Avyakta Murli”28-02-1972

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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अव्यक्त बापदादा के साथ बच्चों की मुलाक़ात

जैसे परीक्षा का समय नजदीक आता जा रहा है तो अपने सम्पूर्ण स्थिति का भी प्रत्यक्ष साक्षात्कार वा अनुभव प्रत्यक्ष रूप में होता जाता है? जैसे नंबरवन आत्मा अपने सम्पूर्ण स्टेज का चलते-फिरते प्रैक्टिकल रूप में अनुभव करते थे, वैसे आप लोगों को अपनी सम्पूर्ण स्टेज बिल्कुल समीप और स्पष्ट अनुभव होती है? जैसे पुरुषार्थी ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा – दोनों ही स्टेज स्पष्ट थी ना। वैसे आप लोगों को अपनी सम्पूर्ण स्टेज इतनी स्पष्ट और समीप अनुभव होती है? अभी-अभी यह स्टेज है, फिर अभी-अभी वह होंगी – यह अनुभव होता है? जैसे साकार में भविष्य का भी अभी-अभी अनुभव होता था ना। भले कितना भी कार्य में तत्पर रहते हैं लेकिन अपने सामने सदैव सम्पूर्ण स्टेज होनी चाहिए कि उस स्टेज पर बस पहुँचे कि पहुँचे। जब आप सम्पूर्ण स्टेज को समीप लावेंगे तो वैसे ही समय भी समीप आवेगा। समय आपको समीप लायेगा वा आप समय को समीप लायेंगी, क्या होना है? उस तरफ से समय समीप आयेगा, इस तरफ से आप समीप होंगे। दोनों का मेल होगा। समय कब भी आये लेकिन स्वयं को सदैव सम्पूर्ण स्टेज के समीप लाने के पुरूषार्थ में ऐसा तैयार रखना चाहिए जो समय की इन्तजार आपको न करनी पड़े। पुरुषार्थी को सदैव एवर रेडी रहना है। किसको इन्तजार न करना पड़े। अपना पूरा इन्तजाम होना चाहिए। हम समय को समीप लायेंगे, न कि समय हमको समीप लायेगा – नशा यह होन् चाहिए। जितना अपने सामने सम्पूर्ण स्टेज समीप होती जावेगी उतनी विश्व की आत्माओं के आगे आपकी अन्तिम कर्मातीत स्टेज का साक्षात्कार स्पष्ट होता जयेगा। इससे जज कर सकते हो कि साक्षात्कारमूर्त बन विश्व के आगे साक्षात्कार कराने का समय नजदीक है वा नहीं। समय तो बहुत जल्दी-जल्दी दौड़ लगा रहा है। 10 वर्ष कहते-कहते 24 वर्ष तक पहुँच गये हैं। समय की रफ़्तार अनुभव से तेज तो अनुभव होती है ना। इस हिसाब से अपनी सम्पूर्ण स्टेज भी स्पष्ट और समीप होनी चाहिए। जैसे स्कूल में भी स्टेज होती है तो सामने देखते ही समझते हैं कि इस पर पहुँचना है। इसी प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज भी ऐसे सहज अनुभव होनी चाहिए। इसमें क्या चार वर्ष लगेंगे वा 4 सेकेण्ड? है तो सेकेण्ड की बात। अब सेकेण्ड में समीप लाने की स्कीम बनाओ वा प्लैन बनाओ। प्लैन बनाने में भी टाइम लग जावेगा लेकिन उस स्टेज पर उपस्थित हो जायें तो समय नहीं लगेगा। प्रत्यक्षता समीप आ रही है, यह तो समझते हो। वायुमंडल और वृत्तियां परिवर्तन में आ रही हैं। इससे भी समझना चाहिए कि प्रत्यक्षता का समय कितना जल्दी-जल्दी आगे आ रहा है। मुश्किल बात सरल होती जा रही है। संकल्प तो सिद्ध होते जा रहे हैं। निर्भयता और संकल्प में दृढ़ता – यह है सम्पूर्ण स्टेज के समीप की निशानी। यह दोनों ही दिखाई दे रहे हैं। संकल्प के साथ-साथ आपकी रिजल्ट भी स्पष्ट दिखाई दे। इसके साथ-साथ फल की प्राप्ति भी स्पष्ट दिखाई दे। यह संकल्प है यह इसकी रिजल्ट। यह कर्म है यह इनका फल। ऐसा अनुभव होता है। इसको ही प्रत्यक्षफल कहा जाता है। अच्छा!

जैसे बाप के तीन रूप प्रसिद्ध हैं, वैसे अपने तीनों रूपों का साक्षात्कार होता रहता है? जैसे बाप को अपने तीनों रूपों की स्मृति रहती है, ऐसे ही चलते-फिरते अपने तीनों रूपों की स्मृति रहे कि हम मास्टर त्रिमूर्ति हैं। तीनों कर्त्तव्य इकट्ठे साथ-साथ चलने चाहिए। ऐसे नहीं-स्थापना का कर्त्तव्य करने का समय अलग है, विनाश का कर्त्तव्य का समय अलग है, फिर और आना है। नहीं। नई रचना रचते जाते हैं और पुरानी का विनाश। आसुरी संस्कार वा जो भी कमजोरियाँ हैं उनका विनाश भी साथ-साथ करते जाना है। नये संस्कार ला रहे हैं, पुराने संस्कार खत्म कर रहे हैं। तो सम्पूर्ण और शक्ति रूप, विनाशकारी रूप न होने कारण सफ़लता न हो पाती है। दोनों ही साथ होने से सफ़लता हो जाती है। यह दो रूप याद रहने से देवता रूप आपेही आवेगा। दोनों रूप के स्मृति को ही फाइनल पुरूषार्थ की स्टेज कहेंगे। अभी-अभी ब्राह्मण रूप अभी- अभी शक्ति रूप। जिस समय जिस रूप की आवश्यकता है उस समय वैसा ही रूप धारण कर कर्त्तव्य में लग जायें – ऐसी प्रैक्टिस चाहिए। वह प्रैक्टिस तब हो सकेगी जब एक सेकेण्ड में देही-अभिमानी बनने का अभ्यास होगा। अपनी बुद्धि को जहाँ चाहें वहाँ लगा सकें – यह प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है। ऐसे अभ्यासी सभी कार्य में सफल होते हैं। जिसमें अपने को मोल्ड करने की शक्ति है वही समझो रीयल गोल्ड है। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जहाँ चाहे मोड़ सकते हो ना। अगर नहीं मुड़ती तो इसको बीमारी समझती हो। बुद्धि को भी ऐसे इजी मोड़ सकें। ऐसे नहीं कि बुद्धि हमको मोड़ ले जाये। ऐसे सम्पूर्ण स्टेज का यादगार भी गाया हुआ है। दिन-प्रति-दिन अपने में परिवर्तन का अनुभव तो होता है ना। संस्कार वा स्वभाव वा कमी को देखते हैं तब नीचे आ जाते। तो अब दिन-प्रति-दिन यह परिवर्तन लाना है। कोई का भी स्वभाव- संस्कार देखते हुए, जानते हुए उस तरफ बुद्धियोग न जाये। और ही उस आत्मा के प्रति शुभ भावना हो। एक तरफ से सुना, दूसरे तरफ से खत्म।

अव्यक्त बापदादा के साथ बच्चों की मुलाकात

प्रश्न 1: जब परीक्षा का समय नजदीक आता है तो आत्मा की सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव कैसा होता है?
उत्तर: जैसे नंबरवन आत्मा अपनी सम्पूर्ण स्टेज का प्रैक्टिकल रूप में अनुभव करती है, वैसे ही हमें अपनी सम्पूर्ण स्टेज स्पष्ट और समीप अनुभव होनी चाहिए।

प्रश्न 2: सम्पूर्ण स्टेज को समीप लाने से क्या लाभ होगा?
उत्तर: जितना हम अपनी सम्पूर्ण स्टेज को समीप लाते जाएंगे, उतना ही समय भी समीप आएगा और हमारी अन्तिम कर्मातीत अवस्था का साक्षात्कार विश्व के सामने स्पष्ट होगा।

प्रश्न 3: पुरुषार्थी को किस स्थिति में रहना चाहिए?
उत्तर: पुरुषार्थी को सदैव एवर रेडी रहना चाहिए ताकि समय की प्रतीक्षा न करनी पड़े, बल्कि स्वयं को तैयार रखना चाहिए।

प्रश्न 4: समय को समीप लाने के लिए क्या संकल्प होना चाहिए?
उत्तर: हमें यह नशा होना चाहिए कि हम समय को समीप लाएंगे, न कि समय हमें समीप लाएगा।

प्रश्न 5: सम्पूर्ण स्टेज प्राप्त करने में कितना समय लगेगा?
उत्तर: यह केवल 4 सेकंड का कार्य है, यदि हम अभी-अभी अपने स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करें।

प्रश्न 6: आत्मा की सम्पूर्ण अवस्था की पहचान क्या है?
उत्तर: निर्भयता और संकल्प की दृढ़ता सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है, साथ ही संकल्प के साथ-साथ उसका स्पष्ट परिणाम भी दिखाई देना चाहिए।

प्रश्न 7: मास्टर त्रिमूर्ति बनने के लिए कौन-सा अभ्यास आवश्यक है?
उत्तर: हमें अपने तीनों रूपों – स्थापना, पालना और विनाश – की स्मृति रखते हुए, आवश्यकतानुसार किसी भी रूप में स्थित होने की अभ्यास करना चाहिए।

प्रश्न 8: आत्म-परिवर्तन के लिए कौन-सी विशेष शक्ति आवश्यक है?
उत्तर: अपनी बुद्धि को जहाँ चाहें वहाँ लगाने की शक्ति होनी चाहिए, जिससे हमें अपने रूप को सहज ही बदलने की क्षमता प्राप्त हो।

प्रश्न 9: किसी भी स्थिति में बुद्धि को किस प्रकार रखना चाहिए?
उत्तर: बुद्धि को इतना सक्षम बनाना चाहिए कि वह हमें न घसीटे, बल्कि हम बुद्धि को नियंत्रित करें।

प्रश्न 10: आत्म-परिवर्तन की अंतिम अवस्था में क्या अनुभव होगा?
उत्तर: जब हम दिन-प्रतिदिन अपने संस्कारों और स्वभाव में परिवर्तन लाते जाएंगे, तब अन्तिम अवस्था में केवल शुभ भावना और शुभ संकल्प ही रह जाएंगे।

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