02- Other names of yoga

 02- योग केअन्य नाम

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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योग के विभिन्न नाम और उनके आध्यात्मिक अर्थ – स्वयं परमात्मा शिव द्वारा सिखाया गया सहज राजयोग | 


 प्रस्तावना: आज का विषय — योग का गूढ़ रहस्य

नमस्कार आत्मन।
आज हम उस दिव्य विषय पर मनन करेंगे जो हमारी आत्मा को गहराई से छूता है —
“सहज राजयोग”, जिसे स्वयं परमात्मा शिव सिखाते हैं।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इस योग को कई नामों से क्यों पुकारा गया है?

आज हम जानेंगे उन नामों का गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ
और कैसे हर नाम आत्मिक उन्नति की एक विशेष सीढ़ी है।


 1. ज्ञान योग – आत्मा को आत्मज्ञान देने वाला योग

यह वह योग है जिसमें आत्मा को आत्मा, परमात्मा को परमात्मा और सृष्टि को ड्रामा समझाया जाता है।
यह ज्ञान ब्रह्मा के माध्यम से शिव बाबा देते हैं।

गीता में भी कहा गया: “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
परंतु सच्चा ज्ञान सच्चे ज्ञानी — यानी स्वयं परमात्मा से ही मिलता है।

मुख्य सूत्र:
“ज्ञान के बिना योग संभव नहीं, और ज्ञान सच्चे ज्ञानी से ही मिलता है।”


 2. बुद्धि योग – आत्मा की चेतन शक्ति का परमात्मा से संबंध

मन से सोचते हैं, पर बुद्धि निर्णय लेती है।
बुद्धि आत्मा का भाग है, जबकि ब्रेन शरीर का अंग।

जब बुद्धि परमात्मा से जुड़ जाती है, तब ही योग सिद्ध होता है।
यह योग निर्णय शक्ति को शुद्ध करता है।

कमांड चैन: आत्मा → बुद्धि → ब्रेन → शरीर

संकेत चित्र: आत्मा की तीन शक्तियाँ — मन, बुद्धि, संस्कार


 3. कर्म योग – कर्म में योग, योग में कर्म

सच्चा योग वह है जो हर कर्म में हो।
काम करते समय भी मन परमात्मा की याद में हो, तब वह कर्म योग कहलाता है।

 बाबा कहते हैं:
“मेरे संग रहो, मेरी श्रीमत पर चलो — वही श्रेष्ठ कर्म है।”

यह योग हमें कर्मबंधन से मुक्त करता है।


 4. संन्यास योग – आसक्ति से संन्यास

यह योग सन्यास लेने का नहीं, बल्कि विकारों से संन्यास लेने का है।

 काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार — इनका त्याग यही सच्चा संन्यास है।

 बाबा का संदेश:
“घर में रहते हुए भी, घर से न्यारे बनो।”


 5. समत्व योग – समानता और समर्पण का योग

जब आत्मा ट्रस्टी बनकर कर्म करती है, और “मैं” की भावना को त्याग देती है —
तब समत्व योग जन्म लेता है।

मुख्य सूत्र:
“मैं नहीं, तू करवा रहा है” — यही है समता।

यह योग हमें न्यायप्रिय, स्थिर और निश्चिंत बनाता है।


 6. भक्ति योग – प्रेमयुक्त स्मृति का योग

यह योग केवल मंत्रों, माला और क्रियाओं का नहीं —
यह है प्रेम, श्रद्धा और चेतना का योग।

बाबा कहते हैं:
“सच्ची भक्ति है — याद में प्रेम का प्रवाह।”

यह योग हमें भावनात्मक शुद्धता की ओर ले जाता है।


 7. कॉन्शियस योग – जाग्रत आत्मा का साक्षात्कार

जब आत्मा सजग होकर स्वयं को देखती है —
अपने दोष, आदतें, सोच — तब यह योग आत्मनिरीक्षण में परिवर्तित हो जाता है।

Subconscious yoga — आदतों में जिया जाता है
Conscious yoga — आत्म-जागृति में जिया जाता है


 समापन: यही है सहज राजयोग का दिव्य वैभव

आज हमने जाना कि ईश्वर द्वारा सिखाया गया सहज योग कितना व्यापक है —
हर नाम में एक विशेष अभ्यास छिपा है:

  • ज्ञान योग – आत्मा को जागृत करता है

  • बुद्धि योग – निर्णयों को शुद्ध करता है

  • कर्म योग – कर्म को पावन बनाता है

  • संन्यास योग – विकारों से दूरी सिखाता है

  • समत्व योग – ईश्वर की आज्ञा से जीना सिखाता है

  • भक्ति योग – प्रेम से भर देता है

  • कॉन्शियस योग – आत्म-जागृति का मार्ग है


 अंतिम प्रेरणा:

“राजयोग केवल आसन या ध्यान नहीं —
यह है आत्मा की ईश्वर से सीधी, गहन और शक्तिशाली मुलाकात।
और यह ज्ञान, यह योग — हमें केवल स्वयं परमात्मा शिव ही सिखा सकते हैं।”

इस अनुभव को अपनाएं, आत्मा को सशक्त बनाएं
और इसे दूसरों तक पहुँचाएं — यही सच्ची सेवा है।

 प्रश्नोत्तर शैली (Q&A Format)


 प्रस्तावना

प्रश्न 1: यह विषय क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: क्योंकि आज लोग योग को केवल शारीरिक अभ्यास मानते हैं, जबकि सच्चा योग आत्मा और परमात्मा के बीच जुड़ाव का नाम है। और यह सच्चा योग स्वयं परमात्मा शिव हमें सिखाते हैं — जिसे “सहज राजयोग” कहा गया है।


1. ज्ञान योग

प्रश्न 2: ज्ञान योग किसे कहते हैं?
उत्तर: यह वह योग है जो परमात्मा शिव द्वारा दिया गया सच्चा ज्ञान है — आत्मा, परमात्मा और सृष्टि-चक्र का ज्ञान।

प्रश्न 3: क्या गीता में भी ज्ञान योग का उल्लेख है?
उत्तर: हाँ, गीता में ज्ञान योग की चर्चा है, परंतु सच्चा ज्ञान केवल सच्चे ज्ञानी यानी परमात्मा शिव से ही मिल सकता है।

मुख्य सूत्र: “सच्चा ज्ञान, सच्चे ज्ञानी से ही प्राप्त होता है।”


2. बुद्धि योग

प्रश्न 4: बुद्धि योग क्या है और यह ब्रेन से कैसे अलग है?
उत्तर: ब्रेन शरीर का हिस्सा है, पर बुद्धि आत्मा की शक्ति है। योग तब सफल होता है जब बुद्धि परमात्मा से जुड़ती है — न कि केवल दिमागी चिंतन से।

प्रश्न 5: योग में बुद्धि की भूमिका क्या है?
उत्तर: बुद्धि ऑपरेटर की तरह है जो ब्रेन रूपी हार्ड डिस्क को चलाती है। जब बुद्धि परमात्मा की ओर मुड़ी हो, तभी ज्ञान का सही उपयोग होता है।


3. कर्म योग

प्रश्न 6: कर्म योग किसे कहते हैं?
उत्तर: जब हम कर्म करते हुए भी परमात्मा से जुड़ाव बनाए रखते हैं, और उनकी श्रीमत पर चलते हैं — तो वही सच्चा कर्म योग है।

प्रश्न 7: साधारण और श्रेष्ठ कर्म में क्या अंतर है?
उत्तर: साधारण कर्म शरीर से होता है, पर श्रेष्ठ कर्म तब होता है जब हम परमात्मा के संग रहकर कार्य करते हैं।


4. संन्यास योग

प्रश्न 8: क्या संन्यास योग का अर्थ घर-परिवार छोड़ना है?
उत्तर: नहीं, सच्चा संन्यास बुरे संस्कारों, बुरी आदतों, और आसक्तियों को छोड़ने का नाम है। बाबा कहते हैं — “घर में रहकर घर से न्यारे बनो।”

प्रश्न 9: कौन-कौन सी चीजों का त्याग आवश्यक है?
उत्तर: “मेरा-मेरा” की भावना, क्रोध, लोभ, वासना, आलस्य आदि का त्याग ही संन्यास योग है।


5. समत्व योग

प्रश्न 10: समत्व योग किसे कहा गया है?
उत्तर: जब हम ट्रस्टी भाव में, परमात्मा की इच्छा अनुसार कार्य करते हैं, तो मन में स्थिरता और समत्व आता है।

प्रश्न 11: समत्व योग का अभ्यास कैसे करें?
उत्तर: “मैं नहीं, तू करवा रहा है” — इस भावना से हर कर्म करना, यही समत्व योग है।

मुख्य सूत्र: “मैं नहीं, तू करवा रहा है — इस भावना में समत्व है।”


6. भक्ति योग

प्रश्न 12: भक्ति योग का गहरा अर्थ क्या है?
उत्तर: यह केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि प्रेम और चेतना की जागृति है। सच्चा भक्ति योग तब होता है जब हम ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम और समर्पण में स्थित रहते हैं।

प्रश्न 13: क्या जप-तप ही भक्ति है?
उत्तर: नहीं, बाबा कहते हैं — “जप-तप नहीं, सच्चे प्रेम की आवश्यकता है।”


कॉन्शियस योग

प्रश्न 14: कॉन्शियस योग क्या होता है?
उत्तर: जब हम जागरूक होकर आत्मनिरीक्षण करें, अपने दोषों को पहचानें और उन्हें बदलने का प्रयास करें — वही सच में सजग योग है।

प्रश्न 15: सबकॉन्शियस योग क्यों पर्याप्त नहीं है?
उत्तर: क्योंकि उसमें आदतें दोहराई जाती हैं — जागरूकता नहीं होती। योग में आत्म-जागृति अनिवार्य है।


समापन प्रश्न

प्रश्न 16: सहज राजयोग क्यों सर्वोत्तम है?
उत्तर: क्योंकि यह स्वयं परमात्मा शिव द्वारा सिखाया गया है — जो आत्मा को आत्म-स्वामी बनाता है। यह अमर ज्ञान और अमर योग है, जो हमें मोक्ष व जीवनमुक्ति दोनों का अधिकारी बनाता है।


अंतिम संदेश

“राजयोग का अर्थ है — राजा जैसा आत्म-स्वामी बनना, और यह राज्य स्वयं परमात्मा हमें दे रहे हैं। इसे अपनाएं, अनुभव करें और दूसरों को भी इसका मार्ग दिखाएं।”

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