13-योग अभ्यास में चेतना का विकास
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
योग अभ्यास में चेतना का विकास – स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग” विषय पर।
“कैसे बढ़ाएं चेतना की शक्ति? स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग | Consciousness in Rajyog”
स्वयं ईश्वर ही सिखाते हैं सहज राजयोग
ओम् शांति।
आज का हमारा विषय है – “योग अभ्यास में चेतना का विकास – Consciousness को कैसे बढ़ाएं?”
सहज राजयोग कोई साधारण विधि नहीं है।
यह स्वयं परमात्मा द्वारा सिखाया गया एक दिव्य मार्ग है, जिससे हमारी चेतना का उत्थान होता है।
प्रथम चरण: विचारों का बिखराव – योग की शुरुआत में
जब कोई साधक राजयोग का अभ्यास शुरू करता है,
तो उसके सभी विचार परमात्मा पर केंद्रित नहीं हो पाते।
कभी बाबा का स्मरण होता है, कभी मन भटक जाता है।
यह एक सामान्य स्थिति है – क्योंकि यह आत्मा अभी नयी है, अभ्यास नया है।
इस चरण में बुद्धि स्थिर नहीं हो पाती,
परंतु यह भी चेतना की यात्रा का पहला कदम है।
दूसरा चरण: गहरी आकांक्षा और समर्पण
धीरे-धीरे आत्मा में गहरी इच्छाएं और आकांक्षाएं जागृत होती हैं।
“मुझे परमात्मा से मिलना है, अनुभव करना है।”
इस भावना में समर्पण, प्रेम, और मिलन की तीव्र चाह होती है।
इस स्टेज में पारलौकिक चेतना जागृत होती है,
और आत्मा परमात्मा से जुड़ने के लिए सूक्ष्म अनुभव करने लगती है।
यह योग की अनुभूति का प्रारंभ है।
तीसरा चरण: फोकस में परिवर्तन और एकाग्रता का विकास
अब साधक का ध्यान पूरी तरह ईश्वर की ओर केंद्रित होने लगता है।
ईश्वर अब उसके जीवन का Central Focus बन जाता है।
विचारों में स्थिरता आती है,
और आत्मा एक विषय पर टिकने लगती है।
इससे योग में अनुभव और भावनात्मक गहराई आती है।
साधक अनुभव करने लगता है कि वह कुछ मूल्यवान प्राप्त कर रहा है।
चौथा चरण: बोध का उत्थान – आत्मिक खुशी का अनुभव
यह स्टेज आत्मा को आनंद और स्थायी खुशी की स्थिति में ले जाती है।
जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है।
अब आत्मा को हर अनुभव में ईश्वर की उपस्थिति और मार्गदर्शन दिखने लगता है।
यह स्थिति आध्यात्मिक विकास की पराकाष्ठा कहलाती है –
जहाँ चेतना शुद्ध, प्रेमपूर्ण और दिव्य बन जाती है।
चेतना का परिवर्तन ही जीवन का परिवर्तन है
सहज राजयोग केवल एक ध्यान की विधि नहीं है –
यह चेतना का गहन परिवर्तन है,
जो केवल ईश्वर के द्वारा ही संभव है।
कैसे बढ़ाएं चेतना की शक्ति? स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग | Consciousness in Rajyog”
प्रश्न 1: सहज राजयोग क्या है और यह साधारण योग से कैसे भिन्न है?
उत्तर:सहज राजयोग कोई साधारण ध्यान पद्धति नहीं है।
यह स्वयं परमात्मा शिव द्वारा सिखाया गया एक आत्मिक और दिव्य योग है, जिसमें आत्मा को परमात्मा से बुद्धियोग द्वारा जोड़कर उसकी चेतना को ऊँचा किया जाता है।
यह योग “सहज” इसलिए कहलाता है क्योंकि यह कठिन तप या शारीरिक क्रियाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि स्वाभाविक रूप से मन और बुद्धि को ईश्वर से जोड़ने की प्रक्रिया है।
प्रश्न 2: योग की शुरुआत में साधक की चेतना कैसी होती है?
उत्तर:योग अभ्यास की शुरुआत में साधक की चेतना अस्थिर और बिखरी हुई होती है।
सोच-विचार अनेक विषयों में उलझे रहते हैं।
ईश्वर को याद करने का प्रयास होता है, परंतु मन बार-बार भटक जाता है।
यह एक सामान्य स्थिति है और इसे “प्रथम चरण” कहा जा सकता है।
इसमें साधक अभी अभ्यास में नया होता है और चेतना स्थिर नहीं हो पाती।
प्रश्न 3: चेतना को जागृत करने में “गहरी आकांक्षा” कैसे मदद करती है?
उत्तर:जब आत्मा में परमात्मा से मिलन की गहरी इच्छा और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है, तो चेतना धीरे-धीरे ऊपर उठने लगती है।
यह अवस्था दूसरी स्टेज कहलाती है।
इसमें आत्मा को सूक्ष्म स्तर पर पारलौकिक प्रेम और लगाव का अनुभव होता है।
परमात्मा से जुड़ने की यह गहन आकांक्षा, योग को अनुभवी और सजीव बना देती है।
प्रश्न 4: ध्यान में फोकस और एकाग्रता का विकास कब होता है?
उत्तर:तीसरे चरण में जब ईश्वर ही जीवन का केंद्र बिंदु बन जाता है,
तो साधक की चेतना स्थिर होने लगती है।
सोच में स्पष्टता आती है,
और आत्मा धीरे-धीरे एकाग्र चित्त में टिकना सीखती है।
इससे योग अभ्यास में गहराई और सजीव अनुभूति उत्पन्न होती है।
अब साधक अनुभव करता है कि वह कुछ मूल्यवान प्राप्त कर रहा है।
प्रश्न 5: चेतना का सर्वोच्च रूप क्या होता है?
उत्तर:चौथा चरण बोध और आत्मिक खुशी का होता है।
इसमें साधक की चेतना इतनी ऊँचाई पर पहुँच जाती है
कि हर कार्य में उसे ईश्वर का मार्गदर्शन और साक्षात अनुभव होता है।
अब जीवन में स्थायी आनंद और शांति भर जाती है।
यह स्थिति आध्यात्मिक विकास की परम अवस्था मानी जाती है, जहाँ आत्मा पूर्ण प्रेम, पवित्रता और शक्ति से भर जाती है।
प्रश्न 6: क्या चेतना का यह परिवर्तन स्थायी होता है?
उत्तर:हाँ, जब यह परिवर्तन गहन योग अभ्यास और ईश्वर के सच्चे ज्ञान पर आधारित होता है,
तो चेतना में स्थायी बदलाव आता है।
इससे आत्मा की सोच, दृष्टिकोण, संबंध, और कर्म – सब दिव्य हो जाते हैं।
यह है जीवन परिवर्तन का मूल – चेतना परिवर्तन।
अंतिम प्रश्न: यह चेतना परिवर्तन कैसे प्रारंभ करें?
उत्तर:इस चेतना परिवर्तन की शुरुआत होती है –
स्वयं को आत्मा समझने से और परमात्मा को जानने से।
फिर नियमित रूप से सहज राजयोग का अभ्यास,
ज्ञान का मनन और परमात्मा शिव बाबा का स्मरण
इस यात्रा को सरल और सफल बनाते हैं।
समापन:
ओम् शांति।
चेतना का यह विकास कोई कल्पना नहीं,
बल्कि एक अनुभव की यात्रा है –
जो शुरू होती है स्वयं ईश्वर की शिक्षाओं से,
और समाप्त होती है परम शांति और सुख की अनुभूति में।
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