17-शारीरिक चेतना से परे;शांति और भाई-चारे का मार्ग
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“देह से परे आत्म चेतना ही है सच्चा राजयोग | स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग”
हम आजकल कर रहे हैं — स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग।
आज हम इसके एक मुख्य बिंदु पर मनन करेंगे — देह चेतना और आत्म चेतना।
1. सहज राजयोग क्या है?
सहज राजयोग का अर्थ है —
शारीरिक चेतना से परे जाकर शांति और भाईचारे के मार्ग पर चलना।
यह कोई कठिन तपस्या नहीं, बल्कि आत्म-स्मृति में स्थित होने की सहज विधि है।
2. देह चेतना क्या है?
देह चेतना का अर्थ है — देह की स्मृति और आत्मा की विस्मृति।
जैसे ही हम देह की स्मृति में आते हैं, हमसे स्वतः ही क्रोध, लोभ, अभिमान, आलस्य, कामवासना और भावनात्मक लगाव उत्पन्न होते हैं।
3. देह चेतना का प्रभाव — उदाहरण सहित
जैसे:
-
“मेरा पड़ोसी”, “मेरा मित्र”, “मेरा अफसर”, “मेरा नौकर”, “मेरे गांव का”, “मेरे सेंटर के भाई-बहन” — यह ‘मेरा’ किसका है?
यह सब देह की स्मृति से आता है।
और यही भावनात्मक लगाव, समाज में संघर्ष और अशांति का कारण बनता है।
4. समाधान क्या है?
केवल आत्म चेतना।
जब हम आत्मा के रूप में स्वयं को अनुभव करते हैं, तो:
-
पवित्रता आती है
-
सद्भावना आती है
-
विश्व बंधुत्व की भावना आती है
यही चेतना एक पवित्र और शांत समाज की स्थापना कर सकती है।
5. आत्म जागृति का परिणाम
जब कोई व्यक्ति आत्म-जागरूक हो जाता है:
-
तो विकार स्वयं उसे छोड़ देते हैं
-
वह स्वयं को ईश्वर चेतना में स्थित कर लेता है
-
और तब उसे मिलता है सच्चा आनंद और शांति
6. देह अभिमान बनाम आत्म अभिमान
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आत्मा-अभिमानी बनते हैं, तो पवित्रता की ओर जाते हैं।
-
देह-अभिमानी बनते हैं, तो अपवित्रता की ओर जाते हैं।
इसलिए, आत्मा को पहचानना और उसी में स्थित होना — यही सहज राजयोग की सच्ची साधना है।
समापन
तो आइए, आज से ही संकल्प करें —
हम देह नहीं, आत्मा हैं।
और हम आत्मा के रूप में ईश्वर से जुड़कर इस जीवन को सहज, शांत और शक्तिशाली बनाएं।
देह से परे आत्म चेतना ही है सच्चा राजयोग | स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग
प्रश्न 1: सहज राजयोग क्या है?
उत्तर:सहज राजयोग वह ईश्वरीय विधि है जिसमें हम शरीर की चेतना से ऊपर उठकर आत्मा की स्मृति में स्थित होते हैं। यह कोई कठिन तप नहीं, बल्कि शांति और भाईचारे का सहज मार्ग है — जिसमें स्वयं परमात्मा हमें मार्गदर्शन देते हैं।
प्रश्न 2: देह चेतना का अर्थ क्या है?
उत्तर:देह चेतना का अर्थ है — देह की स्मृति और आत्मा की विस्मृति।
जैसे ही हम ‘मैं शरीर हूँ’ ऐसा सोचते हैं, तभी हमारे अंदर क्रोध, लोभ, अभिमान, आलस्य, कामवासना और भावनात्मक लगाव उत्पन्न होने लगते हैं।
प्रश्न 3: देह चेतना का प्रभाव हमारे जीवन और संबंधों पर कैसे पड़ता है?
उत्तर:देह चेतना के कारण हम लोगों को “मेरा पड़ोसी”, “मेरा मित्र”, “मेरा अफसर” आदि रूपों में देखने लगते हैं — जो भावनात्मक लगाव और अपेक्षाओं को जन्म देता है।
यही लगाव आगे चलकर समाज में संघर्ष और अशांति का कारण बनता है।
प्रश्न 4: इसका समाधान क्या है?
उत्तर:इसका समाधान है — आत्म चेतना।
जब हम स्वयं को आत्मा के रूप में अनुभव करते हैं, तब हमारे अंदर पवित्रता, सद्भावना और विश्व बंधुत्व की भावना स्वतः आती है। यही आत्म चेतना, शांति और सहयोग से युक्त समाज की स्थापना कर सकती है।
प्रश्न 5: जब आत्म जागृति होती है, तो क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:जब कोई आत्म-जागरूक हो जाता है, तो विकार जैसे क्रोध, काम, लोभ आदि धीरे-धीरे उसे छोड़ देते हैं।
वह व्यक्ति ईश्वर चेतना में स्थिर हो जाता है और सच्चा आनंद एवं शांति अनुभव करता है।
प्रश्न 6: देह अभिमान और आत्म अभिमान में क्या अंतर है?
उत्तर:
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देह अभिमान व्यक्ति को अपवित्रता, अहंकार और दुख की ओर ले जाता है।
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आत्म अभिमान व्यक्ति को पवित्रता, नम्रता और सच्ची शांति की ओर ले जाता है।
आत्मा को पहचानना और उसी में स्थित रहना ही सच्चा सहज राजयोग है।
हमें क्या संकल्प लेना चाहिए?
उत्तर:हमें संकल्प लेना चाहिए —
“मैं यह शरीर नहीं, एक शांत स्वरूप आत्मा हूँ।
मैं परमात्मा की संतान हूँ और इस जीवन को आत्म चेतना में रहकर सफल बनाऊँगा।”
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