( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
(03)09-01-1983 “व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ”
आज बापदादा सभी सिकीलधे बच्चों से मिलन मनाने के लिए विशेष आये हैं। डबल विदेशी बच्चे मिलन मनाने के लिए सदा इन्तजार में रहते हैं। तो आज बापदादा डबल विदेशी बच्चों से एक एक की विशेषता की रूह-रूहान करने आये हैं। एक-एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। कहाँ संख्या ज्यादा और कहाँ संख्या कम होते भी अमूल्य रत्न, विशेष रत्न थोड़े चुने हुए होते भी अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे बच्चों के उमंग-उत्साह को देख, बच्चों की सेवा को देख बापदादा हर्षित होते हैं। विशेष रूप में विदेश के चारों ही कोनों में बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन प्रैक्टिकल करने में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। सर्व धर्मों की आत्माओं को बाप से मिलाने का प्रयत्न अच्छा कर रहे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। अपनी भटकती हुई आत्मा को ठिकाना मिलने के अनुभवी होने के कारण औरों के प्रति भी रहम आता है। जो भी दूर-दूर से आये हैं उन्हों का एक ही उमंग है कि जाना है और अन्य को भी ले जाना है। इस दृढ़ संकल्प ने सभी बच्चों को दूर होते भी नजदीक का अनुभव कराया है। इसलिए सदा अपने को बापदादा के वर्से के अधिकारी आत्मा समझ चल रहे हैं।
कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में नहीं लाओ। कल्प-कल्प के पात्र हो। अच्छा, आज तो पार्टियों से मिलना है। पहला नम्बर मिलने का चान्स अमेरिका पार्टी को मिला है। तो अमेरिका वाले सभी मिलकर सेवा में सबसे नम्बरवन कमाल भी तो दिखायेंगे ना। अभी बापदादा देखेंगे कि कॉन्फ्रेंस में सबसे बड़े ते बड़े वी.आई.पी. कौन ले आते हैं। नम्बरवन वी.आई.पी. कहाँ से आ रहा है? (अमेरिका से) वैसे तो आप बाप के बच्चे वी.वी.वी.आई.पी. हो। आप सबसे बड़ा तो कोई भी नहीं है लेकिन जो इस दुनिया के वी.आई.पी. हैं उन आत्माओं को भी सन्देश देने का यह चान्स है। इन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह पुरुषार्थ करना पड़ता है क्योंकि वे तो अपने को इस पुरानी दुनिया के बड़े समझते हैं ना। तो छोटे-छोटे कोई प्रोग्राम में आना वह अपना रिगार्ड नहीं समझते। इसलिए बड़े प्रोग्राम में बड़ों को बुलाने का चान्स है। वैसे तो बापदादा बच्चों से ही मिलते और रूह-रूहान करते। विशेष आते भी बच्चों के लिए ही हैं। फिर ऐसे-ऐसे लोगों का भी उल्हना न रह जाए कि हमें हमारे योग्य निमंत्रण नहीं मिला इस उल्हनें को पूरा करने के लिए यह सब प्रोग्राम रचे जाते हैं। बापदादा को तो बच्चों से प्रीत है और बच्चों को बापदादा से प्रीत है। अच्छा।
सभी डबल विदेशी तन से और मन से सन्तुष्ट हो? थोड़ा भी किसको कोई संकल्प तो नहीं है? कोई तन की वा मन की प्रॉब्लम है? शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा। (एक बच्चे ने कहा रात्रि को नींद नहीं आती है) सोने के पहले योग में बैठो तो फिर नींद आ जायेगी। योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।
कोई भी बात में किसको भी कोई क्वेश्चन हो या छोटी सी बात में कब कन्फ्यूज़ भी जल्दी हो जाते, तो वह छोटी-छोटी बातें फौरन स्पष्ट करके आगे चलते चलो। ज्यादा सोचने के अभ्यासी नहीं बनो। जो भी सोच आये उसको वहाँ ही खत्म करो। एक सोच के पीछे अनेक सोच चलने से फिर स्थिति और शरीर दोनों पर असर आता है। इसलिए डबल विदेशी बच्चों को सोचने की बात पर डबल अटेन्शन देना चाहिए क्योंकि अकेले रहकर सोचने के नेचुरल अभ्यासी हो। तो वह अभ्यास जो पड़ा हुआ है, इसलिए यहाँ भी छोटी-छोटी बात पर ज्यादा सोचते। तो सोचने में टाइम वेस्ट जाता और खुशी भी गायब हो जाती और शरीर पर भी असर आता है, उसके कारण फिर सोच चलता है। इसलिए तन और मन दोनों को सदा खुश रखने के लिए सोचो कम। अगर सोचना ही है तो ज्ञान रत्नों को सोचो। व्यर्थ संकल्प की भेंट में समर्थ संकल्प चलता है कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग लगता नहीं। अशरीरी होते नहीं। यह है व्यर्थ संकल्प। उनकी भेंट में समर्थ संकल्प करो, याद तो मेरा स्वधर्म है। बच्चे का धर्म ही है बाप को याद करना। क्यों नहीं होगा, जरूर होगा। मैं योगी नहीं तो और कौन बनेगा! मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। तो व्यर्थ के बजाए इस प्रकार के समर्थ संकल्प चलाओ। मेरा शरीर चल नहीं सकता, व्यर्थ संकल्प नहीं चलाओ। इसके बजाए समर्थ संकल्प यह है कि इसी अन्तिम जन्म में बाप ने हमको अपना बनाया है। कमाल है, बलिहारी इस अन्तिम शरीर की। जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म-जन्म का वर्सा ले लिया। दिलशिकस्त के संकल्प नहीं करो। लेकिन खुशी के संकल्प करो। वाह मेरा पुराना शरीर, जिसने बाप से मिलाने के निमित्त बनाया। वाह वाह कर चलाओ। जैसे घोड़े को प्यार से, हाथ से चलाते हैं तो घोड़ा बहुत अच्छा चलता है। अगर घोड़े को बार-बार चाबुक लगायेंगे तो और ही तंग करेगा। यह शरीर भी आपका है, इनको बार-बार ऐसे नहीं कहो कि यह पुराना, बेकार शरीर है। यह कहना जैसे चाबुक लगाते हो। खुशी-खुशी से इसकी बलिहारी गाते आगे चलाते रहो। फिर यह पुराना शरीर कभी डिस्टर्ब नहीं करेगा। बहुत सहयोग देगा। (कोई ने कहा – प्रामिस भी करके जाते हैं, फिर भी माया आ जाती है)
माया से घबराते क्यों हो? माया आती है आपको पाठ पढ़ाने लिए। घबराओ नहीं। पाठ पढ़ लो। कभी सहनशीलता का पाठ, कभी एकरस स्थिति में रहने का पाठ पढ़ाती। कभी शान्त स्वरूप बनने का पाठ पक्का कराने आती। तो माया को उस रूप में नहीं देखो माया आ गई, घबरा जाते हो। लेकिन समझो कि माया भी हमारी सहयोगी बन, बाप से पढ़ा हुआ पाठ पक्का कराने के लिए आई है। माया को सहयोगी के रूप में समझो। दुश्मन नहीं। पाठ पक्का कराने के लिए सहयोगी है तो आपका अटेन्शन सारा उस बात में चला जायेगा। फिर घबराहट कम होगी और हार नहीं खायेंगे। पाठ पक्का करके अंगद के समान बन जायेंगे। तो माया से घबराओ नहीं। जैसे छोटे बच्चों को माँ बाप डराने के लिए कहते हैं, हव्वा आ जायेगा। आप सबने भी माया को हव्वा बना दिया है। वैसे माया खुद आप लोगों के पास आने में घबराती है। लेकिन आप स्वयं कमजोर हो, माया का आव्हान करते हो। नहीं तो वह आयेगी नहीं। वह तो विदाई के लिए ठहरी हुई है। वह भी इन्तजार कर रही है कि हमारी लास्ट डेट कौन सी है? अब माया को विदाई देंगे या घबरायेंगे।
डबल विदेशियों की यह एक विशेषता है – उड़ते भी बहुत तेज हैं और फिर डरते हैं तो छोटी सी मक्खी से भी डर जाते हैं। एक दिन बहुत खुशी में नाचते रहेंगे और दूसरे दिन फिर चेहरा बदली हो जायेगा। इस नेचर को बदली करो। इसका कारण क्या है?
इन सब कारणों का भी फाउण्डेशन है – सहनशक्ति की कमी। सहन करने के संस्कार शुरू से नहीं हैं, इसलिए जल्दी घबरा जाते हो। स्थान को बदलेंगे या जिन से तंग होंगे उनको बदल लेंगे। अपने को नहीं बदलेंगे। यह जो संस्कार है वह बदलना है। “मुझे अपने को बदलना है” स्थान को वा दूसरे को नहीं बदलना है लेकिन अपने को बदलना है। यह ज्यादा स्मृति में रखो, समझा। अब विदेशी से स्वदेशी संस्कार बना लो। सहनशीलता का अवतार बन जाओ। जिसको आप लोग कहते हो अपने को एडजेस्ट करना है। किनारा नहीं करना है, छोड़ना नहीं है।
हंस और बगुले की बात अलग है। उन्हों की आपस में खिट-खिट है। वह भी जहाँ तक हो सके उसके प्रति शुभ भावना से ट्रायल करना अपना फ़र्ज है। कई ऐसे भी मिसाल हुए हैं जो बिल्कुल एन्टी थे लेकिन शुभ भावना से निमित्त बनने वाले से भी आगे जा रहे हैं। तो शुभ भावना फुल फोर्स से ट्रायल करनी चाहिए। अगर फिर भी नहीं होता है तो फिर डायरेक्शन लेकर कदम उठाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे किनारा कर देने से कहाँ डिस सर्विस भी हो जाती है। और कई बार ऐसा भी होता है कि आने वाली ब्राह्मण आत्मा की कमी होने के कारण अन्य आत्मायें भी भाग्य लेने से वंचित रह जाती हैं। इसलिए पहले स्वयं ट्रायल करो फिर अगर समझते हो यह बड़ी प्रॉब्लम है तो निमित्त बनी आत्माओं से वेरीफाय कराओ। फिर वह भी अगर समझती हैं कि अलग होना ही ठीक है फिर अलग हुए भी तो आपके ऊपर जवाबदारी नहीं रही। आप डायरेक्शन पर चले। फिर आप निश्चिन्त। कई बार ऐसा होता है – जोश में छोड़ दिया, लेकिन अपनी गलती के कारण छोड़ने के बाद भी वह आत्मा खींचती रहती है। बुद्धि जाती रहती है यह भी बड़ा विघ्न बन जाता है। तन से अलग हो गये लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता इसलिए निमित्त बनी हुई आत्माओं से वेरीफाय कराओ क्योंकि यह कर्मों की फिलॉसाफी है। जबरदस्ती तोड़ने से भी मन बार-बार जाता रहता है। कर्म की फिलॉसाफी को ज्ञान स्वरूप होकर पहचानो और फिर वेरीफाय कराओ। फिर कर्म बन्धन को ज्ञान युक्त होकर खत्म करो।
बाकी ब्राह्मण आत्माओं में हमशरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष बात यह सोचो कि जो हमशरीक हैं, उनको निमित्त बनाने वाला कौन? उनको नहीं देखो फलाना इस ड्युटी पर आ गया, फलानी टीचर हो गई, नम्बरवन सर्विसएबुल हो गई। लेकिन यह सोचो कि उस आत्मा को निमित्त बनाने वाला कौन? चाहे निमित्त बनी हुई विशेष आत्मा द्वारा ही उनको ड्युटी मिलती है लेकिन निमित्त बनने वाली टीचर को भी निमित्त किसने बनाया? इसमें जब बाप बीच में हो जायेगा तो माया भाग जायेगी, ईर्ष्या भाग जायेगी लेकिन जैसे कहावत है ना – या होगा बाप या होगा पाप। जब बाप को बीच से निकालते हो तब पाप आता है। ईर्ष्या भी पाप कर्म है ना। अगर समझो बाप ने निमित्त बनाया है तो बाप जो कार्य करते उसमें कल्याण ही है। अगर उसकी कोई ऐसी बात अच्छी न भी लगती है, रांग भी हो सकती है, क्योंकि सब पुरुषार्थी हैं। अगर रांग भी है तो अपनी शुभ भावना से ऊपर दे देना चाहिए। ईर्ष्या के वश नहीं। लेकिन बाप की सेवा सो हमारी सेवा है – इस शुभ भावना से, श्रेष्ठ जिम्मेवारी से ऊपर बात दे देनी चाहिए। देने के बाद खुद निश्चिन्त हो जाओ। फिर यह नहीं सोचो कि यह बात दी फिर क्या हुआ? कुछ हुआ नहीं। हुआ या नहीं, यह ज़िम्मेवारी बड़ों की हो जाती है। आपने शुभ भावना से दी, आपका काम है अपने को खाली करना। अगर देखते हो बडों के ख्याल में बात नहीं आई तो भल दुबारा लिखो। लेकिन सेवा की भावना से। अगर निमित्त बने हुए कहते हैं कि इस बात को छोड़ दो तो अपना संकल्प और समय व्यर्थ नहीं गंवाओ। ईर्ष्या नहीं करो। लेकिन किसका कार्य है, किसने निमित्त बनाया है, उसको याद करो। किस विशेषता के कारण उनको विशेष बनाया गया है, वह विशेषता अपने में धारण करो तो रेस हो जायेगी न कि रीस। समझा।
अपसेट कभी नहीं होना चाहिए। जिसने कुछ कहा उनसे ही पूछना चाहिए कि आपने किस भाव से कहा – अगर वह स्पष्ट नहीं करते तो निमित्त बने हुए से पूछो कि इसमें मेरी गलती क्या है? अगर ऊपर से वेरीफाय हो गया, आपकी गलती नहीं है तो आप निश्चिन्त हो जाओ। एक बात सभी को समझनी चाहिए कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही हिसाब-किताब चुक्तू होना है। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं। तो घबराओ नहीं कि यह ब्राह्मण परिवार में क्या होता है। ब्राह्मणों का हिसाब-किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तू होना है। तो यह चुक्तू हो रहा है, इसी खुशी में रहो। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और तरक्की ही तरक्की हुई। अभी एक वायदा करो कि छोटी-छोटी बात में कन्फ्यूज़ नहीं होंगे, प्रॉब्लम नहीं बनेंगे लेकिन प्रॉब्लम को हल करने वाले बनेंगे। समझा।
अमेरिका पार्टी से:- आप सब बापदादा के सिर के ताज, श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। श्रेष्ठ आत्माओं का हर संकल्प, हर बोल श्रेष्ठ होगा। कभी कभी नहीं सदा क्योंकि सदा का वर्सा पा रहे हो ना। तो जब सदा का वर्सा पाने के अधिकारी हो तो स्थिति भी सदाकाल की। ‘सदा’ शब्द को सदा याद रखना। यही वरदान सभी बच्चों को बापदादा देते हैं। सदा खुश रहेंगे, सदा उड़ती कला में रहेंगे, सदा सर्व खजानों से सम्पन्न रहेंगे। ऐसे वरदान लेने वाली आत्मायें सहजयोगी स्वत: हो जाती हैं। आज खुशी का दिन है! सबसे अधिक खुशी किसको है, बाप को है या बच्चों को है? (बच्चों को है) बापदादा को यह खुशी है कि ऐसा कोई बाप सारे वर्ल्ड में नहीं होगा जिसका हरेक बच्चा श्रेष्ठ हो। बापदादा एक एक बच्चे की अगर विशेषता का वर्णन करें तो कई वर्ष बीत जाएं। हरेक बच्चे की महिमा के बड़े बड़े शास्त्र बन जाएं विशेष आत्मा हो – ऐसा निश्चय हो तो सदा मायाजीत स्वत: हो जायेंगे।
मैक्सिको ग्रुप से:- जितना दूर हैं उतना दिल से समीप हो? ऐसा अनुभव करते हो ना? सभी ने अपनी सीट बापदादा का दिलतख्त रिजर्व कर लिया है? बापदादा एक एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न स्थापना के कार्य को सफल करने के निमित्त हैं। तो अपने को इतने अमूल्य रत्न समझते हो? कितनी भाग्यवान आत्मायें हो जो इतनी दूर से भी बाप ने ढूंढ कर अपना बनाया है। आज की दुनिया में जो बड़े बड़े विद्वान, आचार्य हैं, उन्हों से आप पदमगुणा अधिक भाग्यवान हो। बस इसी खुशी मे रहो कि जो जीवन में पाना था वह पा लिया।
न्यूजीलैण्ड:- न्यू लैण्ड बना रहे हो ना? स्वयं को भी नया बनाया तो विश्व को भी नया बनायेंगे ना। अपना आक्यूपेशन यही सुनाते और लिखते हो ना कि हम सभी विश्व का नव निर्माण करने वाले हैं। तो जहाँ रहते हो उसको तो नया बनायेंगे ना। हरेक स्थान की अपनी विशेषता है। न्यूजीलैण्ड की विशेषता क्या है? न्यूजीलैण्ड में गये हुए भारतवासियों ने फिर से भारत के श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बाप को पहचान लिया है। भारत में रहते भारतवासी बच्चों ने नहीं जाना लेकिन विदेश में रहते भारत की महिमा को और बाप को जान लिया। न्यूजीलैण्ड में भारत के बिछड़े हुए बच्चे अच्छे अच्छे निकले हैं। टीचर्स पीछे मिली हैं। लेकिन सर्विस की स्थापना पहले की। इसलिए हिम्मत वाले बच्चे, उमंग-उल्लास वाले बच्चे विशेष हैं। समझा।
जर्मन और हेमबर्ग:- सभी बापदादा के अमूल्य रत्न हो? कौन से रत्न हो और कहाँ रहते हो? मस्तक मणी हो? गले का हार हो या कंगन हो? (तीनों हैं) तो बापदादा के विशेष श्रृंगार हो गये ना! सभी को यह नशा है ना कि हम विश्व के मालिक के बालक हैं। इसी नशे में खुशी में सदा नाचते रहो। बाप के हाथ में हाथ है, बाप के साथ खुशी में सारा समय नाचो। बापदादा की कम्पनी और बापदादा के परिवार के हो। अभी और कहाँ क्लब आदि में जाने की आवश्यकता नहीं। सदा चेहरे में ऐसी खुशी की झलक हो जो आपका चियरफुल चेहरा बोर्ड का काम करे। इसमें स्वत: एडवरटाइज हो जायेगी। बापदादा को भी ग्रुप को देखकर के खुशी हो रही है। जिस भी स्थान पर रहते हो उस स्थान से बहुत चुने हुए रत्न बापदादा ने जो निकाले हैं वह रत्न यहाँ पहुंच गये। बापदादा की इलेक्शन में विशेष आत्मायें हो। इस इलेक्शन में मिनिस्टर आदि नहीं बनते लेकिन यहाँ तो विश्व महाराजा बनते हो।
अध्याय: व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ
1. मिलन का दिव्य क्षण
आज बापदादा विशेष रूप से डबल विदेशी बच्चों से मिलन मनाने पधारे हैं। हर बच्चे की विशेषता को देख, बापदादा रूह-रूहान कर रहे हैं। चाहे संख्या कम हो, लेकिन हर एक आत्मा अमूल्य रत्न के समान है। विदेशों में सेवा का उमंग-उत्साह और बाप को प्रत्यक्ष करने की योजनाएं सफलतापूर्वक चल रही हैं।
2. व्यर्थ संकल्पों से बचाव
बापदादा ने बच्चों को स्मृति दिलाई:
“कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में मत लाओ।”
स्वयं को कल्प-कल्प के पात्र और वर्से के अधिकारी आत्मा समझो। व्यर्थ संकल्प जैसे – “योग नहीं लगता”, “मैं समर्थ नहीं हूँ” – को छोड़कर समर्थ संकल्प चलाओ –
“मेरा धर्म ही है बाप को याद करना। मैं ही सहज योगी हूँ।”
3. तन-मन को संतुलित रखने का रहस्य
बापदादा ने स्पष्ट कहा –
“शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। मन की खुशी से शरीर को भी ठीक करो।”
दवा और दुआ दोनों के संतुलन से तन और मन स्वस्थ रहेंगे। रात में नींद न आने पर योग में बैठकर बापदादा के गुणों के गीत गाओ – यह साधना स्वयं को सशक्त बनाएगी।
4. सोच की सीमा और समाधान
डबल विदेशी बच्चों को विशेष समझाया –
“सोचो कम। अगर सोचना है, तो ज्ञान रत्नों को सोचो।”
छोटी-छोटी बातों पर अधिक सोचकर समय, स्थिति और शरीर को प्रभावित न करो। व्यर्थ सोचों की जगह समर्थ ज्ञान चिंतन को रखो।
5. माया को दुश्मन नहीं, सहयोगी मानो
“माया पाठ पढ़ाने आती है – सहनशीलता, एकरसता, शान्त स्वरूप का।”
माया से डरना नहीं, बल्कि उसे पाठ पक्का कराने वाली सहयोगी समझकर विनम्रतापूर्वक सीख लो। उसे “हव्वा” न बनाओ – वह आपकी शक्ति देखकर स्वयं डरती है।
6. परिवर्तन की दिशा – स्थान नहीं, स्वयं को बदलो
“मुझे अपने को बदलना है, स्थान या व्यक्ति को नहीं।”
सहनशीलता की कमी से परिस्थितियों से भागने का स्वभाव बन जाता है। बापदादा ने कहा, “किनारा नहीं करना है, एडजस्ट करना है।” यही स्वदेशी संस्कार है।
7. शुभ भावना का चमत्कार
“शुभ भावना से विरोधी आत्माएं भी श्रेष्ठ बन सकती हैं।”
अगर किसी से खटपट हो, तो भी शुभ भावना से ट्रायल करो। फिर भी समाधान न हो, तो वरिष्ठ आत्माओं से सत्यता वेरीफाय करके कदम उठाओ – यह कर्म बंधन को भी हल्का करेगा।
8. ईर्ष्या नहीं, बाप का चयन देखो
“या होगा बाप या होगा पाप।”
अगर कोई विशेष सेवा पर है, तो देखो किसने उन्हें निमित्त बनाया है – स्वयं शिव बाबा ने। उनकी विशेषता को देखो, ईर्ष्या नहीं। शुभ भावना से सेवा का भाव रखो, तभी रेस होगी, रीस नहीं।
9. ब्राह्मण आत्माओं से हिसाब-किताब चुक्तू
“ब्राह्मणों द्वारा ही ब्राह्मण आत्माओं का हिसाब चुक्तू होता है।”
इस प्रक्रिया से घबराओ नहीं। यह हिसाब चुक्तू हो रहा है, इसी में तरक्की है। हर समस्या को हल करने वाला बनो, कन्फ्यूज़ होने वाला नहीं।
10. विशेषताओं से भरे श्रेष्ठ आत्माओं के ग्रुप
अमेरिका:
सिर के ताज स्वरूप श्रेष्ठ आत्माएं, सदा के वर्से की अधिकारी।
मैक्सिको:
दूरी में भी समीप, जीवन को सफल बनाने वाली अमूल्य रत्न।
न्यूज़ीलैंड:
भारत से बिछड़ी आत्माएं, जिन्होंने विदेश में बाप को पहचाना।
जर्मनी और हेमबर्ग:
बापदादा के श्रृंगार स्वरूप, खुशी से नाचते, सेवा में अग्रणी।
11. वरदान और प्रतिज्ञा
“सदा का वर्सा पाने के अधिकारी हो, तो स्थिति भी सदा की रखो।”
बापदादा का वरदान – सदा खुश रहो, सदा उड़ती कला में रहो, सदा सम्पन्न रहो।
और आज की प्रतिज्ञा:
“छोटी बात में कन्फ्यूज़ नहीं होंगे, प्रॉब्लम नहीं बनेंगे, हल करने वाले बनेंगे।”
व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ
प्रश्न 1: बापदादा किससे विशेष मिलन मनाने पधारे?
उत्तर: डबल विदेशी बच्चों से।
प्रश्न 2: बापदादा के अनुसार व्यर्थ संकल्पों का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: वे आत्मा को हलचल में डालते हैं और समर्थ स्थिति को डगमग करते हैं।
प्रश्न 3: समर्थ संकल्प का उदाहरण क्या है?
उत्तर: “मेरा धर्म है बाप को याद करना। मैं सहज योगी आत्मा हूँ।”
प्रश्न 4: तन-मन का संतुलन कैसे रखें?
उत्तर: दवा और दुआ दोनों का संतुलन रखकर, और मन की खुशी से तन को ठीक करें।
प्रश्न 5: यदि रात में नींद न आए तो क्या करें?
उत्तर: योग में बैठकर बापदादा के गुणों का स्मरण करें।
प्रश्न 6: सोचने की सही दिशा क्या होनी चाहिए?
उत्तर: कम सोचें, और सोचें तो केवल ज्ञान रत्नों को सोचें।
प्रश्न 7: माया को कैसे देखना चाहिए?
उत्तर: माया को दुश्मन नहीं, पाठ पढ़ाने वाली सहयोगी मानें।
प्रश्न 8: बापदादा के अनुसार परिवर्तन कहां करना है?
उत्तर: स्थान या व्यक्ति में नहीं, स्वयं में परिवर्तन करना है।
प्रश्न 9: अगर किसी से मतभेद हो जाए तो क्या करें?
उत्तर: शुभ भावना रखें, ट्रायल करें, फिर वरिष्ठ आत्माओं से सत्यता स्पष्ट करें।
प्रश्न 10: किसी की विशेष सेवा देखकर ईर्ष्या क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर: क्योंकि उन्हें निमित्त स्वयं बाप ने बनाया है – सेवा भाव रखें, रीस नहीं।
प्रश्न 11: ब्राह्मण आत्माओं से हिसाब चुक्तू होना क्यों जरूरी है?
उत्तर: यही हिसाब चुक्तू आत्मा की तरक्की का माध्यम बनता है।
प्रश्न 12: अमेरिका की आत्माओं की विशेषता क्या बताई गई?
उत्तर: सिर के ताज स्वरूप, सदा के वर्से की अधिकारी।
प्रश्न 13: न्यूज़ीलैंड की आत्माओं को कैसे वर्णित किया गया?
उत्तर: भारत से बिछड़ी आत्माएं, जिन्होंने विदेश में बाप को पहचाना।
प्रश्न 14: आज की प्रतिज्ञा क्या है?
उत्तर: “छोटी बात में कन्फ्यूज़ नहीं होंगे, प्रॉब्लम नहीं बनेंगे, हल करने वाले बनेंगे।”
प्रश्न 15: बापदादा का वरदान क्या है?
उत्तर: सदा खुश रहो, उड़ती कला में रहो, और सदा सम्पन्न रहो।(डिस्क्लेमर):
यह वीडियो आध्यात्मिक जागृति एवं आत्म-परिवर्तन के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें व्यक्त विचार, बापदादा की मुरली पर आधारित हैं जो ब्रह्माकुमारिज़ संस्थान द्वारा प्रदान की जाती हैं। यह वीडियो किसी विशेष धर्म, जाति या समुदाय के विरुद्ध नहीं है। कृपया इसे आत्म कल्याण के दृष्टिकोण से देखें।
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