(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
15-06-25 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
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रिवाइज: 30-11-05 मधुबन |
समय की समीपता प्रमाण स्वयं को हद के बन्धनों से मुक्त कर सम्पन्न और समान बनो
आज चारों ओर के सम्पूर्ण समान बच्चों को देख रहे हैं। समान बच्चे ही बाप के दिल में समाये हुए हैं। समान बच्चों की विशेषता है – वह सदा निर्विघ्न, निर्विकल्प, निर्मान और निर्मल होंगे। ऐसी आत्मायें सदा स्वतंत्र होती हैं, किसी भी प्रकार के हद के बन्धन में बंधायमान नहीं होती। तो अपने आप से पूछो ऐसी बेहद की स्वतंत्र आत्मा बने हैं! सबसे पहली स्वतंत्रता है देहभान से स्वतंत्र। जब चाहे तब देह का आधार ले, जब चाहे देह से न्यारे हो जाए। देह की आकर्षण में नहीं आये। दूसरी बात – स्वतंत्र आत्मा कोई भी पुराने स्वभाव और संस्कार के बन्धन में नहीं होगी। पुराने स्वभाव और संस्कार से मुक्त होगी। साथ-साथ किसी भी देहधारी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क में आकर्षित नहीं होगी। सम्बन्ध-सम्पर्क में आते न्यारे और प्यारे होंगे। तो अपने को चेक करो – कोई भी छोटी सी कर्मेन्द्रिय बन्धन में तो नहीं बांधती? अपना स्वमान याद करो – मास्टर सर्वशक्तिवान, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी, उसी स्वमान के आधार पर क्या सर्वशक्तिवान के बच्चे को कोई कर्मेन्द्रिय आकर्षित कर सकती है? क्योंकि समय की समीपता को देखते अपने को देखो – सेकण्ड में सर्व बन्धनों से मुक्त हो सकते हो? कोई भी ऐसा बन्धन रहा हुआ तो नहीं है? क्योंकि लास्ट पेपर में नम्बरवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, सेकण्ड में जहाँ, जैसे मन-बुद्धि को लगाने चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाये। हलचल में नहीं आये। जैसे स्थूल शरीर द्वारा जहाँ जाने चाहते हो, जा सकते हो ना! ऐसे बुद्धि द्वारा जिस स्थिति में स्थित होने चाहो उसमें स्थित हो सकते हो? जैसे साइंस ने लाइट हाउस, माइट हाउस बनाया है, तो सेकण्ड में स्विच आन करने से लाइट हाउस चारों ओर लाइट देने लगता है, माइट देने लगता है। ऐसे आप स्मृति के संकल्प का स्विच आन करने से लाइट हाउस, माइट हाउस होके आत्माओं को लाइट, माइट दे सकते हो? एक सेकण्ड का आर्डर हो अशरीरी बन जाओ, बन जायेंगे ना! कि युद्ध करनी पड़ेगी? यह अभ्यास बहुतकाल का ही अन्त में सहयोगी बनेगा। अगर बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो उस समय अशरीरी बनना, मेहनत करनी पड़ेगी इसलिए बापदादा यही इशारा देते हैं कि सारे दिन में कर्म करते हुए भी बार-बार यह अभ्यास करते रहो। इसके लिए मन के कन्ट्रोलिंग पावर की आवश्यकता है। अगर मन कन्ट्रोल में आ गया तो कोई भी कर्मेन्द्रिय वशीभूत नहीं कर सकती।
अभी सर्व आत्माओं को आपके द्वारा शक्ति का वरदान चाहिए। आत्माओं की आप मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के प्रति यही शुभ इच्छा है कि बिना मेहनत के वरदान द्वारा, दृष्टि द्वारा, वायब्रेशन द्वारा हमें मुक्त करो। अभी मेहनत करके सब थक गये हैं। आप सब तो मेहनत से मुक्त हो गये हो ना! कि अभी भी मेहनत करनी पड़ती है? सुनाया था, मेहनत से मुक्त होने का सहज साधन है – दिल से बाप के अति स्नेही बन जाना। आप ब्राह्मण आत्माओं का जन्म का वायदा है, याद है वायदा? जब बाप ने अपना बनाया, ब्राह्मण जीवन दी तो ब्राह्मण जीवन का आप सबका वायदा क्या है? एक बाप दूसरा न कोई। याद है वायदा? याद है तो कांध हिलाओ। अच्छा हाथ हिला रहे हैं। याद है पक्का या कभी-कभी भूल जाता है? देखो 63 जन्म तो भूलने वाले बने, अब यह एक जन्म स्मृति स्वरूप बने हो। तो बाप बच्चों से पूछ रहे हैं बचपन का वायदा याद है? कितना सहज करके दिया है – एक बाप में संसार है। एक बाप से सर्व सम्बन्ध हैं। एक बाप से सर्व प्राप्तियां हैं। एक ही पढ़ाने वाला भी है और पालना करने वाला भी है। सबमें एक है। चाहे परिवार भी है, ईश्वरीय परिवार लेकिन परिवार भी एक बाप का है। अलग-अलग बाप का परिवार नहीं है। एक ही परिवार है। परिवार में भी एक दो में आत्मिक स्नेह है, स्नेह नहीं आत्मिक स्नेह। बापदादा जन्म के वायदे याद दिला रहे हैं, और क्या वायदा किया? सभी ने बड़े उमंग-उत्साह से बाप के आगे दिल से कहा – सब कुछ आपका है। तन-मन-धन सब आपका है। तो दी हुई चीज़ बाप की अमानत के रूप में बाप ने कार्य में लगाने के लिए दिया है, आपने बाप को दे दी, दे दी है ना? या वापस थोड़ा-थोड़ा ले लेते हो? वापस लेते हो तो अमानत में ख्यानत हो जाती है। कोई-कोई बच्चे कहते हैं, रूहरिहान करते हैं ना तो कहते हैं मेरा मन परेशान रहता है, मेरा मन आया कहाँ से? जब मेरा तेरे को अर्पण किया, तो मेरा मन आया कहाँ से? आप सभी तो बिन कौड़ी बादशाह हो गये, अभी आपका कुछ नहीं रहा, बिन कौड़ी हो गये लेकिन बादशाह हो गये। क्यों? बाप का खजाना वह आपका खजाना हो गया, तो बादशाह हो गये ना! परमात्म खजाना वह बच्चों का खजाना। तो बापदादा वायदे याद दिला रहे हैं। तेरे में मेरा नहीं करो। बाप कहते हैं – जब बाप ने आप सबको परमात्म खजानों से माला-माल कर दिया, जिम्मेवारी बाप ने ले ली, किन शब्दों में? आप मुझे याद करो तो सर्व प्राप्ति के अधिकारी हो ही। सिर्फ याद करो। और आपने कहा हम आपके, आप हमारे। यह वायदा है ना! तो बाप कहते हैं खजानों को सदा स्व प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति कार्य में लगाओ। जितना कार्य में लगायेंगे उतना ही खजाना बढ़ता जायेगा। सर्वशक्तियों का खजाना, सर्व शक्तियां कार्य में लगाओ। सिर्फ बुद्धि में नॉलेज नहीं रखो मैं सर्वशक्तिवान हूँ, लेकिन सर्व शक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ और सेवा में लगाओ।
बापदादा ने मैजॉरिटी बच्चों के पोतामेल में देखा है दो शक्तियां अगर सदा याद रहें और कार्य में समय पर लगाओ तो सदा ही निर्विघ्न रहो। विघ्न की ताकत नहीं है आपके आगे आने की, यह बाप की गैरन्टी है। वैसे तो सर्व शक्तियां चाहिए लेकिन मैजारिटी देखा गया कि सहनशक्ति और रियलाइजेशन की शक्ति, रियलाइज करते भी हो लेकिन उसको प्रैक्टिकल में स्वरूप में लाने में अटेन्शन कम है इसलिए जिस समय रियलाइज करते हो उस समय चलन और चेहरा बदल जाता है। बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में आते हो, हाँ रियलाइज किया लेकिन फिर क्या हो जाता है? अनुभवी तो सभी हैं ना! फिर क्या हो जाता है? उसको हर समय स्वरूप में लाना, उसकी कमी हो जाती है क्योंकि यहाँ स्वरूप बनना है। सिर्फ बुद्धि से जानना अलग चीज़ है, लेकिन उसको स्वरूप में लाना, इसकी आवश्यकता है। कभी-कभी बापदादा को कोई-कोई बच्चों पर रहम भी आता है, बाप समझते हैं बच्चे से मेहनत नहीं होती है तो बच्चे के बजाए बाप ही कर ले। लेकिन ड्रामा का राज़ है “जो करेगा वह पायेगा” इसलिए बापदादा सहयोग जरूर देता है लेकिन करना फिर भी बच्चे को ही पड़ता है।
बापदादा ने देखा है बच्चे संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं। अमृतवेले बापदादा के पास अच्छे-अच्छे संकल्पों की बहुत-बहुत मालायें आती हैं। यह करेंगे, यह करेंगे, यह करेंगे…, बापदादा भी खुश हो जाते हैं, वाह! बच्चे वाह! फिर करने में कमजोर क्यों बन जाते हैं? इसका कारण देखा गया – ब्राह्मण परिवार में संगठन का वायुमण्डल। कहाँ-कहाँ वायुमण्डल कमजोर भी होता है, उसका असर जल्दी पड़ जाता है। फिर उन्हों की भाषा बतायें क्या होती है? भाषा बड़ी मीठी होती है, भाषा होती है यह तो चलता है, यह तो होता है… ऐसे समय पर क्या संकल्प करो! यह होता है, यह चलता है… यह अलबेलापन लाता है लेकिन उस समय इस भाषा को परिवर्तन करो, सोचो कि बाप का फरमान क्या है? बाप की पसन्दी क्या है? बाप किस बात को पसन्द करता है? बाप ने यह कहा है? किया है? अगर बाप याद आ गया तो अलबेलापन समाप्त हो, उमंग-उत्साह आ जायेगा। अलबेलापन भी कई प्रकार का आता है। आप लोग आपस में क्लास करना, लिस्ट निकालना, एक है साधारण अलबेलापन, एक है रॉयल अलबेलापन। तो अलबेलापन संकल्प में दृढ़ता लाने नहीं देता और दृढ़ता सफलता का साधन है इसलिए संकल्प तक रह जाता है लेकिन स्वरूप में नहीं आता।
तो आज क्या सुना? वायदे याद कराये हैं ना! वायदे इतने अच्छे अच्छे करते, बापदादा वायदे सुनकर खुश हो जाते। लेकिन जितने वायदे करते हो ना उतना फायदा नहीं उठाते। तो बापदादा यही चाहते हैं, पूछते हैं ना बाप हमसे क्या चाहते हैं? तो बापदादा यही चाहते हैं कि समय से पहले सब एवररेडी बन जाओ। समय आपका मास्टर नहीं बने। समय के मास्टर आप हो, इसलिए यही बापदादा चाहता है कि समय के पहले सम्पन्न बन विश्व की स्टेज पर बाप के साथ-साथ आप बच्चे भी प्रत्यक्ष हो। अच्छा।
जो नये नये बच्चे आये हैं मिलने के लिए, वह हाथ उठाओ। बड़ा हाथ उठाओ, लम्बा। अच्छा – बापदादा नये-नये बच्चों को देख खुश होते हैं कि भाग्यवान बच्चे अपना भाग्य लेने के लिए पहुंच गये हैं इसलिए मुबारक हो, मुबारक हो। अभी जो भी नये बच्चे आये हैं उनमें से देखेंगे कमाल कौन करके दिखाता है? भले आये पीछे हैं लेकिन आगे जाके दिखाओ। बापदादा के पास तो सब रिजल्ट पहुंचती है। अच्छा।
डबल विदेशी:- अच्छा है, डबल विदेशी स्व पर और सेवा पर अटेन्शन अच्छा दे रहे हैं। लेकिन सिर्फ इसमें एक मात्रा लगानी है। अण्डरलाइन करनी है, जो परिवर्तन का संकल्प लेते हो और अच्छा उमंग-उत्साह, हिम्मत से लेते हो, सिर्फ इसको अण्डरलाइन करते जाओ, करना ही है। बदलना ही है। बदलकर विश्व को बदलना है। यह दृढ़ता की अण्डरलाइन बार-बार करते जाओ। बाकी बापदादा खुश है, वृद्धि भी कर रहे हैं और सेवा और स्व के ऊपर अटेन्शन भी है। लेकिन पूरा टेन्शन नहीं गया है, अटेन्शन है थोड़ा बीच-बीच में टेन्शन भी है, वह समाप्त करना ही है। बाकी हिम्मत अच्छी है। हिम्मत की मुबारक है, सभी जो भी बैठे हैं बाप सहित आपको हिम्मत की मुबारक दे रहे हैं। ताली बजाओ। अच्छा।
आप तो यहाँ बैठे हो लेकिन बापदादा को दूर बैठे बहुत बच्चों का यादप्यार मिला है और बापदादा एक-एक बच्चे को नयनों में समाते हुए बहुत-बहुत दिल की दुआयें दे रहे हैं। चाहे भारत से, चाहे विदेश से, बहुत बच्चों की याद आ रही है, पत्र आते हैं, ईमेल आते हैं, सब बाबा के पास पहुंच गये हैं। अच्छा।
बापदादा एक सेकण्ड में अशरीरी भव की ड्रिल देखने चाहते हैं, अगर अन्त में पास होना है तो यह ड्रिल बहुत आवश्यक है इसलिए अभी इतने बड़े संगठन में बैठे एक सेकण्ड में देहभान से परे स्थिति में स्थित हो जाओ। कोई आकर्षण आकर्षित नहीं करे। (ड्रिल) अच्छा।
चारों ओर के तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा स्व-परिवर्तन और विश्व परिवर्तन की सेवा में तत्पर रहने वाले विशेष आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप समान कर्मयोगी, कर्म की, कर्मेन्द्रियों की आकर्षण से मुक्त आत्माओं को, सदा दृढ़ता को हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म में स्वरूप में लाने वाले बाप के समीप और समान बच्चों को बापदादा का दिल की दुआयें और दिल का यादप्यार स्वीकार हो और नमस्ते।
दादी जी से:- तन्दरूस्त हो गई। अभी बीमारी गई। बीमारियां महारथियों से विदाई लेने के लिए आती हैं। अन्दर ही अन्दर कर्मातीत बनने की रिहर्सल कर रही है। (दादी जानकी कह रही हैं दादी बेफिकर बादशाह है)
आप फिकर वाली हैं क्या? आप भी बेफिकर। दोनों ही पार्ट अच्छा बजा रही हैं। देखो, सबसे बड़े ते बड़ा जिम्मेवारी का ताज पहनने वाली निमित्त तो बनी ना। यह सब साथी हैं। आप लोगों को देखके उमंग-उत्साह आता है ना। (अभी क्या नया करना है? बाबा ही कुछ प्रेरणा दे) बापदादा ने सुनाया कि हर वर्ग का गुलदस्ता जो माइक भी हो और माइट भी हो। सिर्फ माइक और सम्पर्क वाला नहीं, सम्बन्ध में भी नजदीक हो, ऐसा गुलदस्ता निकालो। फिर वह ग्रुप निमित्त बनेगा सेवा करने के। वह माइक बनेगा और आप माइट बनेंगी। उनके जिगर से निकले बाबा, तभी प्रभाव पड़ेगा। उन्हों को सम्बन्ध में नजदीक लाओ। कभी-कभी होता है ना, तो नशा थोड़ा कम हो जाता है। सम्बन्ध-सम्पर्क में जहाँ भी आवें वहाँ सम्बन्ध और सम्पर्क रहे तो ठीक हो जायेंगे। अच्छा।
वरदान:- | सदा श्रेष्ठ और नये प्रकार की सेवा द्वारा वृद्धि करने वाले सहज सेवाधारी भव संकल्पों द्वारा ईश्वरीय सेवा करना यह भी सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका है, जैसे जवाहरी रोज सुबह अपने हर रतन को चेक करता है कि साफ हैं, चमक ठीक है, ठीक जगह पर रखें हैं..ऐसे रोज़ अमृतवेले अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं पर संकल्प द्वारा नज़र दौड़ाओ, जितना आप उन्हों को संकल्प से याद करेंगे उतना वह संकल्प उन्हों के पास पहुंचेंगा..इस प्रकार सेवा का नया तरीका अपनाते वृद्धि करते चलो। आपके सहजयोग की सूक्ष्म शक्ति आत्माओं को आपके तरफ स्वत:आकर्षित करेगी। |
स्लोगन:- | बहानेबाजी को मर्ज करो और बेहद की वैराग्यवृत्ति को इमर्ज करो। |
अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
ज्ञान के मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का या ट्रैफिक कन्ट्रोल का बीच-बीच में दिन मुकरर करो। जितना अन्तर्मुखता के कमरे में बैठ रिसर्च करेंगे उतना अच्छे से अच्छी टचिंग होंगी और उसी टचिंग से अनेक आत्माओं को लाभ मिलेगा।
सूचनाः- आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें संगठित रूप में एकत्रित हो योग अभ्यास में अनुभव करें कि मैं भ्रकुटी आसन पर विराजमान परमात्म शक्तियों से सम्पन्न सर्वश्रेष्ठ राजयोगी आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत, विकर्माजीत हूँ। सारा दिन इसी स्वमान में रहें कि सारे कल्प में हीरो पार्ट बजाने वाली मैं सर्वश्रेष्ठ महान आत्मा हूँ।
समय की समीपता प्रमाण स्वयं को हद के बन्धनों से मुक्त कर सम्पन्न और समान बनो – प्रश्नोत्तर श्रृंखला
प्रश्न 1: बापदादा के अनुसार ‘समान बच्चे’ कौन होते हैं?
उत्तर:समान बच्चे वे हैं जो बाप के समान निर्विघ्न, निर्विकल्प, निर्मान और निर्मल होते हैं। वे बेहद की स्वतंत्र आत्माएं होती हैं जो देह, पुराने संस्कारों, और संबंधों के बंधनों से मुक्त होती हैं। उनका हर कर्म, संकल्प और संबंध बेहद स्थिति में आधारित होता है, सीमित आकर्षणों में फँसा नहीं होता।
प्रश्न 2: ‘सबसे पहली स्वतंत्रता’ किससे मानी गई है?
उत्तर:सबसे पहली स्वतंत्रता देहभान से स्वतंत्रता है। जब आत्मा चाहे तब देह का उपयोग करे और जब चाहे उससे न्यारी हो जाए। देह की आकर्षण उसमें हस्तक्षेप न करे। यही योगबल की सच्ची स्थिति है।
प्रश्न 3: मुरली में कर्मेन्द्रियों के बन्धन से कैसे मुक्त होने का अभ्यास बताया गया है?
उत्तर:कहा गया है कि स्वमान की याद में रहो – “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, त्रिकालदर्शी हूँ, स्वदर्शन चक्रधारी हूँ”। यदि यह स्वमान सजीव है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय आत्मा को वश में नहीं कर सकती। साथ ही, पूरे दिन कर्म करते हुए भी बार-बार अशरीरी बनने की ड्रिल करो।
प्रश्न 4: ‘मन की कन्ट्रोलिंग पावर’ का क्या महत्व बताया गया है?
उत्तर:अगर मन नियंत्रण में है, तो कोई भी कर्मेन्द्रिय वशीभूत नहीं कर सकती। मन की शक्ति ही आत्मा को स्थिति में स्थित रहने, संकल्पों को स्वरूप में लाने और अन्तिम समय में पास होने की गारंटी देती है।
प्रश्न 5: आत्माओं को आज किन-किन तरीकों से शक्ति की आवश्यकता है?
उत्तर:आज आत्माओं को वरदान, दृष्टि और वायब्रेशन द्वारा शक्ति चाहिए। वे मेहनत से थक चुकी हैं और मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों से यह उम्मीद करती हैं कि वह बिना शब्द, सिर्फ अपने स्वरूप के वायब्रेशन से ही उन्हें मुक्त करें।
प्रश्न 6: ब्राह्मण जीवन का मूल वायदा क्या है?
उत्तर:“एक बाप, दूसरा न कोई।“
इसका अर्थ है – सर्व संबंध, सर्व प्राप्तियाँ, सर्व प्रेम, शिक्षा और पालना – सब कुछ केवल एक शिवबाबा से। तन-मन-धन की सम्पूर्ण अमानत बाप को समर्पित करना।
प्रश्न 7: ‘तेरे में मेरा नहीं’ की भावनात्मक व्याख्या क्या है?
उत्तर:जब सब कुछ बाबा को समर्पण कर दिया, तो फिर “मेरा मन” कैसे रह गया? “तेरे में मेरा नहीं” का अर्थ है – अपनी कोई व्यक्तिगत भावना, इच्छा, अधिकार या नियंत्रण न रखना। जो है वह बाप की अमानत है – सेवा के निमित्त के रूप में।
प्रश्न 8: समय की समीपता का सच्चा उत्तरदायित्व क्या है?
उत्तर:समय से पहले एवररेडी बनना ही बापदादा की इच्छा है। समय आपका मालिक न बने, बल्कि आप समय के मालिक बनें। सेकण्ड में स्थिति बदलना, लाइट हाउस और माइट हाउस बन आत्माओं को शक्ति देना – यही अन्तिम प्रमाण है।
प्रश्न 9: बापदादा ने किस दो शक्तियों को विशेष रूप से अण्डरलाइन किया है?
उत्तर:
-
सहन शक्ति
-
रियलाइजेशन की शक्ति
अगर ये दोनों शक्तियाँ समय पर कार्य में लगाई जाएँ, तो आत्मा सदा निर्विघ्न रह सकती है। रियलाइज करके चलन और स्वरूप में परिवर्तन लाना ही सफलता की कुंजी है।
प्रश्न 10: ‘अलबेलापन’ का क्या प्रभाव होता है, और उसका समाधान क्या बताया गया है?
उत्तर:अलबेलापन संकल्प को दृढ़ नहीं होने देता। इसके कारण संकल्प स्वरूप में नहीं आता और सिर्फ सोच बनकर रह जाता है। समाधान यही है कि उस क्षण बाप को याद करो और सोचो – “बाप की इच्छा क्या है?” इससे अलबेलापन समाप्त होकर उमंग-उत्साह जागृत होता है।
प्रश्न 11: अशरीरी बनने की अंतिम ड्रिल का क्या महत्व है?
उत्तर:अंतिम पेपर पास करने के लिए यह आवश्यक है कि एक सेकण्ड में देहभान से पार हो जाओ। इसलिए अभ्यास यह हो कि जब बाप कहे “अशरीरी भव”, तो आत्मा तुरंत स्थिति में स्थित हो जाए। यही अभ्यास अन्त में सहयोगी बनेगा।
प्रश्न 12: बापदादा द्वारा दिए गए अंतिम आशीर्वचन क्या हैं?
उत्तर:बापदादा ने कहा –
“जो सदा स्व-परिवर्तन और विश्व परिवर्तन में तत्पर हैं, जो बाप समान कर्मयोगी हैं, वह आत्माएं सदा समीप और समान हैं। उन्हें दिल की दुआयें और यादप्यार।”
✨ निष्कर्ष:अब समय समीप है। वायदे को स्मृति में रखकर, संकल्प को स्वरूप में लाकर, स्वयं को हद के बंधनों से मुक्त कर बाप समान सम्पन्न बनना है। यही सेवा है, यही प्रमाण है, यही अंतिम सफलता है।
समय की समीपता, आत्मिक स्वतंत्रता, देहभान से मुक्त, बाप समान बनो, ब्रह्मा बाबा की शिक्षा, स्वमान की स्थिति, अव्यक्त मुरली, बापदादा के वचन, निर्विघ्न जीवन, कर्मेन्द्रियों पर जीत, बाप के दिल में स्थान, बेहद की याद, स्व परिवर्तन, विश्व परिवर्तन, अशरीरी बनने की ड्रिल, शक्ति का वरदान, दिल से याद, ब्राह्मण जीवन का वायदा, अलबेलापन पर जीत, संकल्प से स्वरूप, सेवा योगी जीवन, त्रिकालदर्शी आत्मा, बाप समान स्थिति, ब्रह्मा बाप समान, स्वदर्शन चक्रधारी, मास्टर सर्वशक्तिवान, सहज पुरुषार्थ, बेहद की सेवा, योगबल की शक्ति, अंत समय की तैयारी, ड्रामा का ज्ञान, आत्मा की पहचान, ईश्वरीय फरमान, संगठित वायुमंडल, उमंग उत्साह, बिन कौड़ी बादशाह, आत्मिक स्नेह, तन मन धन की सेवा, बाप का खजाना, बाबा की दुआएं,
Closeness of time, spiritual freedom, free from body consciousness, become equal to the Father, Brahma Baba’s teachings, stage of self-respect, Avyakt Murli, words of BapDada, life without obstacles, victory over the karmendriyas, place in the Father’s heart, unlimited remembrance, self-transformation, world transformation, drill to become bodiless, blessing of power, remembrance from the heart, promise of Brahmin life, victory over carelessness, embodiment through thoughts, service yogi life, soul who sees the three periods, stage equal to the Father, equal to Father Brahma, wielding the Sudarshan Chakra, master Almighty Authority, easy effort, unlimited service, power of the power of the power of yoga, preparation for the end times, knowledge of the drama, recognition of the soul, God’s order, organised atmosphere, zeal and enthusiasm, king without a penny, spiritual love, service with the body, mind and wealth, Father’s treasure, Baba’s blessings.