Gyan Manthan-21-06-2025

ज्ञान मंथन-21-06-2025/बाबा की आज्ञा: सिर्फ बाप को और घर को याद करो

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“बाबा की आज्ञा: सिर्फ बाप और घर को याद करो | 84 जन्मों के बाद अब वापसी का समय!”

भूमिका (Intro)

“मीठे बच्चों, तुम्हें स्मृति आई है कि हमने 84 जन्मों का चक्र पूरा किया है। अब घर लौटने का समय है…”
यह कोई साधारण वाक्य नहीं – यह स्वयं शिवबाबा की आज्ञा है – “अब मुझे और अपने घर को याद करो।”


हम आत्माएं शान्तिधाम की निवासी हैं

हम इस भौतिक दुनिया की नहीं, शान्तिधाम की आत्माएं हैं।
जहाँ शांति, स्थिरता और निर्विकारी स्थिति है –
यही है हमारा मूल घर, परमधाम।


बाप आया है – घर ले जाने

हर 5000 वर्ष बाद वह Supreme Soul – शिवबाबा, भारत में आते हैं।
उनका उद्देश्य है – अपने बच्चों को याद दिलाना,
कि अब समय है लौटने का – अपने घर


यह पुरानी दुनिया केवल एक विश्रामगृह है

यह जगह सिर्फ एक Transit Lounge है –
हम इस विश्रामगृह में रुके, कर्म किए, और अब आगे बढ़ना है।
मकसद है घर वापसी।


देखते हुए भी नहीं देखो – यही है सच्चा वैराग्य

बाबा कहते हैं –
“इस पुरानी दुनिया को देखो, परन्तु मन में लगाव न रखो।”
वैराग्य का सार है – बुद्धि की डोरी को नई दुनिया से जोड़ना।


अब माया नहीं, बाबा की याद में मगन रहो

माया के पुराने जाल अब हमें खींच नहीं सकते।
अब हमें रहना है – बाबा की याद में मगन,
क्योंकि यही है विकर्म विनाश की युक्ति


84 जन्मों की यात्रा अब पूरी होती है

हम आत्माएं जो 84 जन्मों की सैर पर निकली थीं,
अब अंतिम मोड़ पर पहुंच चुकी हैं।
यह संगमयुग सिर्फ घर लौटने का समय है।


हम रावण-राज्य से रामराज्य की ओर बढ़ चुके हैं

अब हमारी यात्रा है –
अंधकार से प्रकाश की ओर,
रावण राज्य से रामराज्य की ओर।
यह बाबा की याद ही है जो हमें पार ले जाती है।


पुराने मकान में रहते भी बुद्धि नये मकान में होनी चाहिए

बाबा कहते हैं –
“शरीर में रहो, परन्तु बुद्धि अकाल तख्त, ब्रह्मलोक, परमधाम में रहे।”
बुद्धि की उड़ान ही सच्ची गृह वापसी है।


शरीर विनाशी, आत्मा अकाल मूर्त है

हम आत्माएं अकाल मूर्त हैं –
न शरीर से बंधी, न समय से।
शरीर बदलते हैं, लेकिन हमारी पहचान आत्मा है – अजर, अमर, अविनाशी।


हमारा सच्चा तख्त है भ्रकुटी में – अकालतख्त

यह शरीर तो मिट्टी है,
लेकिन आत्मा का सच्चा सिंहासन भ्रकुटी में है –
जहाँ बैठकर हम बाबा को याद करते हैं।


मनमनाभव ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है

“मनमनाभव” – अपने मन को मेरे में लगाओ।
यही है सबसे गुप्त और श्रेष्ठ तपस्या,
जो आत्मा को पावन बनाती है।


स्वदर्शन चक्र हमारी पहचान है

हम कोई साधारण आत्मा नहीं –
हम हैं स्वदर्शन चक्रधारी,
जो आत्मा, शरीर, और ड्रामा को सही दृष्टि से देखती है।


शिवबाबा हर 5000 वर्ष बाद भारत में ही आते हैं

भारत – वह पवित्र भूमि जहाँ परमात्मा स्वयं आते हैं
हर कल्प में – भारत ही उनका कर्मभूमि बनती है।


हम भाई-भाई हैं, बाप के बच्चे हैं

हम आत्माएं भाई-भाई हैं,
जिसका बाप एक है – शिवबाबा
यही एकता की अनुभूति हमें निरहंकारी बनाती है।


जो बाप को पहचानता है, वही जीवनमुक्ति का अधिकारी है

सच्ची जीवनमुक्ति उसी को मिलती है
जो बाप को पहचान कर,
उसकी श्रिमत पर चलता है।


उपसंहार (Closing):

अब समय है –
बुद्धि की डोरी को एक बाबा और एक घर से जोड़ने का।
84 जन्मों का नाटक पूरा हुआ, अब वापस चलना है – अपने घर, शान्तिधाम।
यही है बाबा की आज्ञा – और यही है हमारी सच्ची घर वापसी।

“बाबा की आज्ञा: सिर्फ बाप और घर को याद करो | 84 जन्मों के बाद अब वापसी का समय!”


प्रश्न 1: “हमारा सच्चा घर कौन-सा है और वहाँ क्या विशेषता है?”

उत्तर:हमारा सच्चा घर शान्तिधाम (परमधाम) है।
यहाँ आत्माएं निर्विकारी, निराकारी, शान्त स्वरूप में रहती हैं।
यह स्थायी, शाश्वत और शान्ति से भरपूर आत्मिक घर है – जहाँ से हम आए थे और जहाँ हमें लौटना है।


प्रश्न 2: “बाबा हमें घर वापसी की याद क्यों दिलाते हैं?”

उत्तर:क्योंकि अब 84 जन्मों का चक्र पूरा हुआ है।
शिवबाबा आकर कहते हैं – “मीठे बच्चे, अब घर लौटने का समय है।”
वह हमें इस शरीर, संसार और माया से मुक्त कराकर पावन शान्तिधाम में ले जाने आए हैं।


प्रश्न 3: “यह पुरानी दुनिया को बाबा ‘विश्रामगृह’ क्यों कहते हैं?”

उत्तर:बाबा कहते हैं कि यह दुनिया एक Transit Lounge की तरह है –
जहाँ आत्मा थोड़ी देर के लिए आती है, कर्म करती है, और फिर आगे बढ़ जाती है।
अब यह विश्रामगृह पुराना हो चुका है – इसलिए घर वापसी आवश्यक है।


प्रश्न 4: “बाबा की आज्ञा – ‘सिर्फ मुझे और अपने घर को याद करो’ का अर्थ क्या है?”

उत्तर:इस आज्ञा का अर्थ है – बुद्धि की डोरी माया से हटाकर
केवल शिवबाबा और परमधाम से जोड़ देना।
यही सच्ची मनमनाभव अवस्था है जो आत्मा को विकर्म मुक्त बनाती है।


प्रश्न 5: “देखते हुए भी न देखना – इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है?”

उत्तर:इसका अर्थ है – संसार में रहते हुए भी, मन और बुद्धि से संसार से वैराग्य रखना।
बुद्धि को नये यथार्थ घर की ओर मोड़ना।
यह सच्चा, सहज और आत्मिक वैराग्य कहलाता है।


प्रश्न 6: “अब माया का आकर्षण क्यों समाप्त होना चाहिए?”

उत्तर:क्योंकि माया ने ही हमें 84 जन्मों में फँसाया।
अब बाबा की याद से ही आत्मा शुद्ध और शक्तिशाली बनती है।
माया को जीतना है – तो एक बाबा की याद में मगन रहना है।


प्रश्न 7: “हमारा तख्त भ्रकुटी में क्यों माना गया है?”

उत्तर:क्योंकि आत्मा का सिंहासन भ्रकुटी पर है –
यही वह स्थान है जहाँ आत्मा बैठती है,
और बाबा की याद में स्थित होकर अकाल तख्त पर विराजमान होती है।


प्रश्न 8: “84 जन्मों की यात्रा अब कैसे समाप्त हो रही है?”

उत्तर:हम आत्माएं जो सतो, रजो और तमो अवस्था में 84 जन्मों की यात्रा करती आई हैं,
अब संगमयुग पर पहुँचकर अंतिम मोड़ पर हैं।
अब हमें पावन बनकर घर लौटना है – यही इस युग का उद्देश्य है।


प्रश्न 9: “बाबा की याद कैसे रावणराज्य से मुक्त करती है?”

उत्तर:रावणराज्य में आत्मा माया, पांच विकारों के अधीन है।
बाबा की याद आत्मा को अशुद्ध से शुद्ध बनाती है –
और उसे रामराज्य (स्वराज्य) का अधिकारी बना देती है।


प्रश्न 10: “शरीर में रहते हुए बुद्धि को कहाँ स्थित करना है?”

उत्तर:बाबा कहते हैं –
“शरीर में रहते हुए भी बुद्धि को परमधाम,
या आत्मिक स्थिति में रखो।”
यही है ब्रह्मलोक का अनुभव – जहाँ आत्मा और बाबा मिलते हैं।


प्रश्न 11: “शिवबाबा भारत में ही क्यों आते हैं?”

उत्तर:भारत ही वह पवित्र भूमि है जहाँ हर कल्प में परमात्मा अवतरित होते हैं।
यह भारत ही उनका अविनाशी कर्मक्षेत्र है – जहाँ से विश्व परिवर्तन होता है।


प्रश्न 12: “भाई-भाई की भावना हमें क्यों अपनानी चाहिए?”

उत्तर:क्योंकि हम सभी आत्माएं एक ही पिता – शिवबाबा की संतान हैं।
भाई-भाई की भावना हमें निरहंकारी, समान दृष्टि और स्नेही बनाती है।


प्रश्न 13: “जो बाप को पहचानते हैं, उन्हें जीवनमुक्ति कैसे मिलती है?”

उत्तर:जो आत्माएं बाप को पहचानती हैं,
वो उसकी श्रिमत पर चलते हुए विकर्म मुक्त हो जाती हैं।
बाबा उन्हें इस जन्म में ही जीवनमुक्ति प्रदान करते हैं।


उपसंहार प्रश्न:

प्रश्न 14: “अब हमें क्या करना है?”

उत्तर:अब हमें बुद्धि की डोरी को माया, शरीर, संसारी संबंधों से हटाकर –
एक बाबा और एक घर से जोड़ना है।
यही है बाबा की आज्ञा, और यही है हमारी सच्ची घर वापसी

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