Avyakta Murli”25-03-1971

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) 

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न्यारे और विश्व के प्यारे बनने की विधि

सभी अपने अलौकिक और पारलौकिक नशे और निशाने में सदैव रहते हो? अलौकिक नशा और निशाना और पारलौकिक नशा और निशाना, दोनों को जानते हो? दोनों में फर्क है वा एक है? अलौकिक नशा और निशाना हुआ इस ईश्वरीय जन्म का और पारलौकिक नशा और निशाना हुआ भविष्य जन्म का। तो ईश्वरीय जन्म का नशा और निशाना याद रहता है? साथ-साथ पारलौकिक अर्थात् भविष्य का नशा और निशाना याद रहता है? अगर दोनों ही हर समय रहें तो क्या बन जायेंगे? अलौकिक नशे और निशाने से बनेंगे न्यारे और पारलौकिक नशे और निशाने से बनेंगे विश्व के प्यारे। तो दोनों ही नशे और निशाने से न्यारे और प्यारे बन जायेंगे। समझा?

अभी सभी से न्यारा बनना है। अपनी देह से ही जब न्यारे बनना है, तो सभी बातों में भी न्यारे हो जायेंगे। अब पुरूषार्थ कर रहे हो न्यारे बनने का। न्यारे बनने से फिर स्वत: ही सभी के प्यारे बन जाते हो। प्यारे बनने का पुरूषार्थ नहीं होता है, पुरूषार्थ न्यारे बनने का होता है। अगर सबका प्यारा बनना है तो पुरूषार्थ क्या करना है? सर्व से न्यारे बनने का। अपनी देह से न्यारे तो बनते ही हो लेकिन आत्मा में जो पुराने संस्कार हैं उन्हों से भी न्यारे बनो। प्यारे बनने के पुरूषार्थ से प्यारे बनेंगे तो रिजल्ट क्या होगी? और ही प्यारे बनने की बजाय बापदादा के दिल रूपी तख्त से दूर हो जायेंगे। इसलिए यह पुरूषार्थ नहीं करना है। कोई भी न्यारी चीज़ प्यारी ज़रूर होती है। इस संगठन में अगर कोई न्यारी चीज़ दिखाई दे तो सभी का लगाव और सभी का प्यार उस तरफ चला जायेगा। तो आप भी न्यारे बनो। सहज पुरूषार्थ है ना। न्यारे नहीं बन पाते हैं, इसका कारण क्या है? आजकल का लगाव सारी दुनिया में किस कारण से होता है? (अट्रेक्शन पर) अट्रेक्शन भी स्वार्थ से है। इस समय का लगाव स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है। तो स्वार्थ के कारण लगाव और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते। तो उसके लिये क्या करना पड़े? स्वार्थ का अर्थ क्या है? स्वार्थ अर्थात् स्व के रथ को स्वाहा करो। यह जो रथ अर्थात् देह-अभिमान, देह की स्मृति, देह का लगाव लगा हुआ है। इस स्वार्थ को कैसे खत्म करेंगे? उसका सहज पुरूषार्थ, ‘स्वार्थ’ शब्द के अर्थ को समझो। स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे। सिर्फ एक अर्थ को जानना है, जानकर अर्थ-स्वरूप बनना है। तो एक ही शब्द का अर्थ जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे। अच्छा।

आज टीचर्स के उद्घाटन का दिन है। सम्पूर्ण आहुति डालने की सामर्थ्य है? यह ग्रुप इन्चार्ज टीचर्स का है ना। अभी हैं वा बनने वाली हैं? मुख्य धारणा यही है वि सदैव अपनी सम्पूर्ण स्थिति का वा अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करते रहो। जैसे कोई का आह्वान किया जाता है तो बुद्धि में वही स्मृति में रहता है ना। इस रीति से सदैव अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करते रहेंगे तो सदैव वही स्मृति में रहेगा। और इसी स्मृति में रहने के कारण रिजल्ट क्या होगी? यह जो आवागमन का चक्र चलता रहता है; आवागमन का चक्र कौनसा? कभी ऊंच स्थिति में ठहरते हो, कभी नीचे आ जाते हो। यह जो ऊपर-नीचे आने- जाने का आवागमन का चक्र है इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे। वह लोग जन्म- मरण के चक्र से छूटने चाहते हैं और आप लोग यह जो स्मृति और विस्मृति का आवागमन का चक्र है, इससे मुक्त होने का पुरूषार्थ करते हो। तो सदैव अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करने से आवागमन से छूट जायेंगे अर्थात् इन व्यर्थ बातों से किनारा करने से सदैव चमकता हुआ लक्की सितारा बन जायेंगे। इन्चार्ज टीचर बनने के लिए पहले अपनी आत्मा की बैटरी चार्ज करो। जितनी जिसकी बैटरी चार्ज है उतना ही अच्छा इन्चार्ज टीचर बन सकती है। समझा? जब यह याद आये कि मैं इन्चार्ज हूँ, तो पहले यह अपने से पूछो कि मेरी बैटरी चार्ज हुई है? अगर बैटरी चार्ज कम होगी तो इन्चार्ज टीचर में भी उतनी कमी दिखाई देगी। तो अब क्या करना है? अच्छी तरह से बैटरी चार्ज करके फिर इन्चार्ज बनकर जाना। ऐसे ही सिर्फ इन्चार्ज नहीं बन करजाना। अगर बैटरी चार्ज के बिना इन्चार्ज बनेंगी तो क्या होगा? चार्ज अक्षर के दो-तीन मतलब होते हैं। एक होता है बैटरी चार्ज, दूसरा चार्ज अर्थात् ड्यूटी भी होता है और तीसरा चार्ज अर्थात् दोष को कहते हैं। कोई पर चार्ज लगाते हैं ना। तो इन्चार्ज होने से अगर बैटरी चार्ज है तो फिर इन्चार्ज यथार्थ रीति बनते हैं। अगर बैटरी चार्ज नहीं, यथार्थ रूप नहीं तो फिर भिन्न-भिन्न चार्जेज़ लग जाते हैं। तो अब समझा, कैसे इन्चार्ज बनेंगे? धर्मराजपुरी में पहले चार्ज लगाकर फिर सज़ा देंगे। तो अगर बैटरी चार्ज नहीं होगी तो चार्जेज लगेंगी। अभी ऐसे बनकर जाना जो सभी की निगाहों में यह ग्रुप आ जाये। सभी अनुभव करें कि बड़े तो बड़े लेकिन छोटे सुभान अल्लाह। ऐसा लक्ष्य रख, भट्ठी से ऐसे ही लक्षण धारण करके जाना। ऐसा कोमल होना है जो अपने को जहां मोड़ने चाहो वहाँ मोड़ सकते हो। कोमल चीज़ को जहाँ मोड़ने चाहते हैं वहाँ मोड़ सकते हैं। लेकिन सख्त को कोई मोड़ नहीं सकेंगे। कोमल बनना है लेकिन किस में? संस्कार मोड़ने में कोमल बनो। लेकिन कोमल दिल से बचकर रहना। यह लक्ष्य और लक्षण धारण करके जाना है। इस स्नेही और सहयोगी बनने वाले ग्रुप के लिये सलोगन है – ‘अधिकारी बनेंगे और अधीनता को मिटायेंगे’। कभी अधीन नहीं बनना – चाहे संकल्पों के, चाहे माया के। और भी कोई रूपों के अधीन नहीं बनना। इस शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना और माया से भी अधिकारी बन उसको अपने अधीन करना है। सम्बन्ध की अधीनता में भी नहीं आना है। चाहे लौकिक, चाहे ईश्वरीय सम्बन्ध की भी अधीनता में न आना। सदा अधिकारी बनना है। यह सलोगन सदैव याद रखना। ऐसा बनकर के ही निकलना। जैसे कहावत है ना कि मान सरोवर में नहाने से परियां बन जाते थे। इस ग्रुप को भी भट्ठी रूपी ज्ञानमानसरोवर में नहाकर फरिश्ता बनकर निकलना है।

जब फरिश्ता बन गया तो फरिश्ते अर्थात् प्रकाशमय काया। इस देह की स्मृति से भी परे। उनके पांव अर्थात् बुद्धि इस पांच तत्व के आकर्षण से ऊंची अर्थात् परे होती है। ऐसे फरिश्तों को माया व कोई भी मायावी टच नहीं कर सकेंगे। तो ऐसे बनकर जाना जो न कोई मायावी मनुष्य, न माया टच कर सके। कुमारियों की महिमा बहुत गाई हुई है। लेकिन कौनसी कुमारी? ब्रह्माकुमारियों की महिमा गाई हुई है। ब्रह्माकुमारी अर्थात् ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करने वाली कुमारी। जो टीचर्स बनती हैं उन्हों को सिर्फ प्वाइन्ट बुद्धि में नहीं रखनी है वा वर्णन करनी है लेकिन प्वाइन्ट रूप बनकर प्वाइन्ट वर्णन करनी है। अगर स्वयं प्वाइन्ट स्थिति में स्थित नहीं होंगे तो प्वाइन्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए प्वाइन्ट् इकट्ठी करने के साथ अपना प्वाइन्ट रूप भी याद करते जाना। जब कापियां भरती हो तो कापी को देख यह सब चेक करना कि साकार ब्रह्मा बाप के चरित्रों की कापी बनी हूँ? कापी जो की जाती है वह तो हूबहू होगी ना। ऐसे बाप समान दिखाई पड़ो। सुनाया था ना कि जितनी समानता होगी उतनी सामना करने की शक्ति होगी। समानता लाने से सामना करने की शक्ति स्वत: आ जायेगी। अच्छा।

यह ग्रुप कम नहीं है। इतना बड़ा शक्तिदल जब कोने-कोने में सर्विस पर फैल जायेगा तो क्या होगा? आवाज़ बुलन्द हो जायेगा – ब्रह्माकुमारियों की जय। अभी तो गालियां देते हैं ना। यहां ही आप लोगों के सामने महिमा के पुष्प चढ़ायेंगे। इसलिए कहा कि ऐसे बनकर के जाना जो देखते ही सभी के मुख से यह आवाज़ बुलन्द हो निकले। इस ग्रुप को यह प्रैक्टिकल पेपर देना है। चारों ओर बापदादा और मददगार बच्चों की जय-जयकार हो जाये। ऐसी शक्ति है? एक के संग में रहने से संगदोष से छूट जायेंगे। सदैव चेविंग करो कि बुद्धि का संग किसके साथ है? एक के साथ है? अगर एक का संग है तो अनेक संगदोष से छूट जायेंगे। संगदोष कई प्रकार के दोष पैदा कर देते हैं। इसलिए इसका बहुत ध्यान रखना। एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति होगी तो फिर सदैव आप लोगों के मस्तक से तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा। यहाँ का जो यादगार है उसमें योग की निशानी क्या दिखाई है? तीसरा नेत्र। अगर बुद्धि में तीसरा कोई आ गया तो फिर तीसरा नेत्र बन्दी जायेगा। इसलिए सदैव तीसरा नेत्र खुला रहे, इसके लिए यह याद रखना कि तीसरा न कोई।

न्यारे और विश्व के प्यारे बनने की विधि

प्रश्न 1: अलौकिक नशा और निशाना तथा पारलौकिक नशा और निशाना में क्या अंतर है?
उत्तर: अलौकिक नशा और निशाना इस ईश्वरीय जन्म का होता है, जबकि पारलौकिक नशा और निशाना भविष्य जन्म से संबंधित होता है। यदि दोनों नशे और निशाने को सदा याद रखा जाए, तो आत्मा न्यारी और विश्व की प्यारी बन जाती है।

प्रश्न 2: प्यारे बनने के लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए?
उत्तर: प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं किया जाता, बल्कि न्यारे बनने का किया जाता है। जब आत्मा सर्व से न्यारी बन जाती है, तो वह स्वतः ही सभी की प्यारी बन जाती है।

प्रश्न 3: आत्मा न्यारी क्यों नहीं बन पाती?
उत्तर: आजकल का लगाव स्नेह से नहीं, बल्कि स्वार्थ से होता है। यह स्वार्थ ही आत्मा को न्यारा बनने से रोकता है।

प्रश्न 4: स्वार्थ का वास्तविक अर्थ क्या है और इससे कैसे मुक्त हुआ जा सकता है?
उत्तर: स्वार्थ का अर्थ है “स्व के रथ को स्वाहा करना,” अर्थात् देह-अभिमान, देह-स्मृति और देह का लगाव समाप्त करना। जब स्वार्थ समाप्त होगा, तब आत्मा स्वतः ही न्यारी बन जाएगी।

प्रश्न 5: स्मृति और विस्मृति के आवागमन से कैसे मुक्त हो सकते हैं?
उत्तर: सदैव अपने संपूर्ण स्वरूप का आह्वान करने से इस आवागमन से मुक्त हुआ जा सकता है। जब आत्मा अपने श्रेष्ठ स्वरूप का आह्वान करती रहती है, तो यह ऊपर-नीचे की स्थिति समाप्त हो जाती है और आत्मा सदा लक्की सितारा बनी रहती है।

प्रश्न 6: एक सच्चे इन्चार्ज टीचर को क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: इन्चार्ज बनने से पहले आत्मा की बैटरी चार्ज होनी चाहिए। यदि बैटरी चार्ज नहीं होगी, तो इन्चार्ज पर दोष (चार्जेज) लग सकते हैं।

प्रश्न 7: कुमारियों की कौन-सी महिमा गाई गई है?
उत्तर: ब्रह्माकुमारियों की महिमा गाई गई है, क्योंकि वे ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करने वाली होती हैं। एक सच्ची ब्रह्माकुमारी को केवल ज्ञान बिंदु नहीं रखने चाहिए, बल्कि स्वयं बिंदु रूप में स्थित रहना चाहिए।

प्रश्न 8: समानता और सामना में क्या संबंध है?
उत्तर: जितनी समानता होगी, उतनी ही सामना करने की शक्ति होगी। जब आत्मा बाप समान बन जाती है, तो हर परिस्थिति का सामना सहजता से कर सकती है।

प्रश्न 9: संगदोष से कैसे बच सकते हैं?
उत्तर: “एक बाप, दूसरा हम, तीसरा न कोई” – इस स्मृति में रहने से संगदोष से बच सकते हैं। जब बुद्धि का संग केवल एक से होता है, तो अनेक प्रकार के दोष समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 10: तीसरा नेत्र सदा खुला रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: तीसरा नेत्र तब तक खुला रहेगा, जब तक बुद्धि में तीसरा कोई अन्य नहीं आएगा। यदि बुद्धि में बाप के सिवाय कोई अन्य आ गया, तो तीसरा नेत्र स्वतः बंद हो जाएगा।

निष्कर्ष

यह मुरली हमें न्यारा बनने की विधि सिखाती है, जिससे हम स्वतः ही विश्व के प्यारे बन जाते हैं। साथ ही, यह बताती है कि एक श्रेष्ठ टीचर बनने के लिए आत्मा को चार्ज रहना आवश्यक है। यदि हम बाप समान बनते हैं, तो सभी परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति स्वतः आ जाती है।

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