11- Upliftment of the mind through yoga.

11-योग के माध्यम से मन का उत्थान

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग,
जो और कोई मनुष्य नहीं सिखा सकता

(एक गूढ़ यात्रा — चेतना, योग और आत्मोन्नति की ओर)


 1. ओम शांति — आज का विषय परिचय

आज हम उस योग की बात करेंगे,
जिसे स्वयं ईश्वर सिखाते हैं —
और जो कोई भी मनुष्य नहीं सिखा सकता।

यह कोई साधारण ध्यान या अभ्यास नहीं,
बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की
सर्वोच्च विधि है — सहज राजयोग।


 2. मन, बुद्धि और आत्मा का उत्थान — केवल योग से संभव

ईश्वर हमें क्या सिखाते हैं?
मन का उत्थान
बुद्धि का उत्थान
आत्मा का उत्थान

यह सब संभव होता है केवल —
योग के माध्यम से।

राजयोग वो शक्ति है,
जो आत्मा में सुधार लाता है,
चढ़ती कला में परिवर्तन लाता है।


 3. चेतना और उसकी अभिव्यक्ति

हमारी आत्मा चैतन्य है।
शरीर जड़ है।
इसलिए चेतना की पहचान आवश्यक है।

चेतना प्रकट होती है —
— विचारों में
— इच्छाओं में
— निर्णयों में
— स्मृति और भावनाओं में

इन्हीं के रूप में मन, बुद्धि और संस्कार को जाना जाता है।

मन = विचारों की लहर
बुद्धि = निर्णय की शक्ति
स्मृति = जानकारी को याद करने की क्षमता


 4. प्रकृति और प्रवृत्ति की गहराई

प्रकृति = पांच तत्वों से बना शरीर + स्वभाव
प्रवृत्ति = आत्मा की दिशा और संस्कारों का झुकाव

जब आत्मा प्रकृति में बंध जाती है,
तो अवचेतन मन में पुरानी आदतें जाग जाती हैं।
परंतु राजयोग इन प्रवृत्तियों को बदलने की शक्ति देता है।


 5. चेतना का अतिक्रमण — पारलौकिक सत्ता का अनुभव

चेतना न समय की बंधन में है,
न शरीर की सीमाओं में।
यह भूत, वर्तमान और भविष्य को पार कर सकती है।

आत्मा को कहते हैं —
“पारलौकिक सूक्ष्म सत्ता”
जो मन, बुद्धि और संस्कार का समग्र रूप है।


 6. योगी और भोगी — चेतना की दिशा का निर्णय

राजयोगी कौन?
जो अपने मन, बुद्धि और स्मृति को
सच्चिदानंद परमात्मा की ओर ले जाता है।

भोगी कौन?
जो शरीर, विषय-विकार, और भौतिकता में उलझा रहता है।

जैसे रेडियो को ट्यून करते हैं —
वैसे ही योगी आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।


 7. शुद्धता और आत्म-परिवर्तन का रहस्य

यह ज्ञान दोष निकालने के लिए नहीं,
बल्कि आत्मा को शुद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए है।

हमारा ध्यान —
विचारों की ऊँचाई और बुद्धि की पवित्रता पर होना चाहिए,
ताकि आत्मा परमात्मा से जुड़ सके।


 8. निष्कर्ष — जानिए गहराई से, अनुभव कीजिए स्वयं

यदि आप इन बातों को विस्तार से जानना चाहते हैं —
तो नज़दीकी ब्रह्मा कुमारी सेवा केंद्र पर संपर्क करें।

 कोई प्रश्न हो — तो 0686 पर संपर्क करें, कॉल न करें।


 9. एक आवश्यक स्पष्टीकरण

कई लोग कहते हैं —
“कुत्ते, बिल्ली आदि में भी भगवान हैं।”

पर सत्य यह है —
भगवान किसी शरीर में नहीं होते।
वो एक अशरीरी, चैतन्य सत्ता हैं —
जो स्वयं आकर सहज राजयोग सिखाते हैं।


 10. समाप्ति — अगले भाग में और जानेंगे

आज हम यहीं रुकते हैं।
कल इस पर और विस्तार से बात करेंगे।

सभी को —
ओम शांति। ओम शांति। ओम शांति

स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग, जो और कोई मनुष्य नहीं सिखा सकता

(एक गूढ़ यात्रा — चेतना, योग और आत्मोन्नति की ओर)


प्रश्न 1: सहज राजयोग क्या है, और इसे “सहज” क्यों कहा गया है?

 उत्तर:सहज राजयोग वह विधि है, जिससे आत्मा अपने परम स्रोत — परमात्मा — से जुड़ती है।
इसे “सहज” इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें कोई कठिन तप या क्रिया-कांड नहीं है।
यह एक स्वाभाविक, विचार-आधारित योग है जो केवल स्मृति और चेतना के परिवर्तन से आत्मा को ऊँचाई पर ले जाता है।


प्रश्न 2: क्या हर मनुष्य योग सिखा सकता है?

 उत्तर:हर कोई योग सिखा सकता है, परंतु सहज राजयोग, जिसे आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का वास्तविक माध्यम माना गया है —
वह केवल स्वयं परमात्मा ही सिखा सकते हैं।
क्योंकि कोई भी मनुष्य सर्वात्माओं का पिता नहीं हो सकता।
परमात्मा ही हैं जो सभी आत्माओं को जानने वाले हैं।


प्रश्न 3: योग से आत्मा का उत्थान कैसे होता है?

 उत्तर:योग के माध्यम से:

  • मन की शुद्धि होती है — व्यर्थ और विकारी विचार मिटते हैं।

  • बुद्धि की स्पष्टता आती है — सही निर्णय लेने की शक्ति आती है।

  • आत्मा का उत्थान होता है — आत्मा चढ़ती कला में जाती है, अर्थात वह सतोप्रधान बनती है।
    यह परिवर्तन केवल ईश्वर से संबंध जोड़ने पर ही संभव होता है।


प्रश्न 4: चेतना क्या है? और यह कैसे प्रकट होती है?

उत्तर:चेतना आत्मा की वह शक्ति है जो विचार, भावना, निर्णय, और स्मृति के रूप में प्रकट होती है।
जब हम सोचते हैं — यह चेतना है,
जब हम निर्णय लेते हैं — यह बुद्धि की चेतना है,
जब हम कुछ याद करते हैं — यह स्मृति की चेतना है।


प्रश्न 5: मन, बुद्धि और संस्कार का आत्मा से क्या संबंध है?

 उत्तर:मन, बुद्धि और संस्कार आत्मा के तीन कार्यशील अंग हैं:

  • मन विचार करता है

  • बुद्धि निर्णय लेती है

  • संस्कार स्मृति और आदतें हैं, जो आत्मा में जमा होती हैं
    इन तीनों का संचालक स्वयं आत्मा है।


प्रश्न 6: “प्रकृति” और “प्रवृत्ति” में क्या अंतर है?

 उत्तर:

  • प्रकृति पाँच तत्वों से बना शरीर और उसका स्वभाव है।

  • प्रवृत्ति आत्मा की दिशा और झुकाव है — जैसे काम, क्रोध, शांति, प्रेम आदि की आदतें।
    राजयोग से आत्मा की प्रवृत्तियाँ दिव्यता की ओर परिवर्तित होती हैं।


प्रश्न 7: क्या चेतना समय और शरीर से परे जा सकती है?

 उत्तर:हाँ, चेतना आत्मा की शक्ति है जो शरीर की सीमाओं और समय के बंधन से परे होती है।
वह भूतकाल को याद कर सकती है, वर्तमान को समझ सकती है और भविष्य की तैयारी कर सकती है।
यह ही आत्मा की सूक्ष्म पारलौकिक सत्ता का प्रमाण है।


प्रश्न 8: योगी और भोगी में क्या अंतर है?

 उत्तर:

  • योगी वह है जो अपने मन और बुद्धि को ईश्वर की ओर लगाता है —
    और अपने जीवन को ईश्वरीय शक्तियों से भरपूर बनाता है।

  • भोगी वह है जो केवल इंद्रियों के सुखों में ही उलझा रहता है —
    उसे आत्मिक चेतना या परमात्मा का ज्ञान नहीं होता।


प्रश्न 9: राजयोग का उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना क्यों है?

 उत्तर:ईश्वर द्वारा सिखाया गया राजयोग आत्मा को पवित्र, शक्तिशाली और जाग्रत बनाता है।
यह कोई दोष निकालने की प्रक्रिया नहीं,
बल्कि आत्मा की सुधार और उत्थान यात्रा है —
ताकि वह अपने मूल स्वरूप में स्थित हो सके:
शांति, पवित्रता, आनंद, प्रेम और शक्ति।


प्रश्न 10: क्या सभी जीवों में भगवान होते हैं?

 उत्तर:नहीं।ईश्वर एक अशरीरी, सर्वशक्तिमान, चैतन्य सत्ता हैं।
वे किसी शरीर में प्रवेश नहीं करते, न ही किसी प्राणी में समा जाते।
वे समय-समय पर स्वयं आत्माओं को मार्ग दिखाने ज्ञान और योग के माध्यम से प्रकट होते हैं।
कुत्ते, बिल्ली, आदि में भगवान होने की बातें केवल अज्ञान के कारण मानी जाती हैं।


सहज राजयोग कोई मानवीय आविष्कार नहीं,
बल्कि स्वयं ईश्वर की शिक्षा है —
जो आत्मा को फिर से ऊँचा, पावन, और शक्तिशाली बनाती है।

यदि आप इस योग को गहराई से समझना और अनुभव करना चाहते हैं —
तो निकटतम ब्रह्मा कुमारी सेवा केंद्र से संपर्क करें।

 कोई प्रश्न हो — 0686 पर संपर्क करें, कॉल न करें।


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“स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग | जो कोई मनुष्य नहीं सिखा सकता | चेतना, योग और आत्मोन्नति की रहस्यपूर्ण यात्रा”

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