12-Analogies of Consciousness: Understanding the Relationship with God

12-चेतना की उपमाएँ: ईश्वर के साथ संबंध को समझना

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ॐ शांति: सहज राजयोग सिखाने वाला केवल ईश्वर है | स्वयं और आत्मा का रहस्य | चेतना और ईश्वर


प्रस्तावना:

नमस्कार प्यारे आत्मा रूपी भाईयों और बहनों,
स्वागत है आज के विशेष एपिसोड में —
“सहज राजयोग सिखाने वाला केवल ईश्वर है।”

आज की इस युगांतकारी घड़ी में,
जब आत्माएं थकी हुई हैं, उलझी हुई हैं,
तब स्वयं परमपिता परमात्मा आकर हमें
एक गूढ़, दिव्य और सहज पथ दिखाते हैं — “सहज राजयोग”

यह कोई मनुष्य द्वारा सिखाया गया योग नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच
उस चेतना के तार को जोड़ने वाली विधि है।

आज हम समझेंगे:

  • स्वयं क्या है?

  • चेतना का कार्य क्या है?

  • और परमात्मा से योग कैसे जुड़ता है?


1. निजी का उपमा – बिजली और चेतना का संबंध

आत्मा की शक्ति की उपमा दी जा सकती है — बिजली से।

बिजली दिखती नहीं,
पर प्रकाश, ताप और गति देती है।

वैसे ही आत्मा भी अदृश्य है,
पर वही सोचती है, समझती है, अनुभव करती है

लेकिन बिजली के प्रवाह में एक रुकावट होती है — रबर

यदि रबर लगा हो तो करंट नहीं आता।

देह-अभिमान भी आत्मा के लिए वही रबर है।

जब तक देह-अभिमान की परत हटती नहीं,
तब तक आत्मा परमात्मा से जुड़ नहीं सकती।


2. स्वयं के तीन स्तर – मन, बुद्धि और संस्कार

ईश्वर ने हमें तीन अद्भुत शक्तियाँ दी हैं:

  • मन – विचार करने वाला

  • बुद्धि – निर्णय करने वाली

  • संस्कार – हमारे गहरे स्थायी प्रभाव

 कॉन्शियस माइंड:

जहां सीखने, सुनने, समझने की क्रिया होती है।

 सबकॉन्शियस माइंड:

जहां मुरली की पंक्तियाँ, गीत, अनुभव छुपे होते हैं —
जो समय आने पर सामने आते हैं।

 अनकॉन्शियस माइंड:

जहां संस्कार सक्रिय रहते हैं —
बिना सोचे ही हम वैसा व्यवहार करते हैं।


3. आत्मा और ‘स्व’ का स्रोत

आत्मा का मूल स्रोत है — स्वरूप

जैसे बिजली का स्रोत पावर स्टेशन है,
वैसे ही आत्मा का पावरहाउस है — परमात्मा।

मन और बुद्धि आत्मा की एक्सप्रेशन टूल्स हैं।

जब ये दोनों परमात्मा की ओर मुड़ते हैं,
तभी आत्मा में सत्य, शांति और शक्ति का अनुभव होता है।


4. जब ईश्वर से जुड़ते हैं – तभी होता है राजयोग

राजयोग कोई ध्यान विधि नहीं,
यह आत्मा और परमात्मा के बीच
एक बुद्धियोग है।

जैसे ही देहभान रूपी रबर हटता है,
आत्मा का कनेक्शन शिव बाबा से जुड़ता है।

तब वह अनुभव करती है —
सच्चा प्रकाश, गहरी शांति और दिव्य शक्ति।


5. सहज राजयोग – केवल ईश्वर द्वारा सिखाई जाने वाली विधि

सहज’ का अर्थ है —
कोई कठिन प्रयास नहीं, कोई तप नहीं, कोई जप नहीं।

केवल स्मृति द्वारा
“मैं आत्मा हूँ और मेरा संबंध परमात्मा से है।”

यह स्मृति ही योग है।
यह ज्ञान मनुष्य सिखा नहीं सकता
इसे सिखा सकता है —
सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, सच्चा पिता – शिव परमात्मा।


6. निजी अभ्यास – कैसे करें?

  • दिन भर में जब भी समय मिले,
    1 मिनट के लिए रुकें।

  • अपने मन और बुद्धि को शिव बाबा की स्मृति में लगाएं।

  • मुरली की पंक्तियाँ जो “pending” हैं —
    उन्हें सबकॉन्शियस से कॉन्शियस में लाएं।

  • अपने विचारों का मूल्यांकन करें,
    और उन्हें पावन ऊर्जा से भरें।


7. निष्कर्ष – स्वयं को शुद्ध करें, ईश्वर से जुड़ें

जिस प्रकार कोई गाड़ी चलाना पहले कठिन लगता है,
फिर अभ्यास से स्वचालित हो जाता है —

वैसे ही राजयोग भी
धीरे-धीरे सहज बन जाता है।

आज यह संकल्प लें:
“मैं आत्मा हूँ – परमात्मा मेरा पिता है।”

हर बार जब देहभान जागे —
उस ‘रबर’ को हटाएं,
और योग की स्मृति में स्थित हो जाएं।


अंतिम संकल्प:

“हे बाबा! मेरे अपने को इतना प्यारा बना दो,
कि हर पल तू ही याद आए।
मेरा मन, बुद्धि, संस्कार —
तीनों तेरे साथ यात्रा करें।”


समापन:

ॐ शांति।
आपका भीतर का निजी अब जागृत हो —
और आप परमात्मा शिव से सहज योग में जुड़ जाएं।

सहज राजयोग के अभ्यास द्वारा
आप एक नए आत्मिक अनुभव की ओर बढ़ें।

शांति: सहज राजयोग सिखाने वाला केवल ईश्वर है | स्वयं और आत्मा का रहस्य | चेतना और ईश्वर


प्रश्न 1: सहज राजयोग क्या है और इसे केवल परमात्मा ही क्यों सिखा सकते हैं?

उत्तर:सहज राजयोग कोई शारीरिक तपस्या या कठिन साधना नहीं है। यह ‘स्मृति का योग’ है — जहां आत्मा अपने परमपिता परमात्मा शिव को याद करती है।
यह योग इतना सूक्ष्म और दिव्य है कि केवल सर्वज्ञानी, निराकार परमात्मा ही इसे सिखा सकते हैं। मनुष्य गुरु केवल साधन सिखाते हैं, लेकिन आत्मा-परमात्मा का यह सीधा कनेक्शन परमात्मा ही जोड़ सकते हैं।


प्रश्न 2: चेतना की उपमा बिजली से क्यों दी जाती है?

उत्तर:बिजली अदृश्य होते हुए भी अनेक रूपों में काम करती है – जैसे प्रकाश, गर्मी, ऊर्जा।
उसी प्रकार चेतना – आत्मा की शक्ति – भी अदृश्य है, परंतु वह मन, बुद्धि, संस्कार के रूप में प्रकट होती है।
यदि देह-अभिमान रूपी रबर चेतना पर चढ़ा है, तो ईश्वर से संबंध नहीं जुड़ता।


प्रश्न 3: मन, बुद्धि और संस्कार – चेतना के कौन-कौन से स्तर हैं?

उत्तर:

  1. कॉन्शियस माइंड (चेतन मन): जब आत्मा मन और बुद्धि से सक्रिय होती है।

  2. सबकॉन्शियस माइंड (अवचेतन): जहां विचार जमा हो जाते हैं जो हमने सोचे नहीं – जैसे मुरली की बातें।

  3. अनकॉन्शियस माइंड (अज्ञात): जहां आत्मा बिना सोच के आदतन कार्य करती है – जैसे गाड़ी चलाना या खाना बनाना।


प्रश्न 4: आत्मा और परमात्मा का संबंध कैसे जुड़ता है?

उत्तर:जब मन और बुद्धि परमात्मा की ओर केन्द्रित होते हैं, देहभान (रबर) हटता है, तब आत्मा-परमात्मा का कनेक्शन जुड़ता है।
उस समय आत्मा परम शांति, शक्ति और दिव्यता का अनुभव करती है। यही सहज राजयोग की स्थिति है।


प्रश्न 5: यह योग सीखने के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर:आवश्यक है –

  • आत्मा की पहचान

  • परमात्मा की पहचान

  • स्मृति की शक्ति

  • देह-अभिमान से मुक्त होना
    जब हम परमात्मा को पिता, शिक्षक और सच्चा सखा मानकर याद करते हैं, तो सहज रूप से राजयोग आरंभ हो जाता है।


प्रश्न 6: क्या मनुष्य इस योग को सिखा सकते हैं?

उत्तर:नहीं। मनुष्य स्वयं शरीरधारी हैं और सीमित ज्ञान रखते हैं।
सहज राजयोग केवल वही सिखा सकता है जो सर्वज्ञ, निराकार, और शरीर से न्यारा हो — अर्थात परमात्मा शिव।
वही आत्मा को उसके मूलस्वरूप से परिचित कराकर, सच्चा संबंध जोड़ते हैं।


प्रश्न 7: चेतना को जाग्रत कैसे करें?

उत्तर:

  • 1 मिनट के अभ्यास से शुरुआत करें – मन-बुद्धि को शिव बाबा की स्मृति में लगाएँ।

  • मुरली की पंक्तियाँ जो पेंडिंग हैं, उन पर मनन करें।

  • सोचने और अनुभव करने की शक्ति बढ़ाएँ।

  • धीरे-धीरे सबकॉन्शियस को कॉन्शियस बनाते जाएँ।


प्रश्न 8: सहज राजयोग की अंतिम अवस्था क्या होती है?

उत्तर:जब आत्मा पूर्णतः परमात्मा से जुड़ जाती है –

  • तब वह प्रकाशमान हो जाती है।

  • कर्म स्वभाविक और श्रेष्ठ बन जाते हैं।

  • आत्मा शांति, सुख और प्रेम का स्रोत बन जाती है।
    यह अवस्था “साक्षीभाव” और “साक्षात अनुभव” की स्थिति है।


प्रश्न 9: कोई एक संकल्प जो हम रोज़ करें?

उत्तर:“मैं आत्मा हूँ – शांत स्वरूप, शक्ति स्वरूप, प्रेम स्वरूप।
हे बाबा! मेरा मन, बुद्धि और संस्कार – सब तेरे हो जाएँ।
मुझे तू इतना प्यारा बनादे कि हर पल तू ही याद आए।”

चेतना का जागरण ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।
सहज राजयोग कोई मानवीय विधि नहीं, यह परमात्मा शिव द्वारा दिया गया दिव्य अभ्यास है।
उसे अपनाइए – और स्वयं को सच्चे अर्थों में जानिए।

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