(15) BapDada’s unfulfilled hope. Can we fulfill it?

(15)बापदादा की अधूरी आशा।क्या हम उसे पूरा कर सकते हैं?

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

बापदादा की अधूरी आशा – क्या हम उसे पूरा कर सकते हैं?

प्रस्तावना

आज का विषय है – “बापदादा की अधूरी आशा”
यह केवल एक भाव नहीं, बल्कि हमारे पुरुषार्थ और सेवा का मार्गदर्शन है।
(संदर्भ: अव्यक्त मुरली – 18 जनवरी 1969)


अधूरी आशा का अर्थ

क्या परमात्मा की भी कोई आशा अधूरी रह सकती है?
जी हाँ, बापदादा की सबसे बड़ी आशा है –
सभी बच्चों को श्रेष्ठ, अनन्य और साक्षात्कार मूरत बनते देखना।

 लेकिन यह आशा तब अधूरी रह जाती है जब हम अपनी पूरी क्षमता और पुरुषार्थ को नहीं दिखाते।


उदाहरण से समझें

  • शिक्षक और छात्र: जैसे कोई शिक्षक तब तक संतुष्ट नहीं होता जब तक छात्र पूरा अभ्यास और अनुभव न कर ले।

  • खेती: बीज बोने के बाद यदि पानी और सूर्य न दिया जाए तो फसल पूरी नहीं होती।

  • फिल्म निर्माता: अपने सपनों की फिल्म तभी पूर्ण मानी जाती है जब हर दृश्य और किरदार सम्पूर्ण हों।

वैसे ही बापदादा चाहते हैं कि हम सम्पूर्ण, शक्तिशाली और अनुभव-पूर्ण आत्मा बने।


अधूरी आशा क्यों रह जाती है?

  • जब हम केवल सुनने तक सीमित रह जाते हैं, अनुभव नहीं करते।

  • जब साधारण मार्ग पर चलते हैं और तीव्र पुरुषार्थ नहीं करते।

  • जब कमजोरियों को दूर करने में लापरवाही होती है।


अधूरी आशा को पूरा कैसे करें?

  1. साक्षात्कार मूरत बनें – केवल ज्ञान सुनना नहीं, उसे अनुभव करें।

  2. सर्वशक्तिशाली बनें – अपनी कमजोरियों को दूर करें।

  3. अनन्य बनें – विशेष और अद्वितीय कार्य करें जो और कोई न कर सके।

  4. तीव्र पुरुषार्थ करें – न केवल धीरे चलें, बल्कि उड़ें और दूसरों को भी उड़ाएँ।


 निष्कर्ष

बापदादा की अधूरी आशा हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा और लक्ष्य है।
इसे पूरा करना मतलब – आत्मा को श्रेष्ठ, अनन्य और साक्षात्कार मूरत बनाना है।

जब हम इस आशा को पूरा करेंगे तो न केवल अपने लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए आध्यात्मिक परिवर्तन लाएँगे।


प्रश्नोत्तर : बापदादा की अधूरी आशा

प्रश्न 1: बापदादा की अधूरी आशा क्या है?

उत्तर: बापदादा की अधूरी आशा है कि सभी बच्चे श्रेष्ठ, अनन्य और साक्षात्कार मूरत बनें। लेकिन जब हम केवल ज्ञान सुनने तक सीमित रहते हैं और अनुभव नहीं करते, तो यह आशा अधूरी रह जाती है।


प्रश्न 2: आशा अधूरी क्यों रह जाती है?

उत्तर:

  • जब हम साधारण मार्ग पर चलते हैं और तीव्र पुरुषार्थ नहीं करते।

  • जब केवल मुरली सुनते हैं पर अनुभव नहीं करते।

  • जब अपनी कमजोरियों को दूर करने में लापरवाही करते हैं।


प्रश्न 3: “अनन्य” बनने का क्या अर्थ है?

उत्तर: “अनन्य” का अर्थ है – विशेष और अद्वितीय।
जैसे कोई ऐसा कार्य करना जो और कोई न कर सके।
विशेषता वही कहलाती है जो दूसरों से अलग और श्रेष्ठ हो।


प्रश्न 4: हम बापदादा की अधूरी आशा को पूरा कैसे कर सकते हैं?

उत्तर:

  1. केवल सुनना नहीं, बल्कि अनुभव करना।

  2. साक्षात्कार मूरत बनना।

  3. सर्वशक्तिशाली और निर्बलताओं से मुक्त होना।

  4. तीव्र पुरुषार्थ कर स्वयं उड़ना और दूसरों को भी उड़ाना।


प्रश्न 5: बापदादा की अधूरी आशा पूरी होने का क्या परिणाम होगा?

उत्तर: जब हम बापदादा की अधूरी आशा पूरी करेंगे तो –

  • आत्मा श्रेष्ठ और अनुभवपूर्ण बनेगी।

  • सेवा में सफलता मिलेगी।

  • और विश्व-परिवर्तन का कार्य पूरा होगा।


 Disclaimer

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की अव्यक्त मुरली (18 जनवरी 1969) पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन और चिंतन है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक प्रेरणा और आत्म-उन्नति है, न कि किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति की आलोचना।

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