(06)Why is Satyayuga called heaven and Kaliyuga called hell?

सृष्टि चक्र :-(06)सतयुग स्वर्ग और कलयुग नर्क क्यों कहा जाता है?

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अध्याय 6: सतयुग स्वर्ग और कलयुग नर्क क्यों कहा जाता है?

“सतयुग स्वर्ग और कलयुग नर्क क्यों कहा जाता है? | सृष्टि चक्र का रहस्य | Shiv Baba Murli के आधार पर”


 प्रस्तावना

हम सबने “स्वर्ग” और “नर्क” के नाम सुने हैं —
पर क्या ये कोई ऊपर के लोक हैं?
क्या कोई और दुनिया है जहाँ आत्माएँ जाती हैं?

शिव बाबा की मुरली हमें सिखाती है —
“स्वर्ग और नर्क कोई स्थान नहीं, बल्कि आत्मा की अवस्था है।”
जब आत्मा स्मृति में है — तो स्वर्ग है।
जब आत्मा विस्मृति में है — तो नर्क है।


 1. स्मृति और विस्मृति का रहस्य

मुरली बिंदु (16 जुलाई 2025):

“मीठे बच्चे, सतयुग कोई ऊपर का लोक नहीं है। यह इसी धरती पर का वह समय है जब सभी आत्माएं सतोप्रधान होती हैं। स्वर्ग कोई पारलौकिक स्थान नहीं, बल्कि उसी धरती का दिव्य समय है।”

अर्थ:
सतयुग तब होता है जब आत्मा अपने सच्चे स्वरूप की स्मृति में रहती है —
“मैं आत्मा हूँ, शुद्ध, शान्त, प्रेममयी।”
कलयुग तब है जब आत्मा अपने शरीर और विकारों में विस्मृत रहती है।

उदाहरण:
जैसे सूरज बादलों से ढक जाए तो उसकी रोशनी कम नहीं होती,
बस दिखनी बंद हो जाती है।
वैसे ही आत्मा में दिव्यता रहती है, पर विस्मृति के बाद अंधकार आ जाता है।


 2. सतयुग – सच्चा स्वर्ग

मुरली बिंदु (10 मई 2025):

“सतयुग में न भक्ति है, न पाप, न युद्ध — वहां है केवल सुख। देवी-देवता सदा हसमुख रहते हैं।”

सतयुग की विशेषताएँ:

  • एक धर्म, एक भाषा, एक राजा

  • सच्चाई और प्रेम का राज्य

  • 16 कला संपूर्ण आत्माएँ

  • कोई रोग, शोक, विकार या भय नहीं

  • प्रकृति सतोप्रधान – मौसम संतुलित

  • हर आत्मा दिव्य और दैवी गुणों से पूर्ण

उदाहरण:
सतयुग उस बगीचे की तरह है जहाँ हर पेड़ फल से लदा है,
हर फूल महक रहा है, और वातावरण आनंदमय है।


 3. कलयुग – दुख और विकारों का राज्य

मुरली बिंदु (7 अप्रैल 2022):

“इस कलयुग में सब आत्माएँ रावण की जंजीरों में बंधी हैं। विकारों ने सबको दुखी बना दिया है।”

कलयुग की विशेषताएँ:

  • पाँच विकारों का शासन: काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार

  • युद्ध, रोग, प्रदूषण, अन्याय

  • धर्म में अंधश्रद्धा और पाखंड

  • मन में भय, ईर्ष्या और असंतोष

उदाहरण:
जैसे किसी सुंदर फूल पर धूल जम जाए तो उसकी खुशबू खो जाती है —
वैसे आत्मा भी विकारों के कारण अपनी दिव्यता खो देती है।


 4. स्वर्ग और नर्क की सच्ची तुलना

विशेषता स्वर्ग (सतयुग) नर्क (कलयुग)
धर्म एक धर्म अनेक धर्म
स्थिति सतोप्रधान तमोप्रधान
शासन लक्ष्मी-नारायण रावण
मन शांत और हसमुख तनावग्रस्त और दुखी
प्रकृति संतुलित और पवित्र प्रदूषित और अशांत

मुरली बिंदु:

“स्वर्ग है बाप का राज्य, और नर्क है रावण का राज्य। रावण का राज्य दुखों का राज्य है, बाप का राज्य सुखों का राज्य।”


 5. क्या यह परिवर्तन चक्रीय है?

मुरली बिंदु (28 फरवरी 2025):

“जैसे दिन के बाद रात आती है, वैसे ही सतयुग के बाद कलयुग आता है। फिर मैं आकर अंधकार को दूर करता हूँ।”

अर्थ:
यह परिवर्तन सृष्टि का चक्रीय नियम है।
सतयुग से त्रेता, द्वापर, कलयुग — फिर संगमयुग।
फिर बाबा आकर आत्माओं को पवित्र बनाते हैं,
और नया स्वर्ग स्थापित होता है।


 6. संगमयुग – स्वर्ग स्थापना का समय

मुरली बिंदु (22 सितंबर 2025):

“अभी तुम बच्चे स्वर्ग की स्थापना का कार्य कर रहे हो। यह वही समय है जब बाप धरती को फिर से स्वर्ग बना रहे हैं।”

संगमयुग की विशेषता:

  • आत्मा और परमात्मा का संग

  • पुरानी दुनिया का परिवर्तन

  • कर्म सुधार और रावण से विमुक्ति

  • योग और प्रेम से आत्मा का पुनर्जन्म

उदाहरण:
जैसे रात समाप्त होती है और सूरज उदय होता है,
वैसे ही कलयुग के अंधकार के बाद संगमयुग का नया प्रकाश आता है।


 7. अव्यक्त मुरली का सन्देश

अव्यक्त मुरली (10 अक्टूबर 2025):

“मीठे बच्चे, जब एक बाप से एक मत मिलेगी, तब तुम देवता बन जाओगे — वही तुम्हारा स्वर्ग है।”

अर्थ:
स्वर्ग कोई दूर की बात नहीं —
यह तब शुरू होता है जब हमारी मत बाप से मिल जाती है,
जब मन शुद्ध और याद में स्थित होता है।


निष्कर्ष:

सतयुग स्वर्ग कहलाता है क्योंकि वहाँ आत्मा और प्रकृति दोनों सतोप्रधान होते हैं —
शुद्ध, शांत और दिव्य।
कलयुग नर्क कहलाता है क्योंकि वहाँ आत्मा विकारों में फँसी और अशांत रहती है।

संगमयुग वह समय है जब परमात्मा आकर हमें फिर से स्वर्ग योग्य बना रहे हैं।

अब हमारा कर्तव्य है:
रावण की जंजीरों से मुक्त होकर, योग और शुद्धता से अपनी आत्मा को पुनः पावन बनाना।

सतयुग स्वर्ग और कलयुग नर्क क्यों कहा जाता है? | सृष्टि चक्र का रहस्य | Shiv Baba Murli के आधार पर


प्रस्तावना प्रश्न–उत्तर

प्रश्न 1: क्या स्वर्ग और नर्क कोई ऊपर के लोक हैं?
उत्तर:
नहीं, शिव बाबा की मुरली में बताया गया है कि स्वर्ग और नर्क कोई स्थान नहीं बल्कि आत्मा की अवस्था है।
जब आत्मा आत्म-स्मृति में रहती है — “मैं आत्मा हूँ, शुद्ध, शांत, प्रेममयी” — तो वही स्वर्ग है।
और जब आत्मा विस्मृति में, विकारों में फँस जाती है — तो वही नर्क बन जाता है।

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 16 जुलाई 2025

“मीठे बच्चे, सतयुग कोई ऊपर का लोक नहीं है। यह इसी धरती पर का वह समय है जब सभी आत्माएं सतोप्रधान होती हैं।”

उदाहरण:
जैसे सूरज बादलों से ढक जाए तो उसकी रोशनी कम नहीं होती, बस दिखनी बंद हो जाती है — वैसे ही आत्मा में दिव्यता रहती है, लेकिन विस्मृति से अंधकार छा जाता है।


1. स्मृति और विस्मृति का रहस्य

प्रश्न 2: सतयुग को स्वर्ग क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि सतयुग वह युग है जब आत्मा अपने सच्चे स्वरूप की स्मृति में रहती है।
हर आत्मा सतोप्रधान होती है, शुद्ध होती है, और परमात्मा से योगयुक्त रहती है।
वह समय परमात्मा के राज्य का, अर्थात स्वर्ग का समय होता है।

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 16 जुलाई 2025

“स्वर्ग कोई पारलौकिक स्थान नहीं, बल्कि इसी धरती का दिव्य समय है।”


2. सतयुग – सच्चा स्वर्ग

प्रश्न 3: सतयुग की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:

  • एक धर्म, एक भाषा, एक राजा

  • पूर्ण एकता और प्रेम का वातावरण

  • 16 कला संपूर्ण आत्माएँ

  • विकार, रोग, शोक, भय का नामोनिशान नहीं

  • प्रकृति सतोप्रधान, मौसम संतुलित

  • शांति, प्रेम और आनंद का राज्य

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 10 मई 2025

“सतयुग में न भक्ति है, न पाप, न युद्ध — वहां है केवल सुख। देवी-देवता सदा हसमुख रहते हैं।”

उदाहरण:
सतयुग उस बगीचे की तरह है जहाँ हर पेड़ फल से लदा है और हर फूल खुशबू बिखेर रहा है।


3. कलयुग – दुख और विकारों का राज्य

प्रश्न 4: कलयुग को नर्क क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
कलयुग वह समय है जब आत्माएँ तमोप्रधान बन जाती हैं।
विकारों – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार – के बंधन में फँस जाती हैं।
यह रावण का राज्य कहलाता है जहाँ हर ओर अशांति, प्रदूषण, बीमारी और दुख का वातावरण है।

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 7 अप्रैल 2022

“इस कलयुग में सब आत्माएँ रावण की जंजीरों में बंधी हैं। विकारों ने सबको दुखी बना दिया है।”

उदाहरण:
जैसे किसी सुंदर फूल पर धूल जम जाए तो उसकी खुशबू खो जाती है —
वैसे आत्मा भी विकारों की धूल से अपनी चमक खो देती है।


4. स्वर्ग और नर्क की सच्ची तुलना

प्रश्न 5: स्वर्ग और नर्क में क्या अंतर है?
उत्तर:

विशेषता स्वर्ग (सतयुग) नर्क (कलयुग)
धर्म एक धर्म अनेक धर्म
स्थिति सतोप्रधान तमोप्रधान
शासन लक्ष्मी-नारायण रावण
मन शांत और हसमुख तनावग्रस्त और दुखी
प्रकृति संतुलित और पवित्र प्रदूषित और अशांत

मुरली सन्दर्भ:
मुरली उद्धरण:

“स्वर्ग है बाप का राज्य, और नर्क है रावण का राज्य। रावण का राज्य दुखों का राज्य है, बाप का राज्य सुखों का राज्य।”


5. क्या यह परिवर्तन चक्रीय है?

प्रश्न 6: क्या सतयुग और कलयुग का परिवर्तन बार-बार होता है?
उत्तर:
हाँ, यह सृष्टि का चक्रीय नियम है।
जैसे दिन के बाद रात और फिर दिन आता है, वैसे ही सतयुग के बाद त्रेता, द्वापर, कलयुग आता है —
और फिर बाबा आकर अंधकार को दूर करते हैं, नया स्वर्ग रचते हैं।

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 28 फरवरी 2025

“जैसे दिन के बाद रात आती है, वैसे ही सतयुग के बाद कलयुग आता है। फिर मैं आकर अंधकार को दूर करता हूँ।”


6. संगमयुग – स्वर्ग स्थापना का समय

प्रश्न 7: संगमयुग की भूमिका क्या है?
उत्तर:
संगमयुग वह समय है जब परमपिता परमात्मा स्वयं आकर आत्माओं को पवित्र बनाते हैं।
यह वह युग है जब रावण की दुनिया का अंत और स्वर्ग की स्थापना होती है।

मुरली सन्दर्भ:
मुरली दिनांक 22 सितंबर 2025

“अभी तुम बच्चे स्वर्ग की स्थापना का कार्य कर रहे हो। यह वही समय है जब बाप धरती को फिर से स्वर्ग बना रहे हैं।”

उदाहरण:
जैसे रात के बाद सूर्य उदय होता है — वैसे ही कलयुग की अंधेरी रात के बाद संगमयुग का नया प्रकाश आता है।


7. अव्यक्त मुरली का संदेश

प्रश्न 8: सच्चा स्वर्ग कब शुरू होता है?
उत्तर:
जब हमारी मत एक बाप से मिल जाती है,
जब मन शुद्ध, पवित्र और योगयुक्त हो जाता है —
तभी आत्मा देवता बन जाती है और स्वर्ग का अनुभव इसी जीवन में होने लगता है।

अव्यक्त मुरली सन्दर्भ:
अव्यक्त मुरली 10 अक्टूबर 2025

“मीठे बच्चे, जब एक बाप से एक मत मिलेगी, तब तुम देवता बन जाओगे — वही तुम्हारा स्वर्ग है।”


निष्कर्ष प्रश्न

प्रश्न 9: सतयुग को स्वर्ग और कलयुग को नर्क क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि सतयुग में आत्मा और प्रकृति दोनों सतोप्रधान होते हैं —
शुद्ध, शांत, और दिव्य अवस्था में।
कलयुग में वही आत्मा तमोप्रधान होकर विकारों में फँस जाती है,
शांति और सुख से दूर होकर नर्क का अनुभव करती है।

मुरली सार:
 “सतयुग सुखधाम है, कलयुग दुखधाम।”


अंतिम प्रेरणा

अब संगमयुग चल रहा है —
परमात्मा स्वयं आकर हमें रावण की जंजीरों से मुक्त कर रहे हैं।
अब हमारा कर्तव्य है —
योग, पवित्रता और सेवा द्वारा अपनी आत्मा को स्वर्ग योग्य बनाना।


वीडियो डिस्क्लेमर:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की ईश्वरीय मुरलियों के अध्ययन पर आधारित आध्यात्मिक शिक्षण हेतु है।
इसका उद्देश्य आत्म-जागृति, सकारात्मक सोच और राजयोग अभ्यास को प्रेरित करना है।
यह किसी भी धार्मिक मत या तुलना हेतु नहीं है।

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