प्रश्न का मन्थन:-(10)पतित पावन सीताराम कहना तो ठीक है, परंतु रघुपति राघव राजा राम कहना क्यों गलत है?
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“पतित पावन सीताराम सही, पर रघुपति राघव राजा राम गलत क्यों? | असली राम कौन? | Brahma Kumaris Gyan”
अध्याय:
पतित पावन सीताराम — भक्ति का नहीं, ज्ञान का सच्चा अर्थ
प्रस्तावना
आज हम एक बहुत सुंदर पर गहरी बात को समझेंगे।
लोग बड़े प्रेम से कहते हैं — “पतित पावन सीताराम”, और उसके साथ ही गाते हैं — “रघुपति राघव राजा राम।”
दोनों ही सुनने में भक्ति से भरे लगते हैं, परंतु मुरली की दृष्टि से दोनों का अर्थ एक नहीं।
तो आइए देखते हैं — क्यों “पतित पावन सीताराम” सही है, और “रघुपति राघव राजा राम” अधूरा या गलत है।
1. भक्ति मार्ग में राम का अर्थ
भक्ति में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी कहा गया है — जो त्रेता युग में अवतरित हुए माने जाते हैं।
परंतु बाबा ज्ञान देते हैं कि त्रेता युग के श्री राम पतित पावन नहीं हो सकते,
क्योंकि त्रेता युग में तो पतित होते ही नहीं।
वहां तो सभी आत्माएं पवित्र हैं।
Murli Note (4 नवम्बर 2025):
“रामचंद्र जी पतित पावन नहीं। पतित पावन तो एक शिव बाबा है।”
इसलिए “त्रेता युग के श्री राम” का कार्य पतितों को पावन बनाना नहीं था।
2. “पतित पावन सीताराम” क्यों ठीक है?
आध्यात्मिक अर्थ:
यहां “सीता” का अर्थ है आत्मा।
और “राम” है परमात्मा शिव — ज्ञान का दाता।
जब आत्मा (सीता) परमात्मा (राम) से मिलती है, तो वह पतित से पावन बन जाती है।
उदाहरण:
जैसे सूर्य की किरणें कमल को खिलाती हैं,
वैसे ही परमात्मा शिव का ज्ञान आत्मा को खिलाता है।
Murli Note (10 फरवरी 2018):
“राम शब्द का अर्थ है परमात्मा। सीता आत्मा है।”
इसलिए “पतित पावन सीताराम” का अर्थ है — आत्मा और परमात्मा का मिलन।
3. “रघुपति राघव राजा राम” क्यों गलत या अधूरा है?
“रघुपति राघव राजा राम” में जिस राम का गुण गाया गया है, वह त्रेता युग के श्री राम हैं —
जो स्वयं पवित्र थे, परंतु पतितों को पावन बनाने वाले नहीं।
त्रेता युग में हर आत्मा 25% गिरावट वाली होती है,
इसलिए वहां कोई भी पतित पावन नहीं कहा जा सकता।
उदाहरण:
एक डॉक्टर स्वयं स्वस्थ हो सकता है, पर जब वह दूसरों का इलाज न करे,
तो उसे उद्धारक या मुक्तिदाता नहीं कहा जा सकता।
त्रेता के श्री राम स्वयं पवित्र थे, पर उद्धारक नहीं — उद्धारक हैं शिव परमात्मा।
4. ज्ञान मार्ग में “राम” का अर्थ
ज्ञान मार्ग में “राम” का अर्थ बदल जाता है।
यहां राम = शिव परमात्मा और सीता = आत्मा।
भक्ति में उन्होंने देहधारी श्री राम को भगवान बना दिया,
परंतु भगवान तो निराकार शिव ही हैं।
इसलिए “पतित पावन सीताराम” का अर्थ है —
आत्मा (सीता) और परमात्मा (राम शिव) का दिव्य योग।
5. भ्रम कैसे हुआ?
द्वापर युग से जब भक्ति आरम्भ हुई,
तो ज्ञान लुप्त हो गया और नामों में परिवर्तन हुआ।
शिव का नाम “राम”, “कृष्ण”, “विष्णु” आदि में बंट गया,
और आत्मा का नाम “सीता”, “राधा”, “लक्ष्मी” बन गया।
इसलिए जब लोगों ने “रघुपति राघव राजा राम” गाना शुरू किया,
तो उन्होंने देहधारी श्री राम को पतित पावन समझ लिया,
जबकि सच्चा पतित पावन तो देहरहित शिव बाबा हैं।
6. असली पतित पावन कौन?
शिव बाबा कहते हैं —
“पतित पावन मैं एक ही हूं, और कोई नहीं।”
— (साकार मुरली, 15 मार्च 2019)
शिव ही वह परमात्मा हैं जो ज्ञान की रोशनी से आत्मा की गंदगी और विकार को धो देते हैं।
सीता आत्मा, राम शिव के संग (योग) से पावन बनती है।
यही “पतित पावन सीताराम” का सच्चा अर्थ है।
7. सारांश तालिका
| पक्ष | भक्ति मार्ग | ज्ञान मार्ग |
|---|---|---|
| राम | श्री रामचंद्र (त्रेता युग) | शिव परमात्मा |
| सीता | राम की पत्नी | आत्मा |
| पतित पावन | देहधारी राम | निराकार शिव |
| उद्देश्य | आदर्श जीवन | आत्मा का उद्धार |
इसलिए “रघुपति राघव राजा राम” का संबंध निराकार शिव से नहीं,
जबकि “पतित पावन सीताराम” आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का प्रतीक है।
8. आध्यात्मिक निष्कर्ष
सीता और राम का संग ही योग है —
जहां आत्मा (सीता) परमात्मा (राम शिव) से जुड़कर फिर से पावन बनती है।
भक्ति में यह “गीत” बन गया,
पर ज्ञान में यह योग की अनुभूति है।
निष्कर्ष
अब हमें स्पष्ट समझ आ गया कि —
“पतित पावन सीताराम” क्यों सही है,
और “रघुपति राघव राजा राम” क्यों अधूरा है।
भक्ति में नाम वही रहे, पर ज्ञान में अर्थ बदल गया।
अब “राम” का अर्थ है शिव परमात्मा,
और “सीता” का अर्थ है हम आत्माएं —
जो शिव से मिलकर पुनः पावन बनती हैं।
Murli References Summary
| मुरली दिनांक | मुख्य बिंदु |
|---|---|
| 4 नवम्बर 2025 | “रामचंद्र जी पतित पावन नहीं। पतित पावन तो एक शिव बाबा है।” |
| 10 फरवरी 2018 | “राम शब्द का अर्थ है परमात्मा। सीता आत्मा है।” |
| 15 मार्च 2019 | “पतित पावन मैं एक ही हूं, और कोई नहीं।” |
प्रश्न 1: भक्ति मार्ग में ‘राम’ का अर्थ क्या है?
उत्तर:
भक्ति में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी कहा गया है —
जो त्रेता युग में अवतरित हुए माने जाते हैं।
परंतु बाबा ज्ञान देते हैं कि त्रेता युग के श्री राम पतित पावन नहीं हो सकते,
क्योंकि त्रेता में तो सभी आत्माएं पवित्र होती हैं —
वहां कोई पतित होता ही नहीं।
Murli Note (4 नवम्बर 2025):
“रामचंद्र जी पतित पावन नहीं। पतित पावन तो एक शिव बाबा है।”
प्रश्न 2: “पतित पावन सीताराम” कहना क्यों सही है?
उत्तर:
यहां “सीता” का अर्थ है आत्मा,
और “राम” है परमात्मा शिव — जो ज्ञान का दाता है।
जब आत्मा (सीता) परमात्मा (राम शिव) से योग लगाती है,
तो वह पतित से पावन बन जाती है।
उदाहरण:
जैसे सूर्य की किरणें कमल को खिलाती हैं,
वैसे ही परमात्मा शिव का ज्ञान आत्मा को खिलाता है।
Murli Note (10 फरवरी 2018):
“राम शब्द का अर्थ है परमात्मा। सीता आत्मा है।”
इसलिए “पतित पावन सीताराम” का सच्चा अर्थ है —
आत्मा और परमात्मा का मिलन।
प्रश्न 3: “रघुपति राघव राजा राम” कहना गलत या अधूरा क्यों है?
उत्तर:
“रघुपति राघव राजा राम” में जिस राम की वंदना की जाती है,
वह त्रेता युग के श्री राम हैं —
जो स्वयं पवित्र तो थे, पर दूसरों को पावन बनाने वाले नहीं।
त्रेता युग में आत्माएं पहले से 25% गिर चुकी होती हैं,
इसलिए वहां कोई “पतित पावन” नहीं कहा जा सकता।
उदाहरण:
एक डॉक्टर स्वयं स्वस्थ हो सकता है,
पर जब वह दूसरों का इलाज न करे,
तो उसे “उद्धारक” नहीं कहा जा सकता।
इसी प्रकार, श्री राम पवित्र थे पर उद्धारक नहीं —
उद्धारक हैं केवल शिव परमात्मा।
प्रश्न 4: ज्ञान मार्ग में “राम” का अर्थ क्या है?
उत्तर:
ज्ञान मार्ग में “राम” शब्द का अर्थ बदल जाता है।
यहां राम = शिव परमात्मा, और सीता = आत्मा।
भक्ति में देहधारी श्री राम को भगवान मान लिया गया,
परंतु भगवान तो निराकार शिव ही हैं।
इसलिए “पतित पावन सीताराम” का अर्थ है —
आत्मा और परमात्मा का दिव्य योग।
प्रश्न 5: भक्ति मार्ग में भ्रम कैसे हुआ?
उत्तर:
द्वापर युग से जब भक्ति आरम्भ हुई,
तो ज्ञान लुप्त हो गया और नामों में परिवर्तन हुआ।
शिव का नाम “राम”, “कृष्ण”, “विष्णु” आदि रूपों में बंट गया,
और आत्मा का नाम “सीता”, “राधा”, “लक्ष्मी” बन गया।
इसलिए जब लोगों ने “रघुपति राघव राजा राम” गाना शुरू किया,
तो उन्होंने देहधारी श्री राम को पतित पावन समझ लिया,
जबकि सच्चा पतित पावन तो देहरहित शिव बाबा है।
प्रश्न 6: असली पतित पावन कौन है?
उत्तर:
शिव बाबा स्वयं कहते हैं —
“पतित पावन मैं एक ही हूं, और कोई नहीं।”
(साकार मुरली, 15 मार्च 2019)
शिव ही वह परमात्मा हैं जो
ज्ञान की रोशनी से आत्मा की गंदगी और विकार को धो देते हैं।
सीता आत्मा, राम शिव के संग (योग) से पावन बनती है।
यही “पतित पावन सीताराम” का सच्चा अर्थ है।
प्रश्न 7: भक्ति और ज्ञान मार्ग का अंतर क्या है?
| पक्ष | भक्ति मार्ग | ज्ञान मार्ग |
|---|---|---|
| राम | श्री रामचंद्र (त्रेता युग) | शिव परमात्मा |
| सीता | राम की पत्नी | आत्मा |
| पतित पावन | देहधारी राम | निराकार शिव |
| उद्देश्य | आदर्श जीवन | आत्मा का उद्धार |
प्रश्न 8: “सीता–राम” का योग क्या दर्शाता है?
उत्तर:
सीता और राम का संग ही योग है —
जहां आत्मा (सीता) परमात्मा (राम शिव) से जुड़कर
फिर से पावन बनती है।
भक्ति में यह एक गीत बन गया,
पर ज्ञान में यह अनुभूति बन जाता है।
अंतिम निष्कर्ष
अब हमें स्पष्ट रूप से समझ आ गया कि —
“पतित पावन सीताराम” सही है,
और “रघुपति राघव राजा राम” अधूरा है।
भक्ति में नाम वही रहे, पर ज्ञान में अर्थ बदल गया।
अब “राम” का अर्थ है शिव परमात्मा,
और “सीता” का अर्थ है हम आत्माएं —
जो शिव बाबा से मिलकर पुनः पावन बनती हैं।
Murli References Summary
| मुरली दिनांक | मुख्य बिंदु |
|---|---|
| 4 नवम्बर 2025 | “रामचंद्र जी पतित पावन नहीं। पतित पावन तो एक शिव बाबा है।” |
| 10 फरवरी 2018 | “राम शब्द का अर्थ है परमात्मा। सीता आत्मा है।” |
| 15 मार्च 2019 | “पतित पावन मैं एक ही हूं, और कोई नहीं।” |
Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की मुरलियों एवं परमात्मा शिव के ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन हेतु है।
इसका उद्देश्य किसी देवी-देवता, धर्म या व्यक्ति की आलोचना करना नहीं,
बल्कि ज्ञान और भक्ति के अंतर को स्पष्ट करना है।
सभी धार्मिक परंपराओं का हम सम्मान करते हैं।
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