Ravana Rajya vs. Ram Rajya (23) Kali Yuga: Harmful Hell Satya Yuga: Beneficial Heaven

    रावण राज्य बनाम रामराज्य (23) कलियुगःअहितकारी नरक सतयुुगःपराेपकारी स्वर्ग

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“कलियुग: अहितकारी नरक – सतयुग: परोपकारी स्वर्ग”


1. भूमिका: भ्रमित विकास या विनाश की दिशा?

आज की दुनिया को हम अक्सर विकसित और प्रगतिशील मानते हैं,
पर क्या यह सच्ची प्रगति है?

वास्तव में यह कलियुग है —
एक ऐसा युग जो बाहर से चमकदार, पर भीतर से अहितकारी नरक बन चुका है।
यह मानवता के घुटन का युग है।


2. कलियुग: घुटन और हिंसा की भूमि

आज के युग में:

  • मन — द्वेष और हिंसा से भरा हुआ है।

  • वाणी — तलवार की तरह चोट पहुँचाती है।

  • कर्म — स्वार्थ, छल और पीड़ा से लथपथ हैं।

सच्चा प्रेम नहीं बचा —
केवल उपयोग, धोखा और चोट देने की प्रवृत्ति बची है।

यह है रावण का राज्य — जहाँ

  • दुश्मनी,

  • संघर्ष,

  • और भय
    हर मनुष्य की दिनचर्या बन चुके हैं।


3. अनाथों का शासन: पंच राज्य की त्रासदी

आज का समाज आध्यात्मिक रूप से अनाथ बन चुका है —
आत्माएँ अपने परमपिता शिव को भूल गई हैं।

अब शासन होता है:

  • न धर्म का,

  • न सच्चाई का —
    बल्कि पंच राज्य का:

यह शासन है:

  • मनुष्यों का,

  • उनके अहंकारों का,

  • और स्वार्थी व्यवस्थाओं का।

यही कारण है कि यह दुनिया बन गई है —
झूठी भूमि,
जहाँ दिखावा सच बन गया है, और सच्चाई अदृश्य हो गई है।


4. अंधेर नगरी: कलियुग की सच्ची तस्वीर

यह युग है:

  • भ्रम का,

  • धोखे का,

  • और अंधकार का

इसीलिए इसे कहा गया है —
“अंधेर नगरी, चौपट राजा”

यह वह युग है जहाँ प्रकाश का स्रोत — परमात्मा का ज्ञान — लुप्त हो गया है।


5. सतयुग: परोपकारी स्वर्ग की दिव्यता

अब तुलना कीजिए —
सतयुग, अर्थात ईश्वर का राज्य, स्वर्ण युग।

यह एक ऐसी दुनिया है:

  • जहाँ कोई हिंसक विचार तक नहीं आता।

  • जहाँ आत्मा और प्रकृति दोनों शांत और सहयोगी हैं।

  • जहाँ राजा-रानी भी अपने प्रजा को पारिवारिक प्रेम से संभालते हैं।

यह है परोपकारी स्वर्ग
जहाँ हर जीव:

  • मिलजुलकर रहता है,

  • शेर और मेमना भी एक साथ पानी पीते हैं,

  • और प्रकृति भी सेवाधारी बन जाती है।


6. स्वाभाविक दिव्यता और प्रेमपूर्ण संबंध

सतयुग के देवता:

  • दिव्य गुणों से भरपूर होते हैं,

  • उनके शब्द मधुर होते हैं,

  • उनका व्यवहार शुद्ध और राजसी होता है।

उनके संबंध:

  • आत्मा-आधारित,

  • सच्चे,

  • और निर्विकार प्रेम से जुड़े होते हैं।

यह वह समाज है:

  • जहाँ कोई शासन बल से नहीं चलता,

  • न कोई कानून तोड़ा जाता है,

  • क्योंकि हर आत्मा धर्म के मार्ग पर स्वाभाविक रूप से चलती है।


7. सच्चा राज्य: परमात्मा की श्रीमत पर आधारित

सतयुग है —
“असली राजस्थान” — न कि रेगिस्तान की भूमि,
बल्कि धर्म और दैवी गुणों की भूमि।

यह राज्य:

  • दंड नहीं,

  • प्रेम और मर्यादा से चलता है।

यह वह स्वर्ग है जिसे शिव बाबा अब राजयोग और आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा पुनः स्थापित कर रहे हैं।


8. निष्कर्ष: नर्क से स्वर्ग की यात्रा

प्रिय आत्माओं,

यह दुनिया भगवान ने नहीं बनाई है।
यह है रावण की बनाई हुई,
जो शरीर-चेतना और दोषों पर आधारित है।

लेकिन अब —
परमात्मा शिव स्वयं आए हैं,
हमें इस नरक से मुक्त करने,
और स्वर्ग की ओर ले जाने

वे हमें:

  • देवता जैसा चरित्र सिखाते हैं,

  • प्रेम, शांति, विनम्रता और शक्ति से भरपूर बनाते हैं।

आइए,

  • इस झूठी दुनिया को पहचानें,

  • अपने जीवन को दिव्य बनाएं,

  • और इस धरती को फिर से सतयुगीय स्वर्ग बनाने में उनका सहयोग करें।

कलियुग: अहितकारी नरक
से
सतयुग: परोपकारी स्वर्ग
की ओर —
यही है आज की सबसे शुभ यात्रा।


प्रश्न 1: क्या आज की दुनिया वास्तव में प्रगति कर रही है?

उत्तर: नहीं। आज की दुनिया जिसे हम प्रगति मानते हैं, वह वास्तव में एक अहितकारी नरक बन चुकी है। मनुष्यता घुटन महसूस कर रही है – मन हिंसा से भरा है, वचन तलवार जैसे हैं, और कर्म छल-कपट व दर्द से ग्रस्त हैं।


प्रश्न 2: कलियुग में मनुष्य का व्यवहार कैसा हो गया है?

उत्तर: कलियुग में:

  • मन हिंसात्मक है

  • वचन कटु और दुखदायक हैं

  • कर्म धोखा और स्वार्थ से भरे हुए हैं

  • रिश्तों में प्यार नहीं, बल्कि उपयोग और छल की प्रवृत्ति है


प्रश्न 3: पंच राज्य का अर्थ क्या है और यह क्यों अहितकारी है?

उत्तर: पंच राज्य का अर्थ है – लोगों, उनके अहंकार और स्वार्थ से बना हुआ शासन। यह धार्मिकता आधारित नहीं है, बल्कि शैतानी प्रवृत्तियों से संचालित है। इसमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन नहीं होता, इसलिए यह झगड़े और विवादों से भरा है।


प्रश्न 4: इस समय का शासक कौन है – ईश्वर या कोई और?

उत्तर: इस समय रावण – अर्थात विकारों और बुराइयों – का शासन है। यह ईश्वर का राज्य नहीं है। रावण के आदेशों पर चलती दुनिया, भ्रम, दिखावा और अधर्म से भरी है।


प्रश्न 5: सतयुग की दुनिया कलियुग से कैसे भिन्न है?

उत्तर: सतयुग – स्वर्ण युग – में:

  • मनुष्य दिव्य स्वभाव वाले होते हैं

  • कोई हिंसा, डर या दुख नहीं होता

  • सब प्रेम और समानता से रहते हैं

  • प्रकृति और जानवर भी शांतिपूर्ण होते हैं

  • शासन ईश्वरीय श्रीमत से चलता है – न दंड से


प्रश्न 6: सतयुग में जानवरों के बीच भी शांति कैसे संभव है?

उत्तर: क्योंकि सतयुग में आत्माएं और प्रकृति – दोनों ही शुद्ध होती हैं। वहाँ शेर और मेमना भी एक साथ पानी पीते हैं। हर जीव, प्रेम और संतुलन में रहता है – जैसे दूध और चीनी।


प्रश्न 7: सतयुग का शासन कैसा होता है?

उत्तर: सतयुग में ईश्वर का धर्ममय राज्य होता है। वहाँ कोई कानून लागू नहीं करना पड़ता, क्योंकि आत्माएं स्वभाव से ही धर्म का पालन करती हैं। वहाँ राजसीपन, चरित्र और सहयोग का स्वाभाविक वातावरण होता है।


प्रश्न 8: भगवान इस समय क्या कार्य कर रहे हैं?

उत्तर: भगवान शिव इस समय स्वयं आकर हमें अज्ञानता और दुखों की भूमि – कलियुग – से मुक्त कर रहे हैं। वह राजयोग और आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा हमें देवता बनने की विधि सिखा रहे हैं, ताकि हम पुनः सतयुग की स्वर्गीय दुनिया का निर्माण कर सकें।


प्रश्न 9: हम इस परिवर्तन में क्या भूमिका निभा सकते हैं?

उत्तर: हमें भगवान के कार्य को पहचानना है, और स्वयं को आत्मा रूप में जानकर उनकी श्रीमत पर चलना है। तभी हम रावण की दुनिया को पीछे छोड़, सतयुग के दिव्य नागरिक बन सकते हैं।


निष्कर्ष:

अब समय है –
“असत्य से सत्य की ओर, नर्क से स्वर्ग की ओर”
बढ़ने का।
आइए, परमात्मा की याद और ज्ञान के द्वारा अपने जीवन को बदलें और इस पृथ्वी पर स्वर्ग की स्थापना में सहयोगी बनें।

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