Avyakta Murli”08-05-1973(2)

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

सर्वोच्च स्वमान

सर्व खजानों से भरपूर करने वाले, महादानी, वरदानी, महात्यागी व पद्मापद्म भाग्यशाली बनाने वाले, वरदानीमूर्त्त शिवबाबा बोले:-

सूर्यवंशी अर्थात् सम्पन्न। किसी भी बात में यदि सम्पन्न नहीं तो सूर्यवंशी नहीं कहेंगे। तो सभी खज़ानों को सामने रखते हुए अपने-आप को चेक करो कि यह कहाँ तक है, कितनी अन्दाज़ में हैं? ऐसा तो नहीं कि थोड़े में ही खुश हो गये हैं।

तो इन सभी खज़ानों को चेक करना और साथ-साथ यह भी चेक करो कि जो भी खज़ाने मिले हैं उनके महादानी बने हो या अपने प्रति ही रख लिया है? महादानी जो होते हैं वह अपना भी दूसरों को दे देते हैं, लेकिन फिर भी वे भिखारी नहीं बनते। क्योंकि जो देते हैं वो उनके पास ऑटोमेटिकली बढ़ता है। तो यह भी देखो कि पवित्रता का खज़ाना कहाँ तक अनेक आत्माओं को दान दिया है? अतीन्द्रिय सुख का खज़ाना भी देखना है कि ज्यादा अपने प्रति लगाते हो या विश्व की सेवा अर्थ लगाते हो? अपनी प्राप्ति तो कर ली ना? लेकिन अभी की स्टेज विश्व की सेवा के प्रति लगाने की है। तो यह चेक करो कि हर खज़ाना अपने प्रति कहाँ तक लगाया है? और दूसरों के प्रति कहाँ तक लगाते हैं? सम्पूर्ण स्टेज इसको कहा जाता है। क्या सर्व खज़ाने औरों के प्रति लगाये? अगर अपने पुरूषार्थ के प्रति ही ज्ञान का ख़ज़ाना व शक्तियों का खज़ाना लगाते रहते हो तो वह भी सम्पूर्ण स्टेज नहीं हुई। अब दूसरों के प्रति लगाने का समय है। अगर अभी तक भी सर्वशक्तियों को अपने प्रति ही प्रयोग करते रहेंगे तो दूसरों के लिए महादानी व वरदानी कब बनेंगे? अब ऐसा अभ्यास करो जो अपने प्रति लगाना न पड़े। अगर सभी खज़ाने दूसरों के प्रति लगाते रहेंगे तो आप खाली हो जायेंगे क्या?

जैसे बाप अपने रेस्ट का समय जो कि शरीर के लिए आवश्यक है वह भी अपने प्रति न लगाकर विश्व-कल्याण अर्थ लगाते रहते थे ऐसे सर्वशक्तियाँ भी विश्व-कल्याण-प्रति लगें न कि अपने प्रति। जब सभी को बाप-समान बनना है तो बाप-समान स्टेज भी तो धारण करेंगे न? दूसरों को देने लग जायेंगे तो ही अपने-आपको सर्व बातों में सम्पन्न होने का अनुभव करेंगे। दूसरों को पढ़ाने में अपने को पढ़ाना ऑटोमेटिकली हो जायेगा। अभी डबल अर्थात् दूसरों में अलग, अपने में अलग टाइम लगाते हो। अभी एक ही समय में डबल काम करो। क्योंकि समय कम है। समय कम होता है तो डबल कोर्स की स्टडी करते हैं, यह भी ऐसे है। समय समीप आ रहा है। तो दूसरों को देने के साथ-साथ अपना जमा करो। अपने प्रति न लगाओ। अगर अभी तक भी अपने प्रति लगाते और समय गंवाते रहेंगे तो विश्व के महाराजन् नहीं बन सकेंगे। लक्ष्य तो विश्व महाराजन् बनने का है ना?

शुरू में जब ज्ञान गंगायें निकलीं तो उस समय की सेवा की विशेषता क्या थी? उस समय के निकले हुए वारिस और इस समय की निकली हुई आत्माओं में अन्तर क्यों? सर्विस तो अब ज्यादा हो रही है लेकिन वारिस दिखाई नहीं देते-क्यों? कारण, विस्तार में तो बहुत है, लेकिन मूल कारण क्या है? उस समय अपना-पन नहीं था, विश्व के कल्याण-अर्थ अपना सभी कुछ देना है, वह भावना थी। एकनामी और एकॉनॉमी (Economy) वाले थे। सभी खज़ानों की एकॉनॉमी थी। व्यर्थ नहीं गंवाते थे। समय, शक्ति जो ली है, वह औरों को देनी है। अर्थात् महादानी-पन की स्टेज थी। क्योंकि विशेष निमित्त बनी हुई थीं। तो उस समय की स्टेज और अभी की स्टेज देखो कितना फर्क है। अभी पहले अपने साधन सोचेंगे, पीछे सर्विस के साधन अर्थात् पहले सालवेशन (Salvation) पीछे सर्विस (Service)। परन्तु शुरू में था पहले सर्विस, फिर सालवेशन मिले, न मिले। सालवेशन से सर्विस करनी है यह संकल्प-मात्र में भी नहीं था। साधन हो तो सर्विस हो, साथी हो तो सर्विस हो, धरनी हो तो सर्विस हो-यह संकल्प नहीं थे। जहाँ जाओ, जैसी परिस्थिति हो और जैसा प्रबन्ध हो, सहनशक्ति से सेवा को बढ़ाना है। यह महादानी की स्टेज है।

स्वयं के त्याग से औरों का भाग्य बनता है। जहाँ स्वयं का त्याग नहीं वहाँ औरों का भाग्य नहीं बनता। बाप ने स्वयं का त्याग किया, तभी तो आप अनेक आत्माओं का भाग्य बना। तो शुरू की स्थिति में स्वयं के सभी सुखों का त्याग था इससे यह भाग्य बने। अब जितना त्याग, उतना भाग्य बना रहे हो औरों का। इसलिए वारिस छिप गये हैं। तो अब फिर से वही महादानी बनने का संस्कार व सदा सर्व प्राप्ति होते हुए भी और सर्व साधन होते हुए भी साधन में न आओ, साधना में रहो। अभी साधना कम है, साधन ज्यादा हैं। पहले साधन कम थे, साधना ज्यादा थी। इसलिए अभी निरन्तर उस साधना में रहो अर्थात् साधन होते हुए भी त्याग वृत्ति में रहो। जिससे थोड़े समय में ऊंची आत्माओं का भाग्य बना सको। बापदादा ने सभी के हाथ में अब आत्माओं के भाग्य की रेखा लगाने की अथॉरिटी दी है। तो ऐसा न हो कि अपने त्याग की कमी के कारण अनेक आत्माओं के भाग्य की रेखा सम्पन्न न कर सको। बहुत जिम्मेवारी है। जैसे-जैसे समय समीप आता जा रहा है, वैसे-वैसे संकल्प भी व्यर्थ न गंवाने की जिम्मेवारी हरेक आत्मा के ऊपर बढ़ती जा रही है। अभी अपना बचपन नहीं समझना। बचपन में जो किया वह अच्छा लगता था। बच्चे का अलबेलापन अच्छा लगता है, बड़प्पन नहीं और बड़ों का फिर अलबेलेपन अच्छा नहीं लगता है इसलिये समय के प्रमाण अपने स्वमान को कायम रखते हुए जिम्मेवारी को सम्भालते जाओ।

सर्वोच्च स्वमान

प्रश्न और उत्तर:

  1. सूर्यवंशी कौन कहलाते हैं?
    उत्तर: जो हर खजाने में सम्पन्न होते हैं, वे ही सूर्यवंशी कहलाते हैं।

  2. यदि कोई सम्पन्न नहीं है, तो उसे क्या नहीं कहा जा सकता?
    उत्तर: यदि कोई सम्पन्न नहीं है, तो उसे सूर्यवंशी नहीं कहा जा सकता।

  3. महादानी कौन होते हैं?
    उत्तर: जो अपने खजानों को केवल अपने लिए नहीं रखते, बल्कि दूसरों को भी दान देते हैं, वे महादानी कहलाते हैं।

  4. जो दान देते हैं, वे भिखारी क्यों नहीं बनते?
    उत्तर: क्योंकि देने से खजाने और अधिक बढ़ते हैं।

  5. ज्ञान का खजाना किसके प्रति लगाना चाहिए?
    उत्तर: केवल अपने पुरुषार्थ के लिए नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा के लिए लगाना चाहिए।

  6. यदि सभी खजाने दूसरों को देते रहेंगे तो क्या खाली हो जाएंगे?
    उत्तर: नहीं, देने से खजाने बढ़ते हैं, इसलिए खाली नहीं होंगे।

  7. बापदादा अपने विश्राम के समय को किसके लिए लगाते थे?
    उत्तर: वे अपने आराम का समय भी विश्व कल्याण के लिए लगाते थे।

  8. महादानी बनने का वास्तविक अर्थ क्या है?
    उत्तर: अपने सभी खजानों को विश्व सेवा में लगाना और स्वयं की प्राप्ति में संलग्न न रहना।

अच्छा ऐसे बाप को सर्व-सम्बन्धों से अपना बनाने वाले, सदा सर्व-खजाने सर्व-आत्माओं के प्रति दान देने वाले महादानी, वरदानी, महात्यागी और पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।

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