अव्यक्त मुरली-(20)15-03-1984 “होली उत्सव – पवित्र बनने, बनाने का यादगार”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
15-03-1984 “होली उत्सव – पवित्र बनने, बनाने का यादगार”
होलीएस्ट बाप होलीहंसों से हाली डे मनाने आये हैं। होली डे इस संगमयुग को कहा जाता है। संगमयुग है ही होली डे। तो होलीएस्ट बाप होली बच्चों से होली डे मनाने आये हैं। दुनिया की होली एक-दो दिन की है और आप होली हंस संगमयुग ही होली मनाते हो। वो रंग लगाते हैं और आप बाप के संग के रंग में बाप समान सदा के लिए होली बन जाते हो! हद से बेहद के हो जाने से सदाकाल के लिए होली अर्थात् पवित्र बन जाते हो। यह होली का उत्सव होली अर्थात् पवित्र बनाने का, बनने का उत्साह दिलाने वाला है। जो भी यादगार विधि मनाते हैं उन सब विधियों में पवित्र बनने का सार समाया हुआ है। पहले होली बनने वा होली मनाने के लिए अपवित्रता, बुराई को भस्म करना है, जलाना है। जब तक अपवित्रता को सम्पूर्ण समाप्त नहीं किया है तब तक पवित्रता का रंग चढ़ नहीं सकता। पवित्रता की दृष्टि से एक-दो में रंग रंगने का उत्सव मना नहीं सकते। भिन्न-भिन्न भाव भूलकर एक ही परिवार के हैं, एक ही समान हैं अर्थात् भाई-भाई के एक समान वृत्ति से मनाने का यादगार है। वे तो लौकिक रुप में मनाने लिए छोटा बड़ा, नर-नारी समान भाव में मनावें इस भाव से मनाते हैं। वास्तव में भाई-भाई के समान स्वरुप की स्मृति अविनाशी रंग का अनुभव कराती है। जब इस समान स्वरुप में स्थित हो जाते हैं तब ही अविनाशी खुशी की झलक अनुभव होती है और सदा के लिए उत्साह रहता है कि सर्व आत्माओं को ऐसा अविनाशी रंग लगावें। रंग पिचकारी द्वारा लगाते हैं। आपकी पिचकारी कौन-सी है? आपके दिव्य बुद्धि रुपी पिचकारी में अविनाशी रंग भरा हुआ है ना। संग के रंग से अनुभव करते हो, उन भिन्न-भिन्न अनुभवों के रंग से पिचकारी भरी हुई है ना। भरी हुई बुद्धि की पिचकारी से किसी भी आत्मा को दृष्टि द्वारा, वृत्ति द्वारा मुख द्वारा इस रंग में रंग सकते हो जो वह सदा के लिए होली बन जाए। वो होली मनाते हैं, आप होली बनाते हो। सब दिन होली डे के बना देते हो। वो अल्पकाल के लिए अपनी खुशी की मूड बनाते हैं मनाने के लिए लेकिन आप सभी सदा मनाने के लिए होली और हैपी मूड में रहते हो। मूड बनानी नहीं पड़ती है। सदा रहते हो! होली मूड में और किसी प्रकार की मूड नहीं। होली मूड सदा हल्की, सदा निश्चिन्त सदा सर्व खजानों से सम्पन्न, बेहद के स्वराज्य अधिकारी। यह जो भिन्न-भिन्न मूड बदलते हैं, कब खुशी की, कब ज्यादा सोचने की, कभी हल्की, कभी भारी – यह सब मूड बदल कर सदा हैपी और होली मूड वाले बन जाते हो। ऐसा अविनाशी उत्सव बाप के साथ मनाते हो। मिटाना, मनाना और फिर मिलन मनाना। जिसका यादगार जलाते हैं, रंग लगाते हैं और फिर मिलन मनाते हैं। आप सभी भी जब बाप के रंग में रंग जाते हो, ज्ञान के रंग में, खुशी के रंग में, कितने रंगों की होली खेलते हो। जब इन सब रंग से रंग जाते हो तो बाप समान बन जाते हो। और जब समान आपस में मिलते हैं तो कैसे मिलेंगे! रुथूल में तो गले मिलते, लेकिन आप कैसे मिलते? जब समान बन जाते तो स्नेह में समा जाते हैं। समाना ही मिलना है। तो यह सारी विधि कहाँ से शुरु हुई? आप अविनाशी मनाते, वो विनाशी यादगार रुप मनाकर खुश हो जाते हैं। इससे सोचो कि आप सभी कितने अविनाशी उत्सव अर्थात् उत्साह में रहने के अनुभवी बने हो जो अब सिर्फ आपके यादगार दिन को भी मनाने से खुश हो जाते हैं। अन्त तक भी आपके उत्साह और खुशी का यादगार अनेक आत्माओं को खुशी का अनुभव कराता रहता है। तो ऐसे उत्साह भरे जीवन, खुशियों से भरी जीवन बना ली है ना।
ड्रामा के अन्दर यही संगमयुग का वण्डरफुल पार्ट है जो अविनाशी उत्सव मनाते हुए अपना यादगार उत्सव भी देख रहे हो। एक तरफ चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें हो। दूसरे तरफ अपने चित्र देख रहे हो। एक तरफ याद स्वरुप बने हो, दूसरे तरफ अपने हर श्रेष्ठ कर्म का यादगार देख रहे हो। महिमा योग्य बन गये हो और कल्प पहले की महिमा सुन रहे हो। यह वण्डर है ना। और स्मृति से देखो कि यह हमारा गायन है! वैसे तो यह हर आत्मा भिन्न नाम रुप से अपना श्रेष्ठ कर्म का यादगार चित्र देखते भी हैं लेकिन जानते नहीं है। अभी गाँधी जी भी भिन्न नाम रुप से अपनी फिल्म देखता तो होगा ना। लेकिन पहचान नहीं। आप पहचान से अपने चित्र देखते हो। जानते हो कि यह हमारे चित्र हैं! यह हमारे उत्साह भरे दिनों का यादगार उत्सव के रुप में मना रहे हैं। यह ज्ञान सारा आ गया है ना। डबल विदेशियों के चित्र मन्दिरों में है? यह देलवाड़ा मन्दिर में अपना चित्र देखा है? या सिर्फ भारत वालों के चित्र हैं? सभी ने अपने चित्र देखे? यह पहचाना कि हमारे चित्र हैं। जैसे हे अर्जुन एक का मिसाल है, वैसे यादगार चित्र भी थोड़े दिखाते हैं। परन्तु हैं सभी के। ऐसे नहीं समझो कि यह तो बहुत थोड़े चित्र हैं। हम कैसे होंगे। यह तो सैम्पल दिखाया है। लेकिन है आप सबका यादगार। जो याद में रहते हैं उनका यादगार जरुर बनता है। समझा। तो पिचकारी बड़ी सभी की भरी हुई है ना। छोटी-छोटी तो नहीं जो एक बार में ही समाप्त हो जाए। फिर बार-बार भरना पड़े। ऐसी मेहनत करने की भी दरकार नहीं। सभी को अविनाशी रंग से रंग लो। होली बनाने की होली मनाओ। आपकी तो होली हो गई है ना कि मनानी है? होली हो गई अर्थात् होली मना ली। रंग लगा हुआ है ना। यह रंग साफ नहीं करना पड़ेगा। स्थूल रंग लगाते भी खुशी से हैं और फिर उनसे बचने भी चाहते हैं। और आपका यह रंग तो ऐसा है जो कहेंगे और भी लगाओ। इससे कोई डरेगा नहीं। उस रंग से तो डरते हैं – आंख में न लग जाए। यह तो कहेंगे जितना लगाओ उतना अच्छा। तो ऐसी होली मना ली है ना। होली बन गये! यह पविद्ध बनने बनाने का यादगार है।
यहाँ भारत में तो अनेक कहानियां बना दी हैं क्योंकि कहानियाँ सुनने की रुची रखते हैं। तो हर उत्सव की कहानियाँ बना दी हैं। आपकी जीवन कहानी से भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी कहानियाँ बना दी हैं। कोई राखी की कहानी बना दी कोई होली की कहानी, कोई जन्म की कहानी बना दी। कोई राज्य दिवस की बना दी। लेकिन यह हैं सब आपके जीवन कहानियों की कहानियाँ। द्वापर में व्यवहार में भी इतना समय नहीं देना पड़ता था, फ्री थे। संख्या भी आज के हिसाब से कम थी। सम्पत्ति भी रजोप्रधान थी, स्थिति भी रजोप्रधान थी। इसलिए बिजी रहने के लिए यह कथा, कहानियाँ, कीर्तन यह साधन अपनाये हैं। कुछ तो साधन चाहिए ना। आप लोग तो फ्री होते हो तो सेवा करते हो या याद में बैठ जाते हो। वो उस समय क्या करें! प्रार्थना करेंगे या कथा कीर्तन करेंगे। इसलिए फ्री बुद्धि हो करके कहानियाँ बड़ी अच्छी-अच्छी बनाई हैं। फिर भी अच्छा है जो अपवित्रता में ज्यादा जाने से बच गये। आजकल के साधन तो ऐसे हैं जो 5 वर्ष के बच्चे को ही विकारी बना देते हैं। और उस समय फिर भी कुछ मर्यादायें भी थीं लेकिन हैं सब आपका यादगार। इतना नशा और खुशी है ना कि हमारा यादगार मना रहे हैं। हमारे गीत गा रहे हैं। कितने प्यार से गीत गाते हैं। इतने प्यार स्वरुप आप बने हैं तब तो प्यार से गाते हैं। समझा, होली का यादगार क्या है! सदा खुश रहो, हल्के रहो यही मनाना है। अच्छा, कभी मूड ऑफ नहीं करना। सदा होली मूड, लाइट मूड, हैपी मूड। अभी बहुत अच्छे समझदार बनते जाते हैं। पहले दिन जब मधुबन में आते हैं वह फोटो और फिर जब जाते हैं वह फोटो दोनों निकालने चाहिए। समझते इशारे से हैं। फिर भी बापदादा के वा बापदादा के घर के श्रृंगार हो। आपके आने से देखो मधुबन की रौनक कितनी अच्छी हो जाती हैं। जहाँ देखो वहाँ फरिश्ते आ जा रहे हैं। रौनक है ना! बापदादा जानते हैं आप श्रृंगार हो। अच्छा।
सभी ज्ञान के रंग में रंगे हुए, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले, बाप समान सम्पन्न बन औरों को भी अविनाशी रंग में रंगने वाले, सदा होली डे मनाने वाले, होली हंस आत्माओं को बापदादा की सदा हैपी और होली रहने की मुबारक हो। सदा स्वयं को सम्पन्न बनाने की उमंग उत्साह में रहने की मुबारक हो। साथ-साथ चारों ओर के लगन में मगन रहने वाले, सदा मिलन मनाने वाले, विशेष बच्चों को याद प्यार और नमस्ते!
होली – पवित्र बनने और बनाने का उत्सव
बापदादा का संदेश:
“होलीएस्ट बाप होली हंसों से होली डे मनाने आये हैं।”
संगमयुग स्वयं ही होली डे है – अर्थात् आत्मा और परमात्मा का सच्चा संगम, पवित्रता का वास्तविक उत्सव।
1. संगमयुग – सच्चा होली डे
दुनिया में लोग एक या दो दिन होली खेलते हैं, लेकिन ब्राह्मण आत्माएँ पूरे संगमयुग में होली अवस्था में रहती हैं।
यह “हॉली डे” नहीं, “Holy Day” है — अर्थात् पवित्रता में सदा रहने का समय।
मुरली बिंदु (15-03-1984):
“दुनिया की होली एक-दो दिन की है और तुम होली हंस संगमयुग ही होली मनाते हो।”
उदाहरण:
जैसे कोई कलाकार मंच पर एक दिन अभिनय करता है, लेकिन वह कला उसकी पूरी जीवनशैली बन जाती है।
वैसे ही ब्राह्मण आत्माएँ पवित्रता को केवल पर्व नहीं, जीवन का स्वरूप बना लेती हैं।
2. पहले अपवित्रता को भस्म करना है
होली का मूल अर्थ है — बुराई को जलाना।
जब तक काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की राख नहीं बनती, तब तक पवित्रता का रंग नहीं चढ़ सकता।
मुरली बिंदु:
“पहले होली बनने के लिए अपवित्रता को भस्म करना है। जब तक अपवित्रता सम्पूर्ण समाप्त नहीं हुई, तब तक पवित्रता का रंग नहीं चढ़ सकता।”
उदाहरण:
जिस प्रकार चित्रकार नया चित्र बनाने से पहले पुरानी दीवार को साफ करता है, वैसे ही आत्मा को भी पहले अपने मन की मैल मिटानी होती है।
3. सच्ची रंगों की होली – बाप के संग का रंग
भौतिक रंग कुछ पल में उतर जाते हैं, लेकिन बाप के संग का रंग सदा के लिए आत्मा पर चढ़ जाता है।
मुरली बिंदु:
“बाप के संग के रंग में बाप समान सदा के लिए होली बन जाते हो।”
उदाहरण:
जब लोहे को सोने के संपर्क में रखा जाए, तो वह सोने जैसा चमकने लगता है।
उसी प्रकार आत्मा भी परमात्मा के संग में रहकर दिव्य बन जाती है।
4. आपकी पिचकारी – बुद्धि रुपी पिचकारी
भौतिक जगत में लोग रंगीन पिचकारी से रंग लगाते हैं, परन्तु ब्राह्मण आत्माएँ बुद्धि रुपी पिचकारी से ज्ञान और प्यार के रंग छिड़कती हैं।
मुरली बिंदु:
“आपकी पिचकारी दिव्य बुद्धि रूपी है जिसमें अविनाशी रंग भरा हुआ है। दृष्टि, वृत्ति और मुख द्वारा इस रंग में सबको रंग सकते हो।”
उदाहरण:
जैसे वैज्ञानिक प्रकाश किरणों से अंधकार मिटाते हैं, वैसे ही ज्ञानी आत्माएँ दृष्टि की शक्ति से अज्ञान का अंधकार मिटाती हैं।
5. होली मूड – सदा लाइट और हैपी
सच्चा होली मूड है — सदा हल्का, सदा निश्चिन्त, सदा सम्पन्न।
यह मूड बनाने की बात नहीं, जीने की स्थिति है।
मुरली बिंदु:
“सदा होली मूड में और किसी प्रकार की मूड नहीं। होली मूड सदा हल्की, सदा निश्चिन्त, सदा सम्पन्न।”
उदाहरण:
जैसे आसमान पर बादल आते-जाते रहते हैं, पर सूर्य की रोशनी स्थिर रहती है,
वैसे ही परिस्थितियाँ आती-जाती रहें, पर आत्मा की होली मूड बनी रहे।
6. होली – मिटाना, मनाना और मिलन मनाना
बापदादा कहते हैं —
“मिटाना, मनाना और फिर मिलन मनाना।”
होली में तीन रहस्य हैं —
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मिटाना – बुराइयों को भस्म करना।
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मनाना – ईश्वर को प्रसन्न करना।
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मिलन मनाना – परमात्मा संग मिलन का आनंद लेना।
उदाहरण:
जैसे दीपावली में सफाई, पूजन और उत्सव होता है — वैसे ही होली में आत्मा की सफाई, परमात्मा की याद और मिलन का उत्सव होता है।
7. अविनाशी उत्सव – यादगार बनना
बापदादा कहते हैं – तुम याद स्वरूप बने हो और अपने हर श्रेष्ठ कर्म का चित्र स्वयं देख रहे हो।
जैसे देलवाड़ा मंदिर में आत्माओं के चित्र बने हैं — वे सब तुम्हारे ही यादगार हैं।
मुरली बिंदु:
“एक तरफ तुम चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें हो और दूसरी तरफ अपने चित्र देख रहे हो। यह वण्डरफुल ड्रामा का पार्ट है।”
उदाहरण:
जैसे कोई कलाकार अपनी ही फिल्म पर्दे पर देखकर मुस्कुराता है, वैसे ही ब्राह्मण आत्माएँ अपने ही कल्याणकारी कर्मों के यादगार रूप देखती हैं।
8. जीवन – सदा होली मूड में रहना
बाबा का अन्तिम संदेश इस मुरली में बहुत मीठा है —
“कभी मूड ऑफ नहीं करना। सदा होली मूड, लाइट मूड, हैपी मूड में रहो।”
उदाहरण:
जैसे कमल का फूल कीचड़ में भी खिला रहता है, वैसे ही ज्ञानवान आत्मा परिस्थितियों में भी खुश रहती है।
बापदादा की शुभकामनाएँ
“सभी ज्ञान के रंग में रंगे हुए, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले,
बाप समान सम्पन्न बन औरों को भी अविनाशी रंग में रंगने वाले,
सदा होली डे मनाने वाले होली हंस आत्माओं को
बापदादा की सदा हैपी और होली रहने की मुबारक हो!”
मुख्य मुरली तिथि संदर्भ
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अव्यक्त मुरली तिथि: 15 मार्च 1984
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विषय: “होली उत्सव – पवित्र बनने, बनाने का यादगार”
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मुख्य शब्द: होली डे, संगमयुग, पवित्रता, होली मूड, बाप समान।
निष्कर्ष
होली का सच्चा अर्थ केवल रंग खेलना नहीं —
बल्कि आत्मा की अपवित्रता को भस्म कर, परमात्मा के प्रेम में रंग जाना है।
यह होली मूड ही वह अवस्था है जहाँ आत्मा और परमात्मा एक स्वर में गाते हैं —
“सदा होली, सदा हैपी, सदा बाप समान।”
होली – पवित्र बनने और बनाने का उत्सव
(अव्यक्त मुरली – 15 मार्च 1984)
प्रश्न 1:
संगमयुग को ही “सच्चा होली डे” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि संगमयुग वह युग है जब आत्मा और परमात्मा का सच्चा मिलन होता है।
यही समय है जब आत्मा अपवित्रता से पवित्रता में रूपांतरित होती है।
दुनियावाले एक-दो दिन रंगों की होली खेलते हैं,
पर ब्राह्मण आत्माएँ पूरे संगमयुग को Holy Day यानी पवित्र रहने का दिवस बनाती हैं।
मुरली बिंदु (15-03-1984):
“दुनिया की होली एक-दो दिन की है और तुम होली हंस संगमयुग ही होली मनाते हो।”
उदाहरण:
जैसे कोई कलाकार केवल मंच पर नहीं, जीवन में भी कला जीता है,
वैसे ही ब्राह्मण आत्मा पवित्रता को केवल पर्व नहीं, जीवन का स्वरूप बना लेती है।
प्रश्न 2:
होली में बुराइयों को जलाने का क्या आध्यात्मिक अर्थ है?
उत्तर:
होली का अर्थ ही है — होलिका दहन, अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की अग्नि में बुराइयों को जलाना।
जब तक अपवित्रता की राख नहीं बनती, तब तक पवित्रता का रंग नहीं चढ़ सकता।
मुरली बिंदु:
“पहले होली बनने के लिए अपवित्रता को भस्म करना है, तब ही पवित्रता का रंग चढ़ सकता है।”
उदाहरण:
जैसे कोई चित्रकार नया चित्र बनाने से पहले पुरानी दीवार साफ करता है,
वैसे ही आत्मा को भी पहले अपने मन की मैल मिटानी होती है।
प्रश्न 3:
सच्चे रंगों की होली कौन-सी है?
उत्तर:
सच्ची होली वह है जिसमें आत्मा बाप के संग के रंग में रंग जाती है।
भौतिक रंग कुछ क्षण में उतर जाते हैं,
परंतु ईश्वर-संग का रंग आत्मा पर सदा के लिए स्थायी हो जाता है।
मुरली बिंदु:
“बाप के संग के रंग में बाप समान सदा के लिए होली बन जाते हो।”
उदाहरण:
जैसे लोहे को सोने के संपर्क में रखने से वह चमकने लगता है,
वैसे ही आत्मा परमात्मा के संग में रहकर दिव्य बन जाती है।
प्रश्न 4:
‘बुद्धि रूपी पिचकारी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
बुद्धि रूपी पिचकारी का अर्थ है —
हमारी ज्ञानयुक्त बुद्धि से दूसरों को ईश्वरीय रंग लगाना।
हमारे विचार, दृष्टि, वाणी और वृत्ति के माध्यम से दूसरों को पवित्रता और प्रेम का रंग देना।
मुरली बिंदु:
“आपकी पिचकारी दिव्य बुद्धि रूपी है जिसमें अविनाशी रंग भरा हुआ है।”
उदाहरण:
जैसे वैज्ञानिक प्रकाश की किरणों से अंधकार मिटाते हैं,
वैसे ही ज्ञानी आत्माएँ दृष्टि और वाणी से अज्ञान का अंधकार मिटाती हैं।
प्रश्न 5:
“होली मूड” क्या है और इसे सदा कैसे बनाए रखें?
उत्तर:
होली मूड का अर्थ है — सदा लाइट, निश्चिन्त और सम्पन्न अवस्था में रहना।
यह कोई कृत्रिम मूड नहीं, बल्कि आत्मा की सच्ची स्थिति है।
मुरली बिंदु:
“सदा होली मूड में और किसी प्रकार की मूड नहीं। होली मूड सदा हल्की, सदा निश्चिन्त, सदा सम्पन्न।”
उदाहरण:
जैसे आसमान पर बादल आते-जाते हैं पर सूर्य की रोशनी स्थिर रहती है,
वैसे ही परिस्थितियाँ आती-जाती रहें, पर आत्मा की खुशी अडोल बनी रहती है।
प्रश्न 6:
बाबा ने ‘मिटाना, मनाना और मिलन मनाना’ – तीन रहस्य क्यों बताए?
उत्तर:
होली में तीन आध्यात्मिक रहस्य हैं —
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मिटाना – अपनी बुराइयों और विकारों को भस्म करना।
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मनाना – ईश्वर को प्रसन्न करना, अर्थात् अपने मन को शुद्ध बनाना।
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मिलन मनाना – परमात्मा संग आत्मिक मिलन का आनंद लेना।
मुरली बिंदु:
“मिटाना, मनाना और फिर मिलन मनाना।”
उदाहरण:
जैसे दीपावली में सफाई, पूजन और उत्सव होता है,
वैसे ही होली आत्मा की सफाई, परमात्मा की पूजा और मिलन का उत्सव है।
प्रश्न 7:
अविनाशी उत्सव और यादगार बनने का क्या रहस्य है?
उत्तर:
जो आत्माएँ सच्चे रूप में बाप के रंग में रंग जाती हैं,
उनके श्रेष्ठ कर्मों का यादगार बनता है।
मंदिरों में बने चित्र, मूर्तियाँ और कहानियाँ उन्हीं अविनाशी ब्राह्मण आत्माओं की निशानी हैं।
मुरली बिंदु:
“एक तरफ तुम चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें हो और दूसरी तरफ अपने चित्र देख रहे हो।”
उदाहरण:
जैसे कोई कलाकार अपनी ही फिल्म पर्दे पर देखकर मुस्कुराता है,
वैसे ही ब्राह्मण आत्माएँ अपने ही कर्मों के यादगार रूप देखती हैं।
प्रश्न 8:
बाबा के अनुसार जीवन में “सदा होली मूड” का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सदा होली मूड का अर्थ है —
हर परिस्थिति में हल्का, प्रसन्न और आत्मनिष्ठ रहना।
कभी मूड ऑफ न होना, क्योंकि सच्ची आत्मा परिस्थिति नहीं, स्थिति में रहती है।
मुरली बिंदु:
“कभी मूड ऑफ नहीं करना। सदा होली मूड, लाइट मूड, हैपी मूड में रहो।”
उदाहरण:
जैसे कमल का फूल कीचड़ में भी खिला रहता है,
वैसे ही ज्ञानी आत्मा भी परिस्थितियों में प्रसन्न रहती है।
प्रश्न 9:बापदादा की होली पर दी हुई शुभकामना क्या है?
उत्तर:“सभी ज्ञान के रंग में रंगे हुए, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले,
बाप समान सम्पन्न बन औरों को भी अविनाशी रंग में रंगने वाले,
सदा होली डे मनाने वाले होली हंस आत्माओं को
बापदादा की सदा हैपी और होली रहने की मुबारक हो।”
अर्थ:
बाबा चाहते हैं कि हर आत्मा स्वयं पवित्र बने और दूसरों को भी पवित्रता का रंग लगाए —
यही सच्ची होली है।
निष्कर्ष प्रश्न
प्रश्न:
सच्ची होली का सार क्या है?
उत्तर:
सच्ची होली केवल रंग खेलने का पर्व नहीं —
बल्कि आत्मा की अपवित्रता को जलाकर, परमात्मा के प्रेम में रंग जाने की प्रक्रिया है।
यही वह स्थिति है जहाँ आत्मा और परमात्मा एक स्वर में गाते हैं —
“सदा होली, सदा हैपी, सदा बाप समान।”
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ के अव्यक्त मुरली संदेश पर आधारित है।
इसका उद्देश्य आत्मिक शिक्षा और पवित्रता का प्रचार है, न कि किसी धर्म या परंपरा की आलोचना।
सभी भावनाएँ ईश्वर की याद और आत्मिक विकास के लिए हैं।

