20-01-1984 “महादानी बनो, वरदानी बनो”
आज बापदादा सर्व बच्चों के प्युरिटी की पर्सनैलिटी और सर्व प्राप्ति स्वरुप की रॉयल्टी, रुहानी स्मृति-स्वरुप की रीयल्टी देख रहे हैं। सभी बच्चों को प्युरिटी की पर्सनैलिटी से चमकते हुए लाइट के क्राउनधारी देख रहे हैं। एक तरफ सर्व प्राप्ति स्वरुप बच्चों का संगठन देख रहे हैं। दूसरी तरफ विश्व की अप्राप्त आत्मायें जो सदा अल्पकाल की प्राप्ति होते हुए भी प्राप्ति स्वरुप नहीं हैं। सन्तुष्ट नहीं हैं। सदा कुछ न कुछ पाने की इच्छा बनी रहती है। सदा यह चाहिए, यह चाहिए की धुन लगी हुई है। भाग दौड़ कर रहे हैं। प्यासे बन यहां वहां तन से, मन से, धन से, जन से कुछ प्राप्त हो जाए, इसी इच्छा से भटक रहे हैं। विशेष तीन बातों की तरफ इच्छा रख अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहे हैं। एक तो शक्ति चाहिए। तन की, धन की, पद की, बुद्धि की। और दूसरा भक्ति चाहिए। दो घड़ी सच्ची दिल से भक्ति कर पावें, ऐसे भक्ति की इच्छा भी भक्त आत्मायें रखती हैं। तीसरा, अनेक आत्मायें द्वापर से दु:ख और पुकार की दुनिया देख-देख दु:ख और अशान्ति के कारण अल्पकाल की प्राप्ति मृगतृष्णा समझते हुए दु:ख की दुनिया से, इस विकारी दु:खों के बन्धनों से मुक्ति चाहती हैं। भक्त, भक्ति चाहते हैं और अन्य कोई शक्ति चाहते, कोई मुक्ति चाहते। ऐसी असन्तुष्ट आत्माओं को सुख और शान्ति की, पवित्रता की, ज्ञान की अंचली देने वाले वा प्राप्ति कराने वाली सन्तुष्ट मणियां कौन हैं? आप हो? रहमदिल बाप के बच्चे जैसे बाप को रहम आता है कि दाता के बच्चे और अल्पकाल की प्राप्ति के लिए चाहिए-चाहिए-चाहिए के नारे लगा रहे हैं। ऐसे आप मास्टर दाता प्राप्ति स्वरुप बच्चों को विश्व की आत्माओं प्रति रहम आता है, उमंग आता है कि हमारे भाई अल्पकाल की इच्छा में कितने भटक रहे हैं? दाता के बच्चे अपने भाईयों के ऊपर दया और रहम की दृष्टि डालो। महादानी बनो, वरदानी बनो। चमकती हुई सन्तुष्ट मणियां बन सर्व को सन्तोष दो। आजकल सन्तोषी माँ को बहुत पुकारते हैं क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्ति का अभाव है। सन्तुष्टता के आधार पर स्थूल धन में भी बरक्कत अनुभव करते हैं। सन्तुष्टता वाले का धन दो रुपया भी दो लाख समान है। करोड़पति हो लेकिन सन्तुष्टता नहीं तो करोड़ करोड़ नहीं, इच्छाओं के भिखारी हैं। इच्छा अर्थात् परेशानी। इच्छा कभी अच्छा बना नहीं सकती क्योंकि विनाशी इच्छा पूर्ण होने के साथ-साथ और अनेक इच्छाओं को जन्म देती हैं। इसलिए इच्छाओं के चक्र में मकड़ी की जाल मुआफिक फँस जाते हैं। छूटने चाहते भी छूट नहीं सकते। इसलिए ऐसे जाल में फँसे हुए अपने भाईयों को विनाशी इच्छा मात्रम् अविद्या बनाओ। परेशान अर्थात् शान से परे। हम सभी ईश्वरीय बच्चे हैं, दाता के बच्चे हैं, सर्व प्राप्तियां जन्म सिद्ध अधिकार हैं। इस शान से परे होने के कारण परेशान हैं। ऐसी आत्माओं को अपना श्रेष्ठ शान बताओ। समझा क्या करना है?
सभी डबल विदेशी बच्चे अपने-अपने स्थानों पर जा रहे हैं ना। क्या जाकर करेंगे? महादानी-वरदानी बन सर्व आत्माओं की सुख-शान्ति की प्राप्तियों द्वारा झोली भर देना। यही संकल्प लेकर जा रहे हो ना। बापदादा बच्चों की हिम्मत और स्नेह को देख बच्चों को सदा स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा स्नेह देते हैं। दूर देश वाले पहचान और प्राप्ति से समीप बन गये और देश वाले पहचान और प्राप्ति से दूर रहे गये हैं। इसलिए सदा डबल विदेशी बच्चे प्राप्ति स्वरुप की दृढ़ता और सन्तुष्टता के उमंग में आगे बढ़ते चलो। भाग्य विधाता सर्व प्राप्तियों का दाता सदा आपके साथ है। अच्छा।
ऐसे रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चों को, सर्व को सन्तुष्टता के खजाने से सम्पन्न बनाने वाले सन्तुष्ट मणी बच्चों को, सदा प्राप्ति स्वरुप बन सर्व को प्राप्ति कराने की शुभ भावना में रहने वाले शुभ चिन्तक बच्चों को, सर्व को विनाशी इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनाने वाले, सर्व समर्थ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
विदेशी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले:-
इस ग्रुप में किसी को भी कहें कि यहाँ बैठ जाओ तो एवररेडी हो? कोई का पीछे का कोई बन्धन तो नहीं है? ऐसे भी होगा, जब समय आयेगा सभी की टिकेट कैन्सिल कराके यहाँ बिठा देंगे। ऐसे समय पर कोई सैलवेशन भी नहीं लेंगे। सभी को याद है – जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो वह 4 दिन कैसे बिताये? मकान बड़ा था? खाना बनाया था? फिर 4 दिन कैसे बीता था! विनाश के दिन भी ऐसे ही बीत जायेंगे। उस समय लवलीन थे ना। ऐसे ही लवलीन स्थिति में समाप्ति होगी। फिर यहाँ की पहाड़ियों पर रहकर तपस्या करेंगे। तीसरी आंख से सारा विनाश देखेंगे। ऐसे निश्चिंत हो ना। कोई चिंता नहीं। न मकान की, न परिवार की, न काम की। सदा निश्चिंत, क्या होगा यह क्वेश्चन नहीं। जो होगा अच्छा होगा। इसको कहा जाता है निश्चिंत। सेन्टर का मकान याद आ जाए, बैंक बैलेन्स याद आ जाए… कुछ भी याद न आये क्योंकि आपका सच्चा धन है ना। चाहे मकान में लगा है, चाहे बैंक में रहा हुआ है। लेकिन आपका तो पदमगुणा होकर आपको मिलेगा। आपने तो इनश्योर कर लिया ना। मिट्टी, मिट्टी हो जायेगी और आपका हक आपको पदमगुणा होकर मिल जायेगा और क्या चाहिए। सच्चा धन कभी भी वेस्ट नहीं जा सकता। समझा! ऐसे सदा निश्चिंत रहो। पता नहीं पीछे सेन्टर का क्या होगा? घर का क्या होगा? यह क्वेश्चन नहीं। सफल हुआ ही पड़ा है। सफल होगा या नहीं, यह क्वेश्चन नहीं। पहले से ही विल कर दिया है ना। जैसे कोई विल करके जाता है, पहले से ही निश्चिन्त होता है ना। तो आप सबने अपना हर श्वांस, संकल्प, सेकेण्ड, सम्पत्ति, शरीर सब विल कर दिया है ना। विल की हुई चीज कभी भी स्व के प्रति यूज नहीं कर सकते।
बिना श्रीमत के एक सेकेण्ड या एक पैसा भी यूज़ नहीं कर सकते। परमात्मा का सब हो गया तो आत्मायें अपने प्रति या आत्माओं के प्रति यूज़ नहीं कर सकती हैं। डायरेक्शन प्रमाण कर सकती हैं। नहीं तो अमानत में ख्यानत हो जायेगी ना। थोड़ा भी धन बिना डायरेक्शन के कहाँ भी कार्य में लगाया, तो वह धन आपको भी उस तरफ खींच लेगा। धन, मन को खींच लेगा। और मन तन को खींच लेगा और परेशान करेगा। तो विल कर लिया है ना। डायरेक्शन प्रमाण करते हो तो कोई भी पाप नहीं। कोई बोझ नहीं। उसके लिए फ्री हो। डायरेक्शन तो समझते हो ना। सब डायरेक्शन मिले हुए हैं! क्लीयर हैं ना! कभी मूँझते तो नहीं? इस कार्य में यह करें या नहीं करें, ऐसे मूँझते तो नहीं? जहाँ भी कुछ मूँझ हो तो जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों से वेरीफाय कराओ या फिर स्व स्थिति शक्तिशाली है तो अमृतवेले की टचिंग सदा यथार्थ होगी। अमृतवेले मन का भाव मिक्स करके नहीं बैठो लेकिन प्लेन बुद्धि होकर बैठो फिर टचिंग यथार्थ होगी।
कई बच्चे जब कोई प्रॉब्लम आती है तो अपने ही मन का भाव भर करके बैठते हैं। करना तो यही चहिए, होना तो यही चाहिए, मेरे विचार से यह ठीक है… तो टचिंग भी यथार्थ नहीं होती। अपने मन के संकल्प का ही रेसपान्ड में आता है। इसलिए कहाँ न कहाँ सफलता नहीं होती। फिर मूंझते हैं कि अमृतवेले डायरेक्शन तो यही मिला था फिर पता नहीं ऐसा क्यों हुआ, सफलता क्यों नहीं मिली! लेकिन मन का भाव जो मिक्स किया, उस भाव का ही फल मिल जाता है। मनमत का फल क्या मिलेगा? मूंझेगा ना! इसको कहा जाता है अपने मन के संकल्प को भी विल करना। मेरा संकल्प यह कहता है लेकिन बाबा क्या कहता।