(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अव्यक्त मुरली-(01)”12-01-1984 “सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो”
12-01-1984 “सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो”
आज आवाज से परे रहने वाले बाप आवाज की दुनिया में आये हैं सभी बच्चों को आवाज से परे स्थिति में ले जाने के लिए क्योंकि आवाज से परे स्थिति में अति सुख और शान्ति की अनुभूति होती है। आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न स्थिति में अनुभव करते हैं। आज के मानव आवाज से परे सच्ची शान्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते रहते हैं। कितने साधन अपनाते रहते हैं। लेकिन आप सभी शान्ति के सागर के बच्चे शान्त स्वरुप, मास्टर शान्ति के सागर हो। सेकेण्ड में अपने शान्ति स्वरुप की स्थिति में स्थित हो जाते हो। ऐसे अनुभवी हो ना। सेकेण्ड में आवाज में आना और सेकेण्ड में आवाज से परे स्वधर्म में स्थित हो जाना – ऐसी प्रैक्टिस है? इन कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना! जब चाहो कर्म में आओ, जब चाहो कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ। इसको कहा जाता है अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी कर्म द्वारा सर्व के प्यारे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर, रुलिंग पावर अनुभव होती है ना। जिन बातों को दुनिया के मानव मुश्किल कहते वह मुश्किल बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए सहज नहीं लेकिन अति सहज हैं क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो। दुनिया के मानव तो समझते यह कैसे होगा! इसी उलझन में बुद्धि द्वारा, शरीर द्वारा भटकते रहते हैं और आप क्या कहेंगे? कैसे होगा, यह संकल्प कभी आ सकता है? कैसे अर्थात् क्वेश्चन मार्क। तो कैसे के बजाए फिर से यही आवाज निकलता कि ऐसे होता है। ऐसे अर्थात् फुलस्टाप। क्वेश्चन मार्क बदलकर फुलस्टाप लग गया है ना। कल क्या थे और आज क्या हो! महान अन्तर है ना। समझते हो कि महान अन्तर हो गया। कल कहते थे ओ गॉड और आज ओ के बजाए ओहो कहते हो। ओहो मीठे बाबा! गॉड नहीं लेकिन बाबा। दूर से नजदीक में बाप मिल गया। आपने बाप को ढूँढा तो बाप ने भी आप बच्चों को कोने-कोने से ढूँढ लिया। लेकिन बाप को मेहनत नहीं करनी पड़ी। आपको बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि बाप को परिचय था आपको परिचय नहीं था। आप सभी भी स्नेह के गीत गाते हो। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के गीत गाते हैं। सबसे बड़े ते बड़ा स्नेह का गीत रोज़ बापदादा गाते हैं। जिस गीत को सुन-सुन सभी स्नेही बच्चों का मन खुशी में नाचता रहता है। रोज़ गीत गाते इसीलिए यादगार में भी गीत का महत्व श्रेष्ठ रहा है। बाप के गीत का यादगार – “गीता” बना दी। और बच्चों के गीत सुन खुशी में नाचने और खुशी में, आनन्द में, सुख में भिन्न-भिन्न अनुभवों के यादगार – भागवत बना दिया है। तो दोनों का यादगार हो गया ना। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो वा अनुभव करते हो! समझने वाले अनेक होते हैं लेकिन अनुभव करने वाले कोटों में कोई होते हैं। अनुभवी मूर्त बाप समान सम्पन्न अनुभवी मूर्त हैं। हर बोल का, हर सम्बन्ध का अनुभव हो। सम्बन्ध द्वारा भिन्न-भिन्न प्राप्ति का अनुभव हो। हर शक्ति का अनुभव हो। हर गुण का अनुभव हो। जब चाहे तब गुणों के गहने को धारण कर सकते हो। यह सर्वगुण वैराइटी ज्वैलरी है। जैसा समय, जैसा स्थान हो वैसे गुणों के गहनों से स्वयं को सजा सकते हो। न सिर्फ स्वयं को लेकिन औरों को भी गुणों का दान दे सकते हो। ज्ञान दान के साथ-साथ गुण दान का भी बहुत महत्व है। गुणों की महादानी आत्मा कभी भी किसी के अवगुण को देखते हुए, धारण नहीं करेगी। किसी के अवगुण के संगदोष में नहीं आयेगी और ही गुणदान द्वारा दूसरे का अवगुण, गुण में परिवर्तन कर देंगी। जैसे धन के भिखारी को धन दे सम्पन्न बना देते हैं, ऐसे अवगुण वाले को गुण दान दे, गुणवान मूर्त बना दो। जैसे योग दान, शक्तियों का दान, सेवा का दान प्रसिद्ध है, तो गुण दान भी विशेष दान है। गुणदान द्वारा आत्मा में उमंग-उत्साह की झलक अनुभव करा सकते हो। तो ऐसे सर्व महादानी मूर्त अर्थात् अनुभवी मूर्त बने हो?
आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों की विशेषता तो बापदादा ने सुनाई है। फिर भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों को दूरांदेशी बुद्धि वाले बच्चे कहते हैं। दूर होते भी बुद्धि द्वारा बाप को पहचान अधिकारी बन गये हैं। ऐसे दूरांदेशी बुद्धि वाले बच्चों पर विशेषता प्रमाण बापदादा का विशेष स्नेह है। सभी परवाने बन अपने-अपने देशों से उड़ते-उड़ते शमा के पास पहुँच गये हो ना। शमा पर जलने वाले हो वा कोई सिर्फ चक्र लगाने वाले भी हो। जलना अर्थात् समान बनना। तो जलने वाले हो वा चक्र लगाने वाले हो? ज्यादा संख्या कौन-सी है? जो भी हो, जैसे भी हो लेकिन बापदादा को पसन्द हो। फिर भी देखो कितनी मेहनत कर पहुँच तो गये ना। इसलिए सदा अपने को समझो कि बाप के हैं और सदा ही बाप के रहेंगे। यह दृढ़ संकल्प सदा ही आगे बढ़ाता रहेगा। ज्यादा कमजोरियों को सोचो नहीं। कमजोरियों को सोचते-सोचते भी और कमजोर हो जाते हैं। मैं बीमार हूँ, बीमार हूँ, कहने से डबल बीमार हो जाते हैं। मैं इतनी शक्तिशाली नहीं हूँ, मेरा योग इतना अच्छा नहीं है, मेरी सेवा इतनी अच्छी नहीं है। मैं बाबा की प्यारी हूँ वा नहीं हूँ। पता नहीं आगे चल सकूँगी वा नहीं – यह सोच भी ज्यादा कमजोर बनाता है। पहले माया हल्के रुप में ट्रायल करती है और आप उसको बड़ा रुप कर देते हो तो माया को आपका साथी बनने का चाँस मिल जाता है। वह सिर्फ ट्रायल करती है लेकिन उसकी ट्रायल को न जानकर समझते हो कि मैं हूँ ही ऐसी, इसलिए वह भी साथी बन जाती है। कमजोरों की साथी माया है। कभी भी कमजोर संकल्पों को बार-बार न वर्णन करो, न सोचो। बार-बार सोचने से भी स्वरुप बन जाते हैं। सदा यह सोचो कि मैं बाबा का नहीं बनूँगा तो और कौन बनेगा! मैं ही था वा मैं ही थी। मैं ही हूँ। कल्प-कल्प मैं ही बनूँगी – यह संकल्प तन्दुरुस्त, मायाजीत बना देंगे। कमजोरी पीछे आती है। आप उसको न पहचान सत्य समझ लेते हो तो माया अपना बना देती है। जैसे सीता का ड्रामा दिखाते हो ना। भिखारी था नहीं लेकिन सीता ने भिखारी समझ लिया। वह तो सिर्फ ट्रायल करने आया और उसे सच समझ लिया। इसलिए उसने उनका भोलापन देख अपना बना लिया। यह भी व्यर्थ संकल्प, कमजोर संकल्प माया का रुप बन आते हैं, ट्रायल करने के लिए। लेकिन भोले बन जाते हो इसलिए वह अपना बना देती है। “मैं हूँ ही ऐसी”, ऐसे करते-करते माया अपना स्थान बना देती है। ऐसे कमजोर हो नहीं। समर्थ हो। मास्टर सर्वशक्तिवान हो। बापदादा के चुने हुए कोटों में कोई हो। ऐसे कमजोर कैसे हो सकते! यह सोचना ही माया को स्थान देना है। स्थान देकर फिर-फिर यह कहते हो – अब निकालो। स्थान देते ही क्यों हो। कोई कमजोर नहीं। सब मास्टर हो। सदा बहादुर, सदा के महावीर हो। यही श्रेष्ठ संकल्प रखो। सदा बाप के साथी हैं। जहाँ बाप के साथी हैं वहाँ माया साथी बना नहीं सकती। मधुबन में किसलिए आये हो? (माया को छोड़ने) मधुबन महायज्ञ है ना। तो यज्ञ में स्वाहा करने आये हो लेकिन बापदादा कहते हैं सभी अपनी विजय अष्टमी मनाने आये हो। विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो। विजयी बन करके विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो ना। जी हाँ, कॉपी करने में सब होशियार हैं। यह भी गुण है। यहाँ भी बाप को कॉपी ही करना है। फॉलो करना अर्थात् कॉपी करना। यह तो सहज है ना। आप अपना देश छोड़कर आते हो तो बापदादा भी अपना देश छोड़कर आते हैं।
बापदादा की प्रवृत्ति नहीं है क्या! सारे विश्व के कार्य को छोड़ यहाँ आते हैं। विश्व की प्रवृत्ति बाप की प्रवृत्ति है ना। बाप के लिए तो सभी बच्चे हैं। अंचली तो सबको देनी है। वर्सा नहीं देते हैं, अंचली तो देते हैं ना! अच्छा।
सर्व श्रेष्ठ अधिकारी बाप समान सदा महादानी, वरदानी आत्माओं को, सदा महान अन्तर द्वारा स्वयं को महान अनुभव करने वाले, सदा माया को पहचान मायाजीत, सर्व शक्ति स्वरुप श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के देश-विदेश के, लगन में मगन रहने वाले, बाप से रुह-रुहान करने वाले, बाप से मिलन मनाने वाले, यादप्यार देने और पत्रों द्वारा भेजने वाले, कुछ मीठे-मीठे समाचार और स्व के स्नेह के पुरुषार्थ के समाचार देने वाले सर्व बच्चों को बापदादा सम्मुख देख याद-प्यार दे रहे हैं। साथ-साथ परवाने बन शमा के ऊपर जलने वाले अर्थात् हर कदम में बाप समान बनने वाले बच्चों को स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।
“सदा समर्थ बनो और हर परिस्थिति में बाप के समान अनुभव करो | आवाज से परे स्थिति का रहस्य”
अध्याय: सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो
मुरली दिनांक: 05-12-1983
1. आवाज से परे स्थिति: शान्ति और सुख का अनुभव
मुख्य संदेश:
आज बाप ने सभी बच्चों को आवाज से परे स्थिति में ले जाने के लिए आए हैं।
-
आवाज से परे स्थिति का लाभ:
-
अति शान्ति और सुख का अनुभव।
-
स्वयं को बाप समान सम्पन्न और सशक्त महसूस करना।
-
उदाहरण:
मानव जीवन में अनेक लोग शान्ति पाने के लिए प्रयास करते हैं—ध्यान, योग, प्रार्थना। परंतु जब बच्चे स्वयं को शान्ति के सागर समझकर बाप से जुड़ते हैं, तो सेकेण्ड में शान्ति में स्थित हो जाते हैं।
-
प्रैक्टिस:
-
कर्म में आने और कर्मातीत स्थिति में जाने का नियंत्रण।
-
यह शक्ति ‘अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी सर्व के प्यारे’ होने का अनुभव कराती है।
-
Murli Note:
“आज आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न अनुभव करते हैं। – 05-12-1983”
2. अनुभव बनाम समझ
-
समझने वाले केवल सोचते हैं, लेकिन अनुभव करने वाले सच में बाप समान शक्ति और गुणों का अनुभव करते हैं।
-
बच्चों के लिए: हर गुण और शक्ति को जब चाहे धारण करना, और दूसरों को भी गुण दान देना।
उदाहरण:
-
अवगुण वाले को गुण दान देकर गुणवान बनाना, जैसे धन भिखारी को धन दे सम्पन्न बनाना।
-
योग, सेवा, और शक्तियों के दान के समान गुण दान भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
Murli Note:
“हर शक्ति का अनुभव हो। जब चाहे तब गुणों के गहने को धारण कर सकते हो। – 05-12-1983”
3. डबल विदेशी बच्चों की विशेषता
-
डबल विदेशी बच्चे:
-
दूरदेश में रहते हुए भी बुद्धि से बाप को पहचान कर अधिकारी बने।
-
मेहनत करके भी शमा के पास पहुँच जाते हैं।
-
-
सिखावन:
-
सदा अपने को बाप के समझो, कमजोरियों में न फँसो।
-
कमजोर संकल्प माया को स्थान दे देते हैं।
-
उदाहरण:
-
जैसे सीता ने भिखारी को भिखारी समझ लिया, जबकि वह केवल ट्रायल देने आया था।
-
इसी तरह, कमजोर सोच माया को अवसर देती है।
Murli Note:
“कमजोर संकल्प कभी बार-बार न सोचो। सदा यह सोचो कि मैं बाबा की हूँ। – 05-12-1983”
4. विजय अष्टमी और बापदादा का स्नेह
-
मधुबन महायज्ञ में बच्चों का उद्देश्य:
-
माया का त्याग और विजय के तिलक की सेरीमनी मनाना।
-
बाप के अनुकरण और गुणों का अभ्यास करना।
-
-
सिखावन:
-
बापदादा की प्रवृत्ति: विश्व के कार्य छोड़कर भी बच्चों के लिए आते हैं।
-
यादप्यार और स्नेह का आदान-प्रदान।
-
Murli Note:
“सर्व श्रेष्ठ अधिकारी बाप समान, सर्व बच्चों को स्नेह, याद-प्यार और नमस्ते दे रहे हैं। – 05-12-1983”
5. सारांश और अभ्यास
मुख्य सीख:
-
आवाज से परे स्थिति में स्थित होकर शान्ति और आनंद अनुभव करना।
-
कमजोरियों को भूलकर समर्थ संकल्प रखना।
-
गुण दान और ज्ञान दान के माध्यम से स्वयं और दूसरों को परिपूर्ण बनाना।
-
बापदादा के अनुकरण द्वारा हर परिस्थिति में विजय प्राप्त करना।
अभ्यास टिप्स:
-
दिन में कम से कम 5 मिनट आवाज से परे स्थिति में ध्यान लगाएं।
-
हर स्थिति में स्वयं को समर्थ और बाप समान अनुभव करें।
-
कमजोर सोच को तुरंत बदलकर “मैं बाबा का हूँ और हमेशा रहूँगा” कहें।
-
“सदा समर्थ बनो और हर परिस्थिति में बाप के समान अनुभव करो | आवाज से परे स्थिति का रहस्य”
अध्याय: सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो
मुरली दिनांक: 05-12-1983
1. आवाज से परे स्थिति: शान्ति और सुख का अनुभव
Q1. आवाज से परे स्थिति का क्या लाभ है?
A:-
अति शान्ति और सुख का अनुभव।
-
स्वयं को बाप समान सम्पन्न और सशक्त महसूस करना।
Q2. आवाज से परे स्थिति का अनुभव कैसे किया जा सकता है?
A:-
बच्चों को अपने आप को शान्ति के सागर समझकर बाप से जोड़ना चाहिए।
-
सेकेण्डों में शान्ति और स्वधर्म में स्थित होने की प्रैक्टिस करनी चाहिए।
Q3. इस स्थिति में होने की शक्ति बच्चों को क्या अनुभव कराती है?
A:-
‘अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी सर्व के प्यारे’ होने का अनुभव।
-
कर्म में आने और कर्मातीत स्थिति में जाने का नियंत्रण।
Murli Note:
“आज आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न अनुभव करते हैं। – 05-12-1983”
2. अनुभव बनाम समझ
Q1. समझने वाले और अनुभव करने वाले में क्या अंतर है?
A:-
समझने वाले केवल सोचते हैं।
-
अनुभव करने वाले सच में बाप समान शक्ति और गुणों का अनुभव करते हैं।
Q2. बच्चों को कौन सी विशेष प्रैक्टिस करनी चाहिए?
A:-
हर गुण और शक्ति को जब चाहे धारण करना।
-
दूसरों को भी गुण दान देना।
Q3. गुण दान का महत्व क्या है?
A:-
अवगुण वाले को गुणवान बनाना, जैसे धन भिखारी को धन देकर सम्पन्न बनाना।
-
योग, सेवा और शक्तियों के दान के समान गुण दान भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
Murli Note:
“हर शक्ति का अनुभव हो। जब चाहे तब गुणों के गहने को धारण कर सकते हो। – 05-12-1983”
3. डबल विदेशी बच्चों की विशेषता
Q1. डबल विदेशी बच्चों की विशेषता क्या है?
A:-
दूरदेश में रहते हुए भी बुद्धि द्वारा बाप को पहचान कर अधिकारी बने।
-
मेहनत करके शमा के पास पहुँच जाते हैं।
Q2. बच्चों को क्या सिखाया गया है?
A:-
सदा अपने को बाप के समझो।
-
कमजोरियों में न फँसो क्योंकि कमजोर संकल्प माया को स्थान दे देते हैं।
Q3. इसका उदाहरण क्या है?
A:-
जैसे सीता ने भिखारी को भिखारी समझ लिया, जबकि वह केवल ट्रायल देने आया था।
-
कमजोर सोच माया को अवसर देती है।
Murli Note:
“कमजोर संकल्प कभी बार-बार न सोचो। सदा यह सोचो कि मैं बाबा की हूँ। – 05-12-1983”
4. विजय अष्टमी और बापदादा का स्नेह
Q1. मधुबन महायज्ञ में बच्चों का उद्देश्य क्या है?
A:-
माया का त्याग करना।
-
विजय के तिलक की सेरीमनी मनाना।
-
बाप के अनुकरण और गुणों का अभ्यास करना।
Q2. बापदादा बच्चों के लिए क्या करते हैं?
A:-
विश्व के कार्य छोड़कर भी बच्चों के लिए आते हैं।
-
यादप्यार और स्नेह का आदान-प्रदान करते हैं।
Murli Note:
“सर्व श्रेष्ठ अधिकारी बाप समान, सर्व बच्चों को स्नेह, याद-प्यार और नमस्ते दे रहे हैं। – 05-12-1983”
5. सारांश और अभ्यास
Q1. आज का मुख्य सीख क्या है?
A:-
आवाज से परे स्थिति में स्थित होकर शान्ति और आनंद अनुभव करना।
-
कमजोरियों को भूलकर समर्थ संकल्प रखना।
-
गुण दान और ज्ञान दान के माध्यम से स्वयं और दूसरों को परिपूर्ण बनाना।
-
बापदादा के अनुकरण द्वारा हर परिस्थिति में विजय प्राप्त करना।
Q2. अभ्यास के लिए क्या टिप्स दिए गए हैं?
A:-
दिन में कम से कम 5 मिनट आवाज से परे स्थिति में ध्यान लगाएं।
-
हर स्थिति में स्वयं को समर्थ और बाप समान अनुभव करें।
-
कमजोर सोच को तुरंत बदलकर कहें: “मैं बाबा का हूँ और हमेशा रहूँगा।”
-
-
Disclaimer
यह वीडियो आध्यात्मिक और ज्ञानवर्धक उद्देश्य के लिए है। इसमें प्रस्तुत शिक्षाएँ ब्रह्माकुमारीज़ के मुरली और आध्यात्मिक सन्देशों पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत अनुभव और आध्यात्मिक उन्नति को बढ़ावा देना है, न कि किसी धार्मिक या दार्शनिक विवाद को जन्म देना।
- सदा समर्थ बनो, हर परिस्थिति में बाप समान अनुभव, आवाज से परे स्थिति, शान्ति और सुख, आत्मा का अनुभव, बाप के साथ मिलन, अनुभव बनाम समझ, गुण और शक्ति का अनुभव, डबल विदेशी बच्चे, कमजोर संकल्प, माया का त्याग, विजय अष्टमी, बापदादा का स्नेह, मधुबन महायज्ञ, आत्मा का ज्ञान, योग और ध्यान, गुण दान, ज्ञान दान, समर्थ संकल्प, अभ्यास टिप्स, आध्यात्मिक शिक्षा, बापदादा का अनुकरण, स्वरूप का रहस्य,Always be powerful, experience like the Father in every situation, state beyond sound, peace and happiness, experience of the soul, meeting with the Father, experience versus understanding, experience of virtues and power, double foreign children, weak thoughts, renunciation of Maya, Vijay Ashtami, BapDada’s love, Madhuban Mahayagna, knowledge of the soul, yoga and meditation, donation of virtues, donation of knowledge, powerful thoughts, practice tips, spiritual education, imitation of BapDada, secret of the form,

