विश्व नाटक :-(17)क्या यह जगत एक संयोग है? अपने आप बन गया है या भगवान की रचना है?
अध्याय 26 : विश्व नाटक — क्या यह जगत संयोग है या ईश्वर की रचना?
(Three Perspectives — Science • God • Murli)
“क्या संसार संयोग से बना या भगवान की रचना है? |
ओम शांति
विश्व नाटक — यह संसार चलता कैसे है?
संसार कैसे बना?
क्या यह अनंत नाटक किसी संयोग से बन गया?
या यह ईश्वर की रचना है?
या इसमें है कोई तीसरा गहरा सिद्धांत?
इस अध्याय में हम इसे तीन कोणों से देखेंगे —
1. विज्ञान का दृष्टिकोण
2. ईश्वर (धर्म) का दृष्टिकोण
3. मुरली का दृष्टिकोण (सच्चा रहस्य)
भाग 1 : क्या यह जगत एक संयोग है? — विज्ञान की दृष्टि से
आज विज्ञान कहता है —
“जगत किसी प्लानिंग से नहीं बना।
यह संयोग (Chance + Mutation + Evolution) का परिणाम है।”
इसे कहा गया — संयोगवाद (Chance Theory)
इस विचार के समर्थक कहते हैं —
“जो प्रकृति है, वही ईश्वर है। कोई रचयिता नहीं।”
परंतु वैज्ञानिकों के अंदर से ही इस सिद्धांत पर गहरा प्रश्न उठता है…
संयोगवाद का सबसे बड़ा विरोध — पेरी लेकोमेट डनोई का तर्क
फ्रांसीसी वैज्ञानिक P. Lecomte du Noüy, अपनी पुस्तक Human Destiny (1947) में लिखते हैं—
“एक प्रोटीन का संयोग से बनना
गणितीय रूप से असंभव है।”
और प्रोटीन ही जीवन की पहली ईंट है।
प्रोटीन का संयोग से बनना — लगभग असंभव
नोई का सरल मॉडल:
-
एक प्रोटीन = 2000 परमाणु
-
वे सिर्फ 2 प्रकार के हों (जबकि असल में 20+ प्रकार होते हैं)
फिर भी संभाव्यता आती है —
1 / 10³²¹
यानी
प्रोटीन का अपने-आप बन जाना = लगभग असंभव।
ब्रह्मांड जितना बड़ा आयतन भी कम पड़ जाए
नोई आगे लिखते हैं —
“यदि एक प्रोटीन भी बनना हो,
तो आवश्यक आयतन,
इस ब्रह्मांड से सेक्सटिलियन गुना बड़ा होना चाहिए।”
फिर भी प्रोटीन नहीं बनेगा।
उदाहरण 1 — हवा में अक्षर उछालकर रामचरितमानस बन जाए?
लाखों अक्षरों को हवा में फेंक दें —
क्या वे नीचे गिरकर एक चौपाई बना देंगे?
कभी नहीं।
उदाहरण 2 — 2000-अंकों वाला ताला
एक 10-अंकों का ताला अपने-आप नहीं खुलता…
तो 2000-अंकों वाला ताला कैसे स्वयं खुल जाएगा?
प्रोटीन इससे भी लाख गुना जटिल है।
भाग 2 : तो क्या ईश्वर ने जगत बनाया? — धार्मिक दृष्टिकोण
धर्म कहता है:
“ईश्वर ने जगत की रचना की है।”
पर प्रश्न उठता है—
क्या ईश्वर ने पहली बार यह संसार बनाया?
यदि “पहली बार” बनाया—
तो
पहली बार कब?
उसके पहले क्या था?
फिर संसार अनादि कैसे हुआ?
धर्म उत्तर नहीं दे पाता।
यहाँ विज्ञान पूछता है—
“यदि ईश्वर ने रचा, तो फिर ईश्वर को किसने बनाया?”
भाग 3 : मुरली का दृष्टिकोण — विश्व नाटक का असली रहस्य
साकार मुरली इस भ्रम को स्पष्ट करती है।
साकार मुरली 18 जनवरी 1969
“यह नाटक अनादि है, अनंत है।
इसका कोई आदि-मध्य-अंत नहीं।”
मुरली कहती है —
-
ईश्वर निर्माता नहीं
-
ईश्वर रचयिता नहीं
-
ईश्वर निर्देशक (Director of Drama) हैं
सृष्टि बनती नहीं —
बस दोहराई जाती है।
साकार मुरली 10 जून 1968
“बच्चे, दुनिया का यह नाटक बना हुआ है।
मैं इसे बनाता नहीं;
मैं ज्ञान देता हूं कि नाटक कैसे चलता है।”
नाटक की मुख्य विशेषता
नाटक—
-
अनादि
-
एक्यूरेट
-
पुनरावर्ती (Repetition)
-
सेकंड-टू-सेकंड प्रेडिक्टेबल
-
फिक्स्ड ड्रामा
इसलिए मुरली कहती है:
दुनिया न बनी है —
यह चलती है।
मुरली का निचोड़ (Essence)
1. जगत संयोग नहीं
क्योंकि विज्ञान के अनुसार संयोग से जीवन की शुरुआत —
गणितीय रूप से असंभव।
2. जगत ईश्वर की रचना नहीं
क्योंकि रचना का अर्थ ‘पहली बार’ है।
और यह नाटक अनादि है।
3. सही उत्तर — नाटक दोहराता है
जैसे—
-
दिन-रात
-
ऋतु चक्र
-
मानव इतिहास
-
कलियुग से सतयुग का परिवर्तन
सब पुनरावृत्ति में चलता है।
Q1. संसार कैसे बना? क्या यह किसी संयोग (Chance) से बना है?
A1. आधुनिक विज्ञान का एक बड़ा भाग कहता है कि संसार किसी प्लानिंग से नहीं बना, बल्कि यह Chance + Mutation + Evolution का परिणाम है। इस विचार को संयोगवाद (Chance Theory) कहते हैं। संयोगवादियों के अनुसार — “प्रकृति ही ईश्वर है। कोई रचयिता नहीं।”
Q2. संयोगवाद का सबसे बड़ा वैज्ञानिक खंडन किसने किया?
A2. फ्रांसीसी वैज्ञानिक P. Lecomte du Noüy ने अपनी पुस्तक Human Destiny (1947) में सिद्ध किया कि
प्रोटीन का संयोग से बन जाना गणितीय रूप से असंभव है।
Q3. प्रोटीन संयोग से क्यों नहीं बन सकता?
A3. नोई के सरल मॉडल के अनुसार —
-
एक प्रोटीन = 2000 परमाणु
-
सिर्फ 2 प्रकार के परमाणु मानकर
फिर भी संभाव्यता आती है:
1 / 10³²¹
यह संख्या इतनी छोटी है कि व्यवहार में इसका होना असंभव है।
Q4. क्या इतना बड़ा ब्रह्मांड भी प्रोटीन बनाने के लिए पर्याप्त है?
A4. नहीं।
नोई के अनुसार —
यदि एक प्रोटीन भी “संयोग” से बनना हो,
तो जितनी जगह चाहिए, वह हमारे ब्रह्मांड से सेक्सटिलियन (10^36) गुना बड़ा होना चाहिए।
फिर भी यह संभव नहीं।
Q5. प्रोटीन नहीं बन सकता — इसे समझाने के सरल उदाहरण क्या हैं?
A5.
-
अक्षर उछालकर रामचरितमानस बन जाए?
असंभव। -
2000-अंकों वाला ताला अपने-आप खुल जाए?
कभी नहीं।
प्रोटीन इससे भी ज्यादा जटिल है।
Q6. यदि संयोग सिद्धांत गलत है, तो क्या ईश्वर ने जगत बनाया?
A6. धर्म कहता है — “ईश्वर ने जगत की रचना की।”
लेकिन प्रश्न उठता है:
क्या ईश्वर ने इसे पहली बार बनाया?
यदि “पहली बार” बनाया —
तो उसके पहले क्या था?
और फिर नाटक अनादि कैसे हुआ?
धर्म इस प्रश्न का अंतिम उत्तर नहीं दे पाता।
Q7. यदि ईश्वर ने जगत बनाया, तो विज्ञान क्या पूछता है?
A7. विज्ञान पूछता है —
“यदि ईश्वर ने जगत बनाया — तो ईश्वर को किसने बनाया?”
यानी यह तर्क भी पूर्ण नहीं है।
Q8. मुरली इस विषय पर क्या स्पष्ट करती है?
A8. मुरली कहती है —
“यह नाटक अनादि है, अनंत है, इसका कोई आदि-मध्य-अंत नहीं।”
(साकार मुरली 18 जनवरी 1969)
Q9. क्या ईश्वर जगत के निर्माता (Creator) हैं?
A9. मुरली कहती है —
ईश्वर निर्माता (Creator) नहीं
बल्कि नाटक के निर्देशक (Director) हैं।
ईश्वर सृष्टि बनाते नहीं,
वे ज्ञान देते हैं कि नाटक कैसे चलता है।
(साकार मुरली 10 जून 1968)
Q10. मुरली अनुसार यह विश्व कैसे चलता है?
A10. मुरली के अनुसार —
सृष्टि नई नहीं बनती,
सृष्टि दोहराती है।
यह जगत —
-
अनादि
-
एक्यूरेट
-
सेकंड-टू-सेकंड प्रेडिक्टेबल
-
फिक्स्ड
-
पुनरावर्ती
अर्थात यह नाटक बना नहीं, यह चलता है।
Q11. तीनों दृष्टिकोणों का संयुक्त निष्कर्ष क्या निकलता है?
A11.
-
संयोग सिद्धांत गलत — क्योंकि जीवन की शुरुआत संयोग से होना गणितीय रूप से असंभव।
-
ईश्वर ने “पहली बार” जगत नहीं बनाया — क्योंकि रचना का अर्थ शुरुआत है।
-
सही सिद्धांत (मुरली):
यह अनादि विश्व नाटक है जो निरंतर दोहराता है।
Q12. हमें इससे क्या समझना चाहिए?
A12.
-
यह दुनिया संयोग नहीं
-
यह दुनिया पहली बार बनी नहीं
-
ईश्वर निर्देशक हैं, निर्माता नहीं
-
हम आत्माएँ — इस अनादि नाटक के अभिनेता हैं
-
यह संसार — दैवीय, पूर्वनियोजित, पुनरावर्ती विश्व नाटक है
Q13. मुरली का अंतिम निचोड़ क्या है?
A13.
मुरली कहती है —
“बच्चे, यह नाटक अनादि है।”
न इसका आरंभ, न अंत।
यह हर 5000 वर्ष में सटीक रूप से दोहराता है।
Disclaimer
इस वीडियो का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक अध्ययन, आत्म-जागृति और ज्ञान-वृद्धि है।
यह सामग्री ब्रह्माकुमारिज की ईश्वरीय मुरली, वैज्ञानिक शोध, और आध्यात्मिक ग्रंथों से प्रेरित है।
किसी भी धर्म, मत या वैज्ञानिक सिद्धांत को नीचा दिखाना उद्देश्य नहीं है।
ओम शांति।
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