Avyakta Murli-(12) 07-03-1982

अव्यक्त मुरली-(12)“संकल्प की गति धैर्यवत होने से लाभ”07-03-1982

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“बापदादा से मुलाकात: संकल्प की शक्ति और स्मृति स्वरुप बच्चों की विशेष रेखाएँ |


स्पीच – मुख्य हेडिंग्स के साथ

1. परिचय: बापदादा का स्मृति स्वरुप बच्चों से मिलन

ओम शांति।
आज बापदादा ‘एक बाप, दूसरा न कोई’ की स्थिति में स्मृति स्वरुप बच्चों से मिलने आए हैं।
हर बच्चे के जन्म की श्रेष्ठ रेखाएँ बापदादा देख रहे हैं।
आज की दुनिया में लोग हाथ की रेखाएँ देखकर आत्मा के गुण और भाग्य का अनुमान लगाते हैं। लेकिन बापदादा हस्त रेखाएँ नहीं देखते, वे बच्चों के मुख, नयन और मस्तक से उनकी विशेष एनर्जी और संकल्प की गति देखते हैं।


2. मस्तक और संकल्प की रेखाएँ

  • मस्तक की रेखाओं से संकल्प की गति और स्थिरता देखी जाती है।

  • अगर संकल्प की गति बहुत तीव्र है, तो एनर्जी वेस्ट होती है।

  • जैसे शरीर की ऊर्जा व्यर्थ बोलने या तेज गति से काम करने पर खर्च होती है, वैसे ही संकल्प की तेज गति से आत्मा की रुहानी शक्ति वेस्ट होती है।

  • सुपर टिप: संकल्प की गति धैर्यवत रखो। व्यर्थ नहीं, समर्थ संकल्प करो।


3. मुख और नयन द्वारा पहचान

  • नयन द्वारा ज्वाला रूप देखी जाती है।

  • मुख की मुस्कान से न्यारेपन और प्यारेपन की स्थिति देखी जाती है।

  • जैसे बोलने की कला कम शब्दों में महावाक्य बोलना है, वैसे ही संकल्प भी कम लेकिन समर्थ होना चाहिए।


4. संकल्प – आत्मा का खज़ाना

  • मरजीवे बनने का आधार है शुद्ध संकल्प

  • “मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ” – यह संकल्प आत्मा को सर्वशक्तिमान बनाता है।

  • व्यर्थ संकल्प बट (बांस) के जंगल की तरह हैं, जो आपस में टकराकर विकार की आग पैदा करते हैं।

  • समर्थ संकल्प कम लेकिन शक्तिशाली होते हैं, और यही सच्चा खज़ाना और एनर्जी है।


5. विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

  • बापदादा ने बच्चों के सहयोग, सेवा और सहजता को देखा।

  • प्रत्येक बच्चे का सर्विस पार्ट अमूल्य है।

  • बच्चों ने कठिनाइयाँ पार कर के बाप की सेवा की।

  • तीन शब्द हमेशा याद रखें:

    1. सदा बैलेंस

    2. सदा ब्लिसफुल रहना

    3. सर्व को ब्लैसिंग देना


6. बुद्धि और कर्म में कला

  • बच्चों के कर्म और कदमों में कला का होना जरूरी है।

  • बुद्धि का बैलेंस बनाए रखना – हर कार्य कला के रूप में हो।

  • सदा आनंद स्वरुप रहना, और बच्चों का आनंद सागर में डुबो देना।


7. समापन और प्रेरणा

  • बाप और बच्चों का मिलन हमेशा जारी रहेगा।

  • बच्चों को सदा बाप के साथ कम्बाइंड रूप में रहना चाहिए।

  • संकल्प और वाणी की शक्ति से आत्मा सदा समर्थ और महावीर, महारथी स्वरुप बनती है।

प्रश्न 1: बापदादा स्मृति स्वरुप बच्चों से क्यों मिलते हैं?

उत्तर:
बापदादा ‘एक बाप, दूसरा न कोई’ की स्थिति में स्मृति स्वरुप बच्चों से मिलते हैं। वे बच्चों के जन्म की श्रेष्ठ रेखाएँ नहीं हाथों से, बल्कि मस्तक, नयन और मुख से देखते हैं। इससे वे बच्चों की विशेष एनर्जी और संकल्प की गति पहचानते हैं।


प्रश्न 2: मस्तक की रेखाओं से क्या देखा जाता है?

उत्तर:
मस्तक की रेखाओं से संकल्प की गति और स्थिरता देखी जाती है।

  • तेज गति के संकल्प से रुहानी एनर्जी वेस्ट होती है।

  • समर्थ संकल्प कम संख्या में होते हैं लेकिन अधिक शक्तिशाली होते हैं।

  • सुपर टिप: संकल्प की गति धैर्यवत रखो, व्यर्थ नहीं।


प्रश्न 3: मुख और नयन द्वारा बच्चों की क्या पहचान होती है?

उत्तर:

  • नयन से ज्वाला रूप देखी जाती है।

  • मुख की मुस्कान से न्यारेपन और प्यारेपन का पता चलता है।

  • कम शब्दों में महावाक्य बोलने और संकल्प करने की कला आत्मा को समर्थ बनाती है।


प्रश्न 4: संकल्प को आत्मा का खज़ाना क्यों कहा गया है?

उत्तर:

  • मरजीवे बनने का आधार शुद्ध संकल्प है।

  • “मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ” – यह संकल्प आत्मा को सर्वशक्तिमान बनाता है।

  • व्यर्थ संकल्प बट के जंगल की तरह हैं, जो आपस में टकराकर विकार की आग पैदा करते हैं।

  • समर्थ संकल्प कम संख्या में होते हैं, लेकिन शक्तिशाली और फलदायी होते हैं।


प्रश्न 5: विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात में क्या विशेष था?

उत्तर:

  • बापदादा ने बच्चों की सेवा, सहयोग और सहजता देखी।

  • प्रत्येक बच्चे का सर्विस पार्ट अमूल्य है।

  • तीन शब्द हमेशा याद रखें:

    1. सदा बैलेंस

    2. सदा ब्लिसफुल रहना

    3. सर्व को ब्लैसिंग देना


प्रश्न 6: बुद्धि और कर्म में कला क्यों जरूरी है?

उत्तर:

  • बच्चों के कर्म और कदमों में कला का होना चाहिए।

  • बुद्धि का बैलेंस बनाए रखना जरूरी है।

  • हर कर्म कला के रूप में होना चाहिए और हमेशा आनंद स्वरुप रहना चाहिए।


प्रश्न 7: इस स्पीच से बच्चों को क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर:

  • बाप और बच्चों का मिलन हमेशा रहेगा।

  • बच्चों को सदा बाप के साथ कम्बाइंड रूप में रहना चाहिए।

  • संकल्प और वाणी की शक्ति से आत्मा सदा समर्थ, महावीर और महारथी स्वरुप बनती है।

Disclaimer (डिस्क्लेमर):
यह वीडियो और सामग्री केवल आध्यात्मिक शिक्षाओं और मार्गदर्शन के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दी गई जानकारी ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक दृष्टिकोण और साकार-अव्यक्त बापदादा की वाणियों पर आधारित है। यह किसी भी प्रकार का चिकित्सा, कानूनी या व्यक्तिगत सलाह नहीं है। दर्शक अपने विवेक और आध्यात्मिक समझ के अनुसार ही इस ज्ञान का उपयोग करें।

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