(48)“प्रभु परिवार – सर्वश्रेष्ठ परिवार”14-12-1983
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
प्रभु परिवार का श्रेष्ठ भाग्य | बापदादा की वाणी से गहन रहस्य
प्रस्तावना
आज बापदादा अपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को देख रहे हैं।
यह परिवार कितना ऊँचा है, यह हम सब जानते भी हैं और अनुभव भी करते हैं।
साधारण आत्मा से लेकर पुरुषोत्तम आत्मा बनने का यह रूपांतरण केवल प्रभु परिवार में सम्भव है।
1. प्रभु परिवार का महत्व
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बापदादा ने बच्चों को केवल “श्रेष्ठ आत्मा” नहीं कहा, बल्कि “श्रेष्ठ आत्मा बच्चे” कहा।
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इससे बाप-बच्चे का सम्बन्ध जुड़ा और आपस में भाई-बहन का पवित्र सम्बन्ध भी स्थापित हुआ।
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यही सम्बन्ध “प्रभु परिवार” कहलाता है।
उदाहरण:
जैसे कोई अनाथ बच्चा जब राजा का दत्तक पुत्र बनता है तो वह साधारण से सीधे राजकुमार बन जाता है।
वैसे ही आत्मा प्रभु परिवार में प्रवेश करके दिव्य भाग्यशाली बन जाती है।
2. प्रभु परिवार में प्रवेश का भाग्य
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कभी सोचा था कि स्वयं भगवान बच्चों के साथ साकार रूप में पालना करेंगे?
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यह अनुभव तभी सम्भव हुआ जब हम प्रभु परिवार के बने।
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प्रभु परिवार में आने से धर्म, कर्म और युग – सब बदल गये।
मुरली पॉइंट (18-01-1969):
“प्रभु परिवार में आना अर्थात् जन्म-जन्मान्तर के लिए तकदीर की लकीर श्रेष्ठ बन जाना।”
3. प्रभु परिवार की विशेषताएँ
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प्रभु परिवार पर कभी कोई वार नहीं हो सकता।
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प्रभु परिवार सर्व प्राप्तियों के खजाने से भरपूर है।
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प्रकृति भी प्रभु बच्चों की दासी बन सेवा करती है।
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प्रभु परिवार के चरित्रों का स्मृति-चिह्न आज भी शास्त्रों, भागवत और गीता में गाया जाता है।
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प्रभु परिवार का यादगार सूर्य, चन्द्रमा और सितारों में भी दिखाया गया है।
4. ताज, तख्त और तिलकधारी
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प्रभु परिवार का हर बच्चा तख्तनशीन बनता है।
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जन्मते ही तीन तिलक मिलते हैं:
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स्वराज्य का तिलक
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सेवा का तिलक
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स्नेही और सहयोगीपन का तिलक
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उदाहरण:
किसी राज्य परिवार में सभी बच्चों को तख्त नहीं मिलता, लेकिन प्रभु परिवार में हर बच्चा राजा बनता है।
5. संगमयुग की विशेषता
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केवल संगमयुग पर ही आत्मा को यह अधिकार है कि वह कह सके: “मेरा बाबा”।
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यह “मेरा” कोई सीमित नहीं, बल्कि बेहद का मेरा है।
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यही मेरेपन का अधिकार हमें वर्से का अधिकारी बना देता है।
6. समीप आत्माओं की पहचान
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समीप आत्माएँ सदा बाप के समान हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाली होती हैं।
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दूर वाली आत्माएँ केवल आंशिक अनुभव लेती हैं।
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समीप आत्माएँ पूरे अधिकार का अनुभव करती हैं।
7. मधुबन निवासियों की महिमा
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मधुबन निवासी सदा मायाजीत और निरन्तर योगी हैं।
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उन्हें कोई विशेष योग लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती, क्योंकि वे स्वतः योगी हैं।
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मधुबन सेवाधारी – चैतन्य महातीर्थ पर सेवा कर सबसे भाग्यशाली बनते हैं।
मुरली पॉइंट:
“जो सेवा करता है वही मेवा खाता है। सेवाधारी सो भाग्य अधिकारी।”
निष्कर्ष
प्रभु परिवार में आना केवल एक साधारण बात नहीं है, बल्कि जन्म-जन्मान्तर के लिए स्वराज्य, सेवा और सर्व प्राप्तियों का अधिकारी बनना है।
आज बापदादा हमें यही नशा और स्मृति दिला रहे हैं कि –
“मैं कौन? मैं प्रभु परिवार का तिलकधारी, ताजधारी, तख्तनशीन बच्चा हूँ।”
प्रश्नोत्तर श्रृंखला : प्रभु परिवार की विशेषताएँ
प्रश्न 1: प्रभु परिवार को ऊँचा परिवार क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि यह परिवार स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा स्थापित है। इसमें आने से आत्मा साधारण से पुरुषोत्तम बन जाती है। यहाँ आत्मा को बाप-बच्चे और भाई-बहन के पवित्र सम्बन्ध का अनुभव होता है, जो दुनिया के किसी भी परिवार में सम्भव नहीं।
प्रश्न 2: प्रभु परिवार में आने से आत्मा को कौन-सा श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त होता है?
उत्तर: प्रभु परिवार में आने से आत्मा परमात्मा की सीधी पालना अनुभव करती है, स्वराज्य का तिलक मिलता है और जीवन भर सर्व प्राप्तियों का भण्डार भर जाता है। यही सबसे ऊँचा भाग्य है।
प्रश्न 3: प्रभु परिवार के बच्चे विशेष क्यों हैं?
उत्तर: क्योंकि प्रभु परिवार का हर बच्चा ताजधारी, तख़्तधारी और तिलकधारी है। यहाँ हर आत्मा स्वराज्य की अधिकारी बनती है, जबकि अन्य किसी भी राज्य परिवार में सभी को यह अधिकार नहीं मिलता।
प्रश्न 4: प्रकृति प्रभु परिवार की सेवा क्यों करती है?
उत्तर: क्योंकि प्रभु परिवार की आत्माएँ मास्टर सर्वशक्तिमान बनती हैं। प्रकृति उन्हें श्रेष्ठ समझ जन्म-जन्मान्तर उनके ऊपर चंवर झुलाती रहती है। यही उनका सम्मान और रिगार्ड है।
प्रश्न 5: प्रभु परिवार का यादगार किन रूपों में मनाया जाता है?
उत्तर: प्रभु परिवार का यादगार शास्त्रों में भागवत, गीता, सूर्य-चन्द्रमा और सितारों के रूप में मनाया जाता है। भक्तजन अभी भी प्रभु परिवार की महिमा गीत, पूजन और कीर्तन द्वारा करते रहते हैं।
प्रश्न 6: प्रभु परिवार की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर: प्रभु परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ हर बच्चा स्वराज्य का राजा है। जन्म लेते ही उन्हें तिलक और ताज का अधिकारी बनाया जाता है। यह अधिकार पूरे कल्प में कहीं और नहीं मिलता।
प्रश्न 7: संगमयुग पर “मेरा बाबा” कहने की विशेषता क्या दर्शाती है?
उत्तर: “मेरा बाबा” कहना अर्थात् अधिकारी बनना। संगमयुग पर ही आत्मा को बेहद के मेरेपन का अनुभव होता है, जिससे वह वर्से की अधिकारी बन जाती है और सब कुछ उसका हो जाता है।
Disclaimer
यह वीडियो अव्यक्त मुरली (18 जनवरी 1969) पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान, प्रेरणा और सेवा है।
यह कोई व्यक्तिगत मत, बहस या आलोचना नहीं है।
ओम् शान्ति
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