(85)करुणा का जीवन में स्थान
“करुणा: गीता और मुरली का सर्वोच्च दैवी गुण |”
1. प्रस्तावना – करुणा का महत्व
गीता और ब्रह्माकुमारीज मुरली में करुणा को सर्वोच्च दैवी गुण बताया गया है।
इसमें दया, क्षमा, अद्वेष, निराभिमानता और सहनशीलता जैसे सभी गुण समाहित हैं।
करुणा का स्थायी भाव केवल योगयुक्त आत्मा में ही संभव है क्योंकि वही आत्मा परमात्मा से आनंद, शांति और शक्ति का अनुभव करती है।
2. करुणा को दैवी गुण क्यों कहा गया है?
करुणा दैवी गुणों का सार है क्योंकि इसमें दया, क्षमा, सेवा, त्याग, तपस्या और प्रेम सभी समाहित हैं।
यह आत्मा को दूसरों के दुख को दूर करने की प्रेरणा देती है।
उदाहरण:
जैसे एक घायल व्यक्ति को देखकर स्वाभाविक रूप से मदद का भाव उत्पन्न होता है, वैसे ही करुणाशील आत्मा विकारों में फंसी आत्माओं को ज्ञान और योग का मार्ग दिखाने का संकल्प करती है।
3. करुणा और योग का आपस में संबंध
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योग के बिना करुणा स्थायी नहीं रह सकती।
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योगयुक्त आत्मा परमात्मा से शक्ति और प्रेम प्राप्त करती है।
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वही शक्ति और प्रेम करुणा के रूप में दूसरों तक पहुँचता है।
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जो आत्मा स्वयं दुखी है, वह दूसरों को कैसे सहायता कर सकती है?
4. करुणाशील व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ
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ज्ञानवान और योगयुक्त – आत्मा और परमात्मा का ज्ञान रखता है।
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महादानी और वरदानी – अपने शब्दों और आशीर्वादों से पवित्रता की प्रेरणा देता है।
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सेवाभावी – आत्माओं को दुख-सागर से निकालने के लिए तत्पर रहता है।
5. मुरली में करुणा का संदेश
सा. मुरली 25 जुलाई 2025
“बच्चे, करुणाशील वही बन सकते हैं जिनकी बुद्धि योगयुक्त है। योग से शक्ति पाकर ही सेवा कर सकते हो। करुणा में दया, क्षमा, प्रेम, सेवा – सब समाए हुए हैं।”
6. जीवन में करुणा को कैसे विकसित करें?
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प्रतिदिन योगाभ्यास कर आत्मा को शक्ति, शांति और प्रेम से भरें।
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केवल भावुक न हों, बल्कि ज्ञान का मार्ग दिखाएँ।
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विचार, वचन और कर्म में दया और क्षमा को स्थान दें।
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सेवा और तपस्या को जीवन का अंग बनाएँ।
7. निष्कर्ष
करुणा केवल एक भाव नहीं, बल्कि दैवी आचरण की श्रेष्ठता का प्रतीक है।
जब हर आत्मा करुणाशील बनेगी, तब ही सुख-शांति और स्वर्णिम युग की स्थापना संभव होगी।
“करुणा: सर्वोच्च दैवी गुण – प्रश्नोत्तर रूप में समझें”
Questions & Answers
Q1. गीता और मुरली में करुणा को सर्वोच्च दैवी गुण क्यों कहा गया है?
A1. क्योंकि करुणा में दया, क्षमा, अद्वेष, सेवा, त्याग और प्रेम जैसे सभी दैवी गुण समाहित हैं। यह आत्मा को दूसरों के दुख दूर करने और उन्हें सही मार्ग दिखाने की प्रेरणा देती है।
Q2. करुणा का स्थायी भाव किस आत्मा में उत्पन्न होता है?
A2. केवल योगयुक्त आत्मा में। जब आत्मा परमात्मा से शांति, शक्ति और प्रेम प्राप्त करती है, तभी वह करुणाशील बन सकती है।
Q3. करुणा और योग का आपस में क्या संबंध है?
A3. योग आत्मा को शक्ति और प्रेम प्रदान करता है। यही शक्ति करुणा के रूप में दूसरों तक पहुँचती है। योग के बिना करुणा भावुकता बनकर रह जाती है, स्थायी नहीं रहती।
Q4. करुणाशील व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
A4.
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ज्ञानवान और योगयुक्त होना।
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महादानी और वरदानी बनकर शुभ संकल्पों से दूसरों को प्रेरित करना।
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सेवाभावी रहकर आत्माओं को दुख-सागर से निकालने का प्रयास करना।
Q5. जीवन में करुणा कैसे विकसित करें?
A5.
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नियमित योगाभ्यास कर आत्मा को शक्ति और प्रेम से भरें।
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भावुकता के बजाय ज्ञान का मार्ग दिखाएँ।
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विचार, वचन और कर्म में दया, क्षमा और सेवा को स्थान दें।
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के आध्यात्मिक ज्ञान एवं गीता की शिक्षाओं पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति, सकारात्मक सोच और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को प्रोत्साहित करना है।
यह किसी भी प्रकार के धार्मिक विवाद, आलोचना या मतभेद को बढ़ावा नहीं देता।
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