(33) “The adornment of a Brahmin’s life is cleanliness (purity) of memory, attitude and vision.”

(33)“ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार – स्मृति, वृत्ति, और दृष्टि की स्वच्छता (पवित्रता)”

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“श्रेष्ठ कर्म की रेखा और पवित्रता का फाउन्डेशन | बापदादा की अव्यक्त वाणी | 07 सितम्बर 1982”


प्रस्तावना

आज बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों की कर्म रेखा देख रहे हैं। हर एक का वर्तमान और भविष्य इसी रेखा पर आधारित है। बापदादा हमें स्मरण दिलाते हैं कि भाग्य विधाता के डायरेक्ट वर्से के अधिकारी बच्चे होने के नाते, हमें स्वच्छता और सावधानी से हर कदम उठाना है।


श्रेष्ठ कर्म की रेखा क्या है?

  • हर आत्मा की कर्म कहानी और कर्म खाता ब्राह्मण जीवन में तैयार होता है।

  • बाबा ने कहा: “बच्चों को गोल्डन चांस मिला है, जितना भाग्य बनाना चाहो उतना स्वतंत्रता से बना सकते हो।”

  • अधिकार सभी को समान है, लेकिन लेने वाले नम्बरवार बनते हैं।

 उदाहरण

जैसे परीक्षा में सभी विद्यार्थियों को एक समान प्रश्नपत्र मिलता है, लेकिन नम्बर सबके अलग आते हैं – कारण है उनकी तैयारी, ध्यान और सावधानी।


नम्बरवार बनने के दो कारण

  1. बुद्धि में स्वच्छता की कमी – स्पष्ट और शुद्ध न सोचने से भ्रम पैदा होता है।

  2. सावधानी की कमी – हर कदम पर केयरफुल न रहने से पतन होता है।

 मुख्य आधार है पवित्रता – यही ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है।


पवित्रता – ब्राह्मण जीवन की चैलेन्ज

  • नामधारी ब्राह्मणों की निशानी चोटी-जनेऊ है,

  • पर सच्चे ब्राह्मणों की पहचान है पवित्रता और मर्यादा

  • ब्राह्मण जीवन की असली चैलेन्ज है – काम जीत


पवित्रता का पहला आधार: स्मृति की पवित्रता

  • स्मृति हो: “मैं शुद्ध, पवित्र, पूज्य आत्मा हूँ।”

  • जैसा आक्युपेशन (occupation) होगा वैसा ही कर्म स्वत: होगा।

  • पूज्य आत्मा की क्वालिटी: निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण।

 चेतावनी

अगर पूज्य आत्माओं के प्रति भी अपवित्र दृष्टि जाती है, तो यह महापाप है। चाहे वह सेवाधारी हो, शिक्षक हो या सहयोगी – सबको त्यागी और तपस्वी दृष्टि से देखो।


सेवा में पवित्र दृष्टि की आवश्यकता

  • सेवाधारी आत्माओं की मुख्य निशानी: त्याग और तपस्या

  • अगर दैहिक दृष्टि आ गई तो सेवा का रंग फीका हो जाता है।

  • यह रॉयल पाप है, जिसे हल्का नहीं समझना चाहिए।

 उदाहरण

अगर कोई तेल से आग बुझाना चाहे तो आग और बढ़ जाती है। वैसे ही बहस, सफाई या स्पष्टीकरण देने से पाप की लकीर और लंबी होती है।


कमज़ोर संस्कारों का समाप्ति समारोह

  • बाबा ने कहा: “कमज़ोर संस्कार का समाप्ति समारोह करो।”

  • कुमार, कुमारियाँ, शिक्षक – सभी को एक स्वर में संस्कार परिवर्तन का समारोह मनाना है।

  • एक बार का समारोह – और फिर सदाकाल के लिए समाप्ति।


कुमारों से विशेष संदेश

  • हर कदम में साक्षी और साथी बनो।

  • कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे।

  • “सदा एक बाप दूसरा न कोई।”

  • बाप समान बनना ही फर्स्ट डिवीजन है।


कुमारियों के लिए संदेश

  • कुमारी जीवन = स्वतन्त्र और भाग्यशाली जीवन।

  • “एक बाप के बने तो दूसरों की माला नहीं बन सकते।”

  • सच्ची स्कॉलरशिप = विजय माला में नम्बर लेना।

  • स्मृति: “हम शिवशक्तियाँ हैं, कम्बाइण्ड हैं।”


शिक्षकों के लिए संदेश

  • सच्चा शिक्षक वही है जो स्वयं को निमित्त समझकर हल्का रहे।

  • बोझ नहीं, बल्कि कराने वाले पर भरोसा।

  • सदा स्व-पुरुषार्थ और सेवा से सन्तुष्ट रहें।


निष्कर्ष

  • श्रेष्ठ कर्म की रेखा बनाने के लिए पवित्रता, स्वच्छता और सावधानी आवश्यक हैं।

  • स्मृति, दृष्टि और वृत्ति – तीनों में पवित्रता आने से जीवन की रेखा चमक उठती है।

  • “मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ” – यही स्मृति जीवन को पूज्य और भाग्यवान बनाती है।

“श्रेष्ठ कर्म की रेखा और पवित्रता का आधार | प्रश्नोत्तर रूप में मुरली सार | 07 सितम्बर 1982”


प्रश्न 1:आज बापदादा ने बच्चों में क्या विशेष देखा?

उत्तर:बाबा ने सभी ब्राह्मण बच्चों की कर्म रेखा, कर्म कहानी और कर्मों का खाता देखा। उसी से वर्तमान और भविष्य की तकदीर बनती है।


प्रश्न 2:बच्चों को “गोल्डन चांस” किस बात में मिला है?

उत्तर:क्योंकि विधाता बाप के बच्चे होने के नाते हर एक को सम्पूर्ण स्वतन्त्रता है कि जितना चाहे उतना श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं और सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बन सकते हैं।


प्रश्न 3:फिर भी बच्चे नम्बरवार क्यों बन जाते हैं?

उत्तर:इसके दो मुख्य कारण हैं –

  1. बुद्धि में स्वच्छता की कमी

  2. हर कदम में सावधानी की कमी


प्रश्न 4:ब्राह्मण जीवन की असली चैलेन्ज क्या है?

उत्तर:काम-जीत। यही ब्राह्मण जीवन की पहचान और श्रृंगार है। जैसे नामधारी ब्राह्मण की निशानी चोटी-जनेऊ है, वैसे सच्चे ब्राह्मण की निशानी पवित्रता और मर्यादाएँ हैं।


प्रश्न 5:पवित्रता का पहला आधार क्या है?

उत्तर:स्मृति की पवित्रता।
यानी स्मरण रहे: “मैं शुद्ध, पवित्र, पूज्य आत्मा हूँ।” यही स्मृति हमारे दृष्टि, वृत्ति और कर्म को स्वत: ही पवित्र बना देती है।


प्रश्न 6:पूज्य आत्माओं के प्रति अपवित्र दृष्टि रखना क्यों महापाप है?

उत्तर:क्योंकि ब्राह्मण आत्माओं को सदा पूज्य दृष्टि से देखना है। अगर दैहिक दृष्टि जाती है, तो यह सेवा नहीं बल्कि महापाप है। इससे जीवन में कभी भी परफेक्ट स्थिति का अनुभव नहीं हो सकता।


प्रश्न 7:कमज़ोर संस्कार से मुक्त होने का उपाय क्या है?

उत्तर:बाबा ने कहा – “कमज़ोर संस्कार का समाप्ति समारोह करो।”
अर्थात् एक बार दृढ़ निश्चय करके उसे सदा के लिए खत्म कर देना, बार-बार उससे जूझना नहीं।


प्रश्न 8:कुमारों को किस बात पर विशेष ध्यान देना है?

उत्तर:

  • हर कदम में साक्षी और साथी रहना।

  • कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे।

  • सदा स्मृति रहे: “एक बाप दूसरा न कोई।”

  • बाप समान बनना ही फर्स्ट डिवीजन है।


प्रश्न 9:कुमारियों की असली स्कॉलरशिप क्या है?

उत्तर:विजय माला में नम्बर लेना।
कुमारियाँ शिवशक्तियाँ हैं, कम्बाइण्ड हैं। उनका संकल्प और जीवन सदा पवित्र हो तो वे बाप की माला के मणके बनती हैं।


प्रश्न 10:सच्चे शिक्षक की पहचान क्या है?

उत्तर:शिक्षक वही सच्चा सेवाधारी है जो स्वयं को निमित्त समझकर हल्का रहे।
कराने वाला बाबा है – यही भावना रखने से सेवा सदा सफल होती है।

Disclaimer

यह वीडियो/लेख ब्रह्माकुमारियों की आध्यात्मिक शिक्षाओं एवं मुरली वाणी पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा और प्रेरणा देना है, किसी धर्म, संस्था या व्यक्ति की आलोचना करना नहीं।

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