(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अव्यक्त मुरली-(14) 01-03-1984 “एक का हिसाब”
01-03-1984 “एक का हिसाब”
आज सर्व सहजयोगी, सदा सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। सर्व तरफ से आये हुए बाप के बच्चे – एक बल एक भरोसा, एक मत, एकरस, एक ही के गुण गाने वाले, एक ही के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले, एक के साथ सदा रहने वाले, एक ही प्रभु परिवार के एक लक्ष्य, एक ही लक्षण, सर्व को एक ही शुभ और श्रेष्ठ भावना से देखने वाले, सर्व को एक ही श्रेष्ठ शुभ कामना से सदा ऊंचा उड़ाने वाले, एक ही संसार, एक ही संसार में सर्व प्राप्ति का अनुभव करने वाले, आंख खोलते ही एक बाबा! हर एक काम करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते, कर्मयोग वा सेवा का कार्य समाप्त करते एक के लव में लीन हो जाते, एक के साथ लवलीन बन जाते अर्थात् एक के स्नेह रुपी गोदी में समा जाते। दिन रात एक ही के साथ दिनचर्या बिताते। सेवा के सम्बन्ध में आते, परिवार के सम्बन्ध में आते फिर भी अनेक में एक देखते। एक बाप का परिवार है, एक बाप ने सेवा प्रति निमित्त बनाया है। इसी विधि से अनेकों के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते, अनेक में भी एक देखते। ब्राह्मण जीवन में, हीरो पार्टधारी बनने की जीवन में, पास विद् ऑनर बनने की जीवन में, सिर्फ सीखना है तो क्या? एक का हिसाब। बस एक को जाना तो सब कुछ जाना। सब कुछ पाया। एक लिखना, सीखना, याद करना, सबसे सरल सहज है।
वैसे भी भारत में कहावत है तीन-पाँच की बातें नहीं करो। एक की बात करो। तीन-पाँच की बातें मुश्किल होती हैं, एक को याद करना, एक को जानना अति सहज है। तो यहाँ क्या सीखते हो? एक ही सीखते हो ना। एक में ही पदम समाए हुए हैं। इसीलिए बापदादा सहज रास्ता एक का ही बताते हैं। एक का महत्व जानो और महान बनो। सारा विस्तार एक में समाया हुआ है। सब ज्ञान आ गया ना। डबल फारेनर्स तो एक को अच्छी तरह जान गये हैं ना। अच्छा, आज सिर्फ आये हुए बच्चों को रिगार्ड देने के लिए, स्वागत करने के लिए एक का हिसाब सुना दिया।
बापदादा आज सिर्फ मिलने के लिए आये हैं। फिर भी सिकीलधे बच्चे जो आज वा कल आये हैं उन्हों के निमित्त कुछ न कुछ सुना लिया। बापदादा जानते हैं कि स्नेह के कारण कैसे मेहनत कर आने के साधन जुटाते हैं। मेहनत के ऊपर बाप की मुहब्बत पदमगुणा बच्चों के साथ है। इसीलिए बाप भी स्नेह और गोल्डन वर्शन्स से सभी बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। अच्छा।
सर्व चारों ओर के स्नेह में लवलीन बच्चों को, सर्व लगन में मगन रहने वाले मन के मीत बच्चों को, सदा एक बाप के गीत गाने वाले बच्चों को, सदा प्रीति की रीति निभाने वाले साथी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात –
जर्मन ग्रुप से:- सभी अपने को सदा श्रेष्ठ भाग्यवान, श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? सदा यह खुशी रहती है कि हम ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे हैं? क्योंकि जैसा बाप वैसे बच्चे हैं ना। बाप सदा खुशी का भण्डार है तो बच्चे भी बाप समान होंगे ना। कभी भूलना, कभी याद रहना, इससे जीवन का मजा नहीं आ सकता। जब एकरस स्थिति हो तब जीवन में मजा है। कभी नीचे होंगे, कभी ऊपर तो थक जायेंगे। वैसे भी किसको कहो बार-बार नीचे उतरो ऊपर चढ़ो तो थक जायेंगे ना। आप सब तो सदा बाप के साथ-साथ रहने वाले बाप समान आत्मायें हो ना! सेवा में सभी स्वयं से सन्तुष्ट हो? एक-दो से सन्तुष्ट हो? जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हैं उनको बापदादा सदा सन्तुष्ट मणियां कहते हैं। ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा ताज में चमकती हैं। ताज की मणियाँ अर्थात् सदा ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाली। ऐसे ही अविनाशी भव! अच्छा।
इस क्लास में आप में से सबसे नॉलेजफुल, ज्ञानी तू आत्मा कौन है? (सभी) जैसा लक्ष्य होता है वैसा नम्बर आ ही जाता है। नम्बरवन का लक्ष्य है तो वह लक्षण आते रहेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों को देख खुश होते हैं – कैसे लगन से बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं। एक-एक रत्न बाप के आगे सदा ही महान है। बिना बाप की याद और सेवा के सारे दिन में चैन आता है कि बस वही लगन लगी रहती है? रिजल्ट अच्छी है जर्मनी की। रत्न भी अच्छे-अच्छे हैं और सेवा में जगह-जगह विस्तार भी अच्छा किया है, इसको कहा जाता है बाप समान रहमदिल आत्मायें। अभी हिन्दी के अक्षर याद कर लो – थोड़ा-थोडा तो हिन्दी सीखेंगे ना। जब यहाँ थोड़े बहुत संस्कार डालेंगे तब तो सतयुग में भी बोल सकेंगे। वहाँ तो यह आपकी गिटपिट की भाषा होगी नहीं। हिन्दी न समझने कारण डायरेक्ट तो बाप का नहीं सुनते हो ना। अगर सीख जायेंगे तो डायरेक्ट सुनेंगे। बापदादा समझते हैं – बच्चे डायरेक्ट सुनें, डायरेक्ट सुनने से और मजा आयेगा। अच्छा, सेवा के लिए जितना भी आगे बढ़ो उतना बहुत अच्छा है। सर्विस के लिए किसी को मना नहीं है, जितने सेन्टर चाहो खोल सकते हो सिर्फ डायरेक्शन प्रमाण। उसमें सहज सफलता हो जाती है। अच्छा।
पोलैण्ड ग्रुप से:- बापदादा को खुशी है कि सभी बच्चे अपने स्वीट होम में पहुँच गये। आप सबको भी यह खुशी है ना कि हम ऐसे महान तीर्थ पर पहुँच गये। श्रेष्ठ जीवन तो अभ्यास करते-करते बन ही जायेगी लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य पा लिया जो इस स्थान पर अपने सच्चे ईश्वरीय स्नेह वाले परिवार में पहुँच गये। इतना खर्च करके आये हो, इतनी मेहनत से आये हो, अभी समझते हो कि खर्चा और मेहनत सफल हुई। ऐसे तो नहीं समझते हो पता नहीं कहाँ पहुँच गये! कितना परिवार के और बाप के प्यारे हो। बापदादा सदा बच्चों की विशेषता को देखते हैं। आप लोग अपनी विशेषता को जानते हो? यह विशेषता तो है – जो लगन से इतना दूर से यहाँ पहुँचे। अभी सदा अपने ईश्वरीय परिवार को और इस ईश्वरीय विधि राजयोग को सदा साथ में रखते रहना। अभी वहाँ जाकर राजयोग केन्द्र अच्छी तरह से आगे बढ़ाना क्योंकि कई ऐसी आत्मायें हैं जो सच्चे शान्ति, सच्चे प्रेम और सच्चे सुख की प्यासी हैं। उन्हों को रास्ता तो बतायेंगे ना। वैसे भी कोई पानी का प्यासा हो, अगर समय पर कोई उसे पानी पिलाता है तो जीवन भर वह उसके गुण गाता रहता है। तो आप जन्म-जन्मान्तर के लिए आत्माओं की सुख-शानति की प्यास बुझाना, इससे पुण्य आत्मा बन जायेंगे। आपकी खुशी देखकर सब खुश हो जायेंगे। खुशी ही सेवा का साधन है।
इस महान तीर्थ स्थान पर पहुँचने से सभी तीर्थ इसमें समाये हुए हैं। इस महान तीर्थ पर ज्ञान स्नान करो और जो कुछ कमजोरी है उसका दान करो। तीर्थ पर कुछ छोड़ना भी होता है। क्या छोड़ेंगे? जिस बात में आप परेशान होते हो वही छोड़ना है। बस। तब महान तीर्थ सफल हो जाता है। यही दान करो और इसी दान से पुण्य आत्मा बन जायेंगे क्योंकि बुराई छोड़ना अर्थात् अच्छाई धारण करना। जब अवगुण छोड़ेंगे, गुण धारण करेंगे तो पुण्य आत्मा हो जायेंगे। यही है इस महान तीर्थ की सफलता। महान तीर्थ पर आये यह तो बहुत अच्छा, आना अर्थात् भाग्यवान की लिस्ट में हो जाना, इतनी शक्ति है इस महान तीर्थ की। लेकिन आगे क्या करना है? एक है भाग्यवान बनना, दूसरा है सौभाग्यवान बनना और उसके आगे है पदमापदम भाग्यवान बनना। जितना संग करते रहेंगे, गुणों की धारणा करते रहेंगे, उतना पदमापदम भाग्यवान बनते जायेंगे। अच्छा।
सेवाधारियों से:- यज्ञ सेवा का भाग्य मिलना, यह भी बहुत बड़े भाग्य की निशानी है। चाहे भाषण नहीं करो, कोर्स नहीं कराओ लेकिन सेवा की मार्क्स तो मिलेंगी ना। इसमें भी पास हो जायेंगे। हर सब्जेक्ट की अपनी-अपनी मार्क्स है। ऐसे नहीं समझो कि हम भाषण नहीं कर सकते तो पीछे हैं। सेवाधारी सदा ही वर्तमान और भविष्य फल के अधिकारी हैं। खुशी होती है ना! माताओं को मन का नाचना आता है और कुछ भी नहीं करो, सिर्फ खुशी में मन से नाचती रहो तो भी बहुत सेवा हो जायेगी।
अध्याय – ‘एक का हिसाब’ : जीवन का सबसे आसान और महान सूत्र
उपशीर्षक 1: एक का हिसाब क्या है?
“बस एक को जानना, एक को मानना, एक को याद करना”—यही है एक का हिसाब।
एक = परमपिता परमात्मा शिव बाबा
जब हर कार्य, हर सोच, हर संबंध सिर्फ एक बाबा से जुड़ जाए, तो जीवन सहज-सहज हो जाता है।
Murli Reference (Avyakt Murli – 25 Nov 1983)
“सब कुछ सीखना है तो एक का हिसाब सीखो। एक को जाना तो सब कुछ जाना।”
उदाहरण:
जिस तरह मोबाइल में सिर्फ एक नेटवर्क सिग्नल आ जाए तो पूरा फोन काम करने लगता है। उसी प्रकार, जीवन में सिर्फ एक बाबा का सिग्नल जुड़ जाए, तो मन, बुद्धि, संबंध, सेवा – सब कुछ स्वतः सही हो जाता है।
उपशीर्षक 2: क्यों कहा – अनेक में भी ‘एक’ को देखो?
हम सेवा करते हैं, लोगों से मिलते हैं, परिवार में रहते हैं। पर बुद्धि का केंद्र होना चाहिए – “हम सब एक ही परमपिता के बच्चे हैं।”
Murli Note – 12 सितंबर 2018 (Sakar Murli)
“जिसकी याद, जिस पर भरोसा, जिस पर प्रेम—all should be One Baba.”
उदाहरण:
जैसे सूरज एक है पर उसकी किरणें लाखों हैं। उसी तरह आत्माएँ अनेक हैं, लेकिन पिता एक ही है।
उपशीर्षक 3: एकरस स्थिति – असली आनंद का रहस्य
बापदादा कहते हैं –
“कभी याद, कभी भूल – इससे जीवन में मज़ा नहीं आता। स्थिरता (एकरसता) ही आनंद का द्वार है।”
(Avyakt Murli – 5 Jan 1984)
अनुभविक उदाहरण
रेल का पंखा अगर कभी तेज़, कभी धीमा हो तो मन विचलित होता है। यदि वह स्थिर गति से चले तो शांति मिलती है। जीवन भी वैसा ही होना चाहिए—एकरस।
उपशीर्षक 4: एक को याद करने का अभ्यास कैसे करें?
सरल तीन कदम
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सुबह उठते ही सोचें: “अभी बाबा मेरे साथ है।”
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हर कार्य से पहले निमंत्रण: “बाबा, तुम साथ हो।”
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रात को नींद से पहले: “आज का हिसाब-किताब बाबा को दे रहा हूँ।”
Avyakt Murli (22 Feb 1980)
“आंख खुलते ही एक बाबा; कार्य करते एक साथी बाबा; दिन समाप्त करते लवलीन बाबा में।”
उपशीर्षक 5: जर्मन और पोलैंड ग्रुप के लिए बापदादा का विशेष सन्देश
जर्मन ग्रुप को कहा (Murli – Date Mentioned)
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“जो स्वयं, सेवा और सर्व से सन्तुष्ट हैं, वे ‘सन्तुष्ट मणियाँ’ हैं।”
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“हिन्दी सीखो ताकि बाबा का ज्ञान डाइरेक्ट सुन सको।”
पोलैंड ग्रुप को कहा:
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“तीर्थ का अर्थ है – यहाँ आकर कमजोरी छोड़ दो।”
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“तीर्थ पर कुछ प्राप्त नहीं, बल्कि कुछ छोड़ना होता है – बुराई, डर, अशांत विचार।”
उपशीर्षक 6: वास्तविक तीर्थ क्या है?
Murli Note – Avyakt Murli (18 March 1982)
“तीर्थ पर ज्ञान स्नान करो और कमजोरी का दान करो। जो छोड़ दे, वही पुण्यात्मा कहलाती है।”
उदाहरण:
जैसे कोई गंगा स्नान करने जाए और पाप छोड़कर आए, तो वही यात्रा सफल मानी जाती है। वैसे ही पांडव भवन या मधुबन में आकर केवल फोटो खिंचवाना नहीं – बल्कि कोई वृत्ति छोड़कर आना सच्चा तीर्थ है।
उपशीर्षक 7: एक का हिसाब क्यों सबसे आसान है?
✔ तीन-पाँच की बातें कठिन हैं।
✔ एक को याद करना सबसे सहज है।
✔ एक में पदमगुणा समाए हुए हैं।
“एक को पकड़ो, तो हजारों उलझनें समाप्त हो जाएंगी।” (Murli – 15 May 1970)
समापन (Conclusion):
यदि मन पूछे – आध्यात्मिक जीवन में क्या सीखना है? उत्तर सिर्फ एक है – “एक का हिसाब।”
एक बल, एक भरोसा, एक बाबा – यही है ब्रह्माकुमारी जीवन का मूल सिद्धांत।
डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आत्मिक शिक्षाओं, 1 मार्च 1984 की अव्यक्त मुरली तथा व्यक्तिगत आध्यात्मिक चिंतन पर आधारित है। इस सामग्री का उद्देश्य किसी भी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है। यह केवल आत्म जागृति, ईश्वरीय प्रेम और सकारात्मक जीवन-मूल्यों के प्रसार हेतु प्रस्तुत है। दर्शकों से निवेदन है कि इसे आध्यात्मिक दृष्टि से ग्रहण करें।
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