05- Why Yoga

05- योग क्यों

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राज योग | आज का विषय: योग क्यों? | आत्मिक पॉडकास्ट एपिसोड 5 | 


 “योग क्यों?” – आत्मिक पॉडकास्ट एपिसोड 5


प्रस्तावना (Intro)

नमस्ते और ओम् शांति।

आप सुन रहे हैं — “स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग” पॉडकास्ट।

एक ऐसी आत्मिक यात्रा, जहाँ हम आत्मा, परमात्मा और सहज राजयोग की गहराइयों में उतरते हैं।

आज का हमारा पाँचवाँ एपिसोड है और विषय है —
“योग क्यों?”

यह प्रश्न हर आत्मा के मन में कभी न कभी उठता है:

  • क्यों योग करें?

  • क्यों परमात्मा से जुड़ना आवश्यक है?

  • क्या योग से वास्तव में परिवर्तन संभव है?

आइए, इस प्रश्न के चार गहरे पहलुओं पर चिंतन करें।


1. आंतरिक शांति और खुशी की तलाश

हर आत्मा की सबसे पहली चाह होती है —
“मुझे शांति चाहिए। मुझे सच्ची खुशी चाहिए।”

लेकिन जो शांति हम बाहर खोजते हैं —
वह केवल क्षणिक होती है।

  • भौतिक सुख – मिलते ही खत्म

  • नई चीजें – थोड़ी देर का रोमांच

लेकिन योग क्या देता है?
योग हमें आत्मा की गहराई में ले जाकर —
उस स्थायी शांति और सच्चे आनंद का अनुभव कराता है।

यह केवल परमात्मा ही सिखा सकते हैं — क्योंकि वही हैं शांति के सागर।


2. व्यसनों और नकारात्मक संस्कारों पर विजय

हम सभी के अंदर जन्मों पुराने संस्कार हैं:

  • क्रोध

  • लोभ

  • मोह

  • अहंकार

ये केवल समझ से नहीं जाते।

ये केवल ईश्वरीय शक्तियों से जाते हैं — और वो शक्ति आती है योग से।

बाबा कहते हैं:

“जब आत्मा स्वयं अपनी कमज़ोरियों को समाप्त करती है, तभी उसे आत्मिक बल और आनंद मिलता है।”

सच्चे योग अभ्यास से:

  • संस्कार शुद्ध होते हैं

  • देवी गुण स्वतः प्रकट होते हैं


3. गहन विश्राम और मानसिक संतुलन

आज की दुनिया की सबसे बड़ी ज़रूरत क्या है?

एक शांत और संतुलित मन।

योग हमें यह देता है:

  • तनाव और डर समाप्त होने लगता है

  • निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है

  • धैर्य और सहनशीलता आती है

योग हमें जोड़ता है — शांति के महासागर से, और हम वहाँ से ऊर्जा लेते हैं।


4. व्यवहार में दिव्यता का परिवर्तन

सच्चा योग क्या देता है?

व्यवहार में बदलाव।

  • सोच सकारात्मक होती है

  • बोल मीठे और स्नेही हो जाते हैं

  • कर्म शुभ और श्रेष्ठ हो जाते हैं

जब बुद्धि परमात्मा से जुड़ती है:

  • दृष्टि बदलती है

  • दृष्टिकोण दिव्य बनता है

  • और आत्मा देह से न्यारी स्थिति में आ जाती है

“मन के स्थिर होने से कर्म भी पवित्र हो जाते हैं — यही है सच्चा योग।”


निष्कर्ष: योग क्यों?

तो आज हमने जाना — योग क्यों आवश्यक है?

  • क्योंकि आत्मा को चाहिए सच्ची शांति

  • क्योंकि हमें चाहिए विकारों पर विजय

  • क्योंकि आज है ज़रूरत मानसिक विश्राम की

  • और चाहिए व्यवहार में श्रेष्ठता और दिव्यता

और यह सब संभव है — जब स्वयं परमात्मा शिव हमें सिखाते हैं सहज राजयोग।

प्रश्नोत्तर (Q&A) सेगमेंट

शीर्षक: “योग क्यों?” — प्रश्न और उत्तर


प्रश्न 1:सवाल: योग करना क्यों ज़रूरी है? क्या केवल अच्छे कर्म और नैतिकता से शांति नहीं मिल सकती?

उत्तर:योग आत्मा की गहराई में स्थित अशांति और दुख के कारणों तक पहुँचना सिखाता है। अच्छे कर्म और नैतिकता भी ज़रूरी हैं, परंतु वे तब तक सीमित फल देते हैं जब तक आत्मा परम स्रोत – परमात्मा – से शक्ति नहीं लेती।
योग वह कड़ी है जो आत्मा को दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है और स्थायी शांति व आनंद देता है।


प्रश्न 2:सवाल: बाहरी दुनिया में भी तो सुख है – फिर आंतरिक शांति की इतनी ज़रूरत क्यों?

उत्तर:बाहरी सुख क्षणिक है – वह समय, परिस्थिति, और संसाधनों पर आधारित होता है।
परंतु आंतरिक शांति एक बार प्राप्त हो जाए, तो वह परिस्थिति के बावजूद बनी रहती है।
योग वही साधन है जो मन को स्थिति से परे, आत्म-स्थिरता में रखता है।


प्रश्न 3:सवाल: क्या योग के द्वारा नशे, क्रोध या लोभ जैसे व्यसनों पर भी काबू पाया जा सकता है?

उत्तर:हाँ, योग का उद्देश्य ही आत्मा की सफाई है।
बाबा कहते हैं – “दाग तभी मिटते हैं जब आत्मा ईश्वर से जुड़कर तेज़ तप करे।”
यह कोई मनोवैज्ञानिक उपाय नहीं है – यह आत्मिक शक्तियों का अभ्यास है, जिससे संस्कार तक रूपांतरित हो जाते हैं।


प्रश्न 4:सवाल: योग से हमें मानसिक विश्राम कैसे मिलता है? क्या यह मेडिटेशन जैसा ही है?

उत्तर:सहज राजयोग में ध्यान (मेडिटेशन) है – पर इससे भी आगे, यह “संपर्क” है।
जब हम मन-बुद्धि द्वारा परमपिता से जुड़ते हैं, तब उनकी शांति हमारे भीतर उतरती है।
यह योग हमें भीड़ में भी स्थिर रहने की शक्ति देता है, और इससे तनाव, डर, चिंता धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं।


प्रश्न 5:सवाल: योग करने से हमारा व्यवहार कैसे बदलता है?

उत्तर:जैसे-जैसे आत्मा में दिव्य गुण आते हैं – जैसे शांति, सहनशीलता, करुणा – वैसे-वैसे ये हमारे व्यवहार में भी परिलक्षित होते हैं।
सहज योग बुद्धि को ईश्वरीय दिशा देता है – जिससे सोच सकारात्मक होती है, और कर्म स्वतः पवित्र होने लगते हैं।
यही है वास्तविक योग का प्रमाण – बदलता हुआ व्यवहार।


प्रश्न 6:सवाल: क्या यह योग कोई मनुष्य सिखा सकता है, या केवल परमात्मा ही?

उत्तर:यह सहज राजयोग कोई मानव नहीं सिखा सकता – यह स्वयं परमात्मा की शिक्षा है।
वह स्वयं इस संगम युग पर आते हैं और आत्मा को अपने साथ जोड़ना सिखाते हैं।
इसलिए यह योग श्रेष्ठ, शक्तिशाली और साक्षात दिव्य अनुभव देने वाला होता है।


प्रश्न 7:सवाल: सहज राजयोग “सहज” कैसे है? क्या इसमें कोई कठिन तपस्या या विधि नहीं है?

उत्तर:“सहज” इसलिए है क्योंकि इसमें कोई कठोर नियम या क्रियाएं नहीं हैं।
यह केवल मन और बुद्धि का प्रयोग है – याद की शक्ति है।
न कोई आसन, न मंत्र – केवल आत्मिक स्थिति और परमात्मा की स्मृति।
बाबा कहते हैं – “बच्चे, बस मुझे याद करो – यही राजयोग है।”


प्रश्न 8:सवाल: अगर कोई रोज़ योग नहीं करता, तो क्या उसे इसका प्रभाव नहीं मिलेगा?

उत्तर:नियमित योग अभ्यास से ही गहराई का अनुभव होता है।
जिस प्रकार रोज़ सूर्य देखने से आँखों को आदत हो जाती है, वैसे ही रोज़ परमात्मा की याद से आत्मा में स्थायी शक्तियाँ आती हैं।
कभी-कभी योग करना – ऐसा है जैसे एक दिन पौधे को पानी देना और बाकी दिनों सूखा छोड़ देना।


 निष्कर्ष सुझाव:

यह प्रश्नोत्तरी “स्वयं से संवाद” के रूप में भी उपयोग की जा सकती है।
आप इन प्रश्नों को अपने मन से पूछें, लिखें, चर्चा करें – और अपने योग अभ्यास को और गहराई दें।

अगर आप चाहें, मैं इसका PDF फॉर्म भी बना सकता हूँ उपयोग के लिए।

क्या आपको अगले एपिसोड का Q&A भी इसी शैली में चाहिए?

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