10- राजयोग क्या है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ईश्वर द्वारा सिखाया गया सहज राज योग
नमस्कार प्यारे आत्मा रूपी भाइयों और बहनों,
स्वागत है आपका हमारी श्रृंखला “स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग” के दसवें भाग में।
आज का हमारा गूढ़ विषय है — “राज योग क्या है?”
यह कोई साधारण योग नहीं है, यह संपूर्ण आत्मिक उन्नति की विधि है,
जिसे स्वयं परमपिता परमात्मा सिखा रहे हैं।
1. राज योग की मूल परिभाषा
राज योग की पहली परिभाषा हमें मिलती है —
“आत्मा का परमात्मा से संबंध”।
लेकिन यह परिभाषा केवल एक बिंदु है।
राजयोग केवल एक मानसिक अभ्यास नहीं,
बल्कि यह आत्मा की बुद्धि द्वारा परमात्मा से गहराईपूर्ण संबंध जोड़ने की विधि है।
2. मानसिक या बौद्धिक संबंध? — गहरी समझ
आमतौर पर कहा जाता है कि “मानसिक रूप से ईश्वर से संबंध जोड़ो।”
परंतु मन तो शरीर के साथ जुड़ा है,
और उसका कार्य है सोच उत्पन्न करना, लेकिन निर्णय लेना बुद्धि का काम है।
इसलिए, सही शब्द है — “बौद्धिक संबंध”।
जब आत्मा परमात्मा से बुद्धि द्वारा संपर्क करती है,
तभी वास्तविक राजयोग प्रारंभ होता है।
3. ज्ञान के इन्टेक का माध्यम — मन
हमें जो भी ज्ञान प्राप्त होता है —
वो मन के माध्यम से इंद्रियों द्वारा भीतर प्रवेश करता है।
उदाहरण:
-
जब हम मुरली पढ़ते हैं — आँखों द्वारा ज्ञान अंदर जाता है।
-
जब हम सुनते हैं — कानों द्वारा।
मन इन्टेक का द्वार है,
परंतु विचार निर्माण व निर्णय लेने का कार्य बुद्धि का है।
इसलिए राजयोग का सही अभ्यास है —
बुद्धि को परमात्मा में स्थिर करना।
4. “बैठकर करना” ही राजयोग क्यों?
राजयोग कोई क्रियात्मक कर्म नहीं है,
बल्कि यह बुद्धि को ईश्वर में एकाग्र करने की क्रिया है।
इसीलिए, जब हम बैठकर —
अपने अवगुणों की समीक्षा करते हैं,
उन्हें परमात्मा की शक्ति से समाप्त करने का निश्चय करते हैं —
तो वही बैठना, वही सोच में सुधार — यही राजयोग है।
5. मनोवैज्ञानिक सिद्धांत और चेतना
यह अवधारणा मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर भी आधारित है।
हमारे मन की स्थिति कैसे चेतना को प्रभावित करती है —
यह गहराई से समझने योग्य है।
उदाहरण:
विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता “Daffodils”।
वो नदी किनारे फूलों को देखकर आनंदित हुए,
और घर में बैठकर भी उसी दृश्य को याद करके आनंद लिया।
यह चेतना की शक्ति है — दृश्य की स्मृति भी मन की स्थिति को बदल सकती है।
6. दृश्य और भावनाओं का संबंध
एक और उदाहरण —
जब कोई कुत्ता भौंकता है,
तो डर उस व्यक्ति को लगता है जो देख रहा है।
हमारे मन में जो चित्र है,
वही हमारी भावना को आकार देता है।
इसलिए राजयोग में हमें क्या करना है?
ईश्वर के साथ संबंध बनाकर, उसके गुणों के चित्र मन में भरने हैं।
ताकि हमारी भावनाएं भी दिव्य बन सकें।
7. संस्कार और बुद्धि का संबंध
जब हम कोई भी कार्य बार-बार करते हैं,
तो वह हमारे अंदर संस्कार बन जाता है।
संस्कार क्या हैं?
Standing instruction — जहाँ बुद्धि बार-बार निर्णय नहीं लेती,
बल्कि मन स्वतः उस दिशा में कार्य करता है।
इसलिए, जब हम बार-बार राजयोग का अभ्यास करते हैं,
तो यह दिव्य स्मृति और संस्कार बन जाता है।
निष्कर्ष: राजयोग — ईश्वर द्वारा सिखाई गई आत्मिक उड़ान
राजयोग केवल ध्यान नहीं,
यह परमात्मा द्वारा सिखाया गया ऐसा विज्ञान है,
जिसमें आत्मा — परमात्मा की याद में
अपने संस्कार, कर्म, और विचारों को दिव्य बनाती है।
राजयोग — वह विज्ञान है जो आत्मा को राजा बनाता है।
राजाओं का भी राजा — स्वयं पर राज्य।
यही ईश्वर सिखा रहे हैं इस संगमयुग में।
धन्यवाद!
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अगले भाग में हम चर्चा करेंगे — राजयोग में ‘स्मृति स्वरूप’ कैसे बनें।
स्वयं ईश्वर सिखाते हैं — सहज राजयोग
Part 10: राज योग क्या है?
ईश्वर द्वारा सिखाया गया सहज राज योग | प्रश्नोत्तर (Q&A)
Part 10: “राज योग क्या है?” पर आधारित
Q1: राज योग की मूल परिभाषा क्या है?
A: राज योग का अर्थ है – आत्मा का परमात्मा से संबंध जोड़ना। लेकिन यह केवल भावनात्मक या मानसिक नहीं, बल्कि बुद्धि द्वारा गहराई से परमात्मा से संबंध जोड़ने की विधि है।
Q2: क्या राज योग मानसिक अभ्यास है?
A: नहीं, यह केवल मानसिक अभ्यास नहीं है।
यह आत्मा की बुद्धि द्वारा परमात्मा से संपर्क जोड़ने का योग है।
मन विचार करता है, लेकिन निर्णय और एकाग्रता का कार्य बुद्धि करती है। इसलिए इसे बौद्धिक संबंध कहा जाता है।
Q3: ज्ञान आत्मा तक कैसे पहुंचता है?
A: ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से मन में प्रवेश करता है।
उदाहरण: आँखों से पढ़कर या कानों से सुनकर ज्ञान अंदर आता है।
लेकिन उसका विश्लेषण और निर्णय बुद्धि द्वारा होता है।
Q4: राज योग में “बैठकर ध्यान करना” क्यों कहा जाता है?
A: क्योंकि राजयोग कोई बाह्य कर्म नहीं,
बल्कि भीतर बैठकर आत्मनिरीक्षण और
परमात्मा के साथ संबंध द्वारा संस्कारों को बदलने की प्रक्रिया है।
Q5: राज योग का मनोवैज्ञानिक पहलू क्या है?
A: राज योग इस सिद्धांत पर आधारित है कि
दृश्य और स्मृति हमारी चेतना को प्रभावित करते हैं।
जैसे वर्ड्सवर्थ की कविता में — एक दृश्य की याद भी आनंद देती है।
ठीक ऐसे ही परमात्मा की स्मृति से आत्मा की स्थिति दिव्य बनती है।
Q6: राजयोग में दृश्य और भावना का क्या संबंध है?
A: हमारे मन में जो चित्र होते हैं,
वे ही हमारी भावनाओं को दिशा देते हैं।
इसलिए राजयोग में परमात्मा के दिव्य स्वरूप को ध्यान में रखना जरूरी है,
जिससे हमारी भावना भी पावन हो।
Q7: संस्कार और बुद्धि का क्या संबंध है?
A: जब कोई कार्य बार-बार होता है, तो वो संस्कार बन जाता है।
संस्कार का अर्थ है — ऐसी आंतरिक आदत,
जहाँ बुद्धि को निर्णय नहीं लेना पड़ता,
बल्कि कार्य स्वतः हो जाता है।
राजयोग का अभ्यास भी ऐसा ही दिव्य संस्कार बन सकता है।
Q8: क्या राजयोग कोई धार्मिक साधना है?
A: नहीं, राजयोग कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं,
बल्कि यह ईश्वर द्वारा सिखाया गया आत्मा और परमात्मा का सीधा संबंध है।
यह सभी आत्माओं के लिए समान रूप से लागू होता है।
Q9: राज योग से आत्मा को क्या प्राप्त होता है?
A: आत्मा को शांति, शक्ति, पवित्रता और स्वयं पर राज्य प्राप्त होता है।
इसलिए इसे “राजाओं का भी राजा बनने की विधि” कहा जाता है —
जहाँ आत्मा अपने मन, इंद्रियों और संस्कारों की मालिक बनती है।
Q10: यह राज योग हमें कौन सिखा रहा है?
A: स्वयं परमपिता परमात्मा शिव, इस संगम युग में आकर
पुनः यह भूला हुआ राज योग हमें सिखा रहे हैं,
ताकि हम आत्माएं फिर से स्वराज्य अधिकारी बन सकें।
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