(22) Angelic state: While performing actions, one is not burdened by the bondage of karma.

(22)फ़रिश्ता स्थिति: कर्म करते हुए भी कर्म – बंधन का बोझ नहीं

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

परिस्ता (फरिश्ता) स्थिति – कर्म करते हुए हल्का रहना


1. परिस्ता स्थिति क्या है?

परिभाषा:
परिस्ता स्थिति वह अवस्था है जिसमें आत्मा कर्म करती है, लेकिन कर्म बंधन का बोझ अनुभव नहीं करती। इसे फरिश्ता स्थिति भी कहा जाता है।

विशेषता:

  • आत्मा जिम्मेदारियों, रिश्तों या पल की चिंताओं से प्रभावित नहीं होती।

  • कर्म को सेवा समझकर करने पर बोझ महसूस नहीं होता।

मुरली संदर्भ:

  • अव्यक्त मुरली, 21 जनवरी 1970 – “परिस्ता स्थिति में आत्मा कर्म करती है, परंतु कर्म बंधन का बोझ अनुभव नहीं करती।”

  • साकार मुरली, 16 मार्च 1969 – “फरिश्ता कर्म करता है, पर कर्म का असर उसके ऊपर भारी नहीं पड़ता।”


2. उदाहरण से समझें

  1. कलाकार का उदाहरण:

    • कोई कलाकार अपने अभिनय में पूरी तरह तल्लीन होता है।

    • उसे नाटक का भार महसूस नहीं होता।

    • जैसे ही वह अपने रोल में खो जाता है, उसका काम हल्का और आनंदमय हो जाता है।

  2. बिजली का वायर उदाहरण:

    • जब कोई तार करंट से जुड़ा होता है, तो उसमें गर्मी का एहसास नहीं होता।

    • जैसे ही तार का कनेक्शन लूज होता है, गर्मी महसूस होती है।

    • इसी प्रकार आत्मा कर्म करती है लेकिन सेवा और शिव बाबा के संग होने पर बंधन का बोझ अनुभव नहीं करती।

  3. पंख का उदाहरण:

    • जैसे पंख हवा में बहते हैं, वैसे ही फरिश्ता आत्मा कर्मों में लिप्त रहते हुए भी हल्का और स्वतंत्र रहती है।


3. परिस्ता स्थिति के लाभ

  • आत्मा निश्चिंत, शांत और आनंदमय रहती है।

  • कर्म करते समय हल्के रहने से मन, बुद्धि और संस्कार तीनों एक साथ पक्के दिल से काम करते हैं।

  • आत्मा ऊर्जा और खुशी से भरपूर रहती है, जैसे दीपक बिना थके प्रकाश फैलाता है।

मुरली संदर्भ:

  • अव्यक्त मुरली, 14 जून 1977 – “कर्म करते हुए बोझ ना महसूस करने से आत्मा निश्चिंत, शांत और आनंदमय रहती है।”


4. निष्कर्ष

  • फरिश्ता आत्मा की सबसे बड़ी विशेषता:

    • कर्म करते हुए भी कर्म बंधन का बोझ ना महसूस करना।

    • हल्का रहना, मुक्त रहना और आनंदमय रहना।

मुख्य बिंदु:

  • बोझ महसूस ना करना = फरिश्ता स्थिति की निशानी।

  • यह स्थिति आत्मा को हल्का, मुक्त और आनंदमय बनाती है।


“परिस्ता (फरिश्ता) स्थिति: कर्म करते हुए हल्का और आनंदमय कैसे बनें?”


Q1: परिस्ता (फरिश्ता) स्थिति क्या है?

A1:परिस्ता स्थिति वह अवस्था है जिसमें आत्मा कर्म करती है लेकिन कर्म बंधन का बोझ अनुभव नहीं करती। इसे फरिश्ता स्थिति भी कहा जाता है।

मुरली: अव्यक्त मुरली, 21 जनवरी 1970 – “परिस्ता स्थिति में आत्मा कर्म करती है, परंतु कर्म बंधन का बोझ अनुभव नहीं करती।”


Q2: फरिश्ता स्थिति में आत्मा कर्म कैसे करती है?

A2:

  • आत्मा कर्म करती है, पर उसे जिम्मेदारियों, रिश्तों या पल की चिंताओं का बोझ नहीं लगता।

  • यह तब संभव होता है जब आत्मा शिव बाबा के संग रहती है और कर्म को सेवा समझती है।

मुरली: साकार मुरली, 16 मार्च 1969 – “फरिश्ता कर्म करता है, पर कर्म का असर उसके ऊपर भारी नहीं पड़ता।”


Q3: फरिश्ता स्थिति का उदाहरण क्या है?

A3:

  1. कलाकार का उदाहरण: कलाकार अपने अभिनय में तल्लीन रहता है और नाटक का भार महसूस नहीं करता।

  2. बिजली का वायर उदाहरण: तार करंट से जुड़ा होता है, लेकिन उसमें गर्मी का एहसास नहीं होता।

  3. पंख का उदाहरण: पंख हवा में बहते हैं, जैसे फरिश्ता आत्मा कर्मों में लिप्त रहते हुए भी हल्का और स्वतंत्र रहती है।


Q4: फरिश्ता स्थिति के लाभ क्या हैं?

A4:

  • आत्मा निश्चिंत, शांत और आनंदमय रहती है।

  • मन, बुद्धि और संस्कार तीनों पक्के दिल से काम करते हैं।

  • आत्मा ऊर्जा और खुशी से भरपूर रहती है, जैसे दीपक बिना थके प्रकाश फैलाता है।

मुरली: अव्यक्त मुरली, 14 जून 1977 – “कर्म करते हुए बोझ ना महसूस करने से आत्मा निश्चिंत, शांत और आनंदमय रहती है।”


Q5: फरिश्ता आत्मा की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?

A5:कर्म करते हुए भी कर्म बंधन का बोझ ना महसूस करना

  • यह स्थिति आत्मा को हल्का, मुक्त और आनंदमय बनाती है।


Q6: फरिश्ता स्थिति को हासिल करने का रहस्य क्या है?

A6:

  • आत्मा निरंतर शिव बाबा के संग रहे

  • कर्म को सेवा और प्रेमभाव से करें, न कि बोझ समझकर।

  • मन, बुद्धि और संस्कार तीनों मिलकर पक्के दिल से कर्म करें।


Disclaimer

यह वीडियो आध्यात्मिक ज्ञान के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य किसी धर्म या संप्रदाय की आलोचना करना नहीं है। यह केवल आत्मा और परमात्मा के संबंध तथा फरिश्ता स्थिति के रहस्य को समझाने के लिए है।

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