A-P 50″ परमधाम से सतयुग तक का हिसाब-किताब
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
1. ओम शांति — शुभारंभ और उद्देश्य
हम सभी आत्माओं का एक ही लक्ष्य है—पद्म पद्मपति बनना।
पद्म कर्म कैसे बनाएँ? इसके लिए हम प्रतिदिन मुरली मंथन करते हैं।
आज के इस मंथन में हम एक बहुत गहरा और आवश्यक प्रश्न उठा रहे हैं—
“परमधाम से सतयुग तक की यात्रा का हिसाब-किताब क्या होता है?”
यह मंथन न केवल हमारे ज्ञान को बढ़ाता है, बल्कि हमारे कर्मों को भी दिशा देता है।
आप सभी इस मंथन में जब भी समय मिले, लाइव या रिकॉर्डेड, ज़रूर जुड़ें।
2. परमधाम से पृथ्वी पर आने की प्रक्रिया
जब आत्मा परमधाम से इस धरती पर अवतरित होती है,
तो वह एक शुद्ध, शांत और दिव्य अवस्था में होती है।
लेकिन प्रश्न यह है —
क्या आत्मा परमधाम से आते समय कोई हिसाब-किताब लेकर आती है?
उत्तर यह है —
नहीं, परमधाम से आने के समय आत्मा एक नई यात्रा पर आती है।
परंतु यह यात्रा प्रारंभ होती है उसके संस्कारों और पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर।
सतयुग में प्रवेश करने के लिए आत्मा को तैयार रहना पड़ता है,
और यह तैयारी इस संगम युग में होती है।
3. हिसाब-किताब की प्रक्रिया — कर्मों की गहराई
हर आत्मा को इस संसार में कर्म सिद्धांत के अनुसार स्थान मिलता है।
जो कर्म सतोगुणी होंगे, वे आत्मा को सतयुग का अधिकारी बनाएंगे।
और जो कर्म रजोगुणी या तमोगुणी होंगे, वे द्वापर या कलियुग में ले जाएंगे।
इसलिए कहा गया है—
“यह अंतिम जन्म ही भाग्य विधाता है।”
आज जो हम सोचते हैं, बोलते हैं, और करते हैं—
वही भविष्य की आत्म-यात्रा का आधार बनता है।
यदि आज हमने श्रेष्ठ कर्म किए,
तो सतयुग की पहली आत्माओं में हम भी गिने जाएंगे।
4. कर्मों की सफाई — अंतिम तैयारी
सतयुग में जाने से पहले आत्मा को
अपने सभी पुराने हिसाब-किताबों से मुक्त होना होता है।
यह संभव है केवल तब, जब हम
बाबा की याद, सेवा, और सच्चे संकल्पों द्वारा
अपने हर कर्म को पवित्र और श्रेष्ठ बना लें।
यही है सच्चा बंदे-बांधवों से हिसाब चुक्तु करने का मार्ग।
5. निष्कर्ष — आत्मिक जागृति और पद्म कर्म
तो प्रिय आत्माओं,
हमारी यह यात्रा केवल जन्मों की नहीं,
बल्कि कर्मों की शुद्धता की यात्रा है।
परमधाम से सतयुग तक की यात्रा सरल हो सकती है,
यदि हम आज के समय को समझकर,
अपने कर्मों को योगयुक्त, सेवायुक्त, और निष्काम बना दें।
यही मार्ग है पद्म पद्मपति बनने का।
6. समापन — स्वयं से वादा
आइए, आज हम अपने आपसे एक वादा करें—
कि हम हर कर्म को बाबासमर्पित भावना से करेंगे,
और मुरली मंथन को अपने जीवन का आधार बनाएंगे।
प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1: आत्माएँ परमधाम से पृथ्वी पर कैसे आती हैं?
उत्तर: आत्माएँ परमधाम से तब आती हैं जब उन्हें अपने कर्मों के अनुसार शरीर धारण करना होता है। सतयुग में आने वाली आत्माएँ श्रेष्ठ और शुद्ध होती हैं, क्योंकि वे परमधाम से सीधे नए सृष्टि चक्र में प्रवेश करती हैं।
प्रश्न 2: क्या परमधाम से आते समय आत्माओं का कोई पुराना हिसाब-किताब रहता है?
उत्तर: नहीं, सतयुग में आने वाली आत्माएँ कर्म बंधनों से मुक्त होती हैं। वे नए जीवन में शुद्ध और पुण्य कर्मों के आधार पर प्रवेश करती हैं। लेकिन कलियुग में आने वाली आत्माओं के पास पिछले जन्मों का हिसाब-किताब होता है, जिसे उन्हें भुगतना पड़ता है।
प्रश्न 3: सतयुग में प्रवेश करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: हमें अपने सभी कर्मों को शुद्ध और श्रेष्ठ बनाना चाहिए। सतयुग में प्रवेश करने के लिए हमें इस जन्म में पवित्रता, सेवा और श्रेष्ठ कर्मों को अपनाना होगा ताकि हमारे पुराने हिसाब-किताब समाप्त हो जाएँ।
प्रश्न 4: क्या परमधाम से आने के बाद कर्मों का नया हिसाब-किताब बनता है?
उत्तर: हाँ, जब आत्माएँ इस संसार में आती हैं, तो उनके कर्मों का नया चक्र शुरू होता है। सतयुग में यह हिसाब श्रेष्ठ कर्मों पर आधारित होता है, जबकि कलियुग में यह मिश्रित और कर्मबंधन से युक्त होता है।
प्रश्न 5: इस ज्ञान से हमें क्या लाभ मिलता है?
उत्तर: यह ज्ञान हमें आत्मिक रूप से सशक्त बनाता है और हमें अपने कर्मों को सुधारने की प्रेरणा देता है। जब हम श्रेष्ठ कर्म करते हैं, तो हमारा भविष्य उज्ज्वल होता है और हम सतयुग में प्रवेश के अधिकारी बनते हैं।
निष्कर्ष:जब हम परमधाम से सतयुग में आने की यात्रा पर होते हैं, तो हमें अपने वर्तमान कर्मों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा ही हम पद्म पद्मपति बन सकते हैं और स्वर्णिम युग में श्रेष्ठ आत्माओं की तरह जीवन जी सकते हैं।
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