MURLI 05-11-2025 |BRAHMA KUMARIS

YouTube player

Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

YouTube player

05-11-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है, बाबा आये हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने”
प्रश्नः- कौन-सी स्मृति रहे तो कभी भी मुरझाइस वा दु:ख की लहर नहीं आ सकती है?
उत्तर:- अभी हम इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को छोड़ घर में जायेंगे फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे। हम अभी राजयोग सीख रहे हैं – राजाई में जाने के लिए। बाप हम बच्चों के लिए रूहानी राजस्थान स्थापन कर रहे हैं, यही स्मृति रहे तो दु:ख की लहर नहीं आ सकती।
गीत:- तुम्हीं हो माता……..

ओम् शान्ति। गीत कोई तुम बच्चों के लिए नहीं हैं, नये-नये को समझाने के लिए हैं। ऐसे भी नहीं कि यहाँ सब समझदार ही हैं। नहीं, बेसमझ को समझदार बनाया जाता है। बच्चे समझते हैं हम कितने बेसमझ बन गये थे, अब बाप हमको समझदार बनाते हैं। जैसे स्कूल में पढ़कर बच्चे कितना समझदार बन जाते हैं। हर एक अपनी-अपनी समझ से बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बनते हैं। यह तो आत्मा को समझदार बनाना है। पढ़ती भी आत्मा है शरीर द्वारा। परन्तु बाहर में जो भी शिक्षा मिलती है, वह है अल्पकाल के लिए शरीर निर्वाह अर्थ। भल कोई कनवर्ट भी करते हैं, हिन्दुओं को क्रिश्चियन बना देते हैं – किसलिए? थोड़ा सुख पाने के लिए। पैसे नौकरी आदि सहज मिलने के लिए, आजीविका के लिए। अब तुम बच्चे जानते हो हमको पहले-पहले तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े। यह है मुख्य बात क्योंकि यह है ही रोगी दुनिया। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो रोगी नहीं बनता हो। कुछ न कुछ होता जरूर है। यह सारी दुनिया बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है, जिसमें सब मनुष्य पतित रोगी हैं। आयु भी बहुत कम होती है। अचानक मृत्यु को पा लेते हैं। काल के चम्बे में आ जाते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो। तुम बच्चे सिर्फ भारत की ही नहीं, सारे विश्व की सर्विस करते हो गुप्त रीति। मूल बात है कि बाप को कोई नहीं जानते। मनुष्य होकर और पारलौकिक बाप को नहीं जानते, उनसे प्यार नहीं रखते। अब बाप कहते हैं मेरे साथ प्यार रखो। मेरे साथ प्यार रखते-रखते तुमको मेरे साथ ही वापिस चलना है। जब तक वापिस चलो तब तक इस छी-छी दुनिया में रहना पड़ता है। पहले-पहले तो देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनो तब तुम धारणा कर सकते हो और बाप को याद कर सकते हो। अगर देही-अभिमानी नहीं बनते तो कोई काम के नहीं। देह-अभिमानी तो सब हैं। तुम समझते भी हो कि हम आत्म-अभिमानी नहीं बनते, बाप को याद नहीं करते तो हम वही हैं जो पहले थे। मूल बात ही है देही-अभिमानी बनने की। न कि रचना को जानने की। गाया भी जाता है रचता और रचना का ज्ञान। ऐसे नहीं कि पहले रचना फिर रचता का ज्ञान कहेंगे। नहीं, पहले रचता, वही बाप है। कहा भी जाता है – हे गॉड फादर। वह आकर तुम बच्चों को आपसमान बनाते हैं। बाप तो सदैव आत्म-अभिमानी है ही इसलिए वह सुप्रीम है। बाप कहते हैं मैं तो आत्म-अभिमानी हूँ। जिसमें प्रवेश किया है उनको भी आत्म-अभिमानी बनाता हूँ। इनमें प्रवेश करता हूँ इनको कनवर्ट करने क्योंकि यह भी देह-अभिमानी थे, इनको भी कहता हूँ अपने को आत्मा समझ मुझे यथार्थ रीति याद करो। ऐसे बहुत मनुष्य हैं जो समझते हैं आत्मा अलग है, जीव अलग है। आत्मा देह से निकल जाती है तो दो चीज़ हुई ना। बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो। आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। आत्मा ही शरीर लेकर पार्ट बजाती है। बाबा बार-बार समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, इसमें बड़ी मेहनत चाहिए। जैसे स्टूडेण्ट पढ़ने के लिए एकान्त में, बगीचे आदि में जाकर पढ़ते हैं। पादरी लोग भी घूमने जाते हैं तो एकदम शान्त रहते हैं। वह कोई आत्म-अभिमानी नहीं रहते। क्राइस्ट की याद में रहते हैं। घर में रहकर भी याद तो कर सकते हैं परन्तु खास एकान्त में जाते हैं क्राइस्ट को याद करने और कोई तरफ देखते भी नहीं। जो अच्छे-अच्छे होते हैं, समझते हैं हम क्राइस्ट को याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे। क्राइस्ट हेविन में बैठा है, हम भी हेविन में चले जायेंगे। यह भी समझते हैं क्राइस्ट हेविनली गॉड फादर के पास गया। हम भी याद करते-करते उनके पास जायेंगे। सब क्रिश्चियन उस एक के बच्चे ठहरे। उनमें कुछ ज्ञान ठीक है। लेकिन क्राइस्ट की आत्मा तो ऊपर गई ही नहीं। क्राइस्ट नाम तो शरीर का है, जिसको फाँसी पर चढ़ाया। आत्मा तो फाँसी पर नहीं चढ़ती है। अब क्राइस्ट की आत्मा गॉड फादर के पास गई, यह कहना भी रांग हो जाता है। वापिस कोई कैसे जायेंगे? हर एक को स्थापना फिर पालना जरूर करनी होती है। मकान को पोताई आदि कराई जाती है, यह भी पालना है ना।

अब बेहद के बाप को तुम याद करो। यह नॉलेज बेहद के बाप के सिवाए कोई दे न सके। अपना ही कल्याण करना है। रोगी से निरोगी बनना है। यह रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है। सारी विश्व रोगियों की हॉस्पिटल है। रोगी जरूर जल्दी मर जायेंगे, बाप आकर इस सारे विश्व को निरोगी बनाते हैं। ऐसे नहीं कि यहाँ ही निरोगी बनेंगे। बाप कहते हैं – निरोगी होते ही हैं नई दुनिया में। पुरानी दुनिया में निरोगी हो न सकें। यह लक्ष्मी-नारायण निरोगी, एवरहेल्दी हैं। वहाँ आयु भी बड़ी होती है, रोगी विशश होते हैं। वाइसलेस रोगी नहीं होते। वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी। बाप खुद कहते हैं इस समय सारी विश्व, खास भारत रोगी है। तुम बच्चे पहले-पहले निरोगी दुनिया में आते हो, निरोगी बनते हो याद की यात्रा से। याद से तुम चले जायेंगे अपने स्वीट होम। यह भी एक यात्रा है। आत्मा की यात्रा है, बाप परमात्मा के पास जाने की। यह है स्प्रीचुअल यात्रा। यह अक्षर कोई समझ नहीं सकेंगे। तुम भी नम्बरवार जानते हो, परन्तु भूल जाते हो। मूल बात है यह, समझाना भी बहुत सहज है। परन्तु समझाये वह जो खुद भी रूहानी यात्रा पर हो। खुद होगा नहीं, दूसरे को बतायेंगे तो तीर नहीं लगेगा। सच्चाई का जौहर चाहिए। हम बाबा को इतना याद करते हैं जो बस। स्त्री पति को कितना याद करती है। यह है पतियों का पति, बापों का बाप, गुरूओं का गुरू। गुरू लोग भी उस बाप को ही याद करते हैं। क्राइस्ट भी बाप को ही याद करते थे। परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं। बाप जब आये तब आकर अपनी पहचान देवे। भारतवासियों को ही बाप का पता नहीं है तो औरों को कहाँ से मिल सकता। विलायत से भी यहाँ आते हैं, योग सीखने के लिए। समझते हैं प्राचीन योग भगवान ने सिखाया। यह है भावना। बाप समझाते हैं सच्चा-सच्चा योग तो मैं ही कल्प-कल्प आकर सिखलाता हूँ, एक ही बार। मुख्य बात है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसको ही रूहानी योग कहा जाता है। बाकी सबका है जिस्मानी योग। ब्रह्म से योग रखते हैं। वह भी बाप तो नहीं है। वह तो महतत्व है, रहने का स्थान। तो राइट एक ही बाप है। एक बाप को ही सत्य कहा जाता है। यह भी भारतवासियों को पता नहीं कि बाप ही सत्य कैसे है। वही सचखण्ड की स्थापना करते हैं। सचखण्ड और झूठ खण्ड। तुम जब सचखण्ड में रहते हो तो वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता। आधाकल्प बाद रावण राज्य झूठ खण्ड शुरू होता है। सच खण्ड पूरा सतयुग को कहेंगे। फिर झूठ खण्ड पूरा कलियुग का अन्त। अभी तुम संगम पर बैठे हो। न इधर हो, न उधर हो। तुम ट्रेवल (यात्रा) कर रहे हो। आत्मा ट्रेवल कर रही है, शरीर नहीं। बाप आ करके यात्रा करना सिखलाते हैं। यहाँ से वहाँ जाना है। तुमको यह सिखलाते हैं। वो लोग फिर स्टार्स मून आदि तरफ जाने की ट्रेवल करते हैं। अभी तुम जानते हो उनमें कोई फायदा नहीं। इन चीज़ों से ही सारा विनाश होना है। बाकी जो भी इतनी मेहनत करते हैं सब व्यर्थ। तुम जानते हो यह सब चीज़ें जो साइंस से बनती हैं वह भविष्य में तुम्हारे ही काम आयेंगी। यह ड्रामा बना हुआ है। बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं तो कितना रिगार्ड रखना चाहिए। टीचर का वैसे भी बहुत रिगार्ड रखते हैं। टीचर फरमान करते हैं – अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ। अगर फरमान को नहीं मानेंगे तो नापास हो जायेंगे। बाप भी कहते हैं तुमको पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने। यह लक्ष्मी-नारायण मालिक हैं। भल प्रजा भी मालिक है, परन्तु दर्जे तो बहुत हैं ना। भारतवासी भी सब कहते हैं ना – हम मालिक हैं। गरीब भी भारत का मालिक अपने को समझेगा। परन्तु राजा और उनमें फ़र्क कितना है। नॉलेज से मर्तबे का फर्क हो जाता है। नॉलेज में भी होशियारी चाहिए। पवित्रता भी जरूरी है तो हेल्थ-वेल्थ भी चाहिए। स्वर्ग में सब हैं ना। बाप एम ऑब्जेक्ट समझाते हैं। दुनिया में और कोई की बुद्धि में यह एम आब्जेक्ट होगी नहीं। तुम फट से कहेंगे हम यह बनते हैं। सारे विश्व में हमारी राजधानी होगी। यह तो अभी पंचायती राज्य है। पहले थे डबल ताजधारी फिर एक ताज अभी नो ताज। बाबा ने मुरली में कहा था, यह भी चित्र हो – डबल सिरताज राजाओं के आगे सिंगल ताज वाले माथा झुकाते हैं। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा डबल सिरताज बनाता हूँ। वह है अल्पकाल के लिए, यह है 21 जन्मों की बात। पहली मुख्य बात है पावन बनने की। बुलाते भी हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ। ऐसे नहीं कहते कि राजा बनाओ। अभी तुम बच्चों का है बेहद का संन्यास। इस दुनिया से ही चले जायेंगे अपने घर। फिर हेविन में आयेंगे। अन्दर में खुशी रहनी चाहिए जबकि समझते हैं हम घर जायेंगे फिर राजाई में आयेंगे फिर मुरझाइस दु:ख आदि यह सब क्यों होना चाहिए। हम आत्मा घर जायेंगी फिर पुनर्जन्म नई दुनिया में लेंगी। बच्चों को स्थाई खुशी क्यों नहीं रहती है? माया का आपोजीशन बहुत है इसलिए खुशी कम हो जाती है। पतित-पावन खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे। तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। जानते हो फिर हम अपने राजस्थान में चले जायेंगे। यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के राजायें हुए हैं, अब फिर रूहानी राजस्थान बनना है। स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। क्रिश्चियन लोग हेविन का अर्थ नहीं समझते हैं। वह मुक्तिधाम को हेविन कह देते हैं। ऐसे नहीं कि हेविनली गॉड फादर कोई हेविन में रहते हैं। वह तो रहते ही हैं शान्तिधाम में। अभी तुम पुरुषार्थ करते हो पैराडाइज में जाने के लिए। यह फ़र्क बताना है। गॉड फादर है मुक्तिधाम में रहने वाला। हेविन नई दुनिया को कहा जाता है। फादर ही आकर पैराडाइज स्थापन करते हैं। तुम जिसको शान्तिधाम कहते हो उनको वो लोग हेविन समझते हैं। यह सब समझने की बातें हैं।

बाप कहते हैं नॉलेज तो बहुत सहज है। यह है पवित्र बनने की नॉलेज, मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाने की नॉलेज, जो बाप ही दे सकते हैं। जब किसको फाँसी दी जाती है तो अन्दर में यही रहता है हम भगवान पास जाते हैं। फाँसी देने वाले भी कहते हैं गॉड को याद करो। गॉड को जानते दोनों नहीं हैं। उनको तो उस समय मित्र-सम्बन्धी आदि जाकर याद पड़ते हैं। गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे…… कोई न कोई याद जरूर रहता है। सतयुग में ही मोहजीत रहते हैं। वहाँ जानते हैं एक खाल छोड़ दूसरी ले लेंगे। वहाँ याद करने की दरकार नहीं इसलिए कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें……. यहाँ दु:ख है इसलिए याद करते हैं भगवान से कुछ मिले। वहाँ तो सब कुछ मिला ही हुआ है। तुम कह सकते हो हमारा उद्देश्य है मनुष्य को आस्तिक बनाना, धणी का बनाना। अभी सब निधन के हैं। हम धणका बनते हैं। सुख, शान्ति, सम्पत्ति का वर्सा देने वाला बाप ही है। इन लक्ष्मी-नारायण की कितनी बड़ी आयु थी। यह भी जानते हैं भारतवासियों की पहले-पहले आयु बहुत बड़ी रहती थी। अब छोटी है। क्यों छोटी हुई है – यह कोई भी नहीं जानते। तुम्हारे लिए तो बहुत सहज हो गया है समझना और समझाना। सो भी नम्बरवार हैं। समझानी हर एक की अपनी-अपनी है, जो जैसी धारणा करते हैं, ऐसे समझाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) जैसे बाप सदैव आत्म-अभिमानी हैं, ऐसे आत्म-अभिमानी रहने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है। एक बाप को दिल से प्यार करते-करते बाप के साथ घर चलना है।

2) बेहद के बाप का पूरा-पूरा रिगार्ड रखना है अर्थात् बाप के फरमान पर चलना है। बाप का पहला फरमान है – बच्चे अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ। इस फरमान को पालन करना है।

वरदान:- शक्तिशाली सेवा द्वारा निर्बल में बल भरने वाले सच्चे सेवाधारी भव
सच्चे सेवाधारी की वास्तविक विशेषता है – निर्बल में बल भरने के निमित्त बनना। सेवा तो सभी करते हैं लेकिन सफलता में जो अन्तर दिखाई देता है उसका कारण है सेवा के साधनों में शक्ति की कमी। जैसे तलवार में अगर जौहर नहीं तो वह तलवार का काम नहीं करती, ऐसे सेवा के साधनों में यदि याद की शक्ति का जौहर नहीं तो सफलता नहीं इसलिए शक्तिशाली सेवाधारी बनो, निर्बल में बल भरकर क्वालिटी वाली आत्मायें निकालो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।
स्लोगन:- हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझकर सदा उड़ते रहो।

 

अव्यक्त इशारे – अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ

वैसे अशरीरी होना सहज है लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, कोई सर्विस के झंझट सामने हों, कोई हलचल में लाने वाली परिस्थितियां हों, ऐसे समय में सोचा और अशरीरी हो जाएं, इसके लिए बहुत समय का अभ्यास चाहिए। सोचना और करना साथ-साथ चले तब अन्तिम पेपर में पास हो सकेंगे।

“मीठे बच्चे, यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है, मैं आया हूँ सबको निरोगी बनाने।”

यह कोई सामान्य वाक्य नहीं, बल्कि सृष्टि के सबसे महान इलाज की घोषणा है।
मानव शरीर ही नहीं, आत्मा भी आज विकारों से रोगी हो चुकी है।
इसलिए परमपिता शिव बाबा स्वयं इस “रूहानी हॉस्पिटल” में डॉक्टर बनकर आए हैं।


 1. दुनिया — रोगियों की हॉस्पिटल

बाबा कहते हैं —
“ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो रोगी न बनता हो। यह सारी दुनिया बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है।”

हर आत्मा किसी न किसी “रोग” से पीड़ित है —
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार — ये हैं पाँच मुख्य विकार-रोग।
इनके प्रभाव से शरीर भी रोगी बन गया है, और मन भी बेचैन।

उदाहरण:
जैसे कोई डॉक्टर केवल दवा से नहीं, परामर्श से भी रोग मिटाता है,
वैसे ही शिव बाबा “राजयोग” नामक आत्मा की दवा देते हैं।


 2. याद की यात्रा — आत्मा का उपचार

प्रश्न: कौन-सी स्मृति रखो तो कभी भी दु:ख की लहर नहीं आए?
उत्तर:
“हम इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर को छोड़कर घर (परमधाम) में जायेंगे,
फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे। हम अभी राजयोग सीख रहे हैं — राजाई में जाने के लिए।”

अर्थ:
जब आत्मा को याद रहता है कि वह परमात्मा की संतान है,
तो किसी भी परिस्थिति में मुरझाना संभव नहीं।
यह स्मृति आत्मा की “मनोचिकित्सा” है।


 3. देही-अभिमान बनो — मुख्य इलाज

बाबा का सबसे बड़ा आदेश है —
“पहले-पहले तो देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनो, तब ही बाप को याद कर सकते हो।”

उदाहरण:
जैसे डॉक्टर पहले रोग का सही निदान करता है,
वैसे ही बाबा कहते हैं — पहले यह पहचानो कि “मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा यंत्र है।”
फिर याद की यात्रा शुरू होती है।

मुरली बिंदु:
“मूल बात ही है देही-अभिमानी बनने की। न कि रचना को जानने की। पहले रचता को जानो — वही बाप है।”


🌺 4. निरोगी बनने की सच्ची प्रक्रिया

शिव बाबा का वचन —
“रोगी से निरोगी बनना है। यह रोगियों की हॉस्पिटल है।
बाप आकर इस सारे विश्व को निरोगी बनाते हैं।”

यहाँ “निरोगी” का अर्थ केवल शरीर से नहीं,
बल्कि आत्मा की पवित्रता से है।

उदाहरण:
जैसे सूर्य स्वयं प्रकाश देता है, उसी से सब कुछ उज्जवल होता है —
वैसे ही “योग” से आत्मा में शक्ति भरती है, विकारों का अंधकार मिटता है।


 5. याद का जौहर — सेवा में सफलता का रहस्य

वरदान (Blessing):
“शक्तिशाली सेवा द्वारा निर्बल में बल भरने वाले सच्चे सेवाधारी भव।”

बाबा कहते हैं —
“यदि याद की शक्ति का जौहर नहीं तो सेवा सफल नहीं हो सकती।
शक्तिशाली सेवाधारी बनो — निर्बल आत्माओं में बल भरो।”

उदाहरण:
जैसे तलवार में धार न हो तो वह काम नहीं करती,
वैसे ही बिना याद के ज्ञान निष्प्रभावी हो जाता है।


 6. परमपिता — सच्चे डॉक्टर और शिक्षक

शिव बाबा केवल डॉक्टर नहीं,
बल्कि शिक्षक और सतगुरू भी हैं।
वे आत्मा को रोगमुक्त, अंधकारमुक्त और मोह-मुक्त बनाते हैं।

मुरली बिंदु:
“मैं तुम्हें विश्व का मालिक बनाने आया हूँ।
पहले-पहले पावन बनो — यही मेरा पहला फरमान है।”


 7. स्थाई खुशी — आत्मा की असली पहचान

जब आत्मा समझ लेती है —
“मैं घर (परमधाम) की निवासी हूँ, यह शरीर अस्थायी है,”
तब माया की लहरें उसे डिगा नहीं सकतीं।

बाबा कहते हैं:
“हम घर जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे।
तो मुरझाइस या दु:ख क्यों हो?”


 8. निष्कर्ष (Conclusion)

यह दुनिया वास्तव में एक “रूहानी हॉस्पिटल” है।
जहाँ “ज्ञान” है औषधि, “योग” है उपचार, और “बाबा” हैं सर्वोच्च डॉक्टर।

प्रेरणादायक वाक्य:
 “सच्चा सुख तभी है जब आत्मा अपने डॉक्टर को पहचान ले —
जो केवल शरीर नहीं, आत्मा के भी रोग मिटाता है।”


 मुरली संदर्भ (Murli References)

  • साकार मुरली: 12 सितम्बर 1969
    (“मीठे बच्चे, यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है…”)

  • वरदान अनुभाग: “शक्तिशाली सेवा द्वारा निर्बल में बल भरने वाले सच्चे सेवाधारी भव।”

  • स्लोगन: “हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझकर सदा उड़ते रहो।”

  • डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की दैनिक साकार मुरली पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन एवं मनन है। इसका उद्देश्य केवल आत्म-जागृति, आत्म-शुद्धि और परमात्मा के सच्चे ज्ञान को समझना है। इस वीडियो में किसी धर्म, व्यक्ति, संस्था या विचारधारा की आलोचना का कोई उद्देश्य नहीं है। हम सभी धर्मों और आत्माओं का समान रूप से सम्मान करते हैं।
  • मीठे बच्चे, रोगियों की दुनिया, निरोगी बनने का रहस्य, बाबा की हॉस्पिटल, आत्म-अभिमानी स्थिति, देही-अभिमानी बनो, राजयोग, शिवबाबा की याद, रूहानी यात्रा, आत्मा का ज्ञान, परमधाम की यात्रा, ब्रह्माकुमारीज, सच्चा सेवाधारी, शक्तिशाली सेवा, निर्बल में बल, निरोगी दुनिया, सचखण्ड स्थापना, पतित से पावन, योग से मुक्ति, बापदादा की मुरली, आज की मुरली, बीके मुरली, ब्रह्माकुमारी ज्ञान, आध्यात्मिक शिक्षा, आत्मा और परमात्मा, राजयोग से स्वास्थ्य, याद की यात्रा, ओम् शान्ति,Sweet children, the world of the sick, the secret of becoming healthy, Baba’s hospital, soul-respecting stage, become soul-respecting, Rajyoga, remembrance of Shivbaba, spiritual journey, knowledge of the soul, journey to the Supreme Abode, Brahma Kumaris, true server, powerful service, strength in the weak, healthy world, establishment of Sachkhand, purity from sinful, liberation through yoga, BapDada’s Murli, today’s Murli, BK Murli, Brahma Kumari knowledge, spiritual education, soul and God, health through Rajyoga, journey of remembrance, Om Shanti,