Ravana Rajya vs Ram Rajya (27) Why death in Kalyug is full of sorrow and fear

रावण राज्य बनाम रामराज्य (27) कलयुग में मृत्यु क्यों दुःख और भय से भरी है

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“कलियुग में मृत्यु क्यों दुःख और भय से भरी है – ईश्वर के ज्ञान के अनुसार”
मृत्यु बनाम सतयुग का सत्य: एक दिव्य रहस्योद्घाटन


परिचय: शैतानी दुनिया में मृत्यु और दुःख

आज की दुनिया में मृत्यु केवल एक शारीरिक अंत नहीं रही – यह एक मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक यातना बन चुकी है।
यह संसार, जिसे ईश्वर “शमशान” या “कब्रिस्तान” कहते हैं, ऐसे लोगों से भरा है जो जीवित होकर भी मरे हुए जैसे हैं – दुख, भय और चिंता से ग्रस्त।

यह कलियुग – लौह युग – रावण के राज्य की दुनिया है, जहाँ मृत्यु का मतलब है डर, पीड़ा और भारी खर्च।


आज की दुनिया में मृत्यु का क्या अर्थ है?

  • मृत्यु एक त्रासदी है।

  • मौत के पहले जीवन भर मानसिक तनाव, बीमारी, रिश्तों का टूटना, आर्थिक समस्याएँ – सब कुछ आत्मा को तोड़ते हैं।

  • मृत्यु की घड़ी भयावह होती है, और उसके बाद के संस्कार और भी बोझिल:

    • महंगे दाह संस्कार

    • पंडितों को खिलाना

    • हर साल श्राद्ध

    • अस्थियों को गंगा में बहाना

यह एक अनवरत दुःख का चक्र है।


दैवीय विरोधाभास: सतयुग (स्वर्ण युग) में मृत्यु

अब आइए उस दुनिया पर दृष्टि डालते हैं जिसे ईश्वर पुनः स्थापित कर रहे हैं – सतयुग, स्वर्ण युग।
यह वह युग है जहाँ मृत्यु को मृत्यु कहा ही नहीं जाता।

  • वहाँ आत्मा जब शरीर से बाहर आती है, तो उसे “विराजमान होना” कहा जाता है।

  • जैसे पुराने कपड़े बदलकर नए पहने जाते हैं, आत्मा नया सुंदर शरीर धारण करती है।

  • कोई शोक नहीं, कोई रोना नहीं, कोई भारी संस्कार नहीं।

  • अंतिम संस्कार एक शांत और प्राकृतिक प्रक्रिया होती है – बिलकुल सहज।

 कोई पुजारी नहीं
 कोई तामझाम नहीं
 कोई राख बहाना नहीं
 कोई वार्षिक कर्मकांड नहीं

यह है एक पवित्र, दिव्य मृत्यु – जो वास्तव में नवीनीकरण है।


यह विरोधाभास क्यों मौजूद है?

इसका कारण गहरा है –
आज की दुनिया देह-चेतना में डूबी है, जबकि सतयुग आत्मा-चेतना पर आधारित है।

  • देह-चेतना हमें शरीर से लगाव कराती है – और शरीर के नाश के साथ ही दुःख आता है।

  • आत्मा-चेतना हमें यह बोध कराती है कि हम अमर हैं – और शरीर केवल एक साधन है।

ईश्वर कहते हैं:
“सच्ची मृत्यु यह है कि आत्मा स्वयं को भूल जाए – और झूठे अहंकार, रिश्तों और इच्छाओं में डूब जाए।”

जब हम आत्मा को पहचान लेते हैं – और परमात्मा को याद करते हैं – तब हम मृत्यु से नहीं डरते।


आज ईश्वर की भूमिका: मृत्युलोक को अमरलोक में बदलना

इस समय, संगम युग में, स्वयं परमपिता परमात्मा अवतरित होकर हमें यह गुप्त ज्ञान दे रहे हैं:

🕉 “यह संसार एक कब्रिस्तान है – सब जीवित रहते हुए मर रहे हैं।”
लेकिन वे सिर्फ बताते नहीं, उपाय भी देते हैं

  • वह हमें सिखाते हैं राजयोग

  • वह हमें अनुभव कराते हैं कि हम आत्मा हैं – और परमात्मा के बच्चे हैं

  • वह हमें दिव्य जीवन जीने की शिक्षा देते हैं, जिससे मृत्यु भी उत्सव बन जाती है


निष्कर्ष: मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग

प्रिय आत्माओं,
अब समय आ गया है मृत्यु के सत्य को समझने का।

हमें देह और देहाभिमान से मुक्त होकर आत्मा की पहचान में स्थित होना है।

तभी:

  • मृत्यु का डर मिटेगा

  • पीड़ा समाप्त होगी

  • और हम मृत्युलोक से अमरलोक की यात्रा पर आगे बढ़ सकेंगे

यह परिवर्तन अब, यहीं, संगम युग में होता है।


समाप्ति विचार:

 मृत्यु को समझो, उससे डरो मत
 ज्ञान और योग से मृत्यु को भी मित्र बना लो
 आत्मा के रूप में अमर जीवन को अनुभव करो
और चलो उस दिशा में, जहाँ मृत्यु भी स्वाभाविक है – दर्द रहित, सहज और दिव्य

“कलियुग में मृत्यु क्यों दुःख और भय से भरी है – इसका उत्तर ईश्वर स्वयं दे रहे हैं। आइए उस उत्तर को जीवन बनाएं।” 🌺


प्रश्न 1: आज की दुनिया में मृत्यु इतनी भयावह और दुःख से भरी क्यों है?

उत्तर:आज की दुनिया, यानी कलियुग, एक देह-अहंकार और अज्ञानता से भरी हुई दुनिया है। यहाँ लोग शरीर को ही सब कुछ समझ बैठे हैं। इसलिए जब कोई मृत्यु होती है, तो यह केवल शरीर का अंत नहीं होता – यह भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक टूटन का कारण बनता है। हर दिन लोग तनाव, रोग, गरीबी और भय में जीते हैं, जो अपने-आप में एक धीमी मृत्यु है।


प्रश्न 2: कलियुग में मृत्यु केवल एक शारीरिक घटना है या इससे अधिक कुछ है?

उत्तर:ईश्वर के अनुसार, कलियुग में मृत्यु केवल शरीर छोड़ने की घटना नहीं है – यह भावनात्मक थकावट, मानसिक अवसाद, और जीवित रहते हुए टूट जाना भी है। लोग धीरे-धीरे दुःखों से मरते रहते हैं – बीमारियों, रिश्तों की समस्याओं, आर्थिक बोझ और भय से।


प्रश्न 3: मृत्यु के बाद के संस्कार इतने बोझिल और दुःखद क्यों होते हैं?

उत्तर:आज मृत्यु के बाद राख बहाना, श्राद्ध करना, पुजारियों को भोजन कराना, आदि जैसे अनेक महंगे और दुःखद अनुष्ठान होते हैं। ये रीति-रिवाज आत्मा की शांति के लिए नहीं, बल्कि समाज की मान्यताओं को निभाने के लिए किए जाते हैं – जो केवल परिवार पर मानसिक और आर्थिक बोझ डालते हैं।


प्रश्न 4: सतयुग में मृत्यु कैसी होती है? क्या वहाँ भी दुःख होता है?

उत्तर:सतयुग में मृत्यु को मृत्यु कहा ही नहीं जाता। वहाँ आत्मा स्वेच्छा से, शांति और संतुष्टि से, वृद्ध शरीर को छोड़कर एक नया, युवा शरीर धारण करती है – जैसे कोई पुराने कपड़े बदल ले।
वहाँ न शोक होता है, न कोई पुजारी, न ही कोई खर्चीला संस्कार। सब कुछ प्राकृतिक, सरल और शांति से होता है।


प्रश्न 5: यह इतना बड़ा विरोधाभास क्यों है – कलियुग में मृत्यु दुःखद और सतयुग में शुभ?

उत्तर:यह विरोधाभास इसलिए है क्योंकि कलियुग देह-चेतना का युग है, जबकि सतयुग आत्मा-चेतना का।
कलियुग में लोग शरीर से मोह रखते हैं, इसलिए शरीर छोड़ना दुःख लाता है। सतयुग में आत्मा शरीर से विरक्त होती है – वह जानती है कि मैं आत्मा हूँ, यह शरीर केवल एक वस्त्र है।


प्रश्न 6: ईश्वर मृत्यु के विषय में क्या बताते हैं?

उत्तर:ईश्वर कहते हैं कि वास्तविक मृत्यु आत्मा को भूल जाना है – देह-चेतना में फँस जाना है। और वास्तविक जीवन तब शुरू होता है जब आत्मा को अपनी पहचान याद आ जाती है – “मैं आत्मा हूँ, परमात्मा की संतान हूँ।”
राजयोग इसी जागृति की विधि है।


प्रश्न 7: क्या मृत्यु को उत्सव में बदला जा सकता है?

उत्तर:हाँ। ईश्वर स्वयं इस संगम युग में हमें सिखा रहे हैं कि मृत्यु को भी शुभ परिवर्तन में बदला जा सकता है – जैसे सतयुग में था।
जब हम आत्मा रूप में स्थित हो जाते हैं, तो मृत्यु भय या अंत नहीं, बल्कि एक नया आरंभ बन जाती है।


प्रश्न 8: आज क्या करना आवश्यक है, ताकि मृत्यु का भय समाप्त हो जाए?

उत्तर:हमें अभी – इसी संगम युग में – राजयोग द्वारा आत्म-चेतना जागृत करनी है। हमें देह-अहंकार, लोभ, मोह, और अज्ञान को मरने देना है, ताकि आत्मा अमरत्व की ओर बढ़े।
ईश्वर के ज्ञान से हमें यह समझना है कि मृत्यु कोई हार नहीं, बल्कि जीवन का रूपांतरण है।


🕊️ निष्कर्ष:-अब समय आ गया है कि हम उस दिव्य सत्य को स्वीकार करें, जिसे दुनिया ने भुला दिया है।
मृत्यु कोई दुःखद अंत नहीं, बल्कि जागृति का द्वार बन सकती है – यदि हम आत्मा-रूप में स्थित होकर परमात्मा को याद करें।

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