Skip to content
brahmakumarisbkomshanti

brahmakumarisbkomshanti

Welcome to The Home of Godly Knowledge

  • HOME
  • RAJYOGA
  • LITRATURE
  • INDIAN FESTIVALS
  • CONTACT US
  • DISCLAMER
  • Home
  • MAIN MENU
  • LITERATURES
  • Atma-padam(52) The soul of a living being is its own friend and its own enemy.

Atma-padam(52) The soul of a living being is its own friend and its own enemy.

April 1, 2025June 3, 2025omshantibk07@gmail.com

A-P 52″ जीव की आत्मा अपना आपही मित्र है अपना आपही शत्रु है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

1. ओम शांति — भूमिका और प्रश्न

आज हम एक बेहद गहरे और सशक्त विषय पर मंथन कर रहे हैं:
“कौन बनेगा पद्मा पद्मपति? कब बनेगा? कैसे बनेगा?”

हर आत्मा की यही तो अंतिम मंज़िल है—
सतयुग का श्रेष्ठतम पद प्राप्त करना।

पर यह पद मिलता कैसे है?

जब आत्मा अकर्म का खाता बनाती है,
तो उसका हर शुद्ध कर्म एक-एक पद्म के रूप में जमा होता है।

लेकिन इसका रहस्य समझने के लिए,
हमें आज के मुख्य ज्ञान बिंदु को गहराई से देखना होगा:


2. आत्मा ही अपना मित्र और अपना शत्रु

“जीव की आत्मा अपना आप ही मित्र है और अपना आप ही शत्रु है।”

इस वाक्य में आत्म-परिवर्तन और आत्म-जागृति का सार छुपा है।

कोई और हमें नहीं गिराता,
हम स्वयं अपने विचारों, भावनाओं और कर्मों से
या तो उत्थान करते हैं या पतन।


3. आत्मा स्वयं अपने कर्मों की जिम्मेदार है

हमें सुख-दुख देने वाला न कोई और है,
न कोई परिस्थिति, न ही कोई संबंध।

जो कर्म आत्मा करती है,
वही उसका भाग्य बनाते हैं।

अगर हम योगयुक्त, सेवा युक्त और श्रेष्ठ कर्म करें,
तो हम स्वयं के सच्चे मित्र बनते हैं।


4. मित्र और शत्रु बनने की प्रक्रिया

आत्मा अपने संकल्पों और दृष्टिकोण के द्वारा
दो स्थितियों में जाती है:

  • सकारात्मक सोच, ईश्वरीय स्मृति और पवित्र कर्म से – मित्रता।

  • नकारात्मक सोच, देह-अभिमान और विकारी कर्म से – शत्रुता।

हमारा ही मन और बुद्धि
हमें ऊँचाई तक ले जा सकते हैं या गिरा सकते हैं।


5. पर-दोष और पर-दर्शन से बचाव

जब आत्मा दूसरों के दोष देखती है,
तो स्वयं के सुधार की यात्रा रुक जाती है।

हमें ध्यान रखना है:
मैं किसे देख रहा हूँ – बाबा को या व्यक्ति को?
क्योंकि जो हम देखेंगे,
वही हमारी स्थिति बनाएगा।

इसलिए दृष्टि बदलो, तो सृष्टि बदलेगी।


6. ड्रामा और कर्म का सिद्धांत

यह संसार एक परफेक्ट ड्रामा है।
जो कुछ भी घट रहा है, वह पूर्वनिर्धारित है,
पर हमारा उत्तरदायित्व है—
हर दृश्य को शक्ति और योग से पार करना।

कर्म की आज़ादी है, पर उसका फल पूर्वनिश्चित है।


7. राग-द्वेष से मुक्त होना ही अकर्म बनना

जब आत्मा किसी से राग या द्वेष करती है,
तो वह स्वयं को ही बाँध लेती है।

सतयुगी आत्मा बनने के लिए
हमें समभाव, निष्काम प्रेम और न्यायपूर्ण दृष्टि अपनानी होगी।

तभी तो कहा गया—
“राग-द्वेष से रहित आत्मा ही देवता बनती है।”


8. निष्कर्ष — आत्मा का भाग्य उसके हाथ में

आज का सार यही है:

पद्मा पद्मपति वही बनेगा—
जो अपने मन, बुद्धि और कर्म को ईश्वरीय रीति से चलाएगा।

यदि आत्मा स्वयं से मित्रता करे—
तो श्रेष्ठ कर्मों का खाता जमा होगा,
और सतयुग में उसे उच्च पद, पद्मा पद्मपति के रूप में प्राप्त होगा।


9. समापन — आत्मिक संकल्प

तो आइए, आज हम संकल्प करें—

🌸 मैं स्वयं का मित्र बनूँगा।
🌸 मैं हर कर्म को ईश्वरीय स्मृति में करूँगा।
🌸 मैं परदोष नहीं, स्वयं के सुधार पर ध्यान दूँगा।
🌸 और मैं पद्मा पद्मपति बनने का अकर्म खाता आज से ही बनाना शुरू करूँगा।

प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1: पद्मा पदम पति कौन बन सकता है?

उत्तर: जो आत्मा अकर्म का खाता बनाती है, वह पद्मा पदम पति बन सकती है। जितना हम निष्काम कर्म करेंगे और पुण्य संचित करेंगे, उतना ही उच्च पद पाएंगे।

प्रश्न 2: अकर्म का खाता क्या होता है?

उत्तर: अकर्म का खाता वह होता है जिसमें आत्मा कोई भी ऐसा कर्म नहीं करती जो बंधन में डालने वाला हो, बल्कि सभी कर्म पुण्य रूप में जमा होते हैं।

प्रश्न 3: आत्मा स्वयं अपनी मित्र और शत्रु कैसे बन सकती है?

उत्तर: आत्मा अपने कर्मों और दृष्टिकोण के आधार पर अपना मित्र या शत्रु बनती है। यदि आत्मा श्रेष्ठ विचार और सत्कर्म अपनाती है, तो वह अपनी मित्र बन जाती है। यदि वह नकारात्मकता और बुरे कर्म करती है, तो वह स्वयं की शत्रु बन जाती है।

प्रश्न 4: पर-दर्शन और पर-दोषारोपण से बचने का क्या लाभ है?

उत्तर: जब आत्मा दूसरों की कमियों पर ध्यान नहीं देती और स्वयं को सुधारने पर केंद्रित रहती है, तब वह अपने कर्मों को श्रेष्ठ बना सकती है और आत्म-उन्नति कर सकती है।

प्रश्न 5: ड्रामा और कर्म का क्या संबंध है?

उत्तर: जो कुछ भी जीवन में घटित होता है, वह आत्मा के पूर्व कर्मों के अनुसार होता है। इसीलिए हमें हर परिस्थिति को ड्रामा का पार्ट समझकर सकारात्मक रहना चाहिए।

प्रश्न 6: राग और द्वेष से मुक्त होने का क्या मार्ग है?

उत्तर: आत्मा को समभाव में रहना चाहिए—न किसी से अति आसक्ति रखनी चाहिए और न किसी के प्रति द्वेष। निष्काम भाव से कर्म करना ही मुक्ति का मार्ग है।

प्रश्न 7: पद्मा पदम पति बनने के लिए क्या करना होगा?

उत्तर: हमें ज्ञान को गहराई से समझना होगा, अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना होगा, अकर्म का खाता बनाना होगा और हर स्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

पद्मा पदम पति, आत्मा के कर्म, अकर्म का खाता, सतयुग का उच्च पद, आध्यात्मिक ज्ञान, मित्र और शत्रु, आत्मा की जिम्मेदारी, पर-दर्शन से बचाव, ड्रामा और कर्म, राग-द्वेष से मुक्त, सकारात्मक दृष्टिकोण, आत्मा का उत्थान, ब्रह्माकुमारीज ज्ञान, आध्यात्मिक उन्नति, कर्मों का फल, आत्मा की शक्ति,

Padma Padam Pati, karma of the soul, account of akarma, high position of Satyuga, spiritual knowledge, friend and enemy, responsibility of the soul, protection from other-viewing, drama and karma, freedom from attachment and hatred, positive attitude, upliftment of the soul, Brahma Kumaris knowledge, spiritual advancement, fruit of karmas, power of the soul,

LITERATURES SOUL Ultimate Knowledge of God Tagged #Spiritual knowledge, Account of Akarma, Brahma Kumaris knowledge, drama and karma, freedom from attachment and hatred, friend and enemy, fruit of karmas, high position of Satyuga, karma of the soul, Padma Padam Pati, positive attitude, power of the soul, protection from other-viewing, responsibility of the soul, spiritual advancement, upliftment of the soul, अकर्म का खाता, आत्मा का उत्थान, आत्मा की जिम्मेदारी, आत्मा की शक्ति, आत्मा के कर्म, आध्यात्मिक उन्नति, आध्यात्मिक ज्ञान, कर्मों का फल, ड्रामा और कर्म, पद्मा पदम पति, पर-दर्शन से बचाव, ब्रह्माकुमारीज ज्ञान, मित्र और शत्रु, राग-द्वेष से मुक्त, सकारात्मक दृष्टिकोण, सतयुग का उच्च पद

Post navigation

Atma-padam (50) Accounts from Paramdham (supreme abode) to Satyug
Paramatma-padam(53) Does God create the universe? How does He create it?

Related Posts

God and His Laws {3} The Encounter of God”

ईश्वर और उनके नियम – धारावाहिक का परिचय (प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)  परमात्मा का परिचय कौन दे…

A-P(12)Faith or emotion in the balance of the path of divine knowledge?

आत्मा-पदम (12)परमात्मा ज्ञान के मार्ग के संतुलन में श्रद्धा या भावना? A-P 12″Faith or emotion in the balance of the…

MURLI 19-04-2025/BRAHMAKUMARIS

(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) 19-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा”‘…

Copyright © 2025 brahmakumarisbkomshanti | Ace News by Ascendoor | Powered by WordPress.