(40)21-11-1984 “Only the one who has self-realization is the divine visible form”

अव्यक्त मुरली-(40)21-11-1984 “स्व-दर्शन धारी ही दिव्य दर्शनीय मूर्त”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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21-11-1984 “स्व-दर्शन धारी ही दिव्य दर्शनीय मूर्त”

आज बापदादा अपने विश्व प्रसिद्ध स्वदर्शन धारी, दिव्य दर्शनीय सिद्धि स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। स्व-दर्शन-धारी ही विश्व दिव्य दर्शनीय बनते हैं। स्वदर्शनधारी नहीं तो दिव्य दर्शनीय मूर्त भी नहीं। हर कदम में, हर संकल्प में स्वदर्शन से ही दिव्य दर्शन करा सकते हो। स्वदर्शन नहीं तो दिव्य दर्शन भी नहीं। स्वदर्शन-स्थिति में स्थित रहने वाले चलते-फिरते नेचुरल रूप में अपने दिव्य संकल्प, दिव्य दृष्टि, दिव्य बोल, दिव्य कर्म द्वारा अन्य आत्माओं को भी दिव्य मूर्त अनुभव होंगे। साधारणता नहीं दिखाई देगी, दिव्यता दिखाई देगी। तो वर्तमान समय ब्राह्मण आत्माओं को दिव्यता का अनुभव करना है। देवता भविष्य में बनेंगे। अभी दिव्यता स्वरूप होना है। दिव्यता स्वरूप सो देवता स्वरूप। फरिश्ता अर्थात् दिव्यता स्वरूप। दिव्यता की शक्ति साधारणता को समाप्त कर देती है। जितनी-जितनी दिव्यता की शक्ति हर कर्म में लायेंगे उतना ही सबके मन से, मुख से स्वत: ही यह बोल निकलेंगे कि यह दिव्य दर्शनीय मूर्त हैं। अनेक भक्तों को जो दर्शन के अभिलाषी हैं, ऐसे दर्शन-अभिलाषी आत्माओं के सामने आप स्वयं दिव्य दर्शन मूर्त प्रत्यक्ष होंगे तब ही सर्व आत्मायें दर्शन कर प्रसन्न होंगी। और प्रसन्नता के कारण आप दिव्य दर्शनीय आत्माओं पर प्रसन्नता के पुष्प वर्षा करेंगी। हरेक आत्मा के द्वारा यही प्रसन्नता के बोल निकलेंगे, जन्म-जन्म की जो प्यास थी वा आश थी कि मुक्ति को प्राप्त हो जाएं वा एक झलक मात्र दर्शन हो जाएं, आज मुक्ति वा मोक्ष का अनेक जन्मों का संकल्प पूरा हो गया, वा दर्शन के बजाए दर्शनीय मूर्त मिल गए। हमारे ईष्ट हमें मिल गए। इसी थोड़े समय की प्राप्ति के नशे और खुशी में जन्म-जन्म के दु:ख दर्द भूल जायेंगे। थोड़े से समय की यह समर्थ स्थिति आत्माओं को यथाशक्ति भावना के फलस्वरूप कुछ पापों से भी मुक्त कर देगी। इसलिए आत्मायें स्वयं को यथाशक्ति हल्का अनुभव करेंगी। इसलिए ही पाप हरो देवा वा पाप नष्ट करने वाली देवी, शक्ति, जगत माँ यह बोल जरूर बोलते हैं। किसी भी देवी वा देवता के पास जाते हुए यह भावना वा निश्चय रखते हैं कि यह हमारे पाप नाश कर ही लेंगे। और अब अन्त में देवताओं के साथ गुरू लोग भी यही टेम्पटेशन देते हैं कि मैं तुम्हारे पाप नाश कर दूँगा। भक्त भी इसी भरोसे से गुरू करते हैं। लेकिन यह रसम आप दिव्य दर्शनीय आत्माओं से प्रत्यक्ष रूप में होने का यादगार चला आ रहा है। ऐसे जल्दी ही यह दिव्य दृश्य विश्व के सामने आया कि आया। अभी अपने आपको देखो कि हम दिव्य दर्शनीय मूर्त दर्शन योग्य, सर्व श्रृंगार सम्पन्न बने हैं? बाप समान पाप कटेश्वर स्वरूप में स्थित हैं? पाप कटेश्वर वा पाप हरनी तब बन सकते, जब याद के ज्वाला स्वरूप बनेंगे – ऐसे बने हैं! दर्शन के लिए पर्दा खोलते हैं, पर्दा हटता और दर्शन होता है। ऐसे सम्पन्न दर्शनीय स्वरूप बने हो जो समय का पर्दा हट जाए और आप दिव्य दर्शनीय मूर्त प्रैक्टिकल प्रत्यक्ष हो जाओ? वा दर्शनीय मूर्त अभी तक सम्पन्न सज रहे हो? दर्शन सदा सम्पन्न स्वरूप का होता है। तो ऐसे तैयार हो वा होना है! वा यही सोचते हो कि समय आयेगा तब तैयार होंगे! जो समय पर तैयार होंगे तो वह अपनी ही तैयारी में होंगे वा दर्शनीय मूर्त बनेंगे? वह स्व प्रति रहेंगे न कि विश्व प्रति। वह स्व कल्याणकारी होंगे और वह विश्व कल्याणकारी। अन्त का टाइटल विश्व कल्याणकारी है, न कि सिर्फ स्व कल्याणकारी। स्व कल्याणकारी सो विश्व कल्याणकारी, डबल कार्य करने वाले ही डबल ताजधारी बनेंगे। सिर्फ स्व कल्याणकारी डबल ताजधारी नहीं बन सकते। राज्य में आ सकते हैं लेकिन राज्य अधिकारी नहीं बन सकते हैं। तो समय प्रमाण अभी पुरूषार्थ की गति तीव्र है। अभी याद की शक्ति और तीव्रगति से बढ़ाओ। अभी साधारण स्वरूप में है। इसलिए कभी भी परिस्थितियों के वश धोखा मिल जायेगा। शक्तिशाली याद की भट्ठी में रहेंगे तो सेफ रहेंगे। सेवा के झंझट से भी परे हो जाओ। जब सेवा में क्या-क्यों, तू-मैं, तेरा-मेरा आ जाता है तो सेवा भी झंझट हो जाती है। तो इस झंझट से भी परे हो जाओ। सेवा के पीछे स्वमान न भूलो। जिस सेवा में शक्तिशाली याद नहीं तो उस सेवा में सफलता कम और स्वयं को और औरों को भी परेशानी ज्यादा। नाम की सेवा नहीं लेकिन काम की सेवा करो। इसको कहा जाता है शक्ति सम्पन्न सेवा। तो ऐसे नाज़ुक समय आने हैं, जिसमें याद की शक्ति ही सेफ्टी का साधन है ना। ऐसे याद की शक्ति आपके चारों ओर सर्व शस्त्रधारी सेफ्टी के साधन है। इसलिए सदा स्वयं को, सेवा स्थान को वा प्रवृत्ति के स्थान को और आने वाले सर्व सेन्टर्स के विद्यार्थियों को याद की शक्ति-स्वरूप वृत्ति और वायुमण्डल में लाओ। अभी साधारण याद की स्थिति सेफ्टी का साधन नहीं बन सकती।

हार और वार। माया से किसी भी प्रकार की हार और व्यक्ति तथा वायुमण्डल का वार साधारण याद वालों को धोखे में ला देगा। इसलिए बापदादा पहले से ही सभी बच्चों को इशारा दे रहे हैं कि शक्तिशाली याद का वायुमण्डल बनाओ। जिससे स्वयं भी सेफ, ब्राह्मण आत्माओं को भी सहयोग और अन्य अज्ञानी आत्माओं को भी आपकी शान्ति और शक्ति का सहयोग मिलेगा। समझा! अच्छा।

ऐसे सर्व स्वदर्शनधारी, विश्व दिव्य-दर्शनधारी, दिव्यता मूर्त, सर्व की भावना को सम्पन्न करने वाले, सर्व के मास्टर पाप कटेश्वर बन पाप हरण करने वाले, शान्ति-शक्ति देवा श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का शक्ति सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।

टीचर्स बहिनों के साथ-अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

सभी टीचर्स हैं ही ज्वाला स्वरूप। इस ज्वाला स्वरूप के द्वारा अनेक आत्माओं की निर्बलता को दूर करने वाली। टीचर्स अर्थात् शिव शक्ति-कम्बाइन्ड रहने वाली। शिव के बिना शक्ति नहीं, शक्ति के बिना शिव नहीं। हर सेकेण्ड, हर श्वांस बाप और आप कम्बाइन्ड। तो ऐसे शिव शक्ति स्वरूप निमित्त आत्मायें हो ना। कोई भी समय साधारण याद न हो क्योंकि स्टेज पर हैं ना! तो स्टेज पर हर समय कैसे बैठते हैं? कैसे कार्य करते हैं? अलर्ट होकर करेंगे ना। साधारण एक्टिविटी नहीं करेंगे। सदा अलर्ट होकर हर काम करेंगे। सेवाकेन्द्र स्टेज है, घर नहीं है, स्टेज है। स्टेज पर सदा अटेन्शन रहता है और घर में अलबेले हो जाते हैं। तो यह सेवाकेन्द्र सेवा की स्टेज है। इसलिए सदा ज्वाला स्वरूप, शक्ति स्वरूप। स्नेही भी हैं लेकिन स्नेह अकेला नहीं। स्नेह के साथ शक्ति रूप भी हो। अगर अकेला स्नेही रूप है, शक्ति रूप नहीं है तो कभी भी धोखा मिल सकता है। इसलिए स्नेही और शक्ति रूप दोनों कम्बाइन्ड। दोनों का बैलेन्स। इसको कहा जाता है नम्बरवन योग्य टीचर। तो सदा इस स्मृति में रहने वाले विजयी हैं ही। विजय होगी या नहीं, यह नहीं। हैं ही। विजय ऐसी आत्माओं को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त है। विजय के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती लेकिन विजय स्वयं माला बन गले में पिरोये, इसको कहा जाता है विजयी रत्न। तो सभी ऐसे विजयी रत्न बन आगे बढ़ो और औरों को आगे बढ़ाओ। सभी सन्तुष्ट और खुश हैं ना! सेवा में सन्तुष्ट, स्व से सन्तुष्ट और आने वाले परिवार से सन्तुष्ट। तीनों ही सन्तुष्टता, इसको कहते हैं सन्तुष्ट आत्मा। टीचर का अर्थ ही है मास्टर दाता बन सहयोग देने वाली। ड्रामा में टीचर बनना यह भी एक गोल्डन चान्स है। इसी गोल्डन चांस को कामय रखते उड़ते रहो और उड़ाते रहो।

पार्टियों से मुलाकात :-

सभी बेफिकर बादशाह हो ना? अभी भी बादशाह और अनेक जन्म भी बादशाह। जो अभी बेफिकर बादशाह नहीं बनते तो भविष्य के भी बादशाह नहीं बनते। अभी की बादशाही जन्म-जन्म की बादशाही के अधिकारी बना देती है। कोई फिकर रहता है? चलते-चलते कोई भी सरकमस्टांस होते, पेपर आते तो फिकर तो नहीं होता? क्योंकि जब सब कुछ बाप के हवाले कर दिया तो फिकर किस बात का। जब मेरा-पन होता है तब फिकर होता, जब बाप के हवाले कर दिया तो बाप जाने और बाप का काम जाने। स्वयं बेफिकर बादशाह। याद की मौज में रहो और सेवा करते रहो। याद में रह सेवा करो इसी में ही मौज है। मौजों के युग की मौजें मनाते रहो। यह मौज सतयुग में भी नहीं होगी। यह ईश्वरीय मौजें हैं। वह देवताई मौजें होंगी। ईश्वरीय मौजों का समय अभी है। इसलिए मौज मनाओ, मूँझो नहीं जहाँ मूँझ है वहाँ मौज नहीं। किसी भी बात में मूँझना नहीं, क्या होगा, कैसे होगा! यह तो नहीं होगा… यह है मूँझना। जो होता है वह अच्छा और कल्याणकारी होता है इसलिए मौज में रहो। सदा यही टाइटल याद रखो कि हम बेफिकर बादशाह हैं। तो पुरूषार्थ की रफ्तार तीव्र हो जायेगी। मौज करो, मौज में रहो, कोई भी बात को सोचो नहीं, बाप सोचने वाला बैठा है, आप असोच बन जाओ।

आस्ट्रेलिया तथा लण्डन निवासी बच्चों के प्रति बापदादा ने टेप में यादप्यार भरी

सर्व पदमापदम भग्यवान आत्माओं को बापदादा पदमगुणा यादप्यार दे रहे हैं। सभी ने जो भी विशेष सेवा के प्लैन बनाये और प्रैक्टिकल में लाये वह हर बच्चे के विशेष प्लैन में विशेषता रही और जहाँ विशेषता है वहाँ सफलता समाई हुई है। विशेष आत्मायें बन विशेष कार्य के उमंग-उत्साह में रहने वाले बच्चे बहुत-बहुत यादप्यार के पात्र आत्मायें हैं। अभी भी बापदादा के सामने साकार स्वरूप में ऐसे विशेष बच्चे हैं और एक-एक बच्चे की विशेषताओं के स्वरूप को देखते हुए बापदादा मुबारक भी दे रहे हैं और साथ-साथ सदा एकरस उमंग-उत्साह में रहने का विशेष वरदान भी दे रहे हैं। संकल्पों द्वारा, पत्रों द्वारा, रूह-रूहान द्वारा जो भी सोचते हो, बातें करते हो वह बाप के पास पहुँचती हैं। और बापदादा भी ऐसे बच्चों को सदा रिटर्न करते हैं और अभी भी रिटर्न में मुबारक के साथ-साथ अमर भव का विशेष वरदान दे रहे हैं। सेवा अच्छी वृद्धि को पा रही है, इससे सिद्ध है कि सेवाधारी भी स्व की वृद्धि की स्थिति में आगे बढ़ रहे हैं। प्रत्यक्ष करने का दृढ़ संकल्प अच्छा सबके दिल में है और अवश्य प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी लहरायेगा। सभी अपनी-अपनी विशेषता सहित, नाम सहित यादप्यार स्वीकार करना। जनक बच्ची भी (आस्ट्रेलिया) पहुँच रही है। रमता योगी तो है ही लेकिन आज बापदादा ने उड़ता योगी की विशषतायें सुनाई हैं। ऐसी विशेषता स्वरूप बच्चे सदा बाप के साथ हैं। सदा बाप की पालना में रह औरों को भी बाप की पालना का अनुभव कराते रहते हैं। निर्मल आश्रम (डॉ. निर्मला बहन) यह भी बहुत हिम्मत और उत्साह से आगे बढ़ रही है और सदा शीतलता की विशेषता से विजयी रही है और अमर विजयी रत्न है। अच्छा, जैसे सभी उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रहे हैं, उस उमंग-उत्साह की खुशबू बापदादा के पास पहुँच रही है और बापदादा ऐसी सेवाधारी आत्माओं का सदा सफलता की मालाओं से स्वागत करते हैं। और आगे भी विशेष आवाज फैलाने के लिए जैसे उमंग से प्लैन बना रहे हैं वह बनाते हुए सफलता को पाते रहेंगे। अच्छा, एक-एक को अपने नाम से यादप्यार…।

“स्व-दर्शन धारी ही दिव्य दर्शनीय मूर्त”

Avyakt Vani – 21 नवम्बर 1984


 1. प्रस्तावना — दिव्यता की पहली सीढ़ी: स्व-दर्शन

बापदादा आज उन बच्चों को देख रहे हैं जो स्वदर्शन-धारी हैं।
बाबा कहते हैं, “जो स्वदर्शन धारण करता है, वही विश्व के सामने दिव्य-दर्शन धारी बनता है।”

मुख्य बात:

  • बिना स्व-दर्शन के दिव्यता का अनुभव नहीं।

  • स्व-दर्शन = अपने संकल्प, कर्म, बोल एवं दृष्टि का निरीक्षण।

उदाहरण:

जैसे दर्पण के सामने खड़े होकर हम अपना चेहरा देखते हैं,
वैसे ही स्वदर्शन आत्मा को उसके मूल स्वरूप का ज्ञान कराता है।


 2. दिव्य दर्शनीय मूर्त कैसे बनें?

बाबा कहते हैं कि जब संकल्प दिव्य, दृष्टि दिव्य और बोल दिव्य होते हैं,
तब आत्मा से दिव्यता का प्रकाश स्वतः निकलता है।

यह रूप क्यों ज़रूरी?

क्योंकि भक्त आत्माओं की सदियों की प्यास है—
“हमें दिव्य दर्शन हो जाएं… पाप कट जाएं… मुक्ति मिल जाए।”

उदाहरण:

जैसे एक सुगंधित फूल अपनी खुशबू स्वयं फैलाता है,
उसे किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं।
वैसे ही दिव्य आत्मा अपनी स्थिति से सेवा करती है।


 3. दिव्यता स्वरूप बनना ही देवत्व का आधार

बाबा कहते हैं,
“अभी दिव्यता बनो, भविष्य में देवता स्वतः बन जाएंगे।”

दिव्यता =

  • पवित्र संकल्प

  • शक्ति-युक्त दृष्टि

  • माया से सेफ्टी

  • बाप समान पाप-हरण शक्ति

उदाहरण:

फरिश्ता और देवता के चित्र हल्के, शुद्ध, और दिव्य दिखते हैं।
आज की मेहनत ही कल का चित्र बनती है।


 4. पाप कटेश्वर — पाप हरण करने वाली स्थिति

बाबा कहते हैं:
“जब याद की ज्वाला स्वरूप स्थिति बनती है, तब पाप कटते हैं।”

भक्त क्यों कहते हैं “पाप हरो देवा”?

क्योंकि उस समय देवता, देवी, या गुरु—
सबके साथ ‘पाप-हरण की शक्ति’ का अनुभव हुआ है।

उदाहरण:

जैसे आग में गंदगी जलकर मिट जाती है,
वैसे ही याद की ज्वाला पापों को नष्ट करती है।


 5. क्या हम दर्शन योग्य बने हैं? (आत्म-चेक)

बाबा आत्माओं को प्रश्न देते हैं:

  • क्या मैं दर्शनीय मूर्त बना हूँ?

  • क्या समय का पर्दा हटे तो मेरा दिव्य स्वरूप सामने आ जाए?

  • या मैं अभी तैयारी ही कर रहा हूँ?

गूढ़ मुरली पॉइंट:

“सिर्फ स्व-कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनो—तभी डबल ताजधारी बनेंगे।”


 6. याद की शक्ति — सेफ्टी कवच

बाबा स्पष्ट चेतावनी देते हैं:

  • परिस्थितियों के वश साधारण याद धोखा दे सकती है

  • सेवा में “तू-मैं, तेरा-मेरा” आए तो सेवा भी झंझट बन जाती है

  • “नाम की सेवा” नहीं, शक्ति-सम्पन्न सेवा करो

आत्म सुरक्षा का कवच:

  • याद की शक्ति

  • नेचुरल फरिश्ता स्वरूप

  • शक्तिशाली वायुमंडल

उदाहरण:

जैसे एक सैनिक के पास कवच, ढाल और हेलमेट हों,
वैसे ही ब्राह्मण जीवन में याद का कवच चाहिए।


 7. माया के वार से बचने का तरीका

बाबा दो शत्रुओं का नाम लेते हैं:

  1. माया की हार

  2. वायुमंडल का वार

साधारण याद वाले दोनों में फँस जाते हैं।

इसलिए बनाएँ—
शक्तिशाली याद वाला वायुमंडल।


 8. टीचर्स के लिए विशेष संदेश — शिवशक्ति कम्बाइन्ड

टीचर्स के लिए बाबा कहते हैं:

  • टीचर्स = ज्वाला स्वरूप

  • हर सेकंड अलर्ट

  • सेवाकेन्द्र = स्टेज

  • स्नेह + शक्ति दोनों का संतुलन

  • विजय जन्मसिद्ध अधिकार

उदाहरण:

जैसे स्टेज पर कलाकार हर पल सचेत रहता है,
वैसे ही टीचर को हर संकल्प में अलर्ट होना चाहिए।


 9. बेफिकर बादशाह — ईश्वरीय मौज

बाबा का मीठा फरमान:

  • “जब सब कुछ बाप को सौंप दिया, तो फिकर कैसी?”

  • “हम बेफिकर बादशाह हैं।”

  • “सोचना मत, बाप सोचने वाला है।”

उदाहरण:

जैसे बच्चा पिता का हाथ पकड़ लेता है,
उसे रास्ते का डर नहीं रहता।


 10. विशेष देश-विदेश के बच्चों को बाबा का प्यार

ऑस्ट्रेलिया, लंदन और अन्य देशों के बच्चों की सेवा से
बाबा प्रसन्न होकर कहते हैं:

  • “विशेष बच्चे विशेष प्लान करते हैं।”

  • “उमंग-उत्साह से सेवा करने वालों को सफलता साथ मिलती है।”

  • “अमर भव। विजयी रत्न बनो।”


 11. समापन — बापदादा की शक्तिशाली शुभकामनाएं

“सर्व स्वदर्शनधारी, दिव्य दर्शनीय मूर्त, मास्टर पाप कटेश्वर आत्माओं को बापदादा का शक्ति-सम्पन्न याद-प्यार।”

प्रश्न 1: दिव्यता की पहली सीढ़ी क्या है?

उत्तर:
दिव्यता की पहली सीढ़ी स्व-दर्शन है।
बाबा कहते हैं—
“जो स्वदर्शन धारण करता है, वही विश्व के सामने दिव्य दर्शनधारी बनता है।”

स्व-दर्शन का अर्थ:

  • अपने संकल्पों का निरीक्षण

  • अपने बोल, कर्म, दृष्टि का परीक्षण

  • अपनी आत्मा को मूल स्वरूप में देखना

उदाहरण:
जैसे दर्पण चेहरे का सही रूप दिखाता है, वैसे स्वदर्शन आत्मा को उसके सत्य स्वरूप का ज्ञान कराता है।


प्रश्न 2: दिव्य दर्शनीय मूर्त कैसे बनें?

उत्तर:
जब संकल्प दिव्य, दृष्टि दिव्य और बोल दिव्य हो जाते हैं, तब आत्मा स्वाभाविक रूप से दिव्य दर्शनीय मूर्त बनती है।

क्यों आवश्यक?
क्योंकि भक्त आत्माओं की अनेक जन्मों की प्यास है कि—
“हमें दिव्य दर्शन हों, पाप कट जाए, शांति मिले।”

उदाहरण:
सुगंधित फूल को खुशबू फैलाने का प्रयास नहीं करना पड़ता।
दिव्य आत्मा भी अपनी स्थिति से स्वयं सेवा करती है।


प्रश्न 3: दिव्यता स्वरूप बनना क्यों जरूरी है?

उत्तर:
क्योंकि वर्तमान में दिव्यता धारण करने वाला भविष्य में स्वतः देवता बन जाता है।
दिव्यता =

  • पवित्रता

  • दिव्य दृष्टि

  • शक्तिशाली संकल्प

  • माया से सेफ्टी

उदाहरण:
फरिश्ता और देवताओं के चित्र दिव्य, हल्के और शुद्ध दिखते हैं —
आज की प्रैक्टिस ही भविष्य का चित्र बनती है।


प्रश्न 4: पाप कटेश्वर कौन बन सकता है?

उत्तर:
जो आत्मा याद की ज्वाला स्वरूप स्थिति बनाती है, वही पाप कटेश्वर बनती है।
याद की ज्वाला पापों को भस्म कर देती है।

उदाहरण:
जैसे आग में गंदगी जलकर खत्म हो जाती है,
वैसे ही याद की शक्ति पापों को समाप्त करती है।


प्रश्न 5: क्या मैं दर्शनीय मूर्त बना हूँ? (Self-Check)

उत्तर:
बाबा प्रश्न पूछते हैं—

  • क्या मैं दर्शनीय मूर्त बनने योग्य हूँ?

  • अगर समय का पर्दा हट जाए, तो क्या मेरा दिव्य रूप सामने आ सकता है?

  • मैं विश्व लाभकारी बना हूँ, या सिर्फ स्व-कल्याण में लगा हूँ?

गूढ़ बात:
सिर्फ स्वयं का कल्याण नहीं—
जो विश्व-कल्याणकारी बनते हैं, वे ही डबल ताजधारी बनते हैं।


प्रश्न 6: याद की शक्ति को ‘सेफ्टी कवच’ क्यों कहा गया है?

उत्तर:
क्योंकि साधारण याद परिस्थितियों में धोखा दे सकती है।
बाबा चेतावनी देते हैं:

  • सेवा में “तू-मैं, तेरा-मेरा” आए तो सेवा झंझट हो जाती है।

  • नाम की सेवा नहीं, शक्ति-सम्पन्न सेवा करो।

याद का कवच =

  • फरिश्ता स्वरूप

  • शक्तिशाली वातावरण

  • आत्म-सुरक्षा

उदाहरण:
जैसे सैनिक के पास कवच और ढाल हो,
वैसे ही ब्राह्मण जीवन याद के कवच से सुरक्षित रहता है।


प्रश्न 7: माया के वार से कैसे बचें?

उत्तर:
माया का दो प्रकार का वार है:

  1. हार

  2. वायुमंडल का वार

साधारण याद वाले फंस जाते हैं।
उपाय:
शक्तिशाली याद वाला वायुमंडल बनाना पड़ेगा।


प्रश्न 8: टीचर्स के लिए बाबा का विशेष संदेश क्या है?

उत्तर:

  • टीचर्स = ज्वाला स्वरूप

  • सेवाकेन्द्र = स्टेज

  • हर संकल्प में अलर्ट

  • स्नेह + शक्ति = बैलेंस

  • विजय = जन्मसिद्ध अधिकार

उदाहरण:
स्टेज पर बैठा कलाकार हर क्षण सजग रहता है।
टीचर्स को भी यही स्थिति रखनी है।


प्रश्न 9: ‘बेफिकर बादशाह’ किसे कहा गया है?

उत्तर:
जिसने सब कुछ बाप को सौंप दिया—
वही बेफिकर बादशाह है।

बाबा कहते हैं:
“सोचना मत, बाप सोचने वाला है।”
“हम बेफिकर बादशाह हैं।”

उदाहरण:
बच्चा पिता का हाथ पकड़ ले—तो रास्ते का डर नहीं रहता।


प्रश्न 10: विदेश सेवा करने वाले बच्चों को बाबा ने क्या वरदान दिया?

उत्तर:
बाबा ने ऑस्ट्रेलिया, लंदन और अन्य देशों के बच्चों को कहा—

  • विशेष बच्चे विशेष प्लान बनाते हैं

  • उमंग-उत्साह से सेवा करने वालों को सफलता साथ मिलती है

  • “अमर भव। विजयी रत्न बनो।”


प्रश्न 11: इस वाणी का मुख्य निष्कर्ष क्या है?

उत्तर:
मुख्य संदेश:
“स्वदर्शनधारी बनो, दिव्य दर्शनीय मूर्त बनो, मास्टर पाप कटेश्वर बनो।”
बापदादा अंत में शक्तिशाली आशीर्वाद देते हैं—
“सर्व स्वदर्शनधारी, दिव्यता मूर्त, मास्टर पाप कटेश्वर आत्माओं को शक्ति-सम्पन्न याद-प्यार।”

Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज की दैनिक मुरली, अव्यक्त वाणी और आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित व्यक्तिगत अध्ययन एवं मनन का परिणाम है। यह ब्रह्माकुमारी संस्थान का आधिकारिक चैनल नहीं है। उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा, प्रेरणा और आत्म-उन्नति है। कृपया इसे अपने विवेक और आध्यात्मिक अनुभव के अनुसार समझें।

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