकिक बाप है। वहाँ पारलौकिक बाप को याद नहीं करते हैं क्योंकि सुख है। भक्ति मार्ग में फिर दो बाप बन जाते हैं। लौकिक और पारलौकिक। दु:ख में सब पारलौकिक बाप को याद करते हैं। सतयुग में भक्ति होती नहीं। वहाँ तो है ही ज्ञान की प्रालब्ध। ऐसे नहीं कि ज्ञान रहता है। इस समय के ज्ञान की प्रालब्ध मिलती है। बाप तो एक ही बार आते हैं। आधाकल्प बेहद के बाप का, सुख का वर्सा रहता है। फिर लौकिक बाप से अल्पकाल का वर्सा मिलता है। यह मनुष्य नहीं समझा सकते। यह है नई बात, 5 हज़ार वर्ष में संगमयुग पर एक ही बार बाप आते हैं, जबकि कलियुग अन्त, सतयुग आदि का संगम होता है तब ही बाप आते हैं – नई दुनिया फिर से स्थापन करने। नई दुनिया में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर त्रेता में रामराज्य था। बाकी देवताओं आदि के जो इतने चित्र बनाये हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। बाप कहते हैं इन सबको भूल जाओ। अभी अपने घर को और नई दुनिया को याद करो।

ज्ञान मार्ग है समझ का मार्ग, जिससे तुम 21 जन्म समझदार बन जाते हो। कोई दु:ख नहीं रहता। सतयुग में कभी कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको शान्ति चाहिए। कहा जाता है ना – मांगने से मरना भला। बाप तुमको ऐसा साहूकार बना देते हैं जो देवताओं को भगवान से कोई चीज़ मांगने की दरकार नहीं रहती। यहाँ तो दुआ मांगते हैं ना। पोप आदि आते हैं तो कितने दुआ लेने जाते हैं। पोप कितनों की शादियाँ कराते हैं। बाबा तो यह काम नहीं करते। भक्ति मार्ग में जो पास्ट हो गया है सो अब हो रहा है सो फिर रिपीट होगा। दिन-प्रतिदिन भारत कितना गिरता जाता है। अभी तुम हो संगम पर। बाकी सब हैं कलियुगी मनुष्य। जब तक यहाँ न आयें तब तक कुछ भी समझ न सकें कि अभी संगम है वा कलियुग है? एक ही घर में बच्चे समझते हैं संगम पर हैं, बाप कहेंगे हम कलियुग में हैं तो कितनी तकलीफ हो पड़ती है। खान-पान आदि का भी झंझट हो पड़ता है। तुम संगम-युगी हो शुद्ध पवित्र भोजन खाने वाले। देवतायें कभी प्याज़ आदि थोड़ेही खाते हैं। इन देवताओं को कहा ही जाता है निर्विकारी। भक्ति मार्ग में सब तमोप्रधान बन गये हैं। अब बाप कहते हैं सतोप्रधान बनो। कोई भी ऐसा नहीं है जो समझें कि आत्मा पहले सतोप्रधान थी फिर तमोप्रधान बनी है क्योंकि वह तो आत्मा को निर्लेप समझते हैं। आत्मा सो परमात्मा है, ऐसे-ऐसे कह देते हैं।

बाप कहते हैं ज्ञान सागर मैं ही हूँ, जो इस देवी-देवता धर्म के होंगे वह सब आकर फिर से अपना वर्सा लेंगे। अभी सैपलिंग लग रही है। तुम समझ जायेंगे – यह इतना ऊंच पद पाने लायक नहीं है। घर में जाकर शादियां आदि करते छी-छी होते रहते हैं। तो समझाया जाता है ऊंच पद पा नहीं सकते। यह राजाई स्थापन हो रही है। बाप कहते हैं – मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ तो प्रजा जरूर बनानी पड़े। नहीं तो राज्य कैसे पायेंगे। यह गीता के अक्षर हैं ना – इनको कहा ही जाता है गीता का युग। तुम राजयोग सीख रहे हो – जानते हो आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन लग रहा है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी दोनों राजाई स्थापन हो रही हैं। ब्राह्मण कुल स्थापन हो चुका है। ब्राह्मण ही फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हैं। जो अच्छी रीति मेहनत करेंगे वह सूर्यवंशी बनेंगे। और धर्म वाले जो आते हैं वह आते ही हैं अपने धर्म की स्थापना करने। पीछे उस धर्म की आत्मायें आती रहती हैं, धर्म की वृद्धि होती जाती है। समझो कोई क्रिश्चियन है तो उन्हों का बीजरूप क्राइस्ट ठहरा। तुम्हारा बीजरूप कौन है? बाप, क्योंकि बाप ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहा जाता है। रचता नहीं कहेंगे। इन द्वारा बच्चे एडाप्ट किये जाते हैं। ब्रह्मा को भी तो क्रियेट करते हैं ना। बाप आकर प्रवेश कर यह रचते हैं। शिव-बाबा कहते हैं तुम मेरे बच्चे हो। ब्रह्मा भी कहते हैं तुम मेरे साकारी बच्चे हो। अभी तुम काले छी-छी बन गये हो। अब फिर ब्राह्मण बने हो। इस संगम पर ही तुम पुरुषोत्तम देवी-देवता बनने की मेहनत करते हो। देवताओं को और शूद्रों को कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, तुम ब्राह्मणों को मेहनत करनी पड़ती है देवता बनने के लिए। बाप आते ही हैं संगम पर। यह है बहुत छोटा युग इसलिए इनको लीप युग कहा जाता है। इनको कोई जानते नहीं। बाप को भी मेहनत लगती है। ऐसे नहीं कि झट से नई दुनिया बन जाती है। तुमको देवता बनने में टाइम लगता है। जो अच्छे कर्म करते हैं तो अच्छे कुल में जन्म लेते हैं। अभी तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार गुल-गुल बन रहे हो। आत्मा ही बनती है। अभी तुम्हारी आत्मा अच्छे कर्म सीख रही है। आत्मा ही अच्छे वा बुरे संस्कार ले जाती है। अभी तुम गुल-गुल (फूल) बन अच्छे घर में जन्म लेते रहेंगे। यहाँ जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं, तो जरूर अच्छे कुल में जन्म लेते होंगे। नम्बरवार तो हैं ना। जैसे-जैसे कर्म करते हैं ऐसा जन्म लेते हैं। जब बुरे कर्म करने वाले बिल्कुल खत्म हो जाते हैं फिर स्वर्ग स्थापन हो जाता है, छांटछूट होकर। तमोप्रधान जो भी हैं वह खत्म हो जाते हैं। फिर नये देवताओं का आना शुरू होता है। जब भ्रष्टाचारी सब खत्म हो जाते हैं तब श्रीकृष्ण का जन्म होता है, तब तक बदली सदली होती रहती है। जब कोई छी-छी नहीं रहेगा तब श्रीकृष्ण आयेगा, तब तक तुम आते जाते रहेंगे। श्रीकृष्ण को रिसीव करने वाले माँ बाप भी पहले से चाहिए ना। फिर सब अच्छे-अच्छे रहेंगे। बाकी चले जायेंगे, तब ही उसको स्वर्ग कहा जायेगा। तुम श्रीकृष्ण को रिसीव करने वाले रहेंगे। भल तुम्हारा छी-छी जन्म होगा क्योंकि रावण राज्य है ना। शुद्ध जन्म तो हो न सके। गुल-गुल (पवित्र) जन्म श्रीकृष्ण का ही पहले-पहले होता है। उसके बाद नई दुनिया वैकुण्ठ कहा जाता है। श्रीकृष्ण बिल्कुल गुल-गुल नई दुनिया में आयेंगे। रावण सम्प्रदाय बिल्कुल खत्म हो जायेगी। श्रीकृष्ण का नाम उनके माँ-बाप से भी बहुत बाला है। श्रीकृष्ण के माँ-बाप का नाम इतना बाला नहीं है। श्रीकृष्ण से पहले जिनका जन्म होता है वो योगबल से जन्म नहीं कहेंगे। ऐसे नहीं श्रीकृष्ण के माँ-बाप ने योगबल से जन्म लिया है। नहीं, अगर ऐसा होता तो उन्हों का भी नाम बाला होता। तो सिद्ध होता है उनके माँ-बाप ने इतना पुरुषार्थ नहीं किया है जितना श्रीकृष्ण ने किया है। यह सब बातें आगे चल तुम समझते जायेंगे। पूरी कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही हैं। वही सद्गति में आते हैं। पाप आत्मायें सब खत्म हो जाती हैं तब उन्हों का जन्म होता है फिर कहेंगे पावन दुनिया इसलिए श्रीकृष्ण का नाम बाला है। माँ-बाप का इतना नहीं। आगे चल तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे। टाइम तो पड़ा है। तुम किसको भी समझा सकते हो – हम यह बनने के लिए पढ़ रहे हैं। विश्व में इनका राज्य अब स्थापन हो रहा है। हमारे लिए तो नई दुनिया चाहिए। अभी तुमको दैवी सम्प्रदाय नहीं कहेंगे। तुम हो ब्राह्मण सम्प्रदाय। देवता बनने वाले हो। दैवी सम्प्रदाय बन जायेंगे फिर तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों स्वच्छ होंगे। अभी तुम संगम-युगी पुरुषोत्तम बनने वाले हो। यह सारी मेहनत की बात है। याद से विकर्माजीत बनना है। तुम खुद कहते हो याद घड़ी-घड़ी भूल जाती है। बाबा पिकनिक पर बैठते हैं तो बाबा को ख्याल रहता है। हम याद में नहीं रहेंगे तो बाबा क्या कहेंगे इसलिए बाबा कहते हैं तुम याद में बैठ पिकनिक करो। कर्म करते माशूक को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, इसमें ही मेहनत है। याद से आत्मा पवित्र होगी, अविनाशी ज्ञान धन भी जमा होगा। फिर अगर अपवित्र बन जाते हैं तो सारा ज्ञान बह जाता है। पवित्रता ही मुख्य है। बाप तो अच्छी-अच्छी बात ही समझाते हैं। यह सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान और कोई में भी नहीं है। और जो भी सतसंग आदि हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के।

बाबा ने समझाया है – भक्ति वास्तव में प्रवृत्ति मार्ग वालों को ही करनी है। तुम्हारे में तो कितनी ताकत रहती है। घर बैठेतुमको सुख मिल जाता है। सर्वशक्तिमान् बाप से तुम इतनी ताकत लेते हो। संन्यासियों में भी पहले ताकत थी, जंगलों में रहते थे। अभी तो कितने बड़े-बड़े फ्लैट बनाकर रहते हैं। अभी वह ताकत नहीं है। जैसे तुम्हारे में भी पहले सुख की ताकत रहती है। फिर गुम हो जाती है। उन्हों में भी पहले शान्ति की ताकत थी, अब वह ताकत नहीं रही है। आगे तो सच कहते थे कि रचता और रचना को हम नहीं जानते। अभी तो अपने को भगवान शिवोहम् कह बैठते हैं। बाप समझाते हैं – इस समय सारा झाड़ तमोप्रधान है इसलिए सभी का उद्धार करने मैं आता हूँ। यह दुनिया ही बदलनी है। सब आत्मायें वापिस चली जायेंगी। एक भी नहीं जिसको यह पता हो कि हमारी आत्मा में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है जो फिर से रिपीट करेंगे। आत्मा इतनी छोटी है, इनमें अविनाशी पार्ट भरा है जो कभी विनाश नहीं होता। इसमें बुद्धि बड़ी अच्छी पवित्र चाहिए। वह तब होगी जब याद की यात्रा में मस्त रहेंगे। मेहनत सिवाए पद थोड़ेही मिलेगा इसलिए गाया जाता है चढ़े तो चाखे……. कहाँ ऊंच ते ऊंच राजाओं का राजा डबल सिरताज, कहाँ प्रजा। पढ़ाने वाला तो एक ही है। इसमें समझ बड़ी अच्छी चाहिए। बाबा बार-बार समझाते हैं याद की यात्रा है मुख्य। मैं तुमको पढ़ाकर विश्व का मालिक बनाता हूँ। तो टीचर गुरू भी होगा। बाप तो है ही टीचरों का टीचर, बापों का बाप। यह तो तुम बच्चे जानते हो हमारा बाबा बहुत प्यारा है। ऐसे बाप को तो बहुत याद करना है। पढ़ना भी पूरा है। बाप को याद नहीं करेंगे तो पाप नष्ट नहीं होंगे। बाप सभी आत्माओं को साथ ले जायेंगे। बाकी शरीर सब खत्म हो जायेंगे। आत्मायें अपने-अपने धर्म के सेक्शन में जाकर निवास करती हैं। अच्छा!

मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बुद्धि को पवित्र बनाने के लिए याद की यात्रा में मस्त रहना है। कर्म करते भी एक माशूक याद रहे – तब विकर्माजीत बनेंगे।

2) इस छोटे से युग में मनुष्य से देवता बनने की मेहनत करनी है। अच्छे कर्मों के अनुसार अच्छे संस्कारों को धारण कर अच्छे कुल में जाना है।

वरदान:- अपनी रूहानी लाइटस द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा करने वाले सहज सफलतामूर्त भव
जैसे साकार सृष्टि में जिस रंग की लाइट जलाते हो वही वातावरण हो जाता है। अगर हरी लाइट होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है। लाल लाइट जलाते हो तो याद का वायुमण्डल बन जाता है। जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर देती है तो आप लाइट हाउस भी पवित्रता की लाइट व सुख की लाइट से वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। स्थूल लाइट आंखों से देखते हैं, रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे।
स्लोगन:- व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गॅवाना – यह भी अपवित्रता है।

 

अव्यक्त इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

कोई भी खजाना कम खर्च करके अधिक प्राप्ति कर लेना, यही योग का प्रयोग है। मेहनत कम सफलता ज्यादा इस विधि से प्रयोग करो। जैसे समय वा संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं, तो संकल्प कम से कम खर्च हों लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट संकल्प चलाने के बाद, सोचने के बाद सफलता या प्राप्ति कर सकता है वह आप एक दो सेकेण्ड में कर सकते हो, इसको कहते हैं कम खर्चा बाला नशीन। खर्च कम करो लेकिन प्राप्ति 100 गुणा हो इससे समय की वा संकल्प की जो बचत होगी, वह औरों की सेवा में लगा सकेंगे, दान पुण्य कर सकेंगे, यही योग का प्रयोग है।

“मीठे बच्चे – संगमयुग पर ही तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी पड़ती | शिव बाबा का ज्ञान”


Q&A – संगमयुग, आत्म-अभिमान और पुरुषार्थ

प्रश्न 1:
श्रीकृष्ण का नाम उनके माँ-बाप से भी अधिक बाला क्यों है?

उत्तर:

  • श्रीकृष्ण से पहले जिनका जन्म होता है, वो योगबल से जन्म नहीं लेते

  • उनके माँ-बाप ने योगबल से जन्म नहीं लिया, इसलिए उनका नाम इतना बाला नहीं है।

  • संगमयुग पर श्रीकृष्ण की आत्मा ने सबसे अधिक पुरुषार्थ किया, इसलिए उनका नाम बाला है।

  • पूर्ण कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही सद्गति पाते हैं, और उनके जन्म के समय दुनिया पूरी तरह पवित्र होती है।


प्रश्न 2:
संगमयुग में बच्चों को आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत क्यों करनी पड़ती है?

उत्तर:

  • आधाकल्प में कभी आत्म-अभिमानी बनने का अवसर नहीं मिला।

  • बाप कहते हैं – पहले अपने को आत्मा समझो, फिर परमपिता परमात्मा शिव को याद करना

  • याद की यात्रा ही मुख्य है जिससे पतित से पावन बनते हैं।

  • सतयुग और भक्ति मार्ग में ऐसा मेहनत नहीं करनी पड़ती, वहां लोग सुख और आनंद में रहते हैं।


प्रश्न 3:
भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • भक्ति मार्ग: लोग केवल लौकिक बाप को याद करते हैं, सुख में रहते हैं, ज्ञान का अनुभव कम होता है।

  • ज्ञान मार्ग (संगमयुग): आत्मा को समझना और बाप को याद करना मुख्य।

  • यहां 5 हज़ार वर्ष में केवल एक बार बाप आते हैं, पतितों को पावन बनाने।

  • बच्चे इस समय शुद्ध पवित्र भोजन खाते हैं और देवता बनने की मेहनत करते हैं


प्रश्न 4:
नई दुनिया, वैकुण्ठ और श्रीकृष्ण के जन्म का क्या महत्व है?

उत्तर:

  • नई दुनिया में पुरानी पापात्माओं का अंत होता है।

  • तब तक गुल-गुल (पवित्र) जन्म लेने वाले बच्चों की यात्रा चलती रहती है।

  • श्रीकृष्ण का जन्म सभी पाप समाप्त होने के बाद होता है।

  • वैकुण्ठ और नई दुनिया में ही शुद्ध देवताओं का राज्य स्थापित होता है।


प्रश्न 5:
संगमयुग में देवता बनने के लिए बच्चों को क्या करना पड़ता है?

उत्तर:

  • याद में रहकर विकर्मों का नाश करना

  • अच्छे कर्म और संस्कार अपनाना।

  • आत्मा की पवित्रता बनाए रखना।

  • स्थूल और रूहानी लाइट के माध्यम से वायुमंडल का पवित्रिकरण और सेवा करना

  • मेहनत कम और सफलता अधिक – समय और संकल्प की बचत कर सेवा में लगाना।


प्रश्न 6:
शिव बाबा बच्चों को क्यों बार-बार याद और ध्यान की शिक्षा देते हैं?

उत्तर:

  • याद की यात्रा से ज्ञान और शक्ति बढ़ती है।

  • बाप याद में रहने पर विश्व का मालिक बनाने की सेवा सिखाते हैं।

  • याद से आत्मा पवित्र होती है और अविनाशी ज्ञानधन जमा होता है।

  • यह मेहनत सिर्फ संगमयुग पर संभव है, अन्य युगों में ऐसा अनुभव नहीं मिलता।


सारांश / Takeaways:

  1. बुद्धि पवित्र बनाने के लिए याद की यात्रा में मस्त रहना है।

  2. छोटे से युग में मनुष्य से देवता बनने की मेहनत करनी है।

  3. अच्छे कर्मों के अनुसार सही संस्कार धारण कर अच्छे कुल में जन्म लेना।

  4. स्थूल और रूहानी लाइट सेवा से वायुमंडल का पवित्रिकरण और शक्ति प्राप्त होती है।

  5. समय और संकल्प का कम खर्च, अधिक प्राप्ति – यही सच्चा योग प्रयोग है।

  6. डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक शिक्षाओं और अव्यक्त मुरली पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्ञान-संप्रदायिक दृष्टि से साझा किए गए हैं। इसे व्यक्तिगत मार्गदर्शन या धार्मिक अनुष्ठान के विकल्प के रूप में न समझें।
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