(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अव्यक्त मुरली-(50)“तुरत दान महापुण्य का रहस्य”21-12-1983
21-12-1983 “तुरत दान महापुण्य का रहस्य”
आज विधाता, वरदाता बाप अपने चारों ओर के अति स्नेही सेवाधारी बच्चों को देख रहे थे। चारों ओर के समर्थ बच्चे अपने स्नेह की विशेषता द्वारा दूर होते भी समीप हैं। स्नेह के सम्बन्ध द्वारा, बुद्धि की स्पष्टता और स्वच्छता द्वारा समीप का, सन्मुख का अनुभव कर रहे हैं। तीसरे नेत्र अर्थात् दिव्यता के द्वारा उन्हों के नयन बुद्धि रुपी टी.वी. में दूर के दृश्य स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं। जैसे इस विनाशी दुनिया के विनाशी साधन टी.वी. में विशेष प्रोग्राम्स के समय सब स्विच ऑन कर देते हैं। ऐसे बच्चे भी विशेष समय पर स्मृति का स्विच ऑन कर बैठे हैं। सभी दूर-दर्शन द्वारा दूर के दृश्य को समीप अनुभव करने वाले बच्चों को बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक ही समय पर डबल सभा को देख रहे हैं।
आज विशेष वतन में ब्रह्मा बाप बच्चों को याद कर रहे थे क्योंकि सभी बच्चे जब से जो ब्राह्मण जीवन में चल रहे हैं उन ब्राह्मणों की, समय प्रमाण मंजिल अर्थात् सम्पूर्णता की स्थिति तक किस गति से चल रहे हैं, वह रिजल्ट देख रहे थे। चल तो सब रहे हैं लेकिन गति (स्पीड) क्या है? तो क्या देखा! गति में सदैव एक रफ्तार तीव्र हो अर्थात् सदा तीव्रगति हो, ऐसे कोई में भी कोई देखे। ब्रह्मा बाप ने गति को देख बच्चों की तरफ से प्रश्न किया कि नॉलेजफुल होते अर्थात् तीनों कालों को जानते हुए, पुरुषार्थ और परिणाम को जानते हुए, विधि और सिद्धि को जानते हुए, फिर भी सदाकाल की तीव्रगति क्यों नहीं बना सकते! क्या उत्तर दिया होगा? कारण को भी जानते हो, निवारण की विधि को भी जानते हो फिर भी कारण को निवारण में बदल नहीं सकते!
बाप ने मुस्कराते हुए ब्रह्मा बाप से बोला कि बहुत बच्चों की एक आदत बहुत पुरानी और पक्की है – वह कौन सी? क्या करते! बाप प्रत्यक्ष फल अर्थात् ताज़ा फल खाने को देते हैं लेकिन आदत से मजबूर उस ताज़े फल को भी सूखा बना करके स्वीकार करते हैं। कर लेंगे, हो जायेंगे, होना तो जरुर है, बनना तो पहला नम्बर ही है, आना तो माला में ही है – ऐसे सोचते-सोचते प्लैन बनाते-बनाते प्रत्यक्ष फल को भविष्य का फल बना देते हैं। करेंगे, माना भविष्य फल। सोचा, किया और प्रत्यक्ष फल खाया। चाहे स्व के प्रति, चाहे सेवा के प्रति प्रत्यक्ष फल वा सेवा का ताज़ा मेवा कम खाते हैं। शक्ति किससे आती है – ताजे फल से वा सूखे से? कईयों की आदत होती है – खा लेंगे, ऐसे करते ताजे को सूखा फल बना देते हैं। ऐसे ही यहाँ भी कहते यह होगा तो फिर करेंगे, यह ज्यादा सोचते हैं। सोचा, डायरेक्शन मिला और किया। यह न करने से डायरेक्शन को भी ताजे से सूखा बना देते हैं। फिर सोचते हैं कि किया तो डायरेक्शन प्रमाण लेकिन रिजल्ट इतनी नहीं निकली। क्यों? समय पड़ने से वेला के प्रमाण रेखा बदल जाती है। कोई भी भाग्य की रेखा वेला के प्रमाण ही सुनाते वा बनाते हैं। इस कारण वेला बदलने से वायुमण्डल, वृत्ति, वायब्रेशन सब बदल जाता है। इसलिए गाया हुआ है “तुरत दान महापुण्य”। डायरेक्शन मिला और उसी वेला में उसी उमंग से किया। ऐसी सेवा का ताजा मेवा मिलता है, जिसको स्वीकार करने अर्थात् प्राप्त करने से शक्तिशाली आत्मा बन स्वत: ही तीव्रगति में चलते रहते। सभी फल खाते हो लेकिन कौन सा फल खाते हो, यह चेक करो।
ब्रह्मा बाप सभी बच्चों को ताज़े फल द्वारा शक्तिशाली आत्मा बनाए सदा तीव्रगति से चलने का संकल्प देते हैं। सदा ब्रह्मा बाप के इस संकल्प को स्मृति में रखते हुए हर समय हर कर्म का श्रेष्ठ और ताजा फल खाते रहो। तो कभी भी किसी भी प्रकार की कमजोरी वा व्याधि आ नहीं सकती है। ब्रह्मा बाप मुस्करा रहे थे। जैसे वर्तमान समय के विनाशी डॉक्टर्स भी क्या राय देते हैं! सब ताजा खाओ। जला करके, भून करके नहीं खाओ। रुप बदलकर नहीं खाओ। ऐसे कहते हैं ना। तो ब्रह्मा बाप भी बच्चों को कह रहे थे जो भी श्रीमत समय प्रमाण जिस रुप से मिलती है, उसी समय पर उस रुप से प्रैक्टिकल में लाओ तो सदा ही ब्रह्मा बाप समान तुरत दानी महापुण्य आत्मा बन नम्बरवन में आ जायेंगे। ब्रह्मा बाप और जगत अम्बा फर्स्ट राज्य अधिकारी, दोनों आत्माओं की विशेषता क्या देखी? सोचा और किया। यह नहीं सोचा कि यह करके पीछे यह करेंगे। यही विशेषता थी। तो फालो मदर फादर करने वाले महापुण्य आत्मा, पुण्य का श्रेष्ठ फल खा रहे हैं और सदा शक्तिशाली हैं। स्वप्न में भी संकल्प मात्र भी कमजोरी नहीं। ऐसे सदा तीव्रगति से चल रहे हैं लेकिन कोई में भी कोई।
ब्रह्मा बाप को साकार सृष्टि के रचयिता होने के कारण, साकार रुप में पालना का पार्ट बजाने के कारण, साकार रुप में पार्ट बजाने वाले बच्चों से विशेष स्नेह हैं। जिससे विशेष स्नेह होता है उसकी कमजोरी सो अपनी कमजोरी लगती है। ब्रह्मा बाप को बच्चों की इस कमजोरी का कारण देख, स्नेह आता है कि अभी सदा के शक्तिशाली, सदा के तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाले बन जाएं। बार-बार की मेहनत से छूट जाएं।
सुना ब्रह्मा बाप की बातें। ब्रह्मा बाप के नयनों में बच्चे ही समाये हुए हैं। ब्रह्मा की विशेष भाषा का मालूम है, क्या बोलते हैं? बार-बार यही कहते हैं “मेरे बच्चे, मेरे बच्चे।” बाप मुस्कराते हैं। हैं भी ब्रह्मा के ही बच्चे, इसलिए अपने सरनेम में भी ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहते हो ना। शिवकुमार-शिवकुमारी तो नहीं कहते हो। साथ भी ब्रह्मा को ही चलना है। भिन्न-भिन्न नाम रुप से ज्यादा समय साथ तो ब्रह्मा बाप का ही रहता है ना। ब्रह्मा मुख वंशावली हो। बाप तो साथ है ही। फिर भी साकार में ब्रह्मा का ही पार्ट है। अच्छा और रुह-रुहान फिर सुनायेंगे।
इस ग्रुप में तीन तरफ की विशेष नदियाँ आई हैं। डबल विदेशी तो अभी गुप्त गंगा है क्योंकि टर्न में नहीं हैं। अभी देहली, कर्नाटक और महाराष्ट्र इन तीन नदियों का मिलन विशेष है। बाकी साथ-साथ चूंगे में हैं। जो टर्न में आये हैं वह तो अपना हक लेंगे ही लेकिन डबल विदेशी भी भाग-भाग करके अपना हक पहले लेने पहुँच गये हैं। तो वह भी प्यारे होंगे ना। डबल विदेशियों को भी चूंगे में माल मिल रहा है। फिर अपने टर्न में मिलेगा। हर तरफ के बच्चे बापदादा को प्यारे हैं क्योंकि हर तरफ की अपनी-अपनी विशेषता है। देहली है सेवा का बीज स्थान और कर्नाटक तथा महाराष्ट्र है वृक्ष का विस्तार। जैसे बीज नीचे होता है और वृक्ष का विस्तार ज्यादा होता है तो देहली बीज रुप बनी। अन्त में फिर बीजरुप धरनी पर ही आवाज होना है। लेकिन अभी कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात तीनों का विशेष विस्तार है। विस्तार वृक्ष की शोभा होती है। कर्नाटक और महाराष्ट्र सेवा के विस्तार से ब्राह्मण वृक्ष की शोभा है। वृक्ष सज रहा है ना। प्रश्न भी यह दो ही पूछते हैं ना। एक तो खर्चे की बात पूछते, दूसरा ब्राह्मणों की संख्या का पूछते हैं। तो महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही संख्या के हिसाब से ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार है। बीज की विशेषता अपनी है। बीज नहीं होता तो वृक्ष भी नहीं निकलता। लेकिन बीज अभी थोड़ा गुप्त है। वृक्ष का विस्तार ज्यादा है। अगर देहली में भी आप सब नहीं जाते तो सेवा का फाउन्डेशन नहीं होता। पहला निमन्त्रण सेवा का लिया या मिला। लेकिन देहली से ही शुरु हुआ। इसलिए सेवा का स्थान भी वो ही बना और राज्य का स्थान भी वो ही बनेगा। जहाँ पहले ब्राह्मणों के पांव पड़े तीर्थ स्थान भी वही बना और राज्य स्थान भी वही बनेगा। विदेश की भी बहुत महिमा है। विदेश से भी विशेष प्रत्यक्षता के नगाड़े देश तक आयेंगे। विदेश नहीं होता तो देश में प्रत्यक्षता कैसे होती। इसलिए विदेश का भी महत्व है। विदेश की आवाज को सुन भारत वाले जगेंगे। प्रत्यक्षता का आवाज निकलने का स्थान तो विदेश ही हुआ ना। तो यह है विदेश का महत्व। विदेश में रहने वाले भी हैं तो देश के ही, लेकिन निमित्त मात्र विदेश में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को उमंग-उत्साह में देख देश वालों में भी उमंग-उत्साह और ज्यादा होता है। यह भी उन्हों की गुप्त सेवा का पार्ट है। तो सभी की विशेषता अपनी हुई ना। अच्छा।
सदा तुरत दान महापुण्य आत्माएं, सोचने और करने में सदा तीव्र पुरुषार्थी, हर संकल्प हर सेकण्ड सेवा का मेवा खाने वाले, ऐसे सदा शक्तिशाली फालो फादर और फालो मदर करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप के संकल्प को साकार में लाने वाले ऐसे देश-विदेश चारों ओर के समर्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
तुरत दान महापुण्य का रहस्य – 21 दिसंबर 1983
(मुस्लिम भाई-बहनों और सभी BK बच्चों के लिए विशेष जानकारी)
प्रश्न 1: प्रस्तावना में ब्रह्मा बाप ने बच्चों को क्यों देखा?
उत्तर:
-
ब्रह्मा बाप अपने चारों ओर अति स्नेही सेवाधारी बच्चों को देख रहे थे।
-
बच्चों की स्नेह और बुद्धि की स्पष्टता के कारण दूर के दृश्य भी समीप अनुभव हो रहे थे।
-
तीसरे नेत्र की दिव्यता से वे नयन-बुद्धि के टीवी में दूर के दृश्य देख पा रहे थे।
-
बापदादा इस विशेष शक्ति और स्मृति के स्विच ऑन होने को देखकर अत्यंत हर्षित थे।
प्रश्न 2: गति और पुरुषार्थ का निरीक्षण क्या था?
उत्तर:
-
सभी बच्चे ब्राह्मण जीवन में सही मार्ग पर हैं, पर गति हमेशा तीव्र नहीं है।
-
ब्रह्मा बाप ने प्रश्न किया:
“यदि तीनों कालों को जानते हुए, पुरुषार्थ और परिणाम को जानते हुए, विधि और सिद्धि को जानते हुए भी तीव्र गति क्यों नहीं बना सकते?”
-
कारण और निवारण की विधि जानते हुए भी गति में कमी का कारण बच्चों की आदत और संकल्प में देरी थी।
प्रश्न 3: आदत और प्रत्यक्ष फल में क्या कमी है?
उत्तर:
-
कई बच्चों की पुरानी आदत है कि प्रत्यक्ष फल को भी भविष्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।
-
उदाहरण: डायरेक्शन मिला → पर उसे सोचकर भविष्य फल बना लिया → परिणाम कम।
-
इससे समय और वेला के प्रमाण बदल जाते हैं, वायुमंडल, वृत्ति और वाइब्रेशन प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 4: “तुरत दान महापुण्य” का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
-
डायरेक्शन मिला और उसी वेला में उमंग और संकल्प से कार्य किया → ताजा मेवा मिला।
-
ताजा मेवा = शक्तिशाली आत्मा → सदा तीव्र गति में चलना।
-
प्रत्यक्ष फल का ताजगी से ग्रहण करना → तीव्र पुरुषार्थ, निरंतर शक्ति।
प्रश्न 5: मुरली के उदाहरण और तिथियाँ क्या हैं?
उत्तर:
-
21 दिसंबर 1983: ब्रह्मा बाप ने बच्चों को स्मृति और संकल्प का महत्व समझाया।
-
7 अक्टूबर 2025 (सन्दर्भ):
“सोचा और किया। यही विशेषता है। फल खा रहे हैं और सदा शक्तिशाली हैं।”
-
बच्चों को हर कर्म का श्रेष्ठ और ताजा फल लेने की प्रेरणा।
-
स्वप्न में भी संकल्प शक्ति → कमजोरी का कोई स्थान नहीं।
प्रश्न 6: उदाहरण से कैसे समझें?
उत्तर:
(क) ताजे फल और सूखे फल
-
ताजे फल → डायरेक्ट मेवा → शक्ति और तीव्रगति।
-
सूखा फल → भविष्य के रूप में → शक्ति कम।
(ख) बीज और वृक्ष
-
देहली = सेवा का बीज स्थान
-
कर्नाटक और महाराष्ट्र = वृक्ष का विस्तार
-
बीज मजबूत → वृक्ष का विस्तार शाश्वत
-
विदेश = विशेष प्रत्यक्षता और सेवा का योगदान
(ग) डायरेक्शन और परिणाम
-
डायरेक्शन मिला → उसी समय किया → तुरत दान महापुण्य
-
सोच-समझकर किया → भविष्य फल → शक्ति और परिणाम कम
प्रश्न 7: निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:
-
सदा तुरत दान महापुण्य आत्माएं →
-
सोचने और करने में तीव्र पुरुषार्थी
-
हर संकल्प और हर सेकंड सेवा का मेवा ग्रहण करने वाले
-
शक्तिशाली, फालो फादर और फालो मदर करने वाले
-
ब्रह्मा बाप के संकल्प को साकार करने वाले
-
-
देश-विदेश चारों ओर के समर्थ बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह।
-
Disclaimer
यह वीडियो किसी धर्म या समुदाय की आस्था को प्रभावित करने के लिए नहीं है।
उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान, स्मृति और संकल्प के महत्व को समझाना है।-
जो भी शिक्षाएँ दी गई हैं, वह ब्रह्मा कुमारीज़ के साकार मुरली संदर्भ पर आधारित हैं।
-
व्यक्तिगत अभ्यास और अनुभव पर ध्यान दें।
-
- तुरत दान महापुण्य, ब्रह्मा कुमारी ज्ञान, 21 दिसंबर 1983 मुरली, मुसलमानों के लिए BK जानकारी, ब्राह्मण जीवन में पुरुषार्थ, प्रत्यक्ष फल का महत्व, आत्मा की शक्ति, स्नेह और बुद्धि, तीव्र गति और पुरुषार्थ, ताजे फल और सूखे फल उदाहरण, बीज और वृक्ष उदाहरण, संकल्प और सेवा, शक्ति और परिणाम, मुरली उद्धरण 1983, मुरली उद्धरण 2025, BK बच्चों के लिए शिक्षा, स्मृति और संकल्प, तुरत दान का रहस्य, आत्मा का श्रेष्ठ फल, ब्रह्मा बाप का मार्गदर्शन, सेवा का बीज और वृक्ष, परिणाम का ताजा मेवा, सोच और किया फल, शक्तिशाली आत्मा, पुरुषार्थी जीवन, BK मुरली शिक्षा,
- Instant donation is a great virtue, Brahma Kumari knowledge, 21 December 1983 Murli, BK information for Muslims, effort in Brahmin life, importance of immediate results, power of the soul, affection and intelligence, rapid speed and effort, fresh fruits and dry fruits examples, seed and tree example, resolution and service, power and result, Murli quotes 1983, Murli quotes 2025, teachings for BK children, memory and resolution, secret of instant donation, best fruit of the soul, guidance of Father Brahma, seed and tree of service, fresh fruit of results, thought and action results, powerful soul, effortful life, BK Murli education,