रावण राज्य बनाम रामराज्य(04)कलयुग बनाम सतयुग – त्रेतायुग
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
राम राज्य और रावण राज्य का अंतर — भाग 4
ओम शांति।
आज हम इस श्रृंखला के चौथे भाग में समझेंगे राम राज्य और रावण राज्य के बीच के गहरे अंतर को।
यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक सत्य है, जो समय चक्र में बार-बार दोहराया जाता है।
1. कलयुग से सतयुग तक का संक्रमण
हम चौथे विषय पर विचार करेंगे — कलयुग से सतयुग तक कैसे परिवर्तन होता है?
जिसे हम कहते हैं आयरन एज से गोल्डन एज की यात्रा।
कलयुग यानी पतन का चरम और सतयुग यानी पुनः दिव्यता की स्थापना।
2. रावण राज्य में नैतिक और आध्यात्मिक पतन
कलयुग को ही कहा गया है रावण राज्य।
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यहां धर्म का पतन,
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मानव मूल्यों का ह्रास,
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और स्वार्थ, पाखंड, दिखावा ही जीवन का आधार बन गया है।
सत्य का स्थान झूठ ने ले लिया है।
यहां “शिष्टाचार” तो है, पर वह असली नहीं — बस बाहरी आवरण है।
3. सामाजिक विघटन और प्रतिस्पर्धा
रावण राज्य में:
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अनेक शाखाएं, अनेक मत, अनेक भाषाएं, अनेक शासक।
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कोई एकता नहीं, विश्वास नहीं।
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हर कोई अपना अलग विचार रखता है — यहाँ तक कि एक परिवार में भी मेल नहीं।
यह है सामाजिक पतन की चरम स्थिति — जहाँ हर व्यक्ति अपने-अपने “राज्य” का राजा बनना चाहता है।
4. अराजकता और स्वार्थ का युग
आज कोई सार्वभौमिक सत्य या नैतिक नियम नहीं बचा है।
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हर कोई अपने स्वार्थ अनुसार नियम बदलता है।
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सहयोग, समर्पण, अनुशासन — सब लुप्त।
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यह है अराजकता की स्थिति, जहाँ रावण राज्य पूरी तरह हावी है।
5. सतयुग और त्रेता — रामराज्य की दिव्यता
अब हम चलते हैं रामराज्य, यानी सतयुग और त्रेता युग की ओर —
यह युग हैं:
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धार्मिकता,
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नैतिकता,
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दिव्यता और
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सच्चे आत्मिक गुणों का युग।
यहाँ:
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समाज स्वतः श्रेष्ठ होता है — नियम लिखने की आवश्यकता नहीं।
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एक ही राजा, एक ही धर्म, एक ही भाषा, और एक ही भावना होती है।
6. राम राज्य की सच्ची सभ्यता
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यहाँ की संविधान आत्मिक होता है।
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हर आत्मा सहयोगी, समर्पित और श्रेष्ठ संस्कारी होती है।
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कोई पाखंड, छल, या झूठ नहीं — बस सत्य, शांति और आनंद।
7. मुख्य अंतर — रावणराज्य बनाम रामराज्य
विशेषता | रावण राज्य (कलयुग) | राम राज्य (सतयुग) |
---|---|---|
नैतिकता | पतन | शुद्धता |
समाज | विघटन, प्रतिस्पर्धा | एकता, सहयोग |
शासन | कई शासक | एक समप्रभु राजा |
धर्म | अधर्म | धर्म |
व्यवहार | दिखावा, स्वार्थ | सच्चा, दिव्य |
निष्कर्ष
यह चौथा भाग हमें याद दिलाता है कि आज हम किस स्थिति में हैं और क्या बन सकते हैं।
हमें रावण राज्य को पहचानना होगा और राम राज्य की स्थापना के लिए स्वयं को बदलना होगा।
अब समय है — आत्म जागृति का, परिवर्तन का, और सच्ची दिव्यता की ओर लौटने का।
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