(28)“संगमयुगी स्वराज्य दरबार ही सर्वश्रेष्ठ दरबार”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“आज बापदादा किस दरबार में आये हैं? | स्वराज्य अधिकारी आत्माओं की पहचान |
आज का दिन बेहद दिव्य और शुभ है क्योंकि आज बापदादा उस विशेष दरबार में पधारे हैं, जिसे उन्होंने स्वयं संगमयुगी स्वराज्य दरबार कहा है।
यह कोई साधारण सभा नहीं है – यह है राज्य अधिकारी आत्माओं की दिव्य सभा।
2. बापदादा की दृष्टि में कौन हैं राज्य अधिकारी आत्मायें?
आज बापदादा देख रहे हैं अपने उन बच्चों को:
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जो विश्व राज्य स्थापना में सहयोगी हैं
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जो विशेष शक्तियों से भरपूर हैं
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जो फरिश्ते स्वरूप के ताजधारी और सेवा में तत्पर हैं
हर आत्मा की विशेषता, गुणों की चमक, और पवित्रता की पर्सनालिटी बापदादा के समक्ष स्पष्ट दिखाई दे रही है।
3. स्वराज्य दरबार और भविष्य राज्य दरबार का सम्बन्ध
बापदादा स्पष्ट करते हैं कि:
“आज का संगमयुगी दरबार ही भविष्य जन्मों के राज्य दरबार की नींव है।”
जिसने आज अपना स्थान पाया, वही भविष्य में सम्राट बनेगा।
अब समय है अपने त्रिकालदर्शी यंत्र – दिव्य बुद्धि – से स्वयं को देखने का।
4. आत्म निरीक्षण का यंत्र – दिव्य बुद्धि
बापदादा कहते हैं –
“जैसे साइंस वाले ग्रहों को देखते हैं, वैसे ही तुम दिव्य बुद्धि द्वारा स्वयं का स्थान देख सकते हो।”
क्या मैं अपने सिंहासन पर डबल ताजधारी हूँ?
क्या मेरे अंदर फरिश्तेपन और विश्व सेवा का संतुलन है?
5. सच्ची दिल वाले सच्चे अधिकारधारी
आज की सभा में बापदादा विशेष स्नेही आत्माओं को देख रहे हैं –
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जिन्होंने सच्चे दिल से बाप को अपनाया
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जिन्होंने खोजने के बजाय सच्ची भावना से पा लिया
“सच्ची दिल पर साहब राजी” – इस कहावत को बापदादा ने सत्य कर दिखाया।
6. सेवाधारियों व टीचर्स के लिए निर्देश
बापदादा सेवाधारियों को याद दिलाते हैं:
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सेवा और याद का बैलेन्स ही सच्ची वृद्धि है
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केवल म्यूज़ियम नहीं, शांति कुण्ड भी बनाओ
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लोगों को “सुन लिया” नहीं, “पा लिया” का अनुभव कराओ
7. कुमारियों के लिए विशेष सन्देश
बापदादा ने कहा:
“कुमारी ने सौदा किया – बाबा हम आपके, और बाबा बोले – बच्चे हमारे।”
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गृहस्थ जीवन का मोह नहीं
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शिवशक्ति स्वरूप की स्मृति में रहना
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राइट हैंड बनना, सिर्फ सेवाधारी नहीं
8. शक्ति स्वरूप का अनुभव
सभी को याद दिलाया गया –
“कुमारी नहीं, सेवाधारी नहीं – शिवशक्ति स्वरूप बनो।”
जब धरनी शक्तिशाली होगी तो आत्मायें स्वतः खिंचेंगी।
शिवशक्ति की विशेषता ही सेवा में चमत्कार लाती है।
9. निष्कर्ष (Conclusion):
आज का मिलन है सच्ची दिल वाली आत्माओं का सागर से मिलन।
बापदादा की दृष्टि में वही आत्मायें श्रेष्ठ हैं जो दिल से दिल तक पहुँची हैं।
तो अब समय है आत्म निरीक्षण कर यह तय करने का –
क्या मैं इस स्वराज दरबार में राज्य अधिकारी हूँ?
प्रश्न 1: आज बापदादा किस विशेष दरबार में पधारे हैं?
उत्तर:आज बापदादा संगमयुगी स्वराज्य अधिकारी आत्माओं के दिव्य दरबार में पधारे हैं। यह कोई साधारण सभा नहीं, बल्कि भविष्य के विश्व सम्राटों की नींव रखने वाली सभा है।
प्रश्न 2: बापदादा की दृष्टि में राज्य अधिकारी आत्माएँ कौन हैं?
उत्तर:वे आत्माएँ:
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जो विश्व राज्य स्थापना में सहयोगी हैं,
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विशेष शक्तियों से भरपूर हैं,
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फरिश्ता स्वरूप में सेवा कर रही हैं,
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और जिनकी पवित्रता, गुण और संकल्प की शक्ति बापदादा के समक्ष स्पष्ट दिखाई दे रही है।
प्रश्न 3: संगमयुगी स्वराज्य दरबार का भविष्य के राज्य दरबार से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:बापदादा कहते हैं –
“आज का संगमयुगी दरबार ही भविष्य राज्य दरबार की नींव है।”
जो आज योग, सेवा और श्रीमत द्वारा अपना स्थान बनाते हैं, वही सतयुग में ताज और तख़्त के अधिकारी बनते हैं।
प्रश्न 4: आत्मनिरीक्षण के लिए कौन सा यंत्र दिया गया है?
उत्तर:दिव्य बुद्धि ही वह त्रिकालदर्शी यंत्र है जिससे आत्मा स्वयं के वर्तमान स्वरूप और भविष्य स्थिति को देख सकती है।
जैसे साइंटिस्ट दूर ग्रहों को देखते हैं, वैसे ही योगी आत्मा अपने “स्थान” का निरीक्षण कर सकती है।
प्रश्न 5: सच्चे अधिकार किसे प्राप्त होते हैं?
उत्तर:सच्चे अधिकार उन्हें मिलते हैं:
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जो सच्चे दिल से बाप को अपनाते हैं,
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जिनमें खोज नहीं, समर्पण और भावना होती है।
जैसा कहा जाता है –
“सच्ची दिल पर साहब राज़ी।”
प्रश्न 6: बापदादा सेवाधारियों व टीचर्स को क्या विशेष निर्देश देते हैं?
उत्तर:
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सेवा और याद का संतुलन रखें
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सिर्फ ज्ञान प्रचार नहीं, अनुभव की शांति देना सिखाएँ
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म्यूज़ियम नहीं, शांति कुण्ड बनें
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आत्माओं को “सुन लिया” नहीं, “पा लिया” का अनुभव कराएँ
प्रश्न 7: कुमारियों को बापदादा ने क्या संदेश दिया?
उत्तर:
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“बाबा हम आपके” – यह कुमारी जीवन का महान सौदा है
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गृहस्थ मोह से मुक्त रहकर शिवशक्ति स्मृति में स्थित रहें
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केवल सेवाधारी नहीं, राइट हैंड और समर्थ सहयोगी बनें
प्रश्न 8: शक्ति स्वरूप बनना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:क्योंकि सेवाधारी बनना पर्याप्त नहीं, आत्मा को शिवशक्ति स्वरूप में स्थित होना चाहिए।
जब धरनी (आत्मिक स्थिति) शक्तिशाली होती है, तभी सेवा में चमत्कार होता है और आत्माएँ स्वतः आकर्षित होती हैं।
प्रश्न 9: आज के इस मिलन को बापदादा ने क्या नाम दिया?
उत्तर:यह है सच्ची दिल वाली आत्माओं का सागर से मिलन।
जहाँ बापदादा की दृष्टि में वही आत्मा श्रेष्ठ है जो दिल से दिल तक पहुँची है – न कि सिर्फ ज्ञान में, बल्कि अनुभव में श्रेष्ठ।
प्रश्न 10: आत्मा को स्वयं से क्या पूछना चाहिए?
उत्तर:“क्या मैं संगमयुग के स्वराज्य दरबार में राज्य अधिकारी हूँ?”
अगर हाँ, तो मेरा जीवन, सेवा और स्थिति – तीनों में स्थायीत्व और श्रेष्ठता होनी चाहिए।
Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के आध्यात्मिक ज्ञान और ब्रह्मा बापदादा की वाणी पर आधारित है। इसका उद्देश्य आत्मिक जागृति, आत्मनिरीक्षण और ईश्वरीय सेवा है। इसमें किसी भी व्यक्ति, धर्म या संस्था की आलोचना नहीं की गई है। कृपया इसे एक आध्यात्मिक अध्ययन और आत्म कल्याण के दृष्टिकोण से देखें।
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