Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
| 21-09-25 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
|
रिवाइज: 02-02-07 मधुबन |
परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी – होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट
आज विश्व परिवर्तक बापदादा अपने साथी बच्चों से मिलने आये हैं। हर एक बच्चे के मस्तक में तीन परमात्म विशेष प्राप्तियां देख रहे हैं। एक है – होलीएस्ट, 2- हाइएस्ट और 3- रिचेस्ट। इस ज्ञान का फाउण्डेशन ही है होली अर्थात् पवित्र बनना। तो हर एक बच्चा होलीएस्ट है, पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता। आप देखो, आप परमात्म ब्राह्मण आत्मायें आदि-मध्य-अन्त तीनों ही काल में होलीएस्ट रहती हो। पहले-पहले आत्मा जब परमधाम में रहते हो तो वहाँ भी होलीएस्ट हो फिर जब आदि में आते हो तो आदिकाल में भी देवता रूप में होलीएस्ट आत्मा रहे। होलीएस्ट अर्थात् पवित्र आत्मा की विशेषता है – प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना। और भी पवित्र बनते हैं लेकिन आपकी पवित्रता की विशेषता है – स्वप्न-मात्र भी अपवित्रता मन-बुद्धि में टच नहीं करे। सतयुग में आत्मा भी पवित्र बनती और शरीर भी आपका पवित्र बनता। आत्मा और शरीर दोनों की पवित्रता जो देव आत्मा रूप में रहती है, वह श्रेष्ठ पवित्रता है। जैसे होलीएस्ट बनते हो, इतना ही हाइएस्ट भी बनते हो। सबसे ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण आत्मायें और ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे बने हो। आदि में परमधाम में भी हाइएस्ट अर्थात् बाप के साथ-साथ रहते हो। मध्य में भी पूज्य आत्मायें बनते हो। कितने सुन्दर मन्दिर बनते हैं और कितनी विधिपूर्वक पूजा होती है। जितनी विधिपूर्वक आप देवताओं के मन्दिर में पूजा होती है उतने औरों के मन्दिर बनते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा आपके देवता रूप की होती है। तो होलीएस्ट भी हो और हाइएस्ट भी हो, साथ में रिचेस्ट भी हो। दुनिया में कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें रिचेस्ट इन कल्प हैं। सारा कल्प रिचेस्ट हो। अपने खजाने स्मृति में आते हैं, कितने खजानों के मालिक हो! अविनाशी खजाने जो इस एक जन्म में प्राप्त करते हो वह अनेक जन्म चलते हैं। और कोई के भी खजाने अनेक जन्म नहीं चलते। लेकिन आपके खजाने आध्यात्मिक हैं। शक्तियों का खजाना, ज्ञान का खजाना, गुणों का खजाना, श्रेष्ठ संकल्प का खजाना और वर्तमान समय का खजाना, यह सर्व खजाने जन्म-जन्म चलते हैं। एक जन्म के प्राप्त हुए खजाने साथ चलते हैं क्योंकि सर्व खजानों के दाता परमात्मा बाप द्वारा प्राप्त होते हैं। तो यह नशा है कि हमारे खजाने अविनाशी हैं?
इस आध्यात्मिक खजानों को प्राप्त करने के लिए सहज-योगी बने हो। याद की शक्ति से खजाने जमा करते हो। इस समय भी इन सर्व खजानों से सम्पन्न बेफिक्र बादशाह हो, कोई फिक्र है? है फिक्र? क्योंकि यह खजाने जो हैं इसको न चोर लूट सकता, न राजा खा सकता, न पानी डुबो सकता, इसलिए बेफिक्र बादशाह हो। तो यह खजाने सदा स्मृति में रहते हैं ना! और याद भी सहज क्यों है? क्योंकि सबसे ज्यादा याद का आधार होता है एक सम्बन्ध और दूसरा प्राप्ति। जितना प्यारा सम्बन्ध होता है उतनी याद स्वत: आती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह होता है और जहाँ स्नेह होता है तो स्नेही को याद करना मुश्किल नहीं होता, लेकिन भूलना मुश्किल होता है। तो बाप ने सर्व सम्बन्ध का आधार बना दिया है। सभी अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? वा मुश्किल योगी हैं? सहज है? कि कभी सहज है, कभी मुश्किल है? जब बाप को सम्बन्ध और स्नेह से याद करते हो तो याद मुश्किल नहीं होती और प्राप्तियों को याद करो। सर्व प्राप्तियों के दाता ने सर्व प्राप्तियां करा दी। तो अपने को सर्व खजानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? खजानों को जमा करने की सहज विधि भी बापदादा ने सुनाई – जो भी अविनाशी खजाने हैं उन सभी खजानों को प्राप्त करने की विधि है – बिन्दी। जैसे विनाशी खजानों में भी बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना। तो अविनाशी खजानों को जमा करने की विधि है बिन्दी लगाना। तीन बिन्दियां हैं – एक मैं आत्मा बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो भी बीत जाता वह फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी। तो बिन्दी लगाने आती है? सबसे ज्यादा सहज मात्रा कौन सी है? बिन्दी लगाना ना! तो आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, इस स्मृति से स्वत: ही खजाने जमा हो जाते हैं। तो बिन्दी को सेकण्ड में याद करने से कितनी खुशी होती है! यह सर्व खजाने आपके ब्राह्मण जीवन का अधिकार हैं क्योंकि बच्चे बनना अर्थात् अधिकारी बनना। और विशेष तीन सम्बन्ध का अधिकार प्राप्त होता है – परमात्मा को बाप भी बनाया है, शिक्षक भी बनाया है और सतगुरू भी बनाया है। इन तीनों सम्बन्ध से पालना, पढ़ाई से सोर्स आफ इनकम और सतगुरू द्वारा वरदान मिलता है। कितना सहज वरदान मिलता है? क्योंकि बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है बाप के वरदान प्राप्त करने का।
बापदादा हर बच्चे का जमा का खाता चेक करते हैं। आप सभी भी अपने हर समय का जमा का खाता चेक करो। जमा हुआ वा नहीं हुआ, उसकी विधि है जो भी कर्म किया, उस कर्म में स्वयं भी सन्तुष्ट और जिसके साथ कर्म किया वह भी सन्तुष्ट। अगर दोनों में सन्तुष्टता है तो समझो कर्म का खाता जमा हुआ। अगर स्वयं में वा जिससे सम्बन्ध है, उसमें सन्तुष्टता नहीं आई तो जमा नहीं होता।
बापदादा सभी बच्चों को समय की सूचना भी देते रहते हैं। यह वर्तमान संगम का समय सारे कल्प में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समय है क्योंकि यह संगम ही श्रेष्ठ कर्मों के बीज बोने का समय है। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का समय है। इस संगम समय में एक एक सेकण्ड श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। सभी एक सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? बापदादा ने सहज विधि सुनाई है कि निरन्तर याद के लिए एक विधि बनाओ – सारे दिन में दो शब्द सभी बोलते हो और अनेक बार बोलते हो वह दो शब्द हैं “मैं” और “मेरा”। तो जब मैं शब्द बोलते हो तो बाप ने परिचय दे दिया है कि मैं आत्मा हूँ। तो जब भी मैं शब्द बोलते हो तो यह याद करो कि मैं आत्मा हूँ। अकेला मैं नहीं सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह साथ में सोचो क्योंकि आप तो जानते हो ना कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, परमात्म पालना के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ और जब मेरा शब्द बोलते हो तो मेरा कौन? मेरा बाबा अर्थात् बाप परमात्मा। तो जब भी मैं और मेरा शब्द कहते हो उस समय यह एडीशन करो, मैं आत्मा और मेरा बाबा। जितना बाप में मेरापन लायेंगे, उतना याद सहज होती जायेगी क्योंकि मेरा कभी भूलता नहीं है। सारे दिन में देखो मेरा ही याद आता है। तो इस विधि से सहज निरन्तर योगी बन सकते हो। बापदादा ने हर बच्चे को स्वमान की सीट पर बिठाया है। स्वमान की लिस्ट अगर स्मृति में लाओ तो कितनी लम्बी है! क्योंकि स्वमान में स्थित हैं तो देह-अभिमान नहीं आ सकता। या देह-अभिमान होगा या स्वमान होगा। स्वमान का अर्थ ही है – स्व अर्थात् आत्मा का श्रेष्ठ स्मृति का स्थान। तो सभी अपने स्वमान में स्थित हैं? जितना स्वमान में स्थित होंगे उतना दूसरे को सम्मान देना स्वत: ही हो जाता है। तो स्वमान में स्थित रहना कितना सहज है!
तो सभी खुशनुमा रहते हैं? क्योंकि खुशनुमा रहने वाला दूसरे को भी खुशनुमा बना देता है। बापदादा सदा कहते हैं कि सारे दिन में खुशी कभी नहीं गंवाओ। क्यों? खुशी ऐसी चीज़ है जो एक ही खुशी में हेल्थ भी है, वेल्थ भी है और हैपी भी है। खुशी नहीं तो जीवन नीरस रहती है। खुशी को ही कहा जाता है – “खुशी जैसा कोई खजाना नहीं।” कितने भी खजाने हो लेकिन खुशी नहीं तो खजाने से भी प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। खुशी के लिए कहा जाता है – “खुशी जैसी कोई खुराक नहीं”। तो वेल्थ भी है खुशी और खुशी हेल्थ भी है और नाम ही खुशी है तो हैपी तो है ही। तो खुशी में तीनों ही चीज़े हैं। और बाप ने अविनाशी खुशी का खजाना दिया है, बाप का खजाना गंवाना नहीं। तो सदा खुश रहते हो?
बापदादा ने होमवर्क दिया तो खुश रहना है और खुशी बांटनी है क्योंकि खुशी ऐसी चीज़ है जो जितनी बांटेंगे उतनी बढ़ेगी। अनुभव करके देखा है! किया है ना अनुभव? अगर खुशी बांटते हैं तो बांटने से पहले अपने पास बढ़ती है। खुश करने वाले से पहले स्वयं खुश होते हैं। तो सभी ने होमवर्क किया है? किया है? जिसने किया है वह हाथ उठाओ। जिसने किया है – खुश रहना है, कारण नहीं निवारण करना है, समाधान स्वरूप बनना है। हाथ उठाओ। अभी यह तो नहीं कहेंगे ना – यह हो गया! बापदादा के पास कई बच्चों ने अपनी रिजल्ट भी लिखी है कि हम कितने परसेन्ट ओ.के. रहे हैं। और लक्ष्य रखेंगे तो लक्ष्य से लक्षण स्वत: ही आते हैं। अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनों से:- विदेशियों को अपना ओरीज्नल विदेश तो नहीं भूलता होगा। ओरीज्नल आप किस देश के हो, वह तो याद रहता है ना इसलिए सभी आपको कहते हैं डबल विदेशी। सिर्फ विदेशी नहीं हो, डबल विदेशी। तो आपको अपना स्वीट होम कभी भूलता नहीं होगा। तो कहाँ रहते हो? बापदादा के दिलतख्त नशीन हो ना। बापदादा कहते हैं जब कोई भी छोटी मोटी समस्या आये, समस्या नहीं है लेकिन पेपर है आगे बढ़ाने के लिए। तो बापदादा का दिल-तख्त तो आपका अधिकार है। दिलतख्तनशीन बन जाओ तो समस्या खिलौना बन जायेगी। समस्या से घबरायेंगे नहीं, खेलेंगे। खिलौना है। सब उड़ती कला वाले हो ना? उड़ती कला है? या चलने वाले हो? उड़ने वाले हो या चलने वाले हैं? जो उड़ने वाले हैं वह हाथ उठाओ। उड़ने वाले। आधा-आधा हाथ उठा रहे हैं। उड़ने वाले हैं? अच्छा। कभी कभी उड़ना छोड़ते हैं क्या? चल रहे हैं नहीं, कई बापदादा को कहते हैं बाबा हम बहुत अच्छे चल रहे हैं। तो बापदादा कहते हैं चल रहे हो या उड़ रहे हो? अभी चलने का समय नहीं है, उड़ने का समय है। उमंग-उत्साह के, हिम्मत के पंख हर एक को लगे हुए हैं। तो पंखों से उड़ना होता है। तो रोज़ चेक करो, उड़ती कला में उड़ रहे हैं? अच्छा है, रिजल्ट में बापदादा ने देखा है कि सेन्टर्स विदेश में भी बढ़ रहे हैं। और बढ़ते जाने ही हैं। जैसे डबल विदेशी हैं वैसे डबल सेवा मन्सा भी, वाचा भी साथ-साथ करते चलो। मन्सा शक्ति द्वारा आत्माओं की आत्मिक वृत्ति बनाओ। वायुमण्डल बनाओ। अभी दु:ख बढ़ता हुआ देख रहम नहीं आता है? आपके जड़ चित्र के आगे चिल्लाते रहते हैं, मर्सी दो, मर्सी दो, अब दयालु कृपालु रहमदिल बनो। अपने ऊपर भी रहम और आत्माओं के ऊपर भी रहम। अच्छा है – हर सीजन में, हर टर्न में आ जाते हैं। यह सभी को खुशी होती है। तो उड़ते चलो और उड़ाते चलो। अच्छा है, रिजल्ट में देखा है कि अभी अपने को परिवर्तन करने में भी फास्ट जा रहे हैं। तो स्व के परिवर्तन की गति विश्व परिवर्तन की गति बढ़ाता है। अच्छा।
जो पहली बार आये हैं वह उठो:- आप सभी को ब्राह्मण जन्म की मुबारक हो। अच्छा मिठाई तो मिलेगी लेकिन बापदादा दिलखुश मिठाई खिला रहे हैं। पहले बारी मधुबन आने की यह दिलखुश मिठाई सदा याद रखना। वह मिठाई तो मुख में डाला और खत्म हो जायेगी लेकिन यह दिलखुश मिठाई सदा साथ रहेगी। भले आये, बापदादा और सारा परिवार देश विदेश में आप अपने भाई बहनों को देख खुश हो रहे हैं। सभी देख रहे हैं, अमेरिका भी देख रही है तो अफ्रीका भी देख रहे हैं, रशिया वाले भी देख रहे हैं, लण्डन वाले भी देख रहे हैं, 5 खण्ड ही देख रहे हैं। तो जन्म दिन की आप सबको वहाँ बैठे बैठे मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
बापदादा की रूहानी ड्रिल याद है ना! अभी बापदादा हर बच्चे से चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, चाहे छोटे हैं चाहे बड़े हैं, छोटे और ही समान बाप जल्दी बन सकते हैं। तो अभी सेकण्ड में जहाँ मन को लगाने चाहो वहाँ मन एकाग्र हो जाए। यह एकाग्रता की ड्रिल सदा ही करते चलो। अभी एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मैं और मेरा बाबा संसार है, दूसरा न कोई, इस एकाग्र स्मृति में स्थित हो जाओ। अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती कला के अनुभवी मूर्त बच्चों को, सदा अपने स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बच्चों को, सदा रहमदिल बन विश्व की आत्माओं को मन्सा शक्ति द्वारा कुछ न कुछ अंचली सुख-शान्ति की देने वाले दयालु, कृपालु बच्चों को, सदा बाप के स्नेह में समाये हुए दिल-तख्तनशीन बच्चों को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अच्छा – सभी बहुत-बहुत-बहुत खुश हैं, खुश है! बहुत खुश है? कितना बहुत? तो सदा ऐसे रहना। कुछ भी हो जाये होने दो, अभी खुश रहना है। हमें उड़ना है, कोई नीचे नहीं ला सकता। पक्का! पक्का वायदा है? कितना पक्का? बस, खुश रहो सबको खुशी दो। कोई भी बात अच्छी नहीं लगे तो भी खुशी नहीं गँवाओ। बात को चला लो, खुशी नहीं चली जाये। बात तो खत्म हो ही जानी है लेकिन खुशी तो साथ में चलनी है ना! तो जो साथ में चलने वाली है उसको छोड़ देते हो और जो छूटने वाली है उस छोड़ने वाली को पास में रख देते हो। यह नहीं करना। अमृतवेले रोज़ पहले अपने आपको खुशी की खुराक खिलाओ। अच्छा।
| वरदान:- | स्वीट साइलेन्स की लवलीन स्थिति द्वारा नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप भव देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायुमण्डल, वायब्रेशन सब होते हुए भी अपनी ओर आकर्षित न करें। लोग चिल्लाते रहें और आप अचल रहो। प्रकृति, माया सब लास्ट दांव लगाने के लिए अपनी तरफ कितना भी खीचें लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रहो – इसको कहा जाता है देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। यही स्वीट साइलेन्स स्वरूप की लवलीन स्थिति है, जब ऐसी स्थिति बनेंगी तब कहेंगे नष्टोमोष्टा समर्थ स्वरूप की वरदानी आत्मा। |
| स्लोगन:- | होली हंस बन अवगुण रूपी कंकड़ को छोड़ अच्छाई रूपी मोती चुगते चलो। |
अव्यक्त इशारे – अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
ज्वाला-रूप बनने के लिए यही धुन सदा रहे कि अब वापिस घर जाना है। जाना है अर्थात् उपराम। जब अपने निराकारी घर जाना है तो वैसा अपना वेष बनाना है। तो जाना है और सबको वापस ले जाना है – इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी व बाप-समान बन जायेंगे।
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अपने आकारी फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो, भक्तों की पुकार सुनें और उपकार करें। मास्टर दयालु, कृपालु बन सभी पर रहम की दृष्टि डालें। मुक्ति जीवनमुक्ति का वरदान दें।
परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी
होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट
प्रश्न 1: “होलीएस्ट” आत्मा किसे कहा जाता है?
उत्तर:
होलीएस्ट आत्मा वह है जो जीवन के हर क्षेत्र में पवित्र रहती है – मन, वाणी और कर्म से। केवल ब्रह्मचर्य ही पवित्रता नहीं है, बल्कि सम्बन्ध-सम्पर्क में भी पवित्रता होनी चाहिए। होलीएस्ट आत्मा की निशानी है कि उसके स्वप्न और संकल्प में भी अपवित्रता प्रवेश नहीं कर सकती। सतयुग में देव आत्माएँ इसी श्रेष्ठ पवित्रता के कारण पूजनीय बनती हैं।
प्रश्न 2: “हाइएस्ट” बनने का अर्थ क्या है?
उत्तर:
हाइएस्ट का अर्थ है – सबसे ऊँची आत्मा। ब्राह्मण जीवन में हम ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे बने हैं। आदि में परमधाम में भी हम हाइएस्ट आत्माएँ हैं, मध्य में देवता रूप में पूज्य हैं और अन्त में भी यादगार के रूप में पूजित रहते हैं। हमारी पूजा सबसे विधिपूर्वक होती है क्योंकि हमारी स्थिति ऊँची ते ऊँची है।
प्रश्न 3: “रिचेस्ट” आत्मा कैसे बनती है?
उत्तर:
रिचेस्ट आत्मा वह है जिसके पास अविनाशी खजानों की भरपूर सम्पत्ति है। यह खजाने हैं – ज्ञान, शक्तियों, गुणों और श्रेष्ठ संकल्पों के खजाने। यह सब खजाने केवल इस एक जन्म में नहीं, बल्कि अनेक जन्मों तक साथ चलते हैं। इसीलिए कहा गया है कि ब्राह्मण आत्माएँ “रिचेस्ट इन कल्प” हैं।
प्रश्न 4: इन अविनाशी खजानों को कैसे जमा किया जा सकता है?
उत्तर:
सहज राजयोग से। बापदादा ने इसका सहज तरीका बताया है – “बिन्दी”।
-
मैं आत्मा बिन्दी हूँ।
-
बाप भी बिन्दी है।
-
ड्रामा में जो बीत गया, उस पर बिन्दी।
इस तीन बिन्दियों की स्मृति से खजाने स्वतः जमा होते जाते हैं।
प्रश्न 5: याद सहज क्यों हो जाती है?
उत्तर:
याद सहज दो कारणों से होती है –
-
संबन्ध – जहाँ गहरा प्यार और स्नेह का सम्बन्ध होता है, वहाँ याद करना मुश्किल नहीं बल्कि भूलना मुश्किल होता है।
-
प्राप्ति – जितनी प्राप्तियाँ बाप से मिलती हैं, उतनी ही सहजता से याद बनी रहती है।
प्रश्न 6: “बेफिक्र बादशाह” किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जो आत्मा इन अविनाशी खजानों से सम्पन्न है, वही बेफिक्र बादशाह है। क्योंकि यह खजाने ऐसे हैं जिन्हें कोई चोर लूट नहीं सकता, राजा खा नहीं सकता, न पानी डुबो सकता। इसलिए सम्पन्न आत्मा निश्चिन्त, प्रसन्न और सदा खुश रहती है।
प्रश्न 7: स्वमान (Self-respect) में रहना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
स्वमान में रहने से देह-अभिमान स्वतः समाप्त हो जाता है। जब आत्मा “मैं आत्मा हूँ” और “मेरा बाबा” का अनुभव करती है तो उसे परमात्मा की पालना, शिक्षा और वरदान सहज मिलते हैं। स्वमान में स्थित आत्मा दूसरे को भी सहज सम्मान दे पाती है।
प्रश्न 8: खुशी को सबसे बड़ा खजाना क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि खुशी में ही हेल्थ (स्वास्थ्य), वेल्थ (सम्पत्ति) और हैपीनेस (सुख) तीनों शामिल हैं। खुशी के बिना जीवन नीरस हो जाता है। खुशी जितनी बांटी जाती है उतनी बढ़ती है, इसलिए कहा गया है – “खुशी जैसी कोई खुराक नहीं, खुशी जैसा कोई खजाना नहीं।”
प्रश्न 9: बापदादा ने सहज निरंतर योग के लिए कौन सी विधि बताई?
उत्तर:
सारे दिन में हम “मैं” और “मेरा” शब्द बार-बार बोलते हैं।
-
“मैं” बोलते समय स्मृति लाएँ – मैं आत्मा हूँ।
-
“मेरा” बोलते समय स्मृति लाएँ – मेरा बाबा।
यह अभ्यास निरन्तर सहज योगी बना देता है।
प्रश्न 10: उड़ती कला में आत्मा कैसे रहती है?
उत्तर:
उड़ती कला का अर्थ है – समस्याओं से घबराना नहीं, बल्कि उन्हें खिलौना समझकर खेलना। आत्मा उमंग-उत्साह और हिम्मत के पंखों से उड़ती है। उड़ती कला में रहने वाली आत्मा सदा समस्याओं से ऊपर रहती है और दूसरों को भी उड़ाती है।

